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Thursday, 25 April, 2024
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कम लोगों के बीच चर्चित लेकिन डिमांड में रहने वाले- IAS, IPS, IFS कोचिंग उद्योग की जान हैं ‘स्टार’ टीचर

सिविल सेवा के इच्छुक उम्मीदवार इतिहास, भूगोल और राजनीति विज्ञान जैसे वैकल्पिक विषयों के लिए कोचिंग लेना चाहते हैं. यही इन विषयों के ‘विशेषज्ञ शिक्षकों’ की सबसे ज्यादा मांग बनाए रखता है.

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नई दिल्ली: भारत का विशाल सिविल सेवा कोचिंग उद्योग, जो अनुमानित तौर पर 3,000 करोड़ रुपये का है, अब अपने प्रचार के लिए कुछ ‘स्टार शिक्षकों’ को प्रोमोट करने का सहारा ले रहा है, उनके चेहरे देशभर में उनके बिलबोर्ड और अखबारों में छपे विज्ञापनों में जगह बनाते भी नज़र आने लगे हैं.

आम बोलचाल की भाषा में ‘आईएएस कोचिंग’ कहे जाने वाले इस उद्योग में कार्यरत शिक्षकों की मोटे तौर पर तीन अलग-अलग श्रेणिया हैं— सफल न हो पाने वाले सिविल सेवा अभ्यर्थी, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इसके अलावा कुछ सेवानिवृत्त और यहां तक कि कुछ सेवारत नौकरशाह भी इसमें शामिल हैं.

दिल्ली स्थित मेरिडियन कोर्सेस कोचिंग एकेडमी से जुड़े ए.के. सिंह, जो शिक्षण को अपना पेशा बनाने वाले एक पूर्व सिविल सेवा अभ्यर्थी हैं, ने बताया कि ‘स्टार’ शिक्षकों की मांग क्यों बढ़ रही है.

सिंह ने कहा, ‘कोचिंग संस्थान सेवारत कॉलेज-यूनिवर्सिटी प्रोफेसरों और नौकरशाहों की सेवाएं लेने का प्रचार नहीं कर सकते, इसलिए सिविल सेवा के पूर्व अभ्यर्थियों को ‘विषय विशेषज्ञ’ के रूप में प्रचारित करने पर जोर देते हैं. हालांकि, इन शिक्षकों की प्रसिद्धि केवल सिविल सेवा उम्मीदवारों के बीच ही सीमित होती है. आम लोग उन्हें नहीं जानते हैं.’

दिप्रिंट ने यह समझने के लिए कई ऐसे ही ‘स्टार’ शिक्षकों से संपर्क किया कि कौन-सी बात उन्हें आईएएस बनने के इच्छुक छात्रों के बीच लोकप्रिय बनाती है. लेकिन केवल कुछ ही लोग बोलने को तैयार हुए, वह भी उनकी या उनके संस्थान की पहचान उजागर किए बिना क्योंकि वह संस्थान की अनुमति के बिना कुछ भी नहीं बोलने के लिए अनुबंधित हैं.

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त्रिस्तरीय प्रक्रिया

सिविल सेवाओं के लिए चयन प्रक्रिया त्रिस्तरीय है. सबसे पहले एक प्रारंभिक परीक्षा होती है जिसमें दो पेपर होते हैं—जनरल स्टडीज और एप्टीट्यूड टेस्ट जो किसी उम्मीदवार की तार्किकता, निर्णय लेने की क्षमता और सामान्य मानसिक क्षमता का पता लगाने के लिए होती है.

प्रीलिम्स क्लीयर कर लेने वाले अभ्यर्थी मेन्स में शामिल होते हैं. इस परीक्षा में जनरल स्टडीज में चार पेपर, दो पेपर उम्मीदवार की तरफ से चुने गए वैकल्पिक विषय के दो पेपर और एक निबंध शामिल होता है.

अंतिम चरण एक इंटरव्यू होता है, जिसमें अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर मौका मिलता है और जहां उन्हें कठिन ‘तार्किक सवालों’ का सामना करना पड़ता है.

आमतौर पर इच्छुक अभ्यर्थी वैकल्पिक विषयों जैसे इतिहास, भूगोल और राजनीति विज्ञान के लिए विशेष कोचिंग लेना चाहते हैं, यही वजह है कि ‘विषय विशेषज्ञ’ शिक्षकों की सबसे अधिक मांग होती है.

