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Monday, 6 May, 2024
होमदेश2019 का एक ईमेल और एक सरकारी रिपोर्ट – ये हैं कारण MSP व ख़रीद के वादों पर किसान क्यों नहीं कर रहे भरोसा

2019 का एक ईमेल और एक सरकारी रिपोर्ट – ये हैं कारण MSP व ख़रीद के वादों पर किसान क्यों नहीं कर रहे भरोसा

कृषि क़ानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व, पंजाब और हरियाणा के किसान कर रहे हैं, जिनकी मांग है कि सरकार ख़रीद प्रणाली को जारी रखे, और एमएसपी को एक क़ानूनी अधिकार बना दे.

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चंडीगढ़: पंजाब के आंदोलनकारी किसानों के ख़रीद और एमएसपी पर मोदी सरकार के वादों को लगातार ख़ारिज करने का कारण ये है कि उन्हें लगता है कि अक्टूबर 2019 के बाद से, सरकार एक प्रस्ताव पर ‘सक्रियता से विचार’ कर रही है, जिसके तहत राज्य से गेहूं और चावल की ख़रीद में कमी कर दी जाएगी.

उनके ऐसा मानने की जड़, अक्टूबर 2019 में केंद्रीय खाद्य विभाग की ओर से, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को लिखा गया एक पत्र और मार्च 2020 में कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की एक रिपोर्ट है, जिसमें अलग अलग फसलों के लिए एमएसपी की सिफारिश की गई है.

एफसीआई एक नोडल एजेंसी है जो सरकार की ओर से, सेंट्रल पूल के लिए फसल ख़रीद का काम करती है. ख़रीदी हुई फसलें, जिनमें प्रमुख रूप से गेहूं, चावल और दालें होती हैं, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, और बफर स्टॉक बनाए रखने में इस्तेमाल होती हैं.

एफसीआई इन फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर ख़रीदती है- जिससे सुनिश्चित किया जाता है कि किसानों को, एक निश्चित दाम से कम न मिले.

पंजाब और हरियाणा का केंद्रीय पूल में, गेहूं और चावल का प्रमुख योगदान रहता है.

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कृषि क़ानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व, पंजाब और हरियाणा के किसान कर रहे हैं, जिनकी मांग है कि सरकार ख़रीद प्रणाली को जारी रखे, और एमएसपी को एक क़ानूनी अधिकार बना दे. सरकार ने लगातार किसानों को आश्वस्त किया है कि ये तीन कृषि क़ानून एमएसपी के फ्रेमवर्क या ख़रीद प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करेंगे.

18 अक्टूबर 2019 का ईमेल, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग में, केंद्रीय संयुक्त सचिव (नीति एवं एफसीआई), प्रमोद कुमार तिवारी ने रविंदर पाल सिंह को लिखा था, जो उस समय एफसीआई में कार्यकारी निदेशक थे.

भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने, तिवारी के पत्र का उल्लेख 30 नवंबर को दिल्ली-सिंघु बॉर्डर पर हुई एक प्रेसवार्ता में किया था, जहां आंदोलनकारी किसान एक हफ्ते से अधिक से डटे हुए हैं. उन्होंने इस पत्र का ज़िक्र करते हुए कहा था कि किसानों की आशंकाएं निराधार नहीं हैं.

मेल के बारे में पूछने पर, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में सूचना अधिकारी अल्पना पंत शर्मा ने कहा: ‘विभाग के अंदर क्या हो रहा है, ये सब उसका हिस्सा हैं और मैं जितना अधिकृत हूं, उससे ज़्यादा जानकारी नहीं दे सकती’.

दिप्रिंट ने ईमेल और लिखित संदेशों के ज़रिए, प्रभारी मंत्री पीयूष गोयल और सचिव सुधांशु पाण्डे से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन इस ख़बर के छपने तक, उनका कोई जवाब नहीं मिला था.

