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Monday, 25 August, 2025
होमफीचरप्राइवेट अस्पताल आयुष्मान भारत योजना से जूझ रहे हैं—सरकार पर 1.2 लाख करोड़ रुपये बकाया है

प्राइवेट अस्पताल आयुष्मान भारत योजना से जूझ रहे हैं—सरकार पर 1.2 लाख करोड़ रुपये बकाया है

जयपुर के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, "आप किसी भी राज्य का नाम ले लीजिए, हालात एक जैसे हैं। भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना दिन-ब-दिन और खराब होती जा रही है."

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फरीदाबाद: हरियाणा के फरीदाबाद में अमृता अस्पताल के लिए जब जमील घर से निकले तो उनके हाथों में आयुष्मान कार्ड था. वह भीतर से डरे हुए थे. उनका डर कैंसर को लेकर नहीं था जिससे वो पीड़ित हैं बल्कि इस बात को लेकर था कि क्या डॉक्टर उनका इलाज करेंगे.

नरेंद्र मोदी सरकार की गरीबों के लिए महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना को सात साल हुए हैं लेकिन अब ये संकट से जूझ रही है. पूरे भारत में, 32,000 से ज़्यादा अस्पताल—निजी और सरकारी दोनों—इस योजना के तहत सूचीबद्ध हैं, जो प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का वार्षिक कवरेज देती है लेकिन बकाया बिल 1.21 लाख करोड़ रुपये को पार कर गए हैं.

मणिपुर से लेकर राजस्थान और जम्मू-कश्मीर तक, निजी अस्पताल मरीजों को इसलिए लौटा रहे हैं क्योंकि सरकार ने अभी तक उन्हें भुगतान नहीं किया है.

Patients waiting at the Ayushman ward in the Faridabad's largest Amrita Hospital which was inaugurated by PM Modi | Photo: Krishan Murari/ThePrint
फरीदाबाद के सबसे बड़े अमृता अस्पताल में आयुष्मान वार्ड में प्रतीक्षा करते मरीज, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने किया | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

अब, इस तूफ़ान का केंद्र हरियाणा है जहां आयुष्मान भारत और इसी तरह की एक राज्य योजना, चिरायु योजना—दोनों ही ठप हो गई हैं. 7 अगस्त से, राज्य के 600 से ज़्यादा सूचीबद्ध निजी अस्पतालों ने 500 करोड़ रुपये के बकाया बिलों का हवाला देते हुए आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) को बंद कर दिया है.

24 अगस्त को, आईएमए ने पानीपत में एक उग्र विरोध प्रदर्शन किया और सूचीबद्ध अस्पतालों ने आयुष्मान भारत समझौता ज्ञापन (MoU) को जला दिया.

देश भर के 12 करोड़ आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों में से 1.364 करोड़ लाभार्थी हरियाणा से हैं.

The poster, which says the operations under the Ayushman Bharat scheme are on hold at the Surya Ortho and Trauma Centre in Faridabad | Photo: Krishan Murari/ThePrint
फरीदाबाद के सूर्या ऑर्थो एंड ट्रॉमा सेंटर में आयुष्मान भारत योजना के तहत ऑपरेशन रोके जाने का पोस्टर | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

हरियाणा आयुष्मान समिति के अध्यक्ष डॉ. सुरेश अरोड़ा, जो फरीदाबाद के सूर्या ऑर्थो एंड ट्रॉमा सेंटर में वरिष्ठ सलाहकार (वरिष्ठ ऑर्थो सर्जन) भी हैं, ने कहा, “यह योजना व्यवस्थागत उपेक्षा और नौकरशाही की बाधाओं से जूझ रही है.”

इस संकट ने निजी अस्पतालों को सरकार के खिलाफ और डॉक्टरों को नौकरशाहों के खिलाफ खड़ा कर दिया है. दोनों तरफ विश्वास और पारदर्शिता की कमी ने इस मुद्दे को और बढ़ा दिया है. अधिकारी अस्पतालों पर बढ़ा-चढ़ाकर बिल देने का आरोप लगा रहे हैं और मरीज़ इस टकराव में फंस रहे हैं.

