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Friday, 20 December, 2024
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इंस्टा पर दिव्यांग इन्फ्लुएंसर्स का एक जोरदार संदेश, हम आपको प्रेरित करने के लिए यहां नहीं हैं

इन्फ्लुएंसर्स का यह क्लब बहुत ऊंची दीवारों के भीतर रहता है. हालांकि ये उनकी पसंद नहीं है, वो इससे बाहर आना चाहते हैं. लेकिन एल्गोरिदम भी उनके पक्ष में नहीं है.

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24 साल की एक विकलांग सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर काव्या ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया. इसमें वह अपना दिन, दिल्ली के सेलेक्ट सिटी वॉक मॉल में बिता रही हैं. अपने परिवार के साथ गानों का मजा लेने से लेकर, खाने और चिल करने तक, उन्होंने अपनी तस्वीरों को कैप्शन दिया, ‘ये वो है जो मैं कर पा रही हूं. यह आजादी है, यह शक्ति है, यह खुशी है.

काव्या ने जो किया वह मॉल में एक दिन बिताने से कहीं अधिक था. वह बातचीत और टकटकी लगाकर देखने वाली नजर को विकलांगता से दूर लेकर चली गई. इंस्टाग्राम रील्स पर डिसेबल लोगों को देखने के तरीकों को उसने बदल दिया. दरअसल उसने सामान्य लोगों की प्रेरणा और एक्सीलेंस की ट्रॉफी बनने से अपने-आपको दूर कर लिया था.

इस पोस्ट के लिए काव्या का मकसद किसी को प्रेरित करने या यह साबित करने के लिए नहीं था कि उसका दिन भी खूबसूरत हो सकता है. उसकी भरोसा सिर्फ अपने ‘स्वयं’ के होने पर था. वह बताना चाहती थी कि एक विकलांग व्यक्ति के परे भी उसकी एक पहचान है. वह किसी के लिए प्रेरणा बनना या खुद के लिया दया नहीं चाहती है.

21 साल की एक और डिसएबल सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर गौरी गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया ‘मैं नहीं चाहती कि लोग मुझे सिर्फ सामान्य लोगों को प्रेरित करने के तौर पर जाने. मेरी अपनी पहचान है, जिसे मैं खुशियों से भर सकती हूं.’ और ठीक ऐसा ही वह अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर दिखाने की कोशिश करती हैं.

वह कानून की पढ़ाई कर रही हैं. एक लेखिका और डिजिटल क्रिएटर के तौर पर वह काफी सारी विषयों की वर्जनाओं को तोड़ आगे बढ़ रही हैं. मसलन विकलांगता को सेक्स से जोड़ना, बॉडी शेमिंग और मानसिक स्वास्थ्य.

24 साल की नू ‘रिवाइवल डिसएबिलिटी’ नामक एक क्वीर विकलांग संगठन (कलेक्टिव) चलाती हैं. वह अपने उस समय को याद करती हैं जब स्कूल में उन्हें उनकी ‘वीरता’ के लिए इनाम दिया जाता था. वह इस पूरी अवधारणा को ‘हास्यास्पद’ बताते हुए कहती हैं कि विकलांग होने के बावजूद एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन को जीने के लिए उन्हें ‘झांसी की रानी’ के उपाधि दी गई. वह कहती हैं, ‘जब आप विकलांग होते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे आप सिर्फ लोगों को उनके जीवन में प्रेरणा भरने के लिए बने हैं.’

उनका ऑनलाइन कलेक्टिव ग्रुप कला, पॉप संस्कृति, मीम्स और उन विषयों पर शिक्षा के तड़के से भरा पड़ा है. क्वियर और न्यूरो डाइवर्जेंट लोगों की कला बेचने में मदद करने से लेकर, उनके लिए बनी परिभाषाओं और अनुभवों को बदलने तक, नू ने बस कहानियों को एक साथ पिरोना शुरू किया.

इन इन्फ्लुएंसर्स के लिए ‘दिव्यांग’ या ‘डिफरेंटली एबल’ जैसे टैग को हटाना उनके प्रयास की शुरुआत भर है. जैसे ही उन्हें ऑनलाइन की दुनिया में आवाज और पावर मिलने लगती है, वे अपने को मिलने वाली खास तवज्जो यानी स्पेशल ट्रीटमेंट को दरकिनार कर देते हैं और अपने खुद के व्यक्तित्व के साथ आगे बढ़ते हैं, जो उनकी अक्षमता से कहीं आगे और अलग है. कैनिनयन डॉग बिहेवियरल सलाहकार करण शाह ने कहा, ‘जितना ज्यादा हम जागरूकता बढ़ाएंगे, उतने अधिक लोग आपको स्वीकार करते रहेंगे.’ एक कुत्ते का साथ और प्यार पाने के बाद वह एक्टिविजम की तरफ बढ़े थे. वह टिकटॉक पर काफी लोकप्रिय थे और उनके फॉलोअर्स की संख्या 1.3 मिलियन थी. और अब इंस्टाग्राम पर हैं.