पत्र के बारे में पूछने पर, पंजाब व हरियाणा के लिए एफसीआई के रीजनल मैनेजर, अर्शदीप सिंह थिंड ने कहा कि निगम केवल एक ख़रीद एजेंसी है और दिए गए निर्देशों का पालन करता है. उन्होंने आगे कहा, ‘हम नीतिगत मामले नहीं देखते’.


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सरकार देख रही है 3 विकल्प

18 अक्टूबर की ईमेल में, जिसकी कॉपी दिप्रिंट के हाथ लगी है, एफसीआई से ये कहते हुए कुछ जानकारी मांगी गई है, कि इस विषय पर प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव के सामने, एक प्रेज़ेंटेशन दिया जाना है.

ईमेल में फिर तीन विकल्प बताए गए हैं, जो ख़रीद को सीमित करने के लिए सुझाए जा रहे हैं.

A copy of the email | ThePrint
ईमेली की कॉपी | ThePrint

पहला विकल्प है, ‘केंद्रीय पूल की ख़रीद को, सार्वजनिक वितरण प्रणाली व अन्य कल्याण योजनाओं तथा बफर स्टॉक की ज़रूरतों तक सीमित रखना’.

इस विकल्प पर ग़ौर करने के लिए, उत्पादन और ख़रीद के राज्यवार अनुपात का डेटा मांगा गया और ख़रीद के लिए प्रति एकड़ के हिसाब से सीलिंग तथा बोए गए क्षेत्र की अधिकतम संख्या तय करने की, व्यवहार्यता का विश्लेषण करने को भी कहा गया.

ईमेल के अनुसार जो दूसरा विकल्प विचाराधीन है वो है कि ‘ऐसी स्कीम शुरू की जाए जिसमें, तयशुदा सीलिंग से अधिक मात्रा खुले बाज़ार में बेचने से अगर किसानों को एमएसपी से कम दाम मिलते हैं, तो मूल्यों में इस अंतर की भरपाई, सरकार से किसानों को पैसा देकर की जाए.

इसके लिए सरकार को, संगठित मंडियों के राज्य-वार ढांचे, तथा अस्थाई ख़रीद केंद्रों की जानकारी चाहिए थी और वो ये भी जानना चाहती थी कि ‘निहित स्वार्थों की ओर से मूल्यों में हेरफेर को रोकने के लिए, क्या सुरक्षा उपाय किए जाएं’.

सरकार ने कहा कि इस उपाय का एक विकल्प ये हो सकता है कि अगर किसान सीलिंग से ऊपर जाकर अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचते हैं, तो उनके लिए ‘प्रति क्विंटल वित्तीय सहायता की, एक समान दर तय कर दी जाए’. इसके लिए उसे ‘ख़रीद सीज़न के दौरान ख़रीद राज्यों में, चावल और गेहूं के मूल्यों में, औसत अंतर की जानकारी चाहिए थी’.

अंतिम विकल्प है कि चावल और गेहूं पैदा करने वाले राज्यों में ऐसी दूसरी फसलों की ख़रीद को बढ़ावा दिया जाए, जिनका एमएसपी तय किया जाता है.

CACP रिपोर्ट ने शंकाओं को जन्म दिया

प्रेसवार्ता के दौरान राजेवाल ने सीएसीपी की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, और कहा कि उससे भी किसानों के मन में शंकाएं पैदा हो रही हैं कि सरकार ख़रीद से पीछे हटने या उसे कम करने जा रही है.

सीएसीपी केंद्र सरकार के कृषि, सहयोग एवं किसान कल्याण विभाग के अंतर्गत काम करता है.

