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Friday, 10 May, 2024
होमचुनावMP के 'मामा' शिवराज सिंह चौहान ने कैसे भितरखाने घिरे होने पर भी BJP के लिए बदल दिए हालात

MP के ‘मामा’ शिवराज सिंह चौहान ने कैसे भितरखाने घिरे होने पर भी BJP के लिए बदल दिए हालात

एमपी चुनाव के नतीजे सीएम चौहान के नेतृत्व और लोकप्रियता के स्पष्ट समर्थन के रूप में आए हैं. केंद्रीय नेतृत्व अब शीर्ष पद के लिए उनके दावे को अनदेखी नहीं करेगा.

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नई दिल्ली : इस साल 28 जनवरी तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अंदरखाने घिरे दिख रहे थे, विपक्षी कांग्रेस का दबदबा बढ़ रहा था और वह खुद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आलाकमान के पक्ष में न माने जाने की आम धारणा से जूझ रहे थे. 2005 से लगभग 18 वर्षों तक मध्य प्रदेश पर शासन करने के बाद, उनकी पार्टी में यह धारणा थी कि एक ‘थकान का फैक्टर’ उनके खिलाफ काम कर रहा है.

28 जनवरी को जब उन्होंने लाडली बहना योजना की घोषणा की, जो 23 से 60 वर्ष की आयु की पात्र विवाहित महिलाओं को प्रति माह 1,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है, तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि यह गेमचेंजर साबित होगी. योजना की पहली किस्त 10 जून को जारी की गई थी. बाद में उन्होंने इसे बढ़ाकर 1,250 रुपये कर दिया और 21 वर्ष से ऊपर की सभी महिलाओं को इसमें शामिल करने के लिए पात्रता मानदंड में ढील दी.

रविवार को, जब एमपी चुनाव नतीजों ने भाजपा के पक्ष में अप्रत्याशित बदलाव के संकेत दिए, जिसमें कि पार्टी राज्य की 230 में से 150 से अधिक सीटों पर आगे चल रही है, यह चौहान के नेतृत्व और लोकप्रियता को स्पष्ट समर्थन दिखाता है. कांग्रेस करीब 70 सीटों पर आगे चल रही है. जबकि गिनती अभी भी जारी है, दोनों पार्टियों की सीटों के बीच का अंतर बताता है कि भाजपा सत्ता बरकरार रखने की तैयारी में है और अब यह केवल बंपर जीत देखने की बात है.

हालांकि, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बनाते हुए ‘सामूहिक नेतृत्व’ को प्रस्तुत किया था, लेकिन यह चौहान ही थे, जिन्होंने राज्यभर में 165 जनसभाओं को संबोधित करते हुए अभियान का नेतृत्व किया. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व, जो 2003 से 18 वर्षों से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे चौहान से आगे बढ़कर, राज्य में नेतृत्व की एक नई पीढ़ी को आगे बढ़ाना चाह रहा था, अब शीर्ष पद के लिए उनके दावे को नजरअंदाज करने की संभावना नहीं है.

हालांकि, 64 वर्षीय नेता के लिए यह एक कठिन यात्रा रही है. जब चौहान ने 23 मार्च, 2020 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में 21 दिन के कोविड लॉकडाउन की घोषणा से एक दिन पहले, उन्हें यह एहसास नहीं रहा होगा कि उस समय की कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार को गिराना आसान है.

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29 दिनों तक, उन्होंने पार्टी आलाकमान की इजाजत न मिलने पर एक सदस्यीय कैबिनेट के रूप में काम किया.

मध्य प्रदेश में पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “उन्होंने 29 दिनों तक बिना कैबिनेट के मध्य प्रदेश को चलाया. उसके बाद भी काफी मान-मनौव्वल के बाद केवल पांच मंत्री दिए गए. और उसके बाद भी आखरि में पूर्ण मंत्रिमंडल के लिए उन्हें दिल्ली के कई चक्कर लगाने पड़े. इन सबके बावजूद उन्होंने अपना काम किया और लाडली बहना योजना लाने पर ध्यान केंद्रित किया जो गेमचेंजर साबित हुई.”

