ढाका: दुर्गा पूजा की मूल कहानी क्या है? दुर्गा पूजा कब और कहां से शुरू हुई? यह एक पुरानी बहस है और इसे निपटाने के लिए ढाका का एक मुस्लिम यूट्यूबर सामने आया. सलाहुद्दीन सुमोन एक बांग्लादेशी यूट्यूबर हैं. 1.63 मिलियन सब्सक्राइबर के साथ वह बांग्लादेश में इतिहास संबधित कंटेंट देखे जाने वाले सबसे बड़े यूट्यूबर हैं.
शुरुआत में कई गलत कदम उठाने और मौत की धमकियों के बावजूद दुर्गा पूजा रहस्य को सुलझाना एक ऐसी खोज थी जिसने बांग्लादेश के हिंदू धार्मिक इतिहास के प्रति उनके आकर्षण को बढ़ाया. और हर साल सीमा के दोनों ओर के बंगाली हिंदू त्योहारी सीज़न में इस बहस को दोबारा शुरू करते हैं.
सुमोन ने निष्कर्ष निकाला है कि पहली दुर्गा पूजा संभवतः सतयुग में हुई थी. माना जाता है कि सतयुग हिंदू युग चक्र के चार युगों में से सबसे पहला है. उनका मानना है कि यह पहली बार मेदोश मुनीर आश्रम में हुआ, जो एक हिंदू मंदिर है और बांग्लादेश के बोलखाली उपजिला में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है.
ढाका के व्यस्त कॉफी बज़ कैफे में नींबू सोडा पीते हुए वह कहते हैं, “मुझे गलत साबित करने के लिए अबतक कोई भी आगे नहीं आया है.”
12 अक्टूबर 2021 को शेयर किए गए उनके लगभग 45 मिनट लंबे वीडियो को 4,71,533 से अधिक बार देखा गया है. उनके कई दर्शक बांग्ला भाषी भारतीय हैं जिनका बांग्लादेश के प्रति काफी आकर्षण है.
वह कहते हैं, “सच यह है कि बंगाली हिंदू दर्शक हर साल मुझे उनके सबसे बड़े त्योहार की मूल कहानी तक ले जाने के लिए धन्यवाद देते हैं. वे देश के इतिहास, विरासत और संस्कृति के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं. कुछ लोगों को इससे दिक्कत भी है, लेकिन मैं कट्टरपंथियों को हमेशा नजरअंदाज करता हूं.”
पूर्व पत्रकार ने बांग्लादेश में मंदिरों और हिंदू विरासत स्थलों पर कम से कम 20 वीडियो अपलोड किए हैं. उन्होंने राजशाही जिले में पुथिया मंदिर परिसर का दस्तावेजीकरण किया है और एक अलग संप्रदाय बनाने वाले मतुआ समुदाय से मिलने के लिए गोपालगंज जिले के ओरकांडी की यात्रा की है. साथ ही उन्होंने ढाका से एक घंटे की दूरी पर कोलाकोपा गांव में पूर्व हिंदू जमींदारों की वीरान पड़ी हवेलियों पर भी वीडियो बनाए हैं.
उन्होंने असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, तमिलनाडु और कोलकाता की भी यात्रा की है. इन राज्यों की यात्रा के दौरान उन्होंने उनके पूजा स्थलों, व्यंजनों और स्थानीय संस्कृति का दस्तावेजीकरण किया है. तमिलनाडु में वह अपने दर्शकों के लिए मदुरै के मीनाक्षी अम्मन मंदिर और महाबलीपुरम की वास्तुकला को लेकर एक वीडियो बनाया जबकि कोलकाता में उन्होंने ईद मनाई.
हिंदू धार्मिक इतिहास या विरासत पर उनके वीडियो के कमेंट सेक्शन में उनपर काफी नकारात्मक कमेंट भी किए गए हैं. उसमें गालियों और आरोपों की बाढ़ आ गई है और उन्हें कहा गया कि वह इस्लाम से दूर जा रहा है.
वह कहते हैं, “मैं अलग हूं. मैं एक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हूं. लेकिन मैं बांग्लादेश के हिंदू इतिहास से भी काफी प्रभावित हूं.”
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ग़लत धारणाओं को सुधारने की जरूरत
पहली बार दुर्गा पूजा की पहेली को सुलझाने का सुमोन का प्रयास फैक्ट चेक और पुष्टिकरण के लिए एक सबक था. उसने इसे गलत समझा.