‘अधिकांश छात्र पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर अपने दम पर जनरल स्टडीज की तैयारी करते हैं लेकिन जब वैकल्पिक विषयों की बात आती है, तो टीचर की तलाश करते हैं. सिविल सेवा परीक्षा में बैठने वालों को किसी एक विषय का गहन ज्ञान होना जरूरी है और यही कुछ शिक्षकों को अपनी महारत के लिए मशहूर बना देता है.’ यह कहना है कुशाग्र जैन का, जिन्होंने 2010 में सिविल सेवाओं के लिए तैयारी की थी और तीन प्रयासों में असफल होने के बाद इसे छोड़ दिया. जैन अब भोपाल में एक निजी फर्म के लिए काम करते हैं.


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शिक्षक कैसे पाते हैं ‘स्टार’ का दर्जा?

एक स्थानीय संस्थान में सेवारत चेन्नई के रहने वाले एक शिक्षक ने बताया कि कैसे कुछ शिक्षक प्रसिद्ध हो जाते हैं.

अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर उक्त शिक्षक ने कहा, ‘उनकी प्रसिद्धि के पीछे दो-तीन कारण होते हैं- वो संस्थान जिससे वह जुड़े हैं, उनकी अपनी प्रतिभा और बीतते सालों के साथ उनके छात्रों को मिलने वाली सफलता. यदि एक शिक्षक वाजीराम और रवि जैसे संस्थान से जुड़ा है और अपने विषय में बेहद अच्छा है तो उन्हें इसका पूरा फायदा मिलेगा और वे जहां भी जाते हैं उन्हें वाजीराम और रवि के नाम से जाना जाता है. यह शिक्षक के लिए एक तरह से सेलिंग प्वाइंट बन जाता है.’

उदाहरण के तौर पर यूपीएससी कोचिंग उद्योग में नए-नए शामिल नेक्स्ट आईएएस ने अपनी वेबसाइट में अपनी फैकल्टी को प्रचारित करते हुए लिखा, ‘नेक्स्ट आईएएस की टीम में जीएस में भारत की जानी-मानी फैकल्टी का स्वागत है.’ नए शामिल सदस्य दरअसल वाजीराम और रवि फैकल्टी के पूर्व सदस्य हैं जो जनरल स्टडीज में अपनी विशेषज्ञता के लिए पहचाने जाते हैं.

नेक्स्ट आईएएस ने अपने फैकल्टी सदस्यों के बारे में टिप्पणी के लिए दिप्रिंट की तरफ से कई बार किए गए कॉल और ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया.

बायजूस नामक एक प्रमुख ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म ने रक्षा विशेषज्ञ कमोडोर उदय भास्कर (सेवानिवृत्त) सहित कुछ विशिष्ट फैकल्टी सदस्यों को शामिल कर रखा है.

बायजूस में एवीपी प्रोडक्ट (यूपीएससी) सरमद मेहराज ने कहा, ‘कुछ बेहतरीन अकादमिक विशेषज्ञों और जाने-माने शिक्षकों का हमारे मंच से जुड़ा होना हमारे लिए गर्व की बात है. हाल के दिनों में बायजूस ने एथिक्स के लिए जी. सुब्बा राव (सिविल सेवा परीक्षा में एथिक्स पर सबसे अधिक मांग वाली किताब के लेखक) के अलावा प्रो. पुष्पेश पंत (जेएनयू के पूर्व डीन) और उदय भास्कर (रक्षा विशेषज्ञ) जैसे शीर्ष शिक्षाविदों को अपने साथ जोड़ा है.’

हालांकि, दिल्ली स्थित एक प्रमुख कोचिंग संस्थान से जुड़े एक जाने-माने शिक्षक, जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम सेलिब्रिटी नहीं हैं और न ही उनकी तरह व्यवहार करने का कोई इरादा रखते हैं. हमने जो नाम कमाया है, वह हमारी वर्षों की मेहनत और लगन का नतीजा है. हां, कोचिंग सेंटर हमें मार्केटिंग टूल की तरह उपयोग करते हैं लेकिन मैं तो चाहता हूं कि छात्र समझदारी का परिचय दें और सोच-समझकर तय करें कि उनके लिए क्या बेहतर है.’

