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Friday, 10 May, 2024
होमफीचर'आज भारत में लोकप्रियता संदिग्ध है' : अशोक वाजपेयी ने नेहरू पर लेक्चर के दौरान मोदी को क्यों घेरा

‘आज भारत में लोकप्रियता संदिग्ध है’ : अशोक वाजपेयी ने नेहरू पर लेक्चर के दौरान मोदी को क्यों घेरा

कवि अशोक वाजपेयी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि आज के पूजित नेता (मोदी) के सामने नेहरू नित्य निंदित हैं.

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नई दिल्ली: आजकल नेहरू के बारे में कोई भी व्याख्यान आसानी से मोदी विरोधी सत्र और संस्थानों की गिरती साख में बदल जाता है.

साहित्य अकादमी स्वच्छता के मुद्दे पर सेमिनार आयोजित करती है. हाल ही में दिल्ली के जवाहर भवन में 82 वर्षीय कवि और पूर्व नौकरशाह अशोक वाजपेयी ने कहा कि यहां तक कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी में भी अकादमी के माध्यम से अपने 20-सूत्री कार्यक्रम को प्रचारित करने की हिमाकत नहीं की थी.

प्रोफेसर, विश्वविद्यालय के छात्र और एनजीओ क्षेत्र के लोग ‘नेहरू और संस्कृति’ विषय पर वाजपेयी का व्याख्यान सुनने के लिए जवाहर भवन में पहुंचे, जो राजीव गांधी फाउंडेशन द्वारा आयोजित नेहरू संवाद श्रृंखला का हिस्सा था. यह श्रृंखला पिछले एक वर्ष से चल रही है और इसमें विभिन्न विषयों पर सेमिनार और व्याख्यान अक्सर होते रहते हैं.

वाजपेई ने कहा, “संस्कृति से जुड़ी संस्थाएं ढह रही हैं.” उन्होंने कहा कि उनका इस्तेमाल हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार के लिए किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा सवाल करने की रही है, लेकिन अब सवाल करने की कोई संस्कृति नहीं बची.

पूर्व नौकरशाह ने भारत में लोक संस्कृति का ढांचा तैयार करने का श्रेय नेहरू को दिया, जिन्होंने देश में सांस्कृतिक साक्षरता लाने का प्रयास किया. वाजपेयी ने कहा, “व्यापक सांस्कृतिक निरक्षरता को बढ़ाने का एक व्यवस्थित प्रयास हो रहा है और संस्कृति को राजनीति का उपकरण बनाया जा रहा है, जो नेहरू ने कभी नहीं किया. हम अधकचरे लोकतंत्र में रह रहे हैं.”

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अपने एक घंटे के व्याख्यान के दौरान उन्होंने अपने चिर-परिचित व्यंग्यात्मक अंदाज में कई बार मोदी सरकार पर हमला बोला, जिससे श्रोताओं के चेहरे पर मुस्कान आ गई.

छात्रों से भरे हॉल में वाजपेयी ने स्वीकार किया कि वह असमंजस की स्थिति में रहते हैं. “क्या मैं चाहता हूं और क्या हो रहा है, इस बीच मैं फंसा हूं. हो सकता है कि ये मेरी खामख्याली हो.”

2015 में देश में बढ़ती हिंसा और कई प्रगतिशील लेखकों की हत्या के बाद वाजपेयी ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था. उन्होंने पिछले एक दशक में मारे गए नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, गौरी लंकेश का नाम लिए बिना कहा, “साहित्य अकादमी जो बुद्धिजीवियों की हत्या पर शोक सभा आयोजित नहीं करती, वह स्वच्छता पर कार्यक्रम आयोजित करती है.”

कार्यक्रम का संचालन कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने व्याख्यान से पहले कहा कि विश्वविद्यालयों में संवाद के लिए जगह खत्म होती जा रही है. उन्होंने कहा, “इस शोर-शराबे के बीच एक विषय पर ठहरकर बात करना जरूरी है. ये एकदम खुली जगह है. यहां से लोग अपने मन में सवाल लेकर जा सकते हैं और ये कतई जरूरी नहीं है कि यहां से सब सहमत होकर ही घर लौटें.”


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नेहरू और संस्कृति

वाजपेयी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि आज के पूजित नेता (मोदी) के सामने नेहरू नित्य निंदित हैं. लेकिन वाजपेयी ने 1960 के दशक को याद किया जब उन्होंने नेहरू को देखा था और एक कार्यक्रम में कुछ मिनट देरी से आने पर माफी मांगी थी.