चौहान, जिन्होंने केंद्रीय मंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार का मार्ग प्रशस्त किया, उन्होंने “कैडर हतोत्साहित” न हों, इसे सुनिश्चित किया.


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सिंधिया, जो अब केंद्रीय मंत्री हैं, 22 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे, जिससे 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में सत्ता में आई कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई थी.

भाजपा द्वारा सिंधिया के वफादार विधायकों के साथ सरकार बनाने के बाद चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. हालांकि, अपने चौथे कार्यकाल में सत्ता में लौटने के बाद, चौहान अपनी ‘मामा’ (मामा, एक नाम जो उन्होंने महिला-केंद्रित योजनाओं के कारण अर्जित किया था) की छवि से बिल्कुल अलग अवतार में नज़र आए, और जनसभाओं में माफियाओं को कड़ी चेतावनी दी.

उत्तर प्रदेश सरकार की तरह, मध्य प्रदेश सरकार ने भी बुलडोज़र का इस्तेमाल करके कथित अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना कानून-व्यवस्था और न्याय के प्रतीक के तौर पर चालू किया.

2020 में, माफियाओं को कड़ी चेतावनी देते हुए, शिवराज सिंह चौहान ने कहा था, “सुन लो रे, मध्य प्रदेश छोड़ देना, नहीं तो जमीन में 10 फीट पर गाड़ दूंगा. कहीं पता नहीं चलेगा.”

2022 तक, मप्र में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने “अपराधियों और बदमाशों” के खिलाफ बुलडोजर चलाना शुरू कर दिया.

पूरे भोपाल में बुलडोजर के साथ चौहान की तस्वीरों वाले कई पोस्टर लगाए गए. होर्डिंग्स में नारे लगे थे कि, “बहन-बेटी के इज्जत के साथ जिसने किया खिलावड़, बुलडोजर पहुंचेगा उसके द्वार.” पोस्टरों में यह भी लिखा है, “बेटी की सुरक्षा में जो बनेगा रोड़ा, मामा का बुलडोजर बनेगा हथौड़ा.”

पार्टी के एक दूसरे पदाधिकारी ने कहा, “कई पार्टी कार्यकर्ता, कांग्रेस नेताओं और उनके वर्कर्स के (भाजपा में) प्रवेश से परेशान थे और यह दिन-ब-दिन साफ होने लगा. इससे पार्टी और सरकार के काम में भी बाधा आई, लेकिन आखिरकार सब ठीक हो गया और चौहान ने सभी नेताओं को साथ लेकर नेतृत्व करने की कोशिश की.”

हालांकि, मध्य प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के लिए अंदरूनी लड़ाई लगातार सिरदर्द बनी हुई है.

नेता ने बताया, “मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर हुए बहुपक्षीय लड़ाई से स्थिति और खराब हो गई थी. चौहान को अपने ही मंत्रियों के अप्रत्यक्ष हमले झेलने पड़े. पिछले साल सितंबर में राज्य के दो मंत्रियों (सिंधिया के वफादारों) ने सार्वजनिक रूप से मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस पर चौहान पर परोक्ष व्यंग्य करते हुए “निरंकुश” (निरंकुश) प्रशासन चलाने का आरोप लगाया था.”

केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें कमतर किया

केंद्रीय नेतृत्व ने भी सीएम को लगातार कमजोर कर रहा था, क्योंकि 2018 के विपरीत, चौहान को मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले 3 से 21 सितंबर के बीच आयोजित भाजपा की ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ का चेहरा नहीं बनाया गया था.

बल्कि, पार्टी ने यह सुनिश्चित करने के लिए नेताओं की एक कतार ही तैनात कर दी कि चौहान रैलियों के चेहरे के तौर पर न नजर आएं, और जो छवि पेश की गई वह सामूहिक नेतृत्व की हो. ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ अपनी सरकार की उपलब्धियों को दिखाने की, भाजपा का सार्वजनिक लोगों तक पहुंचने का एक व्यापक कार्यक्रम है.