प्रसिद्धि का दूसरा पहलू

कुछ शिक्षकों ने कहा कि इस उद्योग में एक बड़ा नाम होने का एक दूसरा पहलू भी है. यूपीएससी के इच्छुक छात्रों के बीच खासे लोकप्रिय राजनीति विज्ञान के जाने-माने शिक्षक राजेश मिश्रा, जो कभी एक बड़े कोचिंग संस्थान का हिस्सा थे, अब छोटे स्तर पर अपनी अकादमी चलाते हैं और उनका कहना है कि बड़े संस्थान इन दिनों ‘कॉरपोरेट’ की तरह चलते हैं.

उन्होंने कहा, ‘जब एक शिक्षक लोकप्रिय हो जाता है, तो संस्थान शिक्षक के शोषण की कोशिश करता है…वे शिक्षक के नाम का उपयोग करके अधिक से अधिक लाभ चाहते हैं. इसके अलावा मुझे बड़े संस्थानों में एक जो बड़ी कमी महसूस होती है, वो यह कि एक विषय विशेषज्ञ सिर्फ उस विषय को पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रहता है. यदि कोई राजनीति विज्ञान पढ़ाता है तो वह अर्थशास्त्र, इतिहास और जो कुछ भी पढ़ा सकता है, उस विषय को पढ़ाने लगेगा. कोई भी कुछ भी सिखाने के लिए स्वतंत्र है जो उन्हें पसंद हो…इसलिए वह जिस विशेषज्ञता की पेशकश का दावा करते हैं वैसा वास्तव में वहां कुछ होता नहीं है.’

मिश्रा ने कहा कि इसीलिए वह खुद छोटे स्तर पर पढ़ाना चाहते थे, ताकि व्यक्तिगत स्तर पर छात्रों पर ज्यादा ध्यान दे सकें.

संस्थानों में कार्यरत युवा या कम प्रसिद्ध शिक्षकों की शिकायत है कि अधिकांश काम तो उनसे ही कराया जाता है.

इतिहास में पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद कोचिंग उद्योग में कदम रखने वाले एक 25 वर्षीय शिक्षक ने कहा, ‘वो तो युवा और कम ख्यात शिक्षक होते हैं जो छात्रों के लिए टेस्ट पेपर सेट करना, उनकी उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन आदि जैसे सारे काम करते हैं. बड़े नामी शिक्षक केवल कुछ कक्षाएं लेते हैं और उन्हें युवाओं की तुलना में बहुत ज्यादा भुगतान किया जाता है.


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भारी-भरकम वेतन

दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कई लोगों ने बताया कि इन कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने वाले फैकल्टी सदस्यों का वेतन 800 रुपये प्रति घंटे से लेकर 12,000 रुपये प्रति घंटे तक है, जो उनके कार्य अनुभव पर निर्भर करता है.

पहचान उजागर न करने की शर्त पर एक शिक्षक ने कहा, ‘यहां तक कि एक पार्ट-टाइम फैकल्टी सदस्य, जो किसी भी लोकप्रिय संस्थान में दिन में 4-5 घंटे पढ़ाता हो, महीने में 1 लाख रुपये से अधिक कमा लेता है. एक फुल टाइम टीचर, खासकर वरिष्ठ संकाय सदस्य और ज्यादा कमाते हैं…. ‘स्टार’ शिक्षक की सालाना कमाई तो लगभग 3-4 करोड़ रुपये होती है.’

यह पूछे जाने पर कि इसकी कॉलेज या यूनिवर्सिटी शिक्षक के वेतन की कैसे तुलना की जा सकती है, उन्होंने कहा, ‘कोचिंग संस्थानों के वेतन की तुलना नियमित कॉलेज शिक्षकों से करना उचित नहीं है. सरकारी कॉलेज में पढ़ाने वालों को असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर हर महीने 50,000 रुपये मिलते हैं, जो कि शुरुआती स्तर है, और एक प्रोफेसर के स्तर तक पहुंचने पर उन्हें केवल 2 लाख रुपये मिलते है. इसमें भी उन्हें कम से कम 10 साल का समय लगता है. निजी कॉलेजों में स्थिति बदतर है जहां शिक्षक प्रति माह 18,000 से 20,000 रुपये प्रतिमाह से शुरुआत करते हैं और फिर अनुभव के आधार पर यह धीरे-धीरे बढ़ता है.’