यह योजना के वादे से कोसों दूर है. इस साल फरवरी में, प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में आयुष्मान भारत योजना की प्रशंसा की थी.

मोदी ने कहा, “देशवासियों ने लगभग 1.20 लाख करोड़ रुपये बचाए हैं, जो वे अन्यथा अपनी जेब से खर्च करते.”

लेकिन हरियाणा में, लाभार्थियों को योजना से वंचित किया जा रहा है, योजना के तहत सर्जरी रद्द की जा रही हैं, और सरकारी अस्पताल उन मरीजों की अचानक बढ़ती संख्या को झेल रहे हैं जिनके पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) हरियाणा चैप्टर के सचिव धीरेंद्र सोनी ने चेतावनी दी, “तत्काल बजटीय सहायता, पारदर्शिता और तेज़ दावा निपटान के बिना, यह योजना—जिसका उद्देश्य सबसे गरीब लोगों को मुफ्त इलाज प्रदान करना था—के ध्वस्त होने का खतरा है, जिससे लाखों लोग गंभीर देखभाल के बिना रह जाएंगे.”

इस साल यह तीसरी बार है जब हरियाणा के निजी अस्पतालों ने इस योजना के खिलाफ विद्रोह किया है.

अरोड़ा ने कहा, “हरियाणा में 2023 के बाद से स्थिति और खराब होती जा रही है. सरकार धनराशि जारी नहीं कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप निजी अस्पतालों को भुगतान में देरी हो रही है. समस्या की जड़ लगातार बजटीय असंतुलन और धन की कमी है.”

Jameel's family waited for their turn at Amrita Hospital earlier this month for treatment under Ayushman Bharat scheme | Photo: Krishan Murari/ThePrint
जमील का परिवार इस महीने की शुरुआत में आयुष्मान भारत योजना के तहत इलाज के लिए अमृता अस्पताल में अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

लंबे समय से बकाया बिल

सूर्या ऑर्थो एंड ट्रॉमा सेंटर, जहां अरोड़ा परामर्श देते हैं, के प्रवेश द्वार के पास, मरीज़ और उनके परिजन दीवार पर लगे एक पीले पोस्टर के चारों ओर इकट्ठा होते हैं. “हरियाणा सरकार द्वारा मांगे न माने जाने के विरोध में आईएमए हरियाणा के आह्वान पर आयुष्मान कार्ड पर सात अगस्त से ईलाज नहीं होगा. असुविधा के लिए खेद है.” यह शहर के 38 सूचीबद्ध अस्पतालों में से एक है. सरकार पर इसका 20 लाख रुपये का बकाया है.

Surya Ortho and Trauma Centre is among the 38 empanelled hospitals in Faridabad | Photo: Krishan Murari/ThePrint
सूर्या ऑर्थो एंड ट्रॉमा सेंटर फरीदाबाद के 38 सूचीबद्ध अस्पतालों में से एक है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

कुछ बड़े अस्पताल अभी भी लाभार्थियों का इलाज कर रहे हैं.

जमील की बहू नेहा ने अमृता अस्पताल के आयुष्मान वार्ड में अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए उनके दस्तावेज़ और पहचान पत्र पकड़े हुए कहा, “मेरे परिवार में दो लोग कैंसर से जूझ रहे हैं. आयुष्मान भारत ही उनके इलाज की एकमात्र उम्मीद है.” अमृता अस्पताल 2,600 बिस्तरों वाला एक अस्पताल है जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में किया था. अरोड़ा ने बताया कि इस योजना के तहत अस्पताल का 18 करोड़ रुपये बकाया हैं.

