नई दिल्ली : कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में एक महीने से भी कम समय बचा है और कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) दोनों ही एक-दूसरे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ‘बी-टीम’ करार देने में जुटी हैं, जबकि भाजपा खुद टिकट बंटवारे में अपनाई गई रणनीति से उपजे संकट को सुलझाने मे जुटी है. इस सबके बीच एक विश्लेषण के जरिये दिप्रिंट ने यह पता लगाने की कोशिश की कि कर्नाटक की राजनीति में एक-दूसरे के खिलाफ सीधे मुकाबले में इन तीनों प्रमुख दलों का प्रदर्शन कैसा रहा है.
दिप्रिंट के विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से आधी पर 2004 से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है, और भाजपा ने इन सीटों पर 60 फीसदी का स्ट्राइक रेट बरकरार रखा है.
इसी तरह, 2004 से अब तक जिन सीटों पर कांग्रेस और जेडीएस के बीच सीधा मुकाबला देखा गया, उनमें एच.डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी ने 52 प्रतिशत का स्ट्राइक रेट बनाए रखा है.
पिछले कुछ सालों में इन तीनों दलों की दशा-दिशा क्या रही, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2004 में ‘बदलाव प्रक्रिया के दौरान वाला चुनाव’ था जब प्राथमिक मुकाबला कांग्रेस बनाम जेडीएस की जगह कांग्रेस बनाम भाजपा बन गया. उस साल चुनाव खंडित जनादेश के साथ संपन्न हुआ था; भाजपा ने 79, कांग्रेस ने 65 और जेडीएस) ने 58 सीटें जीती थीं.
सबसे अहम बात यह है कि 2004 के बाद से कोई भी पार्टी कर्नाटक में अपने दम पर 123 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर पाई है. 2013 में कांग्रेस उसके सबसे करीब आई थी, जब उसने 122 सीटें जीती थीं.
इस माह के शुरू में मनीकंट्रोल के लिए अपने लेख में राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने बताया कि जेडीएस का केवल दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में ‘खास असर’ है, जबकि कांग्रेस के वोट राज्यभर में ‘व्यापक स्तर’ पर छितराए हुए हैं.
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) में प्रोफेसर संजय कुमार लिखते हैं, ‘हालांकि. इससे कांग्रेस को नुकसान हुआ है लेकिन इसका सकारात्मक असर भी हो सकता है. भाजपा और जेडीएस से कांग्रेस के पक्ष में वोटों का एक मामूली स्विंग (चार प्रतिशत) 2023 में कांग्रेस पार्टी को बहुमत दे सकता है.’
इस अंतर का ही नतीजा है कि कर्नाटक में भाजपा-कांग्रेस और जेडीएस-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर देखने को मिलती है.
पिछले चार विधानसभा चुनावों 2004, 2008, 2013 और 2018, में कुल 896 सीटों में से कम से कम 754 पर तीनों पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला दिखा. इन सभी 754 में लगभग एक चौथाई या 175 सीटों पर जीत का अंतर 5,000 मतों से कम रहा.
इन 754 सीटों में से जेडीएस के साथ सीधे मुकाबले में भाजपा का स्ट्राइक रेट 55 फीसदी है. यहां पर यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा कि दोनों पार्टियां के बीच 754 सीटों में से केवल 10 फीसदी पर सीधी टक्कर हुई.
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भाजपा बनाम कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला
2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 142 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ. जब भाजपा की जीती 104 सीटों में से 85 पर कांग्रेस के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे. वहीं 78 सीटों में से 57 सीटों पर भाजपा उम्मीदवार दूसरे नंबर रहे और कांग्रेस प्रत्याशियों ने चुनाव में जीत हासिल की.
इन 142 सीटों में से 20 सीटों पर जीत का अंतर 5,000 वोटों से कम था, जिसमें 15 कांग्रेस के खाते में गई थीं.
राजनीति विज्ञानी और बेंगलुरू स्थित जैन यूनिवर्सिटी के प्रो-वाइस चांसलर संदीप शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया कि कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले का यह ट्रेंड 2004 में शुरू हुआ जब उस साल के चुनाव में जेडीएस को विधानसभा में तीसरे स्थान पर धकेल दिया.
शास्त्री ने कहा, ‘1999 के बाद से जेडीएस मुख्य मुकाबले में कांग्रेस और भाजपा से पिछड़ गया था.’
2004 में 105 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ. 2008 में यह संख्या 144 और 2013 में 109 (भाजपा+केजेपी) थी.
2013 में बी.एस. येदियुरप्पा के अलग होने और अपनी खुद की पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) बनाने का फैसला करने से भाजपा को गहरा झटका लगा. यद्यपि केजेपी ने उस वर्ष 204 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और उनमें से केवल छह पर जीत हासिल की लेकिन उसके उम्मीदवार 35 सीटों पर उपविजेता के रूप में उभरे.
भाजपा और कांग्रेस के बीच उस साल 77 सीटों पर सीधा मुकाबला था, जबकि केजेपी और कांग्रेस के बीच 32 सीटों पर सीधी लड़ाई हुई.
इसी संदर्भ में कर्नाटक की राजनीति में दो राष्ट्रीय दलों के बीच सीधा मुकाबला नजर आता है. दिप्रिंट के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन सीटों पर उसका कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला है, वे कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा की कुल टैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
पिछले चार विधानसभा चुनावों में से तीन में भाजपा के खाते में 80 प्रतिशत से अधिक ऐसी सीटें थीं, जिनमें कांग्रेस के साथ सीधी लड़ाई हुई थी. एकमात्र अपवाद 2013 था जब ऐसी सीटों की संख्या 67 प्रतिशत रह गई थी और कांग्रेस 122 सीटों (बहुमत से एक कम) के साथ सत्ता में आई थी.
