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Friday, 19 April, 2024
होमएजुकेशन‘क्लासमेट्स लंबे हो गए और स्कूल अच्छा दिख रहा है’ लंबे अरसे के बाद क्लासेज में लौटने से काफी खुश हैं छात्र

‘क्लासमेट्स लंबे हो गए और स्कूल अच्छा दिख रहा है’ लंबे अरसे के बाद क्लासेज में लौटने से काफी खुश हैं छात्र

दिल्ली के सभी स्कूल कक्षा 9 से 12 के लिए 7 फरवरी को और नर्सरी से कक्षा 8 के लिए 14 फरवरी से फिर से खोल दिए गए. सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों की तुलना में बहुत अधिक उपस्थिति है.

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नई दिल्ली: जंगपुरा को-एड सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने वाली चौदह वर्षीय नजमा रोज सुबह 4 बजे उठकर खाना बनाती है और अपनी बीमार मां की देखभाल करती हैं. दिल्ली में स्कूलों के फिर से खुलने के साथ, इस कक्षा 7 की छात्रा के पास  बचपन के अब कुछ ही दिन बचे हैं. क्योंकि सोमवार से दिल्ली के स्कूल खुल गए हैं और बच्चों ने भी स्कूलों की तरफ रुख कर लिया है. उसी के जैसे उसके अन्य साथी छात्र भी स्कूल में वापस आकर बहुत खुश हैं.

कोविड -19 महामारी की वजह से लंबे अरसे तक बंद रहने के बाद, दिल्ली के सभी स्कूल 7 फरवरी को कक्षा 9 से 12 के लिए फिर से खुल गए थे. नर्सरी से आठवीं तक की कक्षाओं के लिए भी 14 फरवरी को स्कूल फिर से खुल गए. पिछले दो वर्षों से देश भर में स्कूल काफी लंबे समय से बंद हैं. दिल्ली में, मार्च 2020 के बाद से केवल कुछ समय के लिए ही कक्षा 6 से 12 के लिए स्कूल खुले थे. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली में स्कूल की शारीरिक उपस्थिति वाली कक्षाएं लगभग 94 सप्ताह – यानी 658 दिनों के लिए – तक पूरी तरह से निलंबित थीं.

हालांकि, स्कूलों के फिर से खुलने के बाद से शहर के सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों की तुलना में छात्रों की उपस्थिति बहुत अधिक दर्ज की गई है.

नजमा जैसे कई बच्चे सोमवार को लंबे अरसे के बाद स्कूल आये थे. प्रफुल्लित और उत्साहित दिख रहे ये छात्र अब अपना दिन इस बात पर आपसी तुलना करते हुए बिता रहें हैं कि उनके आसपास की चीजें किस हद तक बदल गई हैं और उनका जीवन भी कैसे पूरी तरह से बदल गया है!

दिप्रिंट से बात करते हुए, नजमा ने कहा, ‘मैंने दो लॉकडाउन के दौरान अपने पिता और बड़े भाई को खो दिया, मेरी मां इस दुख को सहन नहीं कर सकीं और अब बिस्तर पकड़ चुकी है. वह पड़ोस की कॉलोनियों में घरों की सफाई करती थी, लेकिन अब उसकी तबीयत खराब होने के कारण मुझे ही यह काम करना पड़ा है.’

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अपने दोस्तों के बीच वापस आने को लेकर काफी उत्साहित दिख रही यह यह किशोरी कहती है, ‘स्कूल में वापस आना काफी राहत की बात है.’ इसके अलावा, स्कूल के बिताये घंटे, उसे अपने घरेलू कर्तव्यों – खाना बनाना, सफाई करना और अपनी मां का काम करना – से थोड़े समय के लिए राहत देते हैं.

जब नजमा ने पिछली बार शारीरिक उपस्थिति वाली कक्षाओं में भाग लिया था, उस समय की तुलना में उसका स्कूल बहुत बदल गया है. इसकी ईमारत अधिक रंगीन हो गई है और दीवारों पर गणित तथा व्याकरण के चार्ट लगे हैं.

इससे थोड़ा आगे ही 11 साल की शाहीन फरहीन बैठी है, जो कक्षा 6 की छात्रा है.

फरहीन के लिए, महामारी के दौरान पढाई एकदम से बंद सी हो गयी थी. उसके पिता के खराब स्वास्थ्य के कारण, उसका परिवार उसके स्कूल से लगभग 23 किलोमीटर दूर फरीदाबाद में एक रिश्तेदार के घर में शिफ्ट हो गया था, जिससे उसके लिए उन वर्कशीट को इकट्ठा करना मुश्किल हो गया था, जिसे उसके शिक्षकों ने लॉकडाउन के दौरान बांटा था.

ख़ुशी से चहकती हुई फरहीन ने कहा, ‘मेरे पिता के पास छोटा सा फोन है, इसलिए मैं लॉकडाउन के दौरान पढ़ाई नहीं कर सकी. और चूंकि हम बहुत दूर रह रहे थे इसलिए मुझे वर्कशीट भी नहीं मिली. मैं अपने दोस्तों के बीच वापस आकर और फिर से पढ़ाई शुरू करने को लेकर बहुत उत्साहित हूं.’ साथ ही उसने बताया कि उसके सभी सहपाठी उनके साथ आखिरी मुलाकात के बाद से काफी लंबे हो गए हैं.