Dr. Suresh Arora, head of Haryana's Ayushman Samiti said the scheme is suffeirng from systemic neglect | Photo: Krishan Murari/ThePrint
हरियाणा आयुष्मान समिति के प्रमुख डॉ. सुरेश अरोड़ा ने कहा कि यह योजना व्यवस्थागत उपेक्षा का शिकार है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

60 वर्षीय जमील को यह जानकर बहुत राहत मिली कि अब उन्हें उनकी ज़रूरी कीमोथेरेपी मिल जाएगी. पिछले साल ही, इस योजना ने उनके कैंसर के इलाज के 2 लाख रुपये के बिलों का भुगतान किया है. उनकी बहू ने उन्हें फ़ोन पर योजना के तहत बची हुई राशि का संदेश दिखाया.

फरीदाबाद के एक फ़ैक्ट्री मज़दूर, 41 वर्षीय धर्मवीर इतने भाग्यशाली नहीं थे. आयुष्मान भारत योजना के तहत अपने टूटे हुए हाथ का इलाज कराने वे फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल गए थे. लेकिन अस्पताल ने उनका कार्ड लेने से इनकार कर दिया. उन्हें नियमित मरीज़ के रूप में पंजीकरण कराना पड़ा और अपनी जेब से भुगतान करना पड़ा.

उन्होंने कहा, “मेरे जैसे मरीज़ों को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. मैं ग़रीब हूं, इसलिए मैंने आयुष्मान कार्ड बनवाया था. लेकिन जब मुझे इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तब यह काम नहीं आया.”

इस बीच, आईएमए हरियाणा और नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के बीच गतिरोध जारी है.

आयुष्मान भारत हरियाणा की संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंकिता अधिकारी ने कहा, “हमने निजी अस्पतालों को चेतावनी जारी की है कि अगर मरीज़ों को इलाज से वंचित किया गया, तो सरकार सख्त कार्रवाई करेगी.”

आईएमए के पदाधिकारी 19 अगस्त को नायब सैनी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ होने वाली बैठक के बाद सकारात्मक नतीजे की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन बातचीत स्थगित कर दी गई. सरकार ने अगली तारीख तय नहीं की है.

अरोड़ा ने कहा, “बात सिर्फ बकाया राशि की नहीं है. पैकेज की दरें इलाज के खर्च को पूरा करने के लिए बहुत कम हैं और 2021 से यही स्थिति बनी हुई है.”

अरोड़ा ने अस्पताल के अपने कैबिन में बैठे हुए कहा, “जब हम सेवाएं बंद करने की धमकी देते हैं, तो कुछ पैसा जारी कर दिया जाता है. अब यह एक चलन बन गया है. इस विशाल योजना को चलाने का यह तरीका नहीं हो सकता.”

दरअसल, 7 अगस्त को आईएमए के आह्वान के बाद, हरियाणा सरकार ने 245 करोड़ रुपये जारी कर दिए. लेकिन निजी अस्पताल संतुष्ट नहीं हैं.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की हरियाणा शाखा द्वारा 11 अगस्त को X पर पोस्ट किया गया, “7 तारीख के बकाया 490 करोड़ रुपये में से, हरियाणा सरकार केवल 245 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है. बाकी राशि का क्या? बिल्कुल बेखबर.”

इस फैसले को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आईएमए का समर्थन प्राप्त है. आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिलीप भंसाली ने एक पत्र में सेवाओं को निलंबित करने के फैसले को बजटीय आवंटन सुनिश्चित करने और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने का एक “उचित प्रयास” बताया.

हरियाणा में गहराता संकट

यह सब 28 जुलाई को शुरू हुआ, जब आईएमए ने हरियाणा सरकार को पिछले तीन महीनों से लंबित सभी बकाया राशि का भुगतान करने के लिए 10 दिन का समय दिया.

यह आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के शुरुआती वर्षों से एक यू-टर्न था. यह योजना इतनी सफल रही कि इसने हरियाणा सरकार को 2022 में चिरायु योजना शुरू करने के लिए प्रेरित किया, जो 1.8 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले परिवारों को भी यही लाभ प्रदान करती है.

अरोड़ा ने कहा, “चिरायु योजना के आगमन से हरियाणा की 60 प्रतिशत आबादी इसके अंतर्गत आ गई है, जिससे धन की समस्या पैदा हो रही है.” 2022 से अब तक लाभार्थियों की संख्या 40 लाख से बढ़कर 1.4 करोड़ हो गई है.

