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Wednesday, 24 April, 2024
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क्या ट्रूकॉलर जैसी सेवाएं दे सकती हैं टेलीकॉम कंपनियां, TRAI के आइडिया पर चिंताएं बरकरार

दूरसंचार नियामक संस्था ने यूजर्स को स्पैम कॉल करने वालों की पहचान करने में मदद के लिए एक तंत्र का प्रस्ताव दिया है. विशेषज्ञ इस कदम का स्वागत करते हैं लेकिन सीमित संसाधनों को लेकर इसके कार्यान्वयन को लेकर चिंताएं व्यक्त की है.

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नई दिल्ली: भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा एक परामर्श पत्र जारी करने के कुछ दिनों बाद यह प्रस्ताव दिया गया है कि दूरसंचार ऑपरेटर्स एक ऐसी तकनीक का निर्माण करेंगे जो उपभोक्ताओं को स्पैम या धोखाधड़ी कॉल की पहचान करने में मदद करेगी. विशेषज्ञों ने इस विचार का स्वागत किया है लेकिन इसके कार्यान्वयन के बारे में चिंताएं बरकरार हैं.

‘इंट्रोडक्शन ऑफ कॉलिंग नेम प्रेजेंटेशन (सीएनएपी) टेलीकम्युनिकेशन नेटवर्क्स’ पेपर मंगलवार को जारी किया गया. नेटिव स्मार्टफोन टूल्स और थर्ड-पार्टी ऐप्स का जिक्र करते हुए, जो पहले से ही कॉलर आईडी सेवाएं प्रदान करते हैं – जैसे ट्रूकॉलर और भारत कॉलर आईडी और एंटी-स्पैम – पेपर ने पाया है कि ये हमेशा विश्वसनीय नहीं होते हैं क्योंकि वे क्राउड-सोर्स डेटा का उपयोग करते हैं.

हितधारकों के लिए, पेपर पर टिप्पणी देने की आखिरी तारीख 27 दिसंबर है. काउंटर टिप्पणियां 10 जनवरी 2023 तक दी जा सकती हैं, जिसके बाद संबंधित हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा.

हालांकि, विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि नियामक के प्रस्ताव का स्वागत किया है, उन्होंने बताया कि सीमित संसाधनों की वजह से प्रामाणिक यूजर्स की जानकारी की एक निर्देशिका बनाने के लिए सभी दूरसंचार ऑपरेटरों के साथ सहयोग करना चुनौतीपूर्ण होगा.

कंसल्टेंसी ग्रुप, अर्न्स्ट एंड यंग (ईवाई) के टेलीकॉम विशेषज्ञ प्रशांत सिंघल ने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे लगता है कि यह एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि टेलीमार्केटर्स की स्पैम कॉल एक समस्या है, हमने इसमें लगभग 250% की वृद्धि देखी है… गोपनीयता के मामले में सरकार सबसे सुरक्षित स्रोत है और साथ ही एक मजबूत केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) बुनियादी ढांचे का निर्माण करने में. एक व्यापक ढांचा बनाने में समय और संसाधन लग सकते हैं लेकिन यह अच्छे के लिए है और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.’

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यह ताजा घटनाक्रम सितंबर में रेलवे, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा जारी किए गए दूरसंचार बिल के मसौदे की पृष्ठभूमि में आया है. उन्होंने पारदर्शिता बढ़ाने वाले ‘लाइट-टच’ नियमन के माध्यम से भारत में साइबर और दूरसंचार धोखाधड़ी को खत्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया था.


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‘कॉल करने वाले की सही पहचान’

ट्राई का पेपर कहता है कि सेवा को लागू करने के लिए, सेवा प्रदाताओं को डेटाबेस तक पहुंच की आवश्यकता होगी जिसमें प्रत्येक टेलीफोन ग्राहक की सही नाम, पहचान की जानकारी हो.

पेपर के अनुसार, 30 सितंबर तक 114.55 करोड़ वायरलेस सब्सक्राइबर और 2.65 करोड़ वायरलाइन सब्सक्राइबर के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाजार बन गया है.

लेकिन ‘अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स’ से अनचाहा संचार (यूसीसी) में वृद्धि हुई है जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.

पेपर के मुताबिक टेलीफोन उपभोक्ताओं को जरूरत है कि वे कॉलिंग पार्टी (कॉल करने वाले) की सही पहचान करने में सक्षम हों. दि कॉलिंग लाइन आइडेंटिफिकेशन प्रेजेंटेशन (CLIP) सेवा इस आवश्यकता को पर्याप्त रूप से पूरा नहीं करती है क्योंकि यह सेवा केवल कॉल करने वाले का केवल टेलीफोन नंबर दिखाती है. जाहिर तौर पर, पेपर कहता है कि उक्त जरूरत नाम के जरिए पूरी की जा सकती है, जो कि कॉलिंग पार्टी के नाम के दिखने के साथ पूरी होगी.

