नई दिल्ली: बांग्लादेश में जन्मी लीसा गाजी की दूसरी फिल्म निर्देशक के रूप में, बारिर नाम शाहाना — ए हाउस नेम्ड शाहाना, ढाका में अपनी जिंदगी को फिर से बनाने की कोशिश कर रही एक तलाकशुदा महिला की कहानी दिखाती है. यह कई मायनों में गाजी की खुद की कहानी भी है. लंदन में रहने वाली लेखिका और अभिनेत्री गाजी का खुद का तलाक 1990 के दशक की शुरुआत में उनके जीवन को उन रास्तों पर ले गया, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. वही जिद अब उन्हें बांग्लादेश की पहली महिला फिल्म निर्माता बना चुकी है, जिसकी फिल्म को 98वें अकैडमी अवार्ड्स में बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म के लिए देश की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया है.
गाजी ने कहा, “मैं फिल्म में वास्तविक अनुभवों को शामिल करना चाहती थी और महिला पात्र दिखाना चाहती थी जो आपको बाधाओं को तोड़ने में मदद करें — या खुद अनजाने में पथप्रदर्शक बन जाएं.”
बारिर नाम शाहाना में मुख्य पात्र दीपा (आनन सिद्धिक्का) को इंग्लैंड में एक विधुर के साथ लंबी दूरी का निकाह करने के लिए मजबूर किया जाता है. जल्द ही, उसे दुर्व्यवहार सहना पड़ता है, लेकिन आखिरकार वह हिम्मत जुटाकर वापस बांग्लादेश लौट जाती है. इसके बाद जो होता है, वह कई दक्षिण एशियाई घरों में आम है — दीपा को कलंकित और असफल माना जाता है. फिर भी, वह अपने माता-पिता को अपने शिक्षा का समर्थन करने के लिए मनाती है और वर्षों में एक योग्य चिकित्सक बन जाती है.
गाजी की खुद की कहानी भी दीपा की कहानी के समान है. 22 साल की उम्र में, उन्होंने अपने विवाह को छोड़कर स्वतंत्रता को चुना. इसके बाद के वर्षों में, उन्हें अपने पिता का नुकसान झेलना पड़ा — जो बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के सिपाही थे — और उनकी मां ने “टूटी हुई” बेटी की शादी को “सही” करने के लिए संघर्ष किया.
गाजी कहती हैं, “तलाक को दक्षिण एशियाई लड़की की उस मूल जिम्मेदारी — शादी की असफलता माना जाता है. और इसे मेरी मां की भी असफलता माना गया.” उन्होंने बताया, “एक रिश्तेदार की शादी में मुझे कहा गया कि मैं शामिल न होऊं क्योंकि तलाकशुदा महिलाएं ‘अशुभ’ मानी जाती हैं.”
कोमोला कलेक्टिव
गाजी को अपना तलाक फाइनल करना पड़ा और इसके लिए उन्होंने एक प्रॉ बोनो वकील को हायर किया. इसके बाद उन्होंने एक मार्केटिंग जॉब ली, जिसमें उन्हें कम आय वाले घरों में डिटर्जेंट के सैंपल वितरित करने थे और बदले में सर्वे डेटा लेना था. सफलता पाने के लिए दृढ़ संकल्पित गाजी ने अंततः प्रोेक्टर एंड गैंबल में जॉइन किया, जहां उन्होंने ब्रांड के बांग्लादेश अभियान के लिए अब प्रसिद्ध टैगलाइन “Ariel elo, daag moila gelo (एरियस इन, स्टैन्स आउट)” भी बनाई.
विज्ञापन में उनके काम ने उन्हें स्क्रिप्ट राइटिंग और कॉपीराइटिंग सीखने का मौका दिया, जिससे उनकी रचनात्मक जिज्ञासा बढ़ी और उन्हें थिएटर की ओर खींचा. जल्द ही उन्होंने ढाका स्थित थिएटर ग्रुप नगरिक नाट्र्य साम्प्रदाय में शामिल हुईं.
फिर दूसरी शादी के बाद, गाजी अपने पति के साथ यूके चली गईं, लेकिन खुद के शब्दों में, उन्होंने महसूस किया कि वह “फिश आउट ऑफ़ वाटर” हैं और यह तय नहीं था कि उनका अगला करियर चरण क्या होगा. उन्होंने बांग्ला टीवी, एक कम्युनिटी चैनल में जॉब ली, जहाँ उन्होंने साप्ताहिक शो Aei Jonopode का निर्माण किया. 2008 में उन्होंने प्रमुख साउथ एशियाई थिएटर कंपनी तारा आर्ट्स जॉइन की और नाटक Sonata का रूपांतरण किया.