‘हम उनमें शामिल हैं ये महसूस नहीं कर पाते’

इन एक्टिविस्ट के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक, सोशल मीडिया स्पेस में फिट होना और खुद को ‘उम्मीद के एंबेसडर’ के तौर पर देखे जाने से अलग, कहीं आगे की ओर ले जाना है. भले ही उनका कंटेंट और काम उन लोगों के जैसा है जो सामान्य हैं, फिर भी उन्हें ‘दयालुपन’ की लिस्ट से बाहर निकलना है. अपने आपको सामान्य व्यक्ति के तौर पर देखे जाने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है. मगर यह आसान नहीं है. क्योंकि इनमें से कई लोगों के पास अभी भी लोगों से जुड़ने के लिए रोजमर्रा के कंटेंट का अभाव है.

काव्या ने विकलांग सोशल मीडिया एक्टिविस्ट की ओर से बोलते हुए कहा कि हर कोई सोशल मीडिया पर रहना चाहता है, लेकिन अधिकांश विकलांग लोग इसमें अपने आपको शामिल महसूस नहीं करते हैं. वह कहती हैं, ‘बहुत से लोग सोचते हैं कि हमारा कंटेंट अभी भी कुछ ऐसा है जो उनके लिए नहीं बना है या सामान्य नहीं है.’ भले ही वह उस कंटेंट का मजा ले रहे हो, फिर भी लोग उन पर दया दिखाते हुए कमेंट करने से बाज नहीं आते हैं. जैसे ‘लग ही नहीं रहा कि आप विकलांग हैं. मुझे बस आप दिखाई दे रहीं हैं आपकी विकलांगता नहीं.’

काव्या को अपने एक्टिविजम में डूबने के लिए मीम्स बनाने का शौक है और वह पॉप-संस्कृति की बड़ी प्रशंसक है. टीवी शो के उन किरदारों के बारे में उनकी पोस्ट, जो विकलांग हैं, उनके दर्शकों के साथ अच्छी तरह से मेल खाती हैं. ‘DIY लाइफ’ जीने पर उनका थ्रेड उनकी पर्सनल डायरी की तरह पढ़ा जा सकता है.

उन्होंने एक लोकप्रिय ‘डिसएबेलिट जिंगल’ लिखा है और गाया भी है. यह जिंगल उनको खुद को स्वीकार किए जाने की इच्छा को दर्शाता है. उनके गाने के बोल कुछ इस तरह के हैं, ‘अगली बार जब आप मुझे सड़क पर (व्हीलचेयर पर) पहियों के साथ आगे बढ़ते देखें, तो रुकें और घूरें नहीं, बस हाय कहें और नमस्ते करें.’

लेकिन ऐसे बहुत कम जिंगल या पोस्ट आपके एक्सप्लोर पेज पर आते होंगे. इन्फ्लुएंसर्स का यह क्लब बहुत ऊंची दीवारों के भीतर रहता है. यह उनकी अपनी पसंद नहीं है, वो भी यहां से बाहर आना चाहता है. लेकिन एल्गोरिदम भी उनके पक्ष में नहीं है.

अभिषेक अनिक्का एक शोधकर्ता, लेखक और कलाकार है. एक विकलांग व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. उन्होंने विकलांग लोगों के लिए सोशल मीडिया एक्सेस की संस्कृति पर टिप्पणी की.

अभिषेक ने कहा, ‘विकलांगता को लेकर होने वाली बातचीत अभी भी उतनी सुलभ या सहज नहीं है, जितनी कि क्वीयरनेस जैसे कुछ अन्य हाशिए के लोगों को दिए जाने वाले प्रवचन हैं. जब तक आप सक्रिय रूप से विकलांग कंटेंट की खोज नहीं करते हैं, तब तक आपको यह नहीं मिलेंगे.’ गौरी को भी लगता है कि सोशल मीडिया के एल्गोरिदम एक निश्चित बॉडी टाइप को बढ़ावा देने के लिए ही काम करते हैं. उन्होंने कहा, ‘अगर आप किसी खास ट्रेंड को खोज रहे हैं, तो आपको शायद ही कोई ऐसा कंटेट मिलेगा, जिसे डिसेबल्ड लोगों ने तैयार किया हो. यह एक सिस्टमेटिक समस्या की ओर इशारा करता है.’

यहां भी है हायरार्की

नू और अभिषेक दोनों इस बात से सहमत हैं कि सोशल मीडिया स्पेस में शहरी इन्फ्लुएंसर्स का दबदबा बना हुआ है. रीलों की स्टाइल शीट में खास प्रभाव रखने वाले, इस मीडियम की समझ रखने वाले और यहां तक कि होम और फर्निशिंग शामिल है.

नू ने कहा, ‘माई स्पेस रिवाइवल में भी काफी शहरी अनुभव है. मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सामान्य लोगों के लिए यह ज्यादा सुविधाजनक और सहज है.’