ट्राई के अनुसार, उपभोक्ताओं ने इस बारे में चिंता जताई है कि कैसे, कॉलर आईडी सुविधा के अभाव में, ‘वे अज्ञात टेलीफोन नंबरों से कॉल अटेंड नहीं करना पसंद करते हैं क्योंकि ऐसी अधिकांश कॉल अपंजीकृत टेलीमार्केटर्स से अनचाहा कॉमर्शियल संचार (यूसीसी) होते हैं. नतीजतन, वास्तविक टेलीफोन कॉल का पता नहीं लग पाता.

रोबोकॉल्स (रिकॉर्डेड कॉल्स), स्पैम और फर्जी कॉल्स को लेकर भी चिंताएं हैं, जिसमें उपभोक्ताओं को टेलीफोन नंबरों के जरिए आर्थिक तौर से ठगा जाता है. पेपर का कहना है कि इनमें से ज्यादातर ने अब डू-नॉट-डिस्टर्ब (डीएनडी) फीचर को दरकिनार करना शुरू कर दिया है.

इसमें कहा गया है, ‘धोखाधड़ी कॉल के जरिए, कुछ लोग उपभोक्ताओं को धोखा देने के मकसद से बैंक खाते/वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) का डिटेल्स पाने की कोशिश करते हैं. टेलीफोन उपभोक्ताओं ने भी सीएलआई स्पूफिंग के संबंध में अपनी चिंता जाहिर की है.

स्पूफिंग तब होता है जब कोई यूजर कॉल के जवाब में को बरगलाने के लिए जानबूझकर अपनी पहचान छिपाने के लिए कॉलर आईडी को ‘गलत’ बनाता है. अधिकांश स्पैमर्स धोखा देने के लिए यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें किसी कंपनी या सरकारी एजेंसी से स्पूफ नंबर मिले.

विशेषज्ञों ने कहा है कि एक प्रामाणिक निर्देशिका बनाने और बनाए रखने की अत्यधिक आवश्यकता है जैसा कि अधिकांश देशों द्वारा किया जाता है.

टीएमटी लॉ प्रैक्टिस के मैनेजिंग पार्टनर अभिषेक मल्होत्रा ​​- जो प्रौद्योगिकी, मीडिया और दूरसंचार कानून में माहिर हैं – ने कहा कि सुझाव (ट्राई प्रस्ताव) के लिए दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को एक वास्तविक निर्देशिका मेनटेन रखने की जरूरत होगी.

‘स्पैमर्स को स्थायी रूप से खत्म करना’

इस साल मई में जब केंद्र सरकार इस कदम पर विचार कर रही थी, ट्रूकॉलर ने इस विचार का स्वागत किया लेकिन कहा कि टेलीकॉम कंपनियों के बीच सहयोग में लंबा समय लगेगा.

कंपनी का बयान के मुताबिक कि ट्रूकॉलर संचार को सुरक्षित और अधिक सुरक्षित बनाने के मिशन में मदद करने के उद्देश्य से किए गए सभी प्रयासों का स्वागत करता है. यदि बताई गई सेवा को विकसित किया जाना है, तो आकलन है कि इसके कार्यान्वयन में कई वर्ष लगेंगे और इसके लिए सभी प्रमुख दूरसंचार ऑपरेटरों के साथ एक सफल सहयोग की जरूरत होगी. वर्तमान में उपलब्ध जानकारी के आधार पर, हम यह नहीं देखते हैं कि यह एक प्रतिस्पर्धी सेवा होगी जो ट्रूकॉलर द्वारा हमारे 310 मिलियन से अधिक मासिक एक्टिव यूजर्स को प्रदान की जाने वाली सेवाओं और कार्यक्षमता की पूरी श्रृंखला के बराबर होगी. ट्रूकॉलर मूल नंबर पहचान सेवा के अलावा कई और मुद्दों का समाधान करता है.

यही बात दूरसंचार विशेषज्ञों ने भी दोहराई, जिनका मानना ​​है कि नियामक को एक कदम आगे बढ़कर स्पैमर्स को स्थायी रूप से खत्म करने पर काम करना चाहिए. ईवाई के सिंघल ने कहा कि डीएनडी सेवाओं को मजबूत करने और स्पैम कॉल को पूरी तरह से रोकने के बारे में व्यापक बातचीत होनी चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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