नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राजस्थान में सत्ता में वापसी के लिए तैयार है और 199 सीटों पर हुए मतदान में से 110 से अधिक सीटों पर आगे चल रही है. दोपहर 1 बजे तक कांग्रेस करीब 70 सीटों पर आगे है. हालांकि गिनती अभी भी जारी है, लेकिन दोनों पार्टियों के बीच का अंतर इतना बड़ा दिख रहा है कि इसे पलटा नहीं जा सकता. यह रेगिस्तानी राज्य में मतदाताओं द्वारा हर 5 साल में सरकारें बदलने की 3 दशक पुरानी प्रवृत्ति की निरंतरता का प्रतीक है.
यह पार्टी की किस्मत में एक बड़े बदलाव का प्रतीक है, जो गुटों में बंटी हुई दिख रही थी और अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के कल्याणवादी एजेंडे का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रही थी.
भाजपा के लिए, पुनर्जीवित होती कांग्रेस के हाथ से राजस्थान को छीनना न केवल चुनावी गणित के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि राज्य में 25 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 24 अभी भाजपा के पास हैं और उसे बरकरार रखने की भी उम्मीद है. साथ ही अशोक गहलोत पर जीत हासिल करने के लिहाज से भी यह काफी अहम है, जिन्होंने एक मजबूत मुख्यमंत्री के रूप में अपनी छवि बनाई थी, जिन्होंने सचिन पायलट के 2020 के विद्रोह को पीछे छोड़, एक कल्याणकारी मॉडल पेश किया जो अन्य कांग्रेस शासित राज्यों की तुलना में कहीं यह राज्य अधिक प्रतिस्पर्धी लग रहा था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सघन अभियान और सावधानीपूर्वक नियोजित रणनीति के साथ, भाजपा ने एक कठिन मुकाबले में चीजों को बदल दिया है.
बीते सालों में, इसने गहलोत सरकार और खासकर कांग्रेस विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाया और राज्य में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर अपराध, भर्ती परीक्षा पेपर लीक, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से घिरे होने का नैरेटिव गढ़ा.
चूंकि गहलोत की कल्याणकारी योजनाएं भाजपा के खिलाफ एक शक्तिशाली संतुलन साधने वाली थीं, बाद में इन योजनाओं के वितरण में कथित तौर पर भारी भ्रष्टाचार को उजागर किया गया.
2018 में, अपने वोट शेयर के साथ, जीती गई सीटों की संख्या में अंतर के बावजूद कांग्रेस से केवल थोड़ा पीछे रही थी- 39.3 प्रतिशत और 99 सीटों की तुलना में 38.8 प्रतिशत और 73 सीटों के साथ- इस बार भाजपा का काम मुश्किल नहीं था. एकमात्र बाधा इसके संगठन में एकजुटता की कमी और राजस्थान इकाई में अंदरूनी कलह थी. लिहाजा पार्टी एकजुटता लाने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ी और एक इकाई के तौर पर लड़कर व किसी भी मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा कर नेतृत्व के मुद्दे को हल किया.
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एकजुटता लाने के लिए सामूहिक नेतृत्व
भाजपा नेतृत्व ने अंदरूनी कलह को रोकने के लिए पहला कदम इस साल मार्च में उठाया था, जब उसने सी.पी. जोशी-एक ऐसे नेता जो किसी विशेष गुट से जुड़े नहीं थे- को राजस्थान अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था- सतीश पूनिया को हटा दिया था. पूनिया को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के साथ खराब रिश्ते के लिए जाना जाता है और उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान उनके कई वफादारों को संगठन के पदों से हटा दिया था.
साथ ही, आलाकमान ने हर गुट से स्पष्ट तौर से कहा कि कोई मुख्यमंत्री पद का चेहरा पेश नहीं किया जाएगा और पार्टी सामूहिक रूप से चुनाव लड़ेगी. इसने यह भी सुनिश्चित किया कि राजे- जो कि पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक है, जिनकी लोगों के बीच बहुत अच्छी प्रतिष्ठा है- को दरकिनार नहीं किया गया, और उन्हें सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया. यह भी मालूम हुआ है कि गृहमंत्री अमित शाह ने स्वयं यह सुनिश्चित किया कि पूर्व मुख्यमंत्री को प्रमुखता देने के लिए राज्य नेतृत्व की अनिच्छा के बावजूद वह कई बैठकों में भाषण दे पाएं.
विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ और अन्य लोगों की अनिच्छा और यहां तक कि विरोध के बावजूद राजे के ज्यादातर वफादारों को भी भाजपा की दूसरी सूची में जगह दी गई. राजे ने भी ट्रिकी स्थिति को महसूस किया और मुख्यमंत्री बनने की अपनी संभावना को बनाए रखने के लिए राज्य के किसी भी अन्य नेता से अधिक, 50 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार किया.
रणनीति काम कर गई, सभी नेताओं ने सामूहिक रूप से गहलोत के खिलाफ लहर को मोड़ने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में काम किया.
मोदी की निजी गारंटी
मोदी ने पहले भारतीय राजनीति में बढ़ती रेवड़ी या ‘फ्रीबीज’ संस्कृति का मजाक उड़ाया था, कर्नाटक में कांग्रेस की गारंटी का मजाक उड़ाया था और यहां तक कि संसद में भी इस मुद्दे पर बात की थी.
वहीं, भाजपा द्वारा किए गए कई सर्वेक्षणों में पाया गया था कि लोग दिन-प्रतिदिन आर्थिक मुद्दों के आधार पर मतदान कर रहे थे, और हिमाचल व कर्नाटक में कांग्रेस की वादा की गई कल्याणकारी योजनाएं उसकी जीत में अहम फैक्टर थीं.
लिहाजा, भाजपा कई कल्याणकारी योजनाओं से लैस होकर इस चुनाव में उतरी, दोनों मौजूदा योजनाएं – जैसे कि मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना, जिसकी घोषणा इस साल मार्च में की गई थी- और घोषणापत्र में छत्तीसगढ़ में महिलाओं के लिए सालाना वित्तीय सहायता जैसे वादे किए गए थे, साथ ही युवाओं और किसानों के लिए रियायतें.
प्रधानमंत्री ने भाजपा की कल्याणकारी योजनाओं को कांग्रेस की योजनाओं से अलग दिखाने के लिए इन्हें ‘मोदी की गारंटी’ के तौर पर पेश करते हुए अपनी निजी साख का इस्तेमाल किया. राजस्थान में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, “जहां कांग्रेस से उम्मीद खत्म होती है, वहां से मोदी की गारंटी शुरू होती है.”
न केवल उन्होंने चुनावी राज्यों में प्रचार किया, मोदी ने किसी भी राज्य में बिना सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट किए सीधे अपने नाम पर वोट मांगे, चुनाव को मोदी ब्रांड पर एक रेफरेंडम बनाने का काम किया. इसने संभवत: पर्टी की आंतरिक कलह को समाप्त किया और स्थानीय लोगों को वोट देने के बजाय मोदी को वोट देने के लिए प्रेरित किया.
राजस्थान बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि, “यह पहला चुनाव था जहां पीएम मोदी ने मतदाताओं से उन्हें वोट देने को कहा और इसने खेल को बदल दिया. उनकी निजी साख किसी और नेता से इतनी ज्यादा मजबूत है कि मतदाता प्रचार और उम्मीदवारों की कमियों पर ध्यान देना भूल जाते हैं.”
सत्ता विरोधी लहर और सही संदेश
पूनिया के राज्य प्रमुख होने के दौरान बीजेपी कई उपचुनाव हार गई, लेकिन पार्टी ने राज्य में कानून अव्यवस्था का नैरेटिव बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा. उदयपुर बीजेपी का गढ़ है, लेकिन जब एक टेलर कन्हैया लाल तेली, जिसकी 2022 में दो मुस्लिमों द्वारा हत्या की गई तो पार्टी ने इस मामले को पूरे प्रदेश में कानून अव्यवस्था और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के तौर पर पेश किया. मोदी और शाह समेत नेताओं ने गहलोत पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को लेकर लगातार हमला बोला.