सोशल मीडिया पर एक और हायरार्की अपनी जगह बना रही है. ज्यादातर इन्फ्लुएंसर व्हीलचेयर पर बैठने वाले हैं, जो लंबे समय से विकलांगता का एक स्वीकार्य मार्कर बने हुए हैं. अभिषेक ने सुझाव दिया, ‘व्हीलचेयर सोशल मीडिया पर क्रॉल करने, अपने पैरों को घसीटने या लार टपकाने वालों से ज्यादा पसंद किए जाते हैं.’

हालांकि फेसबुक पर कुछ रीजन-बेस्ड ग्रुप भी हैं, जिसे अन्य तरह के विकलांग व्यक्तियों ने बनाया है. उनका काम एक्टिविज्म का नहीं है या फिर जनता की नजर में पहचान बनाने की उनकी इच्छा नहीं है. यह सिर्फ एक-दूसरे के नजदीक रहने वाला समुदाय है जो एक दूसरे की मदद करता है.

व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले करण ने कहा, ‘सोशल मीडिया पर लोग अन्य विकलांग लोगों की तुलना में व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वालों को आसानी से स्वीकार करते हैं. हम इस लाइन में सबसे आगे हैं.’ वह अक्सर अपनी कमजोरी को लेकर चुटकुले सुनाना पसंद करते हैं. वह अपनी डिसेबिलिटी के साथ सहज हो गए हैं.

उनकी एक रील पर कैप्शन था, ‘आइए एक स्टैंड-अप कॉमेडी के लिए तैयार हो जाएं. उफ! मेरा मतलब है सिट-डाउन कॉमेडी.’ लेकिन करण के सभी कंटेंट उनकी विकलांगता को लेकर नहीं होते हैं. वह रीलों के सामान्य बैंडवैगन में शामिल हैं. वह अपनी एक्स को याद करते हुए या गर्लफ्रेंड के रेड फ्लैग के बारे में वीडियो पोस्ट करते हैं. इनसे वह काफी हिट हुए हैं और कई बार तो उन्हें अपने कंटेंट क्रिएशन के लिए शादी के प्रपोजल भी मिले हैं.


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लड़के और लड़की में भेदभाव

यह तो साफ है कि महिलाओं की तुलना में विकलांग पुरुषों को सोशल मीडिया पर उतनी स्पॉटलाइट नहीं मिलती है. अभिषेक कहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वे कमजोर बनना पसंद नहीं करते हैं. लेकिन लैंगिक विभाजन इससे कहीं अधिक गहरा है.

गौरी मेकअप करने, अच्छी तरह से कपड़े पहनने या सिर्फ सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ घूमने की तस्वीरें पोस्ट करने पर मजाक बनाए जाने के उदाहरण बताती हैं. वह कहती हैं, ‘ दरअसल लोग अन्य लोगों को विकलांग देखना चाहते हैं. ऐसा लगता है जैसे आपको अपनी अक्षमता साबित करनी है.’ उन्हें अकसर अपनी जागरूक और मॉडर्न नजरिए की वजह से कुछ इस तरह के कमेंट सुनने को मिलते हैं- ‘आप डिसएबल होते हुए भी काफी आत्मनिर्भर हैं’ या ‘क्या आप सच में विकलांग हैं?’

लेकिन करण ने दावा किया है कि उन्हें हमेशा ढेर सारा प्यार मिला है. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि वे हमें परेशान करने की कोशिश कर रहे हैं. बस उनके पास जानकारी का अभाव है.’

लेकिन इस अच्छाई को बदलने में देर नहीं लगती है.

जब नू को इंस्टाग्राम पर उनमें रूचि रखने वाले एक शख्स ने एप्रोच किया तो उन्होंने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया. उसके बाद उन्हें जो कमेंट मिला वो कुछ ऐसा था, ‘ये विकलांग क्वीर लोग बहुत अजीब होते हैं.’

ट्रेंडिंग रीलों, मीम्स के जरिए ‘क्रिप टाइम’ या ‘स्पून थ्योरी’ की व्याख्या करते हुए उनका एक्टिविज्म आत्म-संरक्षण, कहानी और शिक्षा है. उनका काम एक आंदोलन के लिए एक मोर्चा है और एक ही समय में एक आंतरिक प्रतिबिंब भी. कुछ ऐसा जो हर किसी के लिए बहुत कुछ सीखने और सिखाने के साथ आता है.

गौरी ने कहा, ‘सामान्य लोगों को हमारे बारे में बहुत सी बातों को नजरअंदाज किए जाने की जरूरत है. लेकिन हम कोई दोष नहीं दे रहे हैं. जब मैं छोटी थी, तो मैं भी इससे बेहतर कुछ नहीं जानती थी.’

(संपादनः शिव पाण्डेय । अनुवादः संघप्रिया मौर्या)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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