इस बीच, 2018 में कांग्रेस की झोली में 75 फीसदी सीटें ऐसी थीं, जिनमें उसका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ था. 2013, 2008 और 2004 के विधानसभा चुनावों में यह संख्या 65 फीसदी थी.
2004, 2008 और 2018 के चुनावों में जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, तो कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में पार्टी का स्ट्राइक रेट 60 प्रतिशत रहा. 2013 के विधानसभा चुनाव एकमात्र अपवाद थे जब सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी कांग्रेस का भाजपा के साथ सीधे मुकाबले वाली सीटों पर स्ट्राइक रेट 65 प्रतिशत रहा था.
शास्त्री ने कहा, ‘जिन सीटों पर जेडीएस नंबर दो पर है, उनकी संख्या बहुत कम है. चूंकि जेडीएस बहुत कम सीटों पर सीधे मुकाबले में है, इसलिए जाहिर तौर पर मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है.’
भाजपा बनाम जेडीएस के बीच सीधी टक्कर में क्या रहा
2018 में भाजपा और जेडीएस के बीच 26 सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ, जबकि 2013, 2008 और 2004 में ऐसी सीटों की संख्या कम थी. 26 सीटों में से 17 सीटों (65 प्रतिशत) पर भाजपा जीती और जेडीएस प्रत्याशी उपविजेता रहे, जबकि नौ सीटों (यानी 35 प्रतिशत) पर जेडीएस के प्रत्याशी जीते और भाजपा उपविजेता रही.
उत्तरी और मध्य कर्नाटक में मजबूती से पैर जमा चुकी भाजपा अब राज्य के दक्षिणी जिलों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है—जिसे जेडीएस का गढ़ माना जाता है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले साल 30 दिसंबर को दक्षिणी कर्नाटक के मांड्या में पार्टी के अभियान की शुरुआत की थी.
2018 के चुनावों में वोक्कालिगा-बहुल दक्षिणी कर्नाटक की 46 सीटों में से जेडीएस ने 25 और भाजपा ने 11 पर जीत हासिल की थी, जबकि 2013 में भाजपा ने यहां तीन सीटें ही जीती थीं.
दिप्रिंट की तरफ से चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि पिछले चार विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने पूर्व सहयोगी जेडीएस के खिलाफ अपना स्ट्राइक रेट बेहतर किया है जो 2004 में 31.25 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 65 प्रतिशत पर पहुंच गया.
दूसरी ओर, जेडीएस ने 2018 में भाजपा के साथ सीधे मुकाबले वाली सभी सीटों में से 25 प्रतिशत पर जीत हासिल की. जेडीएस के लिए, जिन सीटों पर उसका भाजपा के साथ सीधा मुकाबला था भाजपा के 16 प्रतिशत की तुलना में इसकी टैली 25 प्रतिशत रही.
जानकारों का मानना है कि एच.डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी की मुख्य ताकत दक्षिणी कर्नाटक का पुराना मैसूर क्षेत्र है. पिछले 20 वर्षों में, जेडीएस का वोट शेयर 19 से 21 प्रतिशत पर स्थिर रहा है.
उत्तरी और तटीय कर्नाटक में भाजपा की उपस्थिति के साथ इसे भी ध्यान में रखा गया, यही वजह है कि कांग्रेस-भाजपा के सीधे मुकाबलों की तुलना में सत्तारूढ़ दल और जेडीएस के बीच सीधे मुकाबले वाली सीटें कम हैं.
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कांग्रेस बनाम जेडीएस में सीधा मुकाबला
2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस के बीच 43 सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ. इसके बाद उन्होंने भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए चुनाव बाद गठबंधन किया और एच.डी. कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने.
उस चुनाव में जेडीएस ने 25 सीटें जीतीं, जिसमें उसके उम्मीदवारों का कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला था और जिसमें उसका स्ट्राइक रेट 60 प्रतिशत रहा.
भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले वाली सीटों का जो नतीजा रहता है, उसी तरह कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले वाली सीटों में जेडीएस भी दो-तिहाई (65-72 प्रतिशत) सीटें जीतती है. कांग्रेस के लिए यह संख्या एक तिहाई (27-35 फीसदी) से कम है.
हालांकि, सीधे मुकाबले के दौरान दोनों पार्टियों का स्ट्राइक रेट एक जैसा नहीं रहा है. 2008 और 2013 में जेडीएस के खिलाफ कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 60 प्रतिशत था जो कि 2004 और 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ जेडीएस के स्ट्राइक रेट के बराबर था.
शास्त्री कहते हैं, ‘2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने पुराने मैसूर क्षेत्र में पैठ बनाने का नतीजा क्या हुआ. दरअसल भाजपा ने यहां मूलत: जेडीएस के क्षेत्रों में अपने पैर जमाए. इससे कांग्रेस उतनी प्रभावित नहीं हुई जितना असर जेडीएस पर पड़ा.’
वह कहते हैं, ‘नतीजतन, इस बार तो मुझे नहीं लगता कि आपके पास एक ऐसी विधानसभा होगी, जहां किसी पार्टी के पास बहुमत न हो. मुझे तो लगता है कि मतदाता को एकदम स्पष्ट रूप से पता है कि बिना बहुमत वाली विधानसभा राजनीतिक अस्थिरता की ओर ले जाती है. मुझे कोई अचरज नहीं होगा अगर मतदाता दो प्रमुख खिलाड़ियों में से एक के पक्ष में निर्णायक चुनाव करता है.
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