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Thursday, 21 November, 2024
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एक साल की MBA डिग्री से मोदी सरकार नाखुश, IIMs को कड़ी मेहनत से मिली स्वायत्तता को कर सकती है कमजोर

शिक्षा मंत्रालय आईआईएम बोर्ड्स के स्तर पर, कदाचार को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है. इसके तहत गवर्नर मंडल के खिलाफ कार्रवाई की जा सकेगी.

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नई दिल्ली: आईआईएम एक्ट 2017 के अंतर्गत भारतीय प्रबंधन संस्थानों (IIMs) को पूर्ण स्वायत्तता दिए जाने के क़रीब दो वर्ष बाद केंद्र सरकार कथित रूप से एक नए प्रावधान पर विचार कर रही है, जो संभावत: इस क़ानून को हल्का कर सकता है.

सरकारी सूत्रों ने कहा कि इस क़दम का उद्देश्य संस्थानों में बोर्ड के स्तर पर हो रहे कदाचार पर रोक लगाना है.

शिक्षा मंत्रालय (एमओई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम एक प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं, जिससे अगर ये संस्थान कदाचार में लिप्त पाए जाते हैं, तो मंत्रालय इनके गवर्नर मंडलों के खिलाफ, जांच शुरू करा सकते है. अभी तक इस बारे में कोई अध्यादेश नहीं है, हम अभी सिर्फ चर्चा की स्टेज पर हैं.’

आईआईएम एक्ट, जो 31 जनवरी 2018 से प्रभावी हुआ, भारत के सभी 20 प्रीमियर बिज़नेस स्कूलों को पूरी शक्तियां देता है, जिनमें निदेशकों, अध्यक्षों तथा गवर्नर मंदल के सदस्यों की नियुक्ति शामिल हैं.

क़ानून के मुताबिक़, किसी संस्थान का गवर्नर मंडल ‘उस संस्थान की प्रमुख कार्यकारी इकाई है, जो संस्थान के सामान्य अधीक्षण, निर्देशन, और कामकाज के लिए ज़िम्मेदार होता है’. और जिसे ‘संस्थान के कामकाज को निर्देशित करने वाले नियम बनाने, और उन्हें सुधारने, बदलने, या रद्द करने का अधिकार होता है’.

संस्थानों के गवर्नर मंडलों के खिलाफ कार्रवाई के, शिक्षा मंत्रालय के क़दम से, आईआईअम्स में नाराज़गी पैदा हो गई है, और वो इसे अपनी स्वायत्तता पर हमला बता रहे हैं.

संस्थानों के अनुसार, ये घटनाक्रम संस्थानों और सरकार के बीच, ताज़ा टकराव के बाद सामने आया है, जो बहुत से आईआईएम्स द्वारा शुरू की गई, एक साल की एमबीए डिग्री से जुड़ा है.

सरकार से स्वायत्तता मिलने के बाद, बहुत से आईआईएम्स ने अपने एक साल के एग्ज़ीक्यूटिव डिप्लोमा को डिग्री में बदल दिया.

शिक्षा मंत्रालय इसके पक्ष में नहीं था, और दो अवसरों पर उसने आईआईएम्स से अपनी शंका को व्यक्त किया, पहले इस साल की शुरूआत में मौखिक रूप से, और बाद में जुलाई में एक लिखित संचार के ज़रिए.

मंत्रालय इस विचार पर अपनी आपत्तियां ज़ाहिर कर रहा है, क्योंकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) नियमों के तहत, एक साल की डिग्री भारत में वैध नहीं है. इसके जुलाई के कम्यूनिकेशन के अनुसार, एमओई ने कहा कि एक साल की डिग्री देकर, आईआईएम्स ‘यूजीसी एक्ट 1956 के अनुरूप काम नहीं कर रहे हैं’.


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एक्ट में कहा गया है, ‘कोई छात्र मास्टर्स डिग्री दिए जाने का पात्र नहीं होगा, जब तक उसने पहली डिग्री के बाद कम से कम दो साल, या प्लस टू के बाद पांच साल पूरे न कर लिए हों, या प्रोग्राम के लिए यूनिवर्सिटी द्वारा निर्धारित क्रेडिट्स के, न्यूनतम नंबर हासिल न कर लिए हों.

दिप्रिंट ने इस मुद्दे पर, शिक्षा मंत्रालय के पीआईबी डिवीज़न को, एक विस्तृत प्रश्नावली भेजकर टिप्पणी के लिए कहा, लेकिन इस ख़बर के छपने तक कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ था.

‘हल्का करना दुर्भाग्यपूर्ण है’

दिप्रिंट से बात करते हुए तीन आईआईएम्स के निदेशकों ने, नाम छिपाने की शर्त पर कहा, कि उनकी स्वायत्तता को हल्का करने का सरकार का क़दम, इसका नतीजा है कि उन्होंने एक साल का एमबीए बंद करने के लिए, मंत्रालय के पत्रों पर कोई तवज्जो नहीं दी थी.