उसी साल, उन्होंने कोमला कलेक्टिव की सह-स्थापना की, जो चार महिला थिएटर प्रैक्टिशनर और फिल्म निर्माताओं का एक समूह था, जो विभिन्न रचनात्मक पृष्ठभूमियों से आते हैं और जिनका साझा उद्देश्य महिलाओं की कहानियां बताना था, जिन्हें अक्सर सुना नहीं जाता.
गाजी ने कहा, “मैंने यह यात्रा शुरू की ताकि कुछ असाधारण बिरांगोना महिलाओं पर फिल्म बना सकूं, जो बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यौन हिंसा की पीड़ित रही थीं, और जिनकी कहानियां मैंने अपने पिता से सुनी थीं.”

उन्होंने सरायगंज का दौरा किया और वहां की महिलाओं के अनुभवों को रिकॉर्ड किया. यह फुटेज बाद में उनकी प्रशंसित नाट्य प्रस्तुति Birangona: Women of War का हिस्सा बनी, जिसका निर्देशन फिलिज ओज़कान ने किया और स्क्रिप्ट समिना लुत्फा ने लिखी. नाटक गाजी की अवधारणा और शोध पर आधारित था और इसमें वह मुख्य कलाकार थीं.
यह नाटक द ऑफीज़ (UK) के लिए नामांकित हुआ और बाद में गाजी की पहली डॉक्यूमेंट्री फीचर Rising Silence में बदल गया. इस फिल्म ने 15 इंटरनेशनल अवॉर्ड्स जीते, जिनमें 2019 ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री, एशियन मीडिया अवार्ड फॉर बेस्ट इन्वेस्टिगेशन (UK), और फीचर डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में मूनडांस अवार्ड (USA) शामिल हैं.
Rising Silence की सफलता ने गाजी को उनकी पहली कथा फीचर बनाने के लिए प्रेरित किया. बारिर नाम शाहाना ने 2023 के जियो मामी मुंबई फिल्म फेस्टिवल में जेंडर सेंसिटिविटी अवार्ड जीता और लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल, ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल और कोलकाता पीपल्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हुई.
लेकिन गाजी के लिए यह सिर्फ शुरुआत है.
गाजी कहती हैं, “मेरे पास एक चीज़ है, जो मुझे पसंद भी है, और वह यह कि मुझे हतोत्साहित करना बहुत मुश्किल है. मुझे ‘ना’ कई बार सुना गया, लेकिन इससे मुझे रोक नहीं पाया. बारिर नाम शाहाना बनाने के लिए मैंने अपनी सारी जीवन की बचत इस्तेमाल की.”
बांग्लादेशी सिनेमा का भविष्य
यह पूरी तरह से भाग्य की बात थी, गाजी ने कहा, कि उन्हें यह पता चला — जब वह फिल्म के थिएटरिक रिलीज के लिए 19 सितंबर को बांग्लादेश में थीं — कि ऑस्कर सबमिशन की आधिकारिक अंतिम तिथि केवल दो दिनों में समाप्त हो रही थी. उन्होंने तुरंत प्रक्रिया पूरी की और 17 अक्टूबर को बारिर नाम शाहाना को 98वें अकैडमी अवार्ड्स में बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म के लिए बांग्लादेश की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में घोषित किया गया.
फिल्म ने नक्षी कंथर जामिन, प्रियो मालोती, सबा, और मायना को हराकर यह ऐतिहासिक स्थान हासिल किया.
बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म के लिए ऑस्कर शॉर्टलिस्ट 16 दिसंबर को घोषित की जाएगी, इसके बाद अंतिम पांच नामांकित फिल्में 22 जनवरी 2026 को सामने आएंगी.
गाजी ने कहा, “वर्तमान में, मैं अपनी दूसरी फीचर फिल्म शास्ती (सज़ा) की स्क्रिप्ट आनन सिद्धिक्का और सदिया खालिद रीति के साथ लिख रही हूँ. यह उसी नाम की रवींद्रनाथ टैगोर की लघु कहानी से प्रेरित है. फिल्म इस प्रिय क्लासिक पर एक आधुनिक दृष्टिकोण पेश करेगी.”
गाजी को बांग्लादेशी सिनेमा की दिशा को लेकर आशावादी हैं.
उन्होंने कहा, “दुनिया अब बांग्लादेशी फिल्मों को गंभीरता से लेने लगी है, खासकर पिछले दशक में, देश से निकल रही कहानियों के कारण.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘मेहमानों का स्वागत चाय और अखबार से करें’ — हरियाणा DGP का आला अधिकारियों को खुला पत्र