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‘अभिभावकों की प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक है’

दिल्ली सरकार के आदेश के अनुसार, स्कूल अपने बुनियादी ढांचे के आधार पर, मगर कोविड प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए, आने वाले छात्रों की उस संख्या को तय करने के लिए स्वतंत्र हैं, जिन्हें वे समायोजित करना चाहते हैं. स्कूलों के फिर से खुलने के बारे में सरकारी और निजी संस्थानों में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है.

जहां सरकारी स्कूल के शिक्षकों का कहना है कि स्कूल फिर से खुलने के एक दिन के भीतर ही उनके यहां छात्रों की उपस्थिति 70-100 प्रतिशत के बीच रह रही है, वहीं निजी स्कूल अभी भी 40 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं.

जंगपुरा के को-एड स्कूल में पोस्टर्स और बैनर्स से स्कूल की दीवारें खूबसूरत लग रही हैं/ सोनिया अग्रवाल/दिप्रिंट

पश्चिमी दिल्ली के सुभाष नगर में स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय के शिक्षक संत राम ने कहा कि उनके यहां के बैचों में उनकी (छात्रों की) उपस्थिति लगभग 70 प्रतिशत है, लेकिन यह छात्रों में उत्साह की कमी के कारण नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अभी हम 50 फीसदी क्षमता के आधार पर ही छात्रों को बुला रहे हैं. आवश्यक कोविड प्रोटोकॉल की व्यवस्था करने के बाद, हमारे पास केवल 50 प्रतिशत छात्रों के लिए ही कक्षाएं उपलब्ध हैं.’

उन्होंने आगे बताया कि प्राथमिक कक्षाओं के छात्र स्कूल में फिर से आने को लेकर बहुत उत्साहित हैं.

जंगपुरा को-एड सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल हरीश चंद्र ने कहा कि उन्हें प्राथमिक स्कूल के कई छात्रों को स्कूल के फिर से खोले जाने के बारे में सूचित करने के लिए उनका पता लगाना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘चूंकि लॉकडाउन के दौरान कई परिवार अपने गांव वापस चले गए थे, इसलिए हमें उनमें से कुछ को स्कूल वापस लाने के लिए फिर से ढूंढना पड़ा. अभिभावकों की प्रतिक्रिया बहुत सकारात्मक रही है.’

निजी स्कूलों में उपस्थिति

हालांकि सरकारी स्कूलों में उपस्थिति अच्छी रही है, निजी स्कूलों में अभी तक उस तरह से छात्रों का आगमन नहीं हुआ है. दिप्रिंट से बात करने वाले अधिकांश अभिभावकों ने कहा कि वे फिलहाल सावधानी बरत रहे हैं और अगले सत्र से ही अपने बच्चों को फिर से स्कूल भेजेंगे.

डीपीएस आरके पुरम में कक्षा 9 के एक छात्र के पिता प्रशांत सेठी ने अभी तक अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजा है. सेठी ने कहा, ‘हम उसे अगले सत्र से स्कूल भेजेंगे. हम अब कोई जोखिम नहीं लेना चाहते क्योंकि साल के अंत में होने वाली परीक्षा जल्द ही आयोजित की जानी है. चूंकि वह सेल्फ स्टडी (खुद से पढाई) और ऑनलाइन कक्षाओं का आदी हो गया है, इसलिए अभी के लिए वह घर से ही पढ़ाई करना जारी रखेगा.’

शालीमार बाग स्थित मॉडर्न पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल अलका कपूर ने भी कहा कि उनके स्कूल में उपस्थिति काफी कम है.

कपूर ने दिप्रिंट को बताया, ‘ऐसे अभिभावकों का एक समूह है जो अभी भी परिवहन व्यवस्था की कमी की वजह से अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं और कहते हैं कि उनका बच्चा स्व-अध्ययन (सेल्फ स्टडी) ही करेगा. हम उम्मीद कर रहे थे कि छात्र अच्छी संख्या में आएंगे क्योंकि वरिष्ठ छात्रों के लिए प्रैक्टिकल की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं, लेकिन हमें केवल 30-35 प्रतिशत उपस्थिति ही दिख रही है.’

उन्होंने कहा कि प्राथमिक कक्षाओं वाले वर्ग में बेहतर उपस्थिति देखी गई है.

शेख सराय के एपीजे स्कूल की प्रिंसिपल रितु मेहरा स्कूल में 40-50 फीसदी छात्र-छात्राओं के आने की स्थिति से संतुष्ट हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम जानते थे कि एक बार फिर से स्कूल खुलने के बाद एकदम से सभी छात्र नहीं आएंगे. चूंकि परीक्षाएं एक सप्ताह से भी कम समय में शुरू होनी हैं, इसलिए बहुत सारे छात्र घर से तैयारी कर रहे हैं.’


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कोविड के कारण सीखने-सिखाने का हुआ नुकसान

दो साल से चल रही कोविड महामारी की वजह से स्कूलों के बंद होने का छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. अध्ययनों से संकेत मिलता है कि कई छात्रों ने सीखने-सिखाने (लर्निंग) का एक बड़ा हिस्सा गंवा दिया है. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि औसतन, ‘92 प्रतिशत बच्चों ने कम-से-कम एक विशिष्ट भाषा क्षमता (लैंग्वेज एबिलिटी) खो दी है और कक्षा 2 से 6 तक कम-से-कम 82 प्रतिशत ने पिछले वर्ष की तुलना में कोई-न-कोई विशिष्ट गणितीय क्षमता (मैथमेटिकल एबिलिटी) खो दी है.’

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि ‘एक छात्र जिसने सीखने