मार्च 2020 में, ‘खरीफ फसल की मूल्य नीति’ पर अपनी रिपोर्ट में, सीएसीपी ने कई जगह, पंजाब व हरियाणा में ख़रीद को सीमित करने का उल्लेख किया.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘खुली ख़रीद नीति ने अनाज के अतिरिक्त भंडार पैदा कर दिए हैं, जिससे फसलों के विविधीकरण पर विपरीत असर पड़ा है. आयोग अपनी पहली सिफारिश फिर से दोहराता है कि केंद्र सरकार को खुली ख़रीद नीति की समीक्षा करनी चाहिए और एक नीतिगत फैसला करना चाहिए कि पंजाब और हरियाणा से ख़रीद को सीमित करे, जहां भूजल स्तर काफी गिर गया है और अन्य राज्यों से भी जो बोनस देते हैं’.

सीएसीपी रिपोर्ट में आगे सुझाया गया है कि ख़रीद के बोझ को कम करने के लिए, सरकार ‘सीलिंग’ का रास्ता अपनाए. उसमें आगे कहा गया है, ‘केंद्र सरकार को खुली ख़रीद नीति की समीक्षा करनी चाहिए और एक नीतिगत निर्णय लेना चाहिए कि छोटे व मंझोले किसानों से ख़रीद को सीमित किया जाए और उन राज्यों के सेमी-मीडियम, मीडियम और बड़े किसानों से, दो हेक्टेयर के विपणित अधिशेष की सीलिंग तय कर दी जाए, जहां एमएसपी के 3-4 प्रतिशत से ज़्यादा, बाज़ार शुल्क/उपकर/लेवी लगाई जाती है या एमएसपी के ऊपर बोनस दिया जाता है’.

सीएसीपी ने इस बात पर भी बल दिया है कि खुली ख़रीद नीति की वजह से, भारत सरकार का भंडारण और सब्सिडी का बिल बढ़ गया है, और उसने ख़रीद पर सीलिंग लगाने के फायदे भी गिनाए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मसलन, अगर चावल में दो हेक्टेयर के विपणित अधिशेष की सीलिंग तय कर दी जाए तो पंजाब और हरियाणा से होने वाली ख़रीद, मौजूदा 1.53 करोड़ टन से घटकर, क़रीब 1.03 करोड़ टन रह जाएगी’.

दिप्रिंट से बात करते हुए एक किसान नेता ने कहा, कि खुली ख़रीद नीति का मतलब है कि ‘सरकार (एफसीआई के ज़रिए) को (एमएसपी पर) गेहूं और चावल का एक एक दाना ख़रीदना पड़ता है, जो पंजाब और हरियाणा के किसान बिक्री के लिए मंडियों में लाते हैं’.

नेता ने आगे कहा, ‘इन क़ानूनों के ज़रिए सरकार, इस प्रणाली को ख़त्म करना चाहती है. एक बार एफसीआई हमसे फसल ख़रीदना बंद कर देती है, तो हम निजी ख़रीदारों के रहमो करम पर आ जाएंगे, जो हमें एमएसपी दे भी सकते हैं, और नहीं भी’.

किसान सीलिंग विकल्प के भी खिलाफ हैं. पंजाब से एक दूसरे किसान नेता ने कहा, ‘दो हेक्टेयर की सीलिंग का मतलब है, कि अगर किसान के पास दो हेक्टेयर से कम ज़मीन है, तो उसकी गेहूं या धान की पूरी उपज ख़रीद ली जाएगी. लेकिन जिन किसानों के पास दो हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन है, उनके लिए सरकार अपनी ख़रीद दो हेक्टेयर तक सीमित रखेगी’. उन्होंने आगे कहा, ‘बाक़ी ज़मीन पर उगी फसल को खुले बाज़ार में बेंचना पड़ेगा, जहां उसे एमएसपी मिल भी सकता है, और नहीं भी’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस सीलिंग को, उन राज्यों में लागू किया जाएगा, जो एमएसपी के 3-4 प्रतिशत से अधिक बाज़ार फीस लगाते हैं… ये कहने का कि बुनियादी रूप से मतलब ये है, कि इसे पंजाब में लागू किया जाएगा, जहां ये फीस 6 प्रतिशत है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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