चुनाव से कुछ हफ़्ते पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मध्य प्रदेश के लोगों को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें उनसे आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें “सीधा समर्थन” देने को कहा था – जैसा कि उन्होंने “2014 और 2019 लोकसभा चुनाव” में किया था – और राज्य भाजपा की जीत सुनिश्चित करने को कहा था. हालांकि उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा सरकार की “अथक मेहनत” का उल्लेख किया था, जो कि यह एकमात्र जिक्र था, जिसमें उन्हें सीधे समर्थन देने की अपील से यह स्पष्ट हो गया था कि पार्टी पीएम मोदी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ रही है, न कि चौहान के चेहरे के चेहरे के तौर पर.

ऊपर जिक्र किए गए पहले पदाधिकारी ने कहा, “यहां तक कि शुरुआती रैलियों के दौरान भी पीएम मोदी वास्तव में चौहान या लाडली बहना योजना का जिक्र नहीं कर रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे अभियान आगे बढ़ा और पार्टी को प्रतिक्रिया मिली, न केवल पार्टी नेताओं द्वारा योजना को उजागर किया गया बल्कि चौहान के प्रयासों को भी स्वीकार किया गया.” अभियान के उत्तरार्ध में, पीएम मोदी, जिन्होंने पहले एमपी के मतदाताओं को पत्र लिखकर उनसे ‘प्रत्यक्ष समर्थन’ मांगा था, ने भी अपने अभियान भाषणों में चौहान का नाम ज्यादा बार लेना शुरू कर दिया.

इस बीच, मध्य प्रदेश में पार्टी के लिए अंदरूनी कलह एक बड़ा मुद्दा बन गई थी, जिससे केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा.

चुनाव से महीनों पहले केंद्रीय गृहमंत्री ने राज्य में डेरा डालना शुरू कर दिया था और पार्टी नेताओं के साथ कई बैठकें कीं. राज्य के शीर्ष नेताओं के साथ ऐसी ही एक बैठक के दौरान, उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि चुनाव एकजुट होकर लड़ा जाएगा और विभिन्न “शक्ति केंद्रों” से अपने अहंकार को एक तरफ रखकर पार्टी के लिए काम करने को कहा.

चौहान चार बार मप्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने वाले पहले भाजपा राजनेता हैं. वह एकमात्र नेता हैं जो भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी-एल.के. आडणवाणी के शासनकाल के दौरान सीएम बने और अभी भी सत्ता में हैं.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को छात्रों, युवा उद्यमियों, किसानों और विधवाओं के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने का भी श्रेय दिया जाता है.

एक अन्य नेता ने कहा, “लाडली बहना योजना उनके दिमाग की उपज थी और बिना ज्यादा शोर मचाए उन्होंने इस योजना पर काम किया और सुनिश्चित किया कि उनके पास इसके लिए पर्याप्त धन हो. यह चुनाव से पहले, सरकार की बहुचर्चित योजनाओं में से एक बन गई और महिला मतदाताओं से अधिक समर्थन हासिल करने में मदद मिली.”

मध्य प्रदेश में करीबी मुकाबले की उम्मीद करते हुए, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अपने वरिष्ठ नेताओं द्वारा बड़े पैमाने पर प्रचार सुनिश्चित किया, जिन्होंने चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में 15 जनसभाएं कीं. चौहान ने भी पूरे राज्य की यात्रा की और 165 रैलियां कीं.

ऊपर जिक्र किए गए पदाधिकारी ने कहा, “इस नैरेटिव के बावजूद कि कांग्रेस सरकार बनाने के लिए एकदम तैयार है, चौहान ने सुनिश्चित किया कि वह प्रचार करेंगे और पार्टी द्वारा सामूहिक नेतृत्व का विकल्प चुनने के बावजूद उन्होंने (वसुंधरा) राजे (राजस्थान में) के विपरीत अपनी नाराजगी सार्वजनिक नहीं की.” उनके धैर्य को पार्टी आलाकमान द्वारा सम्मान दिए जाने की संभावना है, क्योंकि भाजपा राज्य में सत्ता बरकरार करती हुई नजर आ रही है.

(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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