फिलहाल 20 आईआईएम्स में से, अहमदाबाद, बैंगलौर, कोलकाता, इंदौर, कोझिकोड, लखनऊ, और उदयपुर, एग्ज़ीक्यूटिव्स के लिए एक साल की डिग्री देते हैं.

एक आईआईएम डायरेक्टर ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘एक साल की पूर्णकालिक स्नातकोत्तर एमबीए डिग्री, सिर्फ उन छात्रों के लिए है, जिनके पास काम का अनुभव होता है. कम से कम चार साल के काम के अनुभवी उम्मीदवार ही, इन प्रोग्राम्स में लिए जाते हैं’.

एक दूसरे आईआईएम डायरेक्टर ने कहा, ‘जब आईआईएम एक्ट आया, तो वो ताज़ा हवा के एक झोंके की तरह था, और अब सरकार उसे हल्का करना चाहती है…ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके पीछे एक साल की एमबीए डिग्री के अलावा, कोई दूसरी वजह नहीं हो सकती’.

डायरेक्टर ने आगे कहा, ‘एक साल की एमबीए डिग्री ऐसी चीज़ नहीं है, जो संस्थानों ने यूंही शुरू कर दी. 20 आईआईएम्स ने बैठकर इसपर अच्छे से विचार विमर्श किया, और डिग्री पेश करने के लिए बाक़ायदा नियम तय किए. चूंकि आईआईएम्स द्वारा ऑफर किए एमबीए में, काम का अनुभव नहीं मांगा जाता, इसलिए एग्ज़ीक्यूटिव एमबीए के लिए, जो एक साल की अवधि का होता है, काम का अनुभव अनिवार्य होता है. हमने इसे इसी तरह डिज़ाइन किया है’.

एक वर्ष की एमबीए डिग्री पर मंत्रालय की आपत्ति के बाद, आईआईएम्स ने सरकार को एक विस्तृत नोट भेजा थी, जिसमें उनकी एक वर्ष की एमबीए डिग्री के पीछे के, कारणों की व्याख्या की गई थी. उस नोट में, जिसकी एक कॉपी दिप्रिंट के हाथ लगी है, समझाया गया है कि कैसे ये डिग्री, आईआईएम एक्ट का उल्लंघन नहीं करती.

नोट में कहा गया, ‘जैसा कि एनईपी (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) 2020 में पहचाना और स्वीकार किया गया, दुनिया भर में, डिग्रियां किसी प्रोग्राम में पढ़ाई के सालों के नहीं, बल्कि क्रेडिट-घंटों की संख्या के आधार पर दी जाती हैं. गुणवत्ता सुनिश्चित करने और स्व:नियमन के ऊंचे मानदंडों का पालन करने के लिए, सभी आईआईएम्स ने इसी तरह के दूसरे एक-वर्षीय कार्यक्रमों में, क्रेडिट घंटों को ध्यान में रखते हुए, छात्रों को डिग्री दिए जाने के लिए ज़रूरी, क्लासरूम शिक्षण के क्रेडिट्स/घंटों के कुछ न्यूनतम मानदंड तय किए हैं’.

उसमें आगे कहा गया, ‘इन मानदंडों को निर्धारित करने के बाद ही आईआईअम्स में, एक वर्षीय पूर्ण-कालिक स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में शामिल होने वालों को डिग्रियां दी गईं’.

‘IIMs को यूजीसी के नियम क्यों मानने चाहिएं?’

इस मुद्दे पर बात करते हुए, दिप्रिंट से बात करने वाले तीसरे आईआईएम डायरेक्टर ने कहा, ‘आईआईएम्स जो एक-वर्षीय डिग्री दे रहे हैं, वो आईआईएम एक्ट के मुताबिक़ है. एक तरफ, सरकार चाहती है कि संस्थान अंतर्राष्ट्रीय स्तर प्राप्त करें, और दूसरी तरफ यूजीसी नियम दिखाकर, वो हमें नीचे खींचना चाहते हैं’.

उन्होंने आगे कहा: ‘आईआईएम्स को यूजीसी के नियम क्यों मानने चाहिएं?’ क्या वो शिक्षा के सर्वोच्च मानदंड तय करने वाली अथॉरिटी है?’


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डायरेक्टर ने कहा कि ज़्यादातर अंतर्राष्ट्रीय बी-स्कूल, एक साल की एमबीए डिग्री देते हैं. ‘अगर आईआईएम भी यही करते हैं, तो इसमें क्या ग़लत है?’ लेकिन इसके आधार पर अगर सरकार, स्वायत्तता को कमज़ोर करना चाहती है, तो ये अत्यंत अनुचित है. मुझे तो लगता है कि अगर ये प्रावधान सामने आता है, तो हमारे पूर्व छात्र उसे कोर्ट में चुनौती देंगे’.