अरोड़ा ने बताया, “इससे निजी अस्पतालों पर दबाव बढ़ गया.”

हरियाणा के निजी अस्पतालों को इस योजना के तहत कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है—कटौती से लेकर दावों की अस्वीकृति तक.

अरोड़ा ने कहा, “यह केवल भुगतान में देरी ही नहीं है, बल्कि प्रतिपूर्ति में भारी कटौती भी है.” उन्होंने आगे कहा कि स्वास्थ्य विभाग बेतुके प्रश्नों के साथ दावे वापस भेज रहा है. “अगर हम 20,000 रुपये का दावा करते हैं, तो वे आधी राशि काट रहे हैं और अपने फैसले के पीछे बेतुके कारण बता रहे हैं.”

आईएमए हरियाणा के 23 अगस्त के बयान में कहा गया है कि अस्पतालों को भुगतान में देरी, पूर्व अनुमति के बावजूद 90 प्रतिशत तक मनमानी कटौती और अपर्याप्त बजट आवंटन का सामना करना पड़ रहा है.

फरवरी में, आईएमए के एक प्रतिनिधिमंडल ने इन चिंताओं को उठाने के लिए मुख्यमंत्री सैनी से मुलाकात की थी.

अरोड़ा ने कहा, “छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ. हमने मुख्यमंत्री को 9-पॉइंट मेमोरेंडम दिया है और उन्होंने हमें आश्वासन दिया है कि वे समस्या का समाधान करेंगे. आईएमए हरियाणा के अधिकारियों ने हालात सुधरने का इंतज़ार किया लेकिन कुछ नहीं बदला.”

निजी अस्पतालों ने यह मुद्दा भी उठाया कि पैनल में शामिल होते समय जिस समझौता पत्र पर उन्होंने हस्ताक्षर किए थे, उसकी शर्तों को पूरा नहीं किया गया. समझौते के अनुसार, सरकार को 15 दिनों के भीतर राशि का भुगतान करना होगा. अगर सरकार समय सीमा का पालन नहीं करती है, तो प्रति सप्ताह 1 प्रतिशत ब्याज के साथ राशि का भुगतान किया जाएगा.

लेकिन निजी अस्पतालों का आरोप है कि सरकार ने वादा किया गया ब्याज देने से इनकार कर दिया है. फरीदाबाद स्थित मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल, अपूर्वा अस्पताल पर सरकार का केवल लगभग 7 लाख रुपये बकाया है लेकिन प्रशासन को सब कुछ सुचारू रूप से चलाने के लिए इसकी आवश्यकता है.

Ayushman Bharat scheme poster outside the empanelled Apurva Hospital in Haryana's Faridabad | Photo: Krishan Murari/ThePrint
हरियाणा के फरीदाबाद में सूचीबद्ध अपूर्वा अस्पताल के बाहर आयुष्मान भारत योजना का पोस्टर | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

अपूर्वा अस्पताल के जनरल सर्जन डॉ. प्रेम कुमार मागू ने कहा, “हमें पिछले साल से राशि नहीं मिली है. ऑपरेशन चलाना असंभव है.”

मागू ने कहा, “हमें अपने कर्मचारियों को वेतन देना है. अगर किसी अस्पताल के बिल एक साल तक लंबित रहेंगे, तो काम कैसे चलेगा?”

अंकिता अधिकारी ने स्वीकार किया कि दावों के भुगतान में देरी हुई है, लेकिन उन्होंने अस्पतालों पर दिशानिर्देशों का पालन न करने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, “अस्पताल दावों के लिए उचित दस्तावेज़ जमा नहीं कर रहे हैं, इसलिए हम पूछताछ करते हैं. और इस प्रक्रिया में समय लगता है.”

