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Thursday, 25 April, 2024
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सीता के लिए मंदिर, नीतीश के लिए वोट? कैसे हिंदू धर्म बना बिहार की राजनीति का केंद्र

अपने मूल मतदाताओं के छिटककर भाजपा के साथ चले जाने के डर से जदयू ने सीतामढ़ी में सीता मंदिर की मांग उठाई है. साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 'हर घर गंगाजल' परियोजना को पार्टी 'भागीरथी' प्रयास करार दे रही है.

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पटना: बिहार की ‘सेक्युलर’ राजनीति एक नया रंग लेती दिख रही है, जिसमें प्राचीन हिंदू मान्यता का जिक्र कर राज्य में धर्म और राजनीति को मिलाकर एक नया विमर्श शुरू करने की कोशिश हो रही है. और सबसे ज्यादा अचरज की बात यह है कि बदलाव की यह कोशिश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ से नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन की ओर से की जा रही है.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 5 दिसंबर के कुरहानी विधानसभा उपचुनाव के बीच जदयू नेताओं को यह आशंका सता रही है कि कहीं उनके मूल मतदाता छिटककर भाजपा में न चले जाएं.

राज्य के बिजली मंत्री और वरिष्ठ जदयू नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव ने 22 नवंबर को जब केंद्र से सीतामढ़ी में सीता का मंदिर बनाने का आग्रह किया तो इस बात ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने कहा कि इसमें अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर की तरह ही सभी सुविधाएं होनी चाहिए. हालांकि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की ओर से अभी तक ऐसे दावों की पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन सीतामढ़ी के तमाम लोगों का मानना है कि देवी सीता का जन्म यहीं हुआ था.

बिजेंद्र यादव की मांग के सुर्खियों में आने के कुछ दिन बाद 27 नवंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर में गंगा जल आपूर्ति योजना की शुरुआत की, जिसमें 151 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन के जरिये राजगीर (नालंदा), गया और नवादा के बीच गंगा जल की आपूर्ति की जानी है.

यह योजना लॉन्च किए जाने के मौके पर जदयू के कई नेताओं और राज्य के मंत्रियों ने नीतीश कुमार की तुलना ऋषि भागीरथ से की, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार पवित्र नदी गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे.

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मुख्यमंत्री ने अपने भाषण के दौरान यह कहकर भाजपा के खिलाफ एक नया मोर्चा खोल दिया कि केंद्र सरकार की एजेंसी एएसआई राज्य सरकार के कई बार आग्रह करने के बावजूद नालंदा में जरासंध के अखाड़े के विकास पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार, मगध साम्राज्य के राजा जरासंध को भीम ने मल्लयुद्ध में मार गिराया था जिन्हें भगवान कृष्ण का मार्गदर्शन मिल रहा था.

28 नवंबर को गया में जल आपूर्ति योजना के उद्घाटन के मौके पर बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने ‘सरयू नदी को सीता के अभिशाप से मुक्त करने’ के लिए मुख्यमंत्री की प्रशंसा की. साथ ही कहा कि गंगा नदी का पानी अब साल भर नदी में उपलब्ध रहेगा.

पौराणिक धारणा है कि नदी कई वर्षों तक बिना पानी रही क्योंकि इसे देवी सीता ने श्राप दिया था.


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जदयू-भाजपा और पाला बदलता कोर वोट बैंक

सामाजिक न्याय की वकालत करते रहे सियासी दलों की तरफ से अपने राजनीतिक विमर्श में धर्म और पौराणिक कथाओं का इस्तेमाल करने के बारे में भाजपा नेताओं का मानना है कि जदयू और राजद जनसभाओं में धार्मिक और पौराणिक कथाओं का हवाला देकर भाजपा के नैरेटिव को ‘कमजोर’ करने की कोशिश कर रहे हैं.

बिहार में नेता विपक्ष और भाजपा के विधायक विजय सिन्हा ने कहा, ‘अन्य जिलों में गंगाजल की उपलब्धता स्वागत योग्य है. लेकिन गंगाजल तब दिया जाता है जब कोई व्यक्ति मर रहा होता है. नीतीश सरकार दम तोड़ रही है और जनता को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने में विफल रही है.’

भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बच्चोल ने देवी-देवताओं का नाम लेने से ‘नीतीश कुमार को कोई मदद’ नहीं मिलने की टिप्पणी के साथ दिप्रिंट से कहा, ‘लोगों को अभी भी याद है कि कैसे वह (नीतीश) एक मुस्लिम मंत्री को गया के विष्णुपद मंदिर के अंदर ले गए थे और कैसे उन्होंने ही सरकारी स्कूलों को जुमे पर बंद करने की अनुमति देकर व्यावहारिक तौर पर सीमांचल के मुस्लिम बहुल जिलों में शरीयत कानून की पहल की.

दूसरी तरफ, जदयू इस बात से इनकार करती रही है कि वह किसी राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रही है. पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा. ‘मां सीता के मंदिर की मांग का संबंध लैंगिक समानता से है. यह एक पहलू है जिसे भाजपा ने छोड़ दिया है. रही बात गया और राजगीर के नागरिकों को गंगा जल उपलब्ध कराने की तो इसमें मुख्यमंत्री की भूमिका वास्तव में एक भागीरथी प्रयास है.’

रंजन आगे कहते हैं, ‘बाढ़ से बचाव के लिए नदियों को जोड़ने की बात लंबे समय से की जाती रही है लेकिन नीतीश कुमार ने वास्तव में कर भी दिखाया है. पौराणिक मान्यताओं का धर्म की बात तो इन प्रयासों का एक बाइ-प्रोडक्ट है.’

लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि बिहार के राजनीतिक विमर्श में बदलाव का एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि जदयू को यह आशंका सता रही हो कि उसके कोर वोटर छिटककर भाजपा में जा सकते हैं. हालांकि, जदयू सार्वजनिक तौर पर ऐसा स्वीकारने से करने से बचता रहा है.

नीतीश कुमार के मूल जनाधार में कुर्मी, कोइरी (ओबीसी) और ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) का एक वर्ग शामिल है. जदयू प्रमुख ने केवल 2014 में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था और उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से जदयू को केवल दो सीटें मिली और कुल पड़े वोटों में उसकी हिस्सेदारी 15 प्रतिशत रही थी.

अब बात अगर 2022 की करें तो दो विधानसभा उपचुनावों, मोकामा और गोपालगंज के नतीजों ने एक ज्वलंत सवाल खड़ा कर दिया है. यद्यपि राजद और भाजपा दोनों ने थोड़े कम अंतर के साथ अपनी सीटों को बरकरार रखा है लेकिन इसे लेकर बिहार के सियासी हलकों में सवाल उठाया जा रहा है कि जब भाजपा मोकामा में राजद की जीत के अंतर को कम करने में सक्षम रही और वहीं नीतीश के समर्थन बिना गोपालगंज जीतने में कामयाब रही तो आखिर नीतीश के कोर वोटर का झुकाव किस तरफ रहा.

जदयू सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हो सकता है कि पार्टी के कोर वोटर धीरे-धीरे भाजपा की ओर जा रहे हों. जदयू के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘शायद इसीलिए भागीरथ, सीता और जरासंध का बार-बार उल्लेख किया जा रहा है.’

(अनुवाद- रावी द्विवेदी)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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