लेकिन, मंत्रालय के सूत्रों ने इससे इनकार किया, कि इस क़दम पर सिर्फ एक वर्षीय डिग्री के मुद्दे की वजह से, विचार हो रहा है. आईआईअम्स को हैण्डल करने वाले, मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर कहीं कोई ग़लती है, तो लोगों (गवर्नर मंडल सदस्यों) को जवाबदेह होना चाहिए’.

‘MoE को वर्षों की संख्या की चिंता नहीं करनी चाहिए’

सरकार के प्रस्ताव पर बात करते हुए, अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर पंकज चंद्रा ने, जो आईआईएम बैंगलौर के डायरेक्टर भी रह चुके हैं, कहा कि इस क़दम से वो फायदा ख़त्म हो सकता है, जो एक्ट लाने के पीछे का मक़सद था.

उन्होंने कहा, ‘मैं समझता हूं कि आईआईएम एक्ट, सरकार की ओर से एक साहस भरा क़दम था…जिसमें उसने गवर्नर मंडल में अपनी आस्था क़ायम की थी. ये एक सही क़दम था जिससे आईआईएम्स प्रभावशाली संस्थान बन सकते थे. अब अगर एमओई दख़लअंदाज़ी करना चाहता है, और कहता है कि वो गवर्नर मंडल पर नज़र रखेगा, तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी व्यक्ति, गवर्नर मंडल का अध्यक्ष बनना चाहेगा. फिर आप उस श्रेष्ठता को गंवा देंगे, जो मेरे विचार में इस सरकार ने आईआईएम्स को दी थी. सभी अच्छे सार्वजनिक संस्थानों के पास, ये विशेषाधिकार होने चाहिएं.

चंद्रा ने आगे कहा, ‘ऐसा कहने के बाद, अगर कोई कदाचार या प्रक्रिया से जुड़ी समस्याएं हैं, तो सरकार को अध्यक्ष से बात करनी चाहिए, और बताना चाहिए कि समस्या कहां है, जैसा कि आईआईएम एक्ट में कल्पना की गई थी’.

एक-वर्षीय एमबीए डिग्री पर बात करते हुए, कथित तौर पर जिसकी वजह से, सरकार ने ये क़दम उठाया है, उन्होंने कहा: ‘मेरी समझ में नहीं आता कि सरकार ऐसा क्यों कर रही है…वही बेहतर जानती है, लेकिन एक-वर्षीय डिग्री प्रोग्राम के बारे में मैं कहना चाहूंगा, कि एमबीए के लिए वर्षों की संख्या की बजाय, हमें कम से कम क्रेडिट्स की संख्या, पूरी होने की चिंता होनी चाहिए’.

चंद्रा ने आगे कहा : ‘इस अंतर को बारीकी से समझने की ज़रूरत है. एक-वर्षीय प्रोग्राम उन लोगों के लिए होते हैं, जिनके पास काम का अच्छा ख़ासा अनुभव होता है, और उन्हें प्रारंभिक शिक्षा की उतनी ज़रूरत नहीं होती, जितनी किसी फ्रेश ग्रेजुएट को होती है. मुझे नहीं लगता कि मंत्रालय को, वर्षों की संख्या की चिंता करनी चाहिए. उन्हें बस कार्यक्रमों की क्वालिटी पर ध्यान देना चाहिए. और जहां तक यूजीसी नियमों की बात है, तो अनुभवी प्रोफेशनल्स की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, वो अपने नियम भी बदल सकते हैं’.

पूर्व कांग्रेस सांसद और पूर्व-आईआईएम बैंगलौर प्रोफेसर राजीव गौड़ा ने कहा, कि एक-वर्षीय डिग्री के विवाद को खड़ा करके, सरकार को आईआईएम्स की स्वायत्तता को निशाना बनाने का, एक बहाना मिल गया है.

उन्होंने कहा, ‘जब आईआईएम बिल तैयार किया जा रहा था, तो सरकार के भीतर इस बात को लेकर अलग अलग मत थे, कि आईआईएम्स को कितनी स्वायत्तता दी जानी चाहिए. तैयार किया एक्ट काफी स्वायत्तता देता है, इसलिए हो सकता है कि नौकरशाहों और बीजेपी के मन में पुनर्विचार हो, क्योंकि उनका झुकाव, ख़ासकर शैक्षणिक संस्थाओं के नियंत्रण पर है’.

गौड़ा ने आगे कहा, ‘इस बहाने का इस्तेमाल करना, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विश्व मानदंडों के अनुपालन, और लचीलेपन पर दिए गए ज़ोर के, खिलाफ जाना है, चूंकि दुनिया भर में एक-वर्षीय एग्ज़ीक्यूटिव एमबीए आम है. अगर ज़रूरत है तो ये, कि यूजीसी एक-वर्षीय डिग्री के लिए, अपनी ज़रूरतों को सामयिक बनाए. मुझे उम्मीद है कि ये विवाद सुलझा लिया जाएगा, और आईआईएम की मेहनत से कमाई गई स्वायत्तता पर आंच नहीं आएगी’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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