बहरहाल, ये शिक्षक इससे सहमत थे कि कॉलेज के कुछ शिक्षक अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए इन कोचिंग संस्थानों में काम करते हैं. उन्होंने कहा, ‘बेशक यदि वे किसी निजी कोचिंग संस्थान में पढ़ाने लगे तो दोगुना तक वेतन हो जाएगा, लेकिन लोगों को एक निर्धारित नौकरी की सुरक्षा पसंद होती है. इसलिए अधिक पैसा बनाने के लिए वह नौकरी के साथ इन संस्थानों में पार्ट टाइम पढ़ाने लगते हैं.’

चंडीगढ़ स्थित एक कोचिंग संस्थान से जुड़े एक शिक्षक ने लोकप्रिय संस्थानों की तरफ से सेंधमारी के बारे में बताते हुए कहा, ‘यदि कोई नया कोचिंग संस्थान बाजार में आता है और जल्द से जल्द खुद को स्थापित करना चाहता है तो अन्य संस्थानों के लोकप्रिय संकाय सदस्य को भर्ती करने की कोशिश करता है. इन संकाय सदस्यों को अपने साथ लाने के लिए वह बेशक काफी पैसा भी खर्च करते हैं. कुछ बड़े संस्थान यहां तक कि उन लोगों का वेतन दोगुना तक करने को तैयार हो जाते हैं, जिन्हें वह लेना चाहते हैं. वहीं कभी-कभी कुछ लोकप्रिय संकाय सदस्य अपने संस्थानों को निरर्थक महसूस करने जैसे कारणों से भी उसे छोड़ देते हैं.’

छात्रों पर प्रभाव

किसी संस्थान में प्रवेश होने के लिए प्रसिद्ध शिक्षकों का होना छात्रों को कितना प्रभावित करता है? इस सवाल पर कई इच्छुक छात्रों और सेवारत सिविल सेवकों का कहना है कि यह व्यक्तिगत पसंद का मामला होता है.

दिल्ली के मुखर्जी नगर में रहकर सिविल सेवा की तैयारी कर रही एक छात्रा करुणा सुरेश का कहना है, ‘प्रसिद्ध शिक्षक और बड़े कोचिंग संस्थान एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं. कुछ मामलों में छात्र एक बड़े संकाय के नाम की तलाश करते हैं, और कई मामलों में वे बस इस भरोसे के साथ किसी बड़े कोचिंग संस्थान में जाते हैं कि वहां के सभी संकाय अच्छे होने चाहिए.’

अपनी खुद की तैयारी के लिए करुणा ने एक संस्थान के बजाये एक शिक्षक को तरजीह दी.

उन्होंने कहा, ‘मैं अपनी वैकल्पिक परीक्षा के लिए अर्थशास्त्र पर ध्यान केंद्रित करना चाहती थी और मैं एक ऐसा शिक्षक चाहती थी जो मेरी तैयारी पर ध्यान केंद्रित करा सके, बजाये इसके कि छात्रों से भरे ऑडिटोरियम में व्याख्यान दे.’

भारत सरकार के एक सेवारत अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने भी किसी बड़े संस्थान के बजाये एक शिक्षक को चुना था.’ अधिकारी ने कहा, ‘जब अपनी परीक्षा की तैयारी कर रहा था तो मुझे एक शिक्षक चाहिए था जो मुझ पर पूरा ध्यान दे सके. एक सेलिब्रिटी शिक्षक या एक बड़ा संस्थान ऐसा नहीं कर सकता था. इसलिए, मैंने एक छोटा कोचिंग क्लास चुना, जिसके बारे में मुझे भरोसा था कि वहां शिक्षक मुझे निखारने में मेहनत करेंगे.’

हालांकि, उन्होंने कहा कि छोटे शहरों या दूरदराज के इलाकों से आने वाले छात्रों के लिए बड़े विज्ञापन भ्रामक हो सकते हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘जब वे (इच्छुक छात्र) दिल्ली जैसे कोचिंग हब में आते हैं तो ऐसे नामों की तलाश करते हैं जो उन्होंने करंट अफेयर की कई पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों में देख रखे होते हैं. उनमें से कई लोकप्रिय नामों को चुनते हैं और कभी-कभी बेवकूफ भी बन जाते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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