15 अगस्त 2020 को, सुमोन ने एक वीडियो डाला था जिसमें कहा गया था कि पहली बार दुर्गा पूजा राजशाही के बागमारा उपजिला में निर्मित राजा कांगसा नारायण मंदिर में आयोजित की गई थी. उसके बाद सुमोन को यकीन था कि वह सही है.
वह इस क्षेत्र को अच्छी तरह से जानते थे और उन्होंने राजशाही विश्वविद्यालय में पढ़ाई की थी और यहां तक कि एक पत्रकार के रूप में वह जिले में काम भी किया था.
सुमोन कहते हैं, “जिले में और यहां तक कि बाहर भी हर कोई जानता था कि राजा कांगसा नारायण ने 1480 ईस्वी में जो मंदिर बनवाया था, वहीं पहली बार दुर्गा पूजा हुई थी.”
स्थानीय समाचार पत्रों के लेखों ने इस दावे को और पुष्ट किया. इस बारे में कई कहानियां थीं कि कैसे इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व था क्योंकि यहां पहली बार दुर्गा पूजा मनाई गई थी. यहां तक कि द डेली ऑब्जर्वर ने 9 अक्टूबर 2021 को एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था, ‘राजशाही में दुर्गा पूजा के प्रवर्तक किंग कांग्स नारायण’.
द डेली ऑब्जर्वर में लिखा गया था, “राजा कांगसा नारायण राय बहादुर ने इसे 1480 ई. (887 बी.एस.) में स्थापित किया था. उन्होंने खुद को राक्षसों के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए मंदिर का निर्माण कराया था. बाद में उपमहाद्वीप में दुर्गा पूजा धूम-धाम से मनाया जाने लगा. काली पूजा के दौरान भी राजा कांगसा नारायण आधुनिक तरीके से उत्सव का आयोजन करते थे.”
सुमोन ने सोचा कि जब उसने कांगसा के मंदिर के इतिहास का पता लगाने वाला वीडियो अपलोड किया तो वह सही रास्ते पर था. लेकिन इसको लेकर काफी तीखी प्रतिक्रिया मिली. भारत और बांग्लादेश के कई टिप्पणीकारों ने उन्हें बताया कि पहली दुर्गा पूजा मेदोश मुनीर आश्रम में हुई थी.
सुमोन पूछते हैं, “सोशल मीडिया के युग में लगातार फैक्ट चेक की जा रही है. लेकिन कोई लोगों के विश्वास का फैक्ट चेक कैसे कर सकता है?”
कहानी है कि पहली पूजा सतयुग के दौरान हुई थी. वह कहते हैं, “इतनी दूर के समय से क्या कोई साल का पता नहीं लगा सकता. उदाहरण के लिए, सतयुग का समय का काल क्या था? क्या आप ग्रेगोरियन कैलेंडर के माध्यम से इसका पता लगा सकते हैं?”
और इसके बाद उन्होंने मेदोश मुनीर आश्रम की यात्रा करने का फैसला किया.
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बोलखाली में आश्रम
सुमोन और उनके दल ने बोलखाली जाने का फैसला किया जो बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर एक बड़े बंदरगाह शहर चटगांव से जोड़ने वाले छोटे रेल पुल के पास है. 1931 में निर्मित यह कलूरघाट पुल ट्रेनों के लिए है, लेकिन कारें और पैदल यात्री भी इसका जमकर इस्तेमाल करते हैं, जिससे इस पुल पर लंबे समय तक ट्रैफिक जाम रहता है.
वहां से, उन्होंने बोलखाली के सुदूर छोर पर स्थित पहाड़ी रास्ते के लिए एक ऑटोरिक्शा लिया. और फिर वे लंबी सीढ़ियां चढ़कर उस पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे जहां आश्रम है.
1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान यह आश्रम लगभग नष्ट हो चुका है. लेकिन एक बार फिर मेधश मुनीर के भक्तों को वापस लाने और उनकी किंवदंती को जीवित रखने के लिए इस पहाड़ी की चोटी पर ईंट जोड़-जोड़ कर इसे दोबारा बनाया गया है.
सुमोन इस पर रिपोर्ट करने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे.
23 अक्टूबर 2015 को, द डेली स्टार ने इस बारे में एक लेख लिखा था कि क्यों बोलखाली के आश्रम में आगंतुकों को एलईडी रोशनी के नीचे चमचमाते नए मंडप और अन्य “सामान्य पूजा समारोह” की पेशकश नहीं की जाएगी.
द डेली स्टार में लिखा गया “हालांकि, यह अपने सदियों पुराने इतिहास के लिए अद्वितीय है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बांग्लादेश का हर हिंदू इस जगह का बहुत सम्मान करता है क्योंकि कहानियों के मुताबिक यह क्षेत्र वसंती पूजा का उद्गम स्थल है.” वसंती पूजी वसंत के दौरान मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा उत्सव है.
एक साल बाद, जब सुमोन ने अपने चैनल पर वीडियो अपलोड किया, तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. वह लोगों के द्वारा मिली तारीफों को एक संकेत के रूप में लेते हैं कि यह बहस लगभग सुलझ गई है.
सुमोन ने निष्कर्ष निकाला है कि पहली दुर्गा पूजा संभवतः सतयुग में हुई थी, जो हिंदू युग चक्र के चार युगों में से पहला था. उनका मानना है कि यह पहली बार मेदोश मुनीर आश्रम में, जो एक हिंदू मंदिर है और बांग्लादेश के बोलखाली उपजिला में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, में आयोजित हुई थी.
सुमोन कहते हैं, “राजशाही में राजा कांगसा नारायण के मंदिर पर मेरे वीडियो के विपरीत, मेधस मुनीर आश्रम पर इस वीडियो की कोई फैक्ट चेक नहीं की गई. वास्तव में, इस वीडियो को शूट करने के लिए मुझे धन्यवाद देने वाले कई कमेंट्स आ रहे हैं.”
मटुआ महासंघ के सचिव और बांग्लादेश में हिदुओं के एक प्रमुख आवाज सागर साधु ठाकुर सुमोन की दृढ़ता और प्रामाणिकता की जमकर प्रशंसा करते हैं.
वह कहते हैं, “सलाहुद्दीन सुमोन को हिंदू धार्मिक इतिहास और संस्कृति पर वीडियो शूट करने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. और उनके वीडियो यहां और भारत में काफी लोकप्रिय हैं. कौन निश्चित रूप से बता सकता था कि मेधस मुनीर आश्रम कितना पुराना है? लेकिन ऐसा लगता है कि लाखों बंगाली हिंदू उनके वीडियो को देखने के बाद संतुष्ट हैं.”
बांग्लादेश की समन्वयवादी संस्कृति
बांग्लादेश में लाखों लोग सुमोन के वीडियो देखते हैं, जिनमें से कई मुस्लिम हैं. हालांकि, कुछ लोग उनके खिलाफ गलत टिप्पणियां भी करते हैं और साथ ही सुमोन को नियमित रूप से जान से मारने की धमकियां भी मिलती रहती हैं.
यह नफरत यूट्यूबर की अधिक एकजुट संस्कृति की बचपन की यादों के बिल्कुल विपरीत है.
वह कहते हैं, “यह आपको अजीब लग सकता है, लेकिन मैं बोगरा जिले के एडमदिघी उपजिला के पुशिंदा नामक धूल भरे गांव में मैं पैदा हुआ था और हम सब एक साथ बड़े हुए थे.”
उनके स्कूल के दोस्त हिंदू और मुस्लिम दोनों थे और घर पर उनके माता-पिता कोई भेदभाव नहीं करते थे.
वह कहते हैं, “सिर्फ हिंदू ही नहीं, हमें बौद्धों, ईसाइयों और अन्य सभी धर्मों के लोगों को गले लगाना सिखाया गया.”
यह समधर्मी संस्कृति है जिसे सुमोन अपने वीडियो के माध्यम से लोकप्रिय बनाना चाहते हैं. इतिहास और अपने देश के प्रति उनका प्रेम उन्हें बांग्लादेश में हिंदू धर्म की कहानियां खोजने के लिए मजबूर करता है.
वह आगे कहते हैं, “मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि मैं हिंदू मंदिरों के प्रति इतना आकर्षित क्यों हूं. इसका उत्तर इतिहास के प्रति मेरा प्रेम है. बांग्लादेश के मंदिरों की कहानी मुझे आकर्षित करती है. मैं आगे भी अतीत को खंगालना जारी रखूंगा.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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