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि निजी अस्पताल बढ़े हुए बिल दे रहे हैं. उन्होंने कहा, “दावों में कटौती और अस्वीकृति का यही कारण है.” उन्होंने आगे कहा कि पिछले साल सरकार को 1,500 करोड़ रुपये के दावे मिले थे और 1,300 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे. बजट की कमी के बारे में उन्होंने कहा कि सरकार इस महीने के अंत में होने वाले विधानसभा सत्र में अनुपूरक बजट की मांग करेगी.

पूरे भारत में गहराता संकट

इस योजना में इसी तरह की खामियां मणिपुर, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर सहित अन्य राज्यों में भी सामने आई हैं.

इस महीने की शुरुआत में, एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स—इंडिया (AHPI) के मणिपुर चैप्टर ने एक पत्र जारी कर चेतावनी दी थी कि वे 16 अगस्त से इस योजना के तहत उपचार लाभों को अस्थायी रूप से निलंबित कर देंगे.

संघर्षग्रस्त राज्य के 43 अस्पतालों पर पिछले छह महीनों से लगभग 80 करोड़ रुपये का बकाया है.

AHPI के अध्यक्ष डॉ. पॉलिन खुंडोंघम ने कहा, “हम मरीजों का इलाज करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि मणिपुर में संसाधन सीमित हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले कम से कम 60-70 प्रतिशत मरीज PMJAY योजना के तहत आते हैं.

त्रिपुरा और नागालैंड जैसे दूसरे नॉर्थईस्ट राज्यों की हालत भी ऐसी ही है.

हालांकि, हड़ताल पर जाने से कुछ दिन पहले, एएचपीआई अधिकारियों को राज्य के स्वास्थ्य आयुक्त का फ़ोन आया, जिसमें मामले को सुलझाने के लिए 2-3 हफ़्ते का समय मांगा गया.

पॉलिन ने कहा, “हमने सरकार को कुछ और समय देने का फ़ैसला किया है. अगर इस बार भी समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो हम सेवाएं बंद कर देंगे. आख़िरकार, अस्तित्व बचाना जरूरी है, अगर हालात ऐसे ही रहे, तो हम बच ही नहीं पाएंगे.”

इस साल अप्रैल में दिल्ली के अस्पताल भी इस योजना में शामिल हुए थे, लेकिन उन्हें भुगतान में देरी का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा, दिल्ली के बड़े अस्पताल, जैसे अपोलो, सर गंगा राम, अभी तक इस योजना में शामिल नहीं हुए हैं.

पिछले साल अगस्त में, जम्मू-कश्मीर के सूचीबद्ध निजी अस्पतालों ने अपनी सेवाएं बंद करने की धमकी दी थी, यह दावा करते हुए कि सरकार पर उनका 300 करोड़ रुपये बकाया है.

स्थिति तब और जटिल हो गई जब इस साल मार्च में, सरकार ने निजी अस्पतालों की सूची से चार सर्जरी हटा दीं और उन्हें सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित कर दिया. इस नियम के बाद, निजी अस्पतालों ने मुफ़्त मेडिकल सेवाएं बंद कर दीं.

राजस्थान में भी, निजी अस्पतालों का 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा बकाया है.

20 अगस्त को, पंचकूला के सिविल अस्पताल स्थित हार्ट सेंटर ने भी आयुष्मान भारत योजना के तहत अपनी मेडिकल सेवाएं रोक दीं. केंद्र पर लगभग 1 करोड़ रुपये का बकाया है. हार्ट सेंटर का प्रबंधन एक निजी एजेंसी द्वारा किया जाता है और सरकार के आश्वासन के बाद भी उन्होंने सेवाएं फिर से शुरू करने से इनकार कर दिया.

BK Civil Hospital in Faridabad. The patients are moving towards public hospital after the suspension of treatment at private facilities in Haryana | Photo: Krishan Murari/ThePrint
फरीदाबाद का बीके सिविल अस्पताल. हरियाणा में निजी अस्पतालों में इलाज बंद होने के बाद मरीज़ सरकारी अस्पतालों की ओर रुख कर रहे हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

जयपुर के एक निजी अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, “आप किसी भी राज्य का नाम ले लीजिए, स्थिति एक जैसी है. भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा योजना दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है. इसे चलाने के लिए उचित बजट, पारदर्शिता और कुशल तंत्र की जरूरत है, अन्यथा अधिक से अधिक राज्यों के निजी अस्पताल सेवाएं बंद कर देंगे.”

आयुष्मान भारत योजना में धोखाधड़ी की सबसे ज़्यादा संभावना है. मोदी सरकार ने जुलाई में लोकसभा को बताया कि इस योजना के तहत 1.40 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 9.84 करोड़ से ज़्यादा अस्पतालों में भर्ती को अनुमति दी गई है.

फरवरी में, छत्तीसगढ़ सरकार ने धोखाधड़ी और फर्जी दावों के लिए 33 निजी अस्पतालों पर जुर्माना लगाया था. यह राज्य में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई थी.

योजना शुरू होने के बाद से, 562.2 करोड़ रुपये के फर्जी दावों में से, छत्तीसगढ़ के अस्पतालों ने 120 करोड़ रुपये दर्ज किए. उत्तर प्रदेश के बाद, छत्तीसगढ़ में सबसे ज़्यादा फर्जी दावे दर्ज किए गए.

हालांकि, भारत के उत्तर और पूर्वी हिस्सों के निजी अस्पतालों द्वारा उठाए गए सवालों के बावजूद, दक्षिण भारत के निजी अस्पतालों ने अभी तक अपना काम बंद नहीं किया है. इस साल अप्रैल तक राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) के आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत सबसे ज़्यादा अस्पताल में भर्ती होने वाले पांच शीर्ष राज्यों में से तीन दक्षिण भारत के हैं—तमिलनाडु (88.75 लाख), केरल (50.98 लाख) और कर्नाटक (49.96 लाख). दक्षिण भारतीय राज्यों में धोखाधड़ी के मामले भी देश के अन्य राज्यों की तुलना में कम दर्ज किए जाते हैं.

संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, देश भर में 1,114 अस्पतालों को पैनल से हटा दिया गया है और 549 अस्पतालों को तीन या छह महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है.

जिला सिविल सर्जनों की मदद से पैनल से हटाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है.

फरीदाबाद के सिविल सर्जन डॉ. जयंत आहूजा ने कहा, “हमारे पास एक धोखाधड़ी नियंत्रण समिति है, जिसे हम जांच के बाद जानकारी भेजते हैं.” उन्होंने कहा कि निजी अस्पतालों का भुगतान एक नीतिगत मामला है और जिला अधिकारियों की इसमें कोई भूमिका नहीं है.

परेशान होते मरीज

सोनीपत निवासी कमल गुप्ता के पिता विद्यासागर गुप्ता बीते सोमवार को अचानक बीमार पड़ गए.

गुप्ता, जिनके परिवार के पास आयुष्मान भारत कार्ड है, ने कहा, “हम तीन निजी अस्पतालों में गए, लेकिन अस्पताल ने आयुष्मान भारत के तहत हमारा इलाज करने से इनकार कर दिया.”

आखिरकार वे एक ज़िला अस्पताल गए, लेकिन वहां भी उनके जैसे मरीज़ों की बाढ़ आई हुई है. सोनीपत ज़िला अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि पहले रोज़ाना 10-12 योग्य मरीज़ आते थे, लेकिन अब यह संख्या दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है.

उन्होंने कहा कि यहां पर्याप्त सर्जन नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “सरकार को कोई समाधान निकालना चाहिए, वरना हालात और बिगड़ जाएंगे.”

इस बीच, हरियाणा के जन स्वास्थ्य मंत्री रणबीर सिंह गंगवा ने डॉक्टरों से इलाज करने की अपील की है.

गंगवा ने कहा, “सरकार जल्द ही अस्पताल के बिलों का भुगतान करेगी, इस बारे में चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है.”

लेकिन इस बार, हरियाणा के डॉक्टर सिर्फ़ बयानबाज़ी नहीं चाहते हैं.

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