फिर, भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने का मामला था, जिसका बीजेपी ने युवा चुनाव क्षेत्रों में साधने के तौर पर इस्तेमाल किया. राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा और राज्य नेतृत्व ने इस मुद्दे पर कई विरोध-प्रदर्शन किए. जब इस साल के शुरू में भूख हड़ताल पर वह बैठे तो राजे ने उन्हें अपना समर्थन दिया था.
बीजेपी पेपर लीक से लेकर महिलाओं के खिलाफ अपराध, बेरोजगारी के मुद्दों को एक यूनिफाइड नैरेटिव बनाने और सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाना के लिए ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ के साथ सितम्बर में सड़क पर उतरी.
चूंकि राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकार बदलने का चलन है, बीजेपी को आखिरी तक बस एक डर, गहलोत की कल्याणकारी योजनाओं का था, लेकिन सीएम अपने ज्यादातर मौजूदा विधायकों को टिकट देकर इसका फायदा उठाने का मौका गंवा दिया, जो जमीन पर उनमें से कई लोगों के खिलाफ मजबूत भावना होने से भाजपा के लिए वरदान बन गए.
पूर्वी राजस्थान और गुर्जरों का समर्थन
2018 में, गुर्जर समुदाय को कांग्रेस का समर्थन करते हुए देखा गया था, और वे तत्कालीन राज्य प्रमुख सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मीणाओं के साथ मिलकर रैली किए थे. कांग्रेस के आठ गुर्जर उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी, जिससे पार्टी को पूर्वी राजस्थान में कुल 25 सीटें हासिल हुईं. भाजपा इस क्षेत्र में तीन सीटों पर सिमट गई, बाकी सीटें निर्दलीय और बसपा के पास चली गईं, जिन्होंने बाद में कांग्रेस का समर्थन किया.
राज्य के भाजपा नेताओं ने मोदी के इशारे पर काम किया; उदाहरण के लिए, टोंक-सवाई माधोपुर से दो बार के सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया ने कहा कि पायलट के पास “मुख्यमंत्री बनने का कोई मौका नहीं था क्योंकि गहलोत कभी ऐसा होने नहीं देते.”
महिलाओं का भरोसा जीतना
महिला वोटरों को साधते हुए, पार्टी ने महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर भी लगातार गहलोत सरकार पर हमला बोला. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2021 के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में सबसे अधिक बलात्कार के मामले दर्ज होने के साथ, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा नेता महिलाओं का ध्रुवीकरण करने के लिए महिला सुरक्षा के मुद्दे पर गहलोत पर हमला करते रहे. प्रधानमंत्री ने कई रैलियों में कहा, ”कांग्रेस ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों में राजस्थान को नंबर एक बना दिया है. सीएम का कहना है कि महिलाओं की ओर से दर्ज की गई शिकायतें फर्जी हैं. क्या कभी ऐसा हो सकता है कि हमारे देश में कोई महिला फर्जी केस दर्ज कराए?”
भीलवाड़ा में, जहां अगस्त में 14 साल की लड़की के साथ बलात्कार किया गया और हत्या की गई थी, वहां बीजेपी ने महिलाओं के उत्पीड़न को लेकर कई सारे नेताओं को मैदान में उतारा था.
भाजपा नेताओं ने यह भी कहा कि चूंकि गहलोत की कल्याणकारी योजनाएं एक नुकसान पहुंचाने वाली फैक्टर थीं, इसलिए उन्हें ग्रामीण राजस्थान में महिलाओं और युवाओं पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा. पार्टी ने ‘लाडो प्रोत्साहन’ योजना का घोषणापत्र में वादा किया- घर में पैदा होने वाली हर बेटी को 2 लाख बचत बॉन्ड- हर जिले में एक ‘महिला पुलिस थाना’ और हर पुलिस स्टेशन में एक ‘महिला डेस्क’ का वादा. सभी प्रमुख शहरों में एक ‘एंटी-रोमियो’ स्क्वाड, साथ ही गुलाबी बसें और एक पुलिस बटालियन बनाना शामिल किया.
चूंकि राजस्थान में पाइप से पानी की कनेक्टिविटी कम है और इसकी वजह से महिलाएं परेशानी झेलती हैं, महिलाओं के वोटों को टारगेट करने के लिए भाजपा ने इस कमी पर ध्यान केंद्रित किया.
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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