लेकिन बतौर कवि और रचनाशील व्यक्ति के तौर पर सबसे ज्यादा जो बात वाजपेयी को प्रभावित करती है, वो है नेहरू का संस्कृति बोध. वाजपेयी कहते हैं, “नेहरू का समय राजनीति के बुद्धिसंपन्नता का समय था और उनके लिए राजनीति एक संस्कृति बोध थी जो इतिहास बोध, गांधी बोध, स्वतंत्रता संग्राम से पैदा हुए बोध, आधुनिकता बोध और विश्व बोध से बनी हुई थी.”

दर्शकों को नेहरू की संस्कृति की समझ, भारत और संघवाद के बारे में उनके विचार और भारत के पहले प्रधानमंत्री द्वारा अपने लेखन में इस्तेमाल किए गए रूपकों- डिस्कवरी ऑफ इंडिया में गंगा का उल्लेख – के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ.

लेकिन वाजपेयी ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि जिस सांस्कृतिक विविधता को नेहरू ने स्वीकार किया था वह आज नष्ट हो रही है. उन्होंने कहा, “हमारी सबसे अच्छी कविता भक्ति काल में लिखी गई है लेकिन वर्तमान सरकार ने भक्ति शब्द को बदनाम कर दिया है. नेहरू अपने युग के एकमात्र राजनेता थे जो संस्कृति और ज्ञान के क्षेत्र में पहल कर रहे थे.”

वाजपेयी ने कहा कि नेहरू संस्थानों की स्वायत्तता को लेकर भी काफी सजग थे. हिंदी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे थे, जब नेहरू ने साहित्य अकादमी के माध्यम से उनकी आर्थिक मदद की. “नेहरू उस समय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे लेकिन फिर भी उन्होंने इसके लिए सचिव को पत्र लिखा. वह स्वयं निर्णय ले सकते थे लेकिन उन्होंने स्वायत्तता का सम्मान किया.”

मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए वाजपेयी ने कहा कि जो सरकार ईडी भेजती है वो आजादी की रक्षा करने वाली नहीं हो सकती. “नेहरू ने सवाल पूछने की परंपरा को बढ़ावा देकर लोकप्रियता हासिल की, उनकी लोकप्रियता वफादारी से हासिल नहीं हुई. आज भारत में लोकप्रियता संदिग्ध है. उन्होंने कहा, “जो कुछ भी लोकप्रिय है, हमें उस पर संदेह करना चाहिए.”

राजनीतिक रूप से रोमांचित यह व्याख्यान एक राजनीतिक बयान के साथ समाप्त हुआ जब अपूर्वानंद ने फिलिस्तीन-इजरायल युद्ध का मुद्दा उठाया और लोगों से फिलिस्तीन में मारे गए लोगों के लिए एक मिनट का मौन रखने को कहा.


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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

वाजपेयी नेहरू की सांस्कृतिक दृष्टि को ज्ञान, विज्ञान और कला का मिश्रण मानते हैं.

लेकिन मोदी सरकार जिस सांस्कृति राष्ट्रवाद की बात करती है, उससे वाजपेयी इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने कहा, “आज का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद रोज सांप्रदायिक और धार्मिकता के आधार पर ‘दूसरे’ बनाने की बात करता है. नेहरू के भारत से जितनी दूर देश जा सकता था, उतनी दूर जा चुका है.”

लेकिन ये बुजुर्ग कवि सबसे ज्यादा भारत के मध्य वर्ग से निराश नजर आता है. अपनी निराशा व्यक्त करते हुए वह कहते हैं, “भारत का मध्य वर्ग और उसका पुरुष प्रधान हिस्सा देश को नष्ट कर रहा है.”

लेकिन वाजपेयी को सुनने वाले सभी लोग नेहरू के प्रशंसक तो कतई नहीं थे बल्कि नेहरू की प्रश्न पूछने की सोच को जरूर अमली-जामा पहना रहे थे. एक छात्र ने पूछा कि नेहरू जब बोलने की आजादी की बात करते थे तो उन्होंने अनुच्छेद-19 में संशोधन क्यों किया.

वाजपेयी के अनुसार परम स्वतंत्रता विश्व के किसी भी संविधान में नहीं हैं. उन्होंने कहा, “तो यह भारत के संविधान में कैसे हो सकता है? स्वतंत्रता को सीमित करने के कारण हैं लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण है कि राजनीति इसका उपयोग कैसे करती है.”

एक अन्य छात्र ने पूछा कि केवल प्रधानमंत्री नेहरू की चर्चा क्यों की जाती है, स्वतंत्रता सेनानी नेहरू की क्यों नहीं. कवि ने कहा, “स्वतंत्रता आंदोलन की ही कोई कहां चर्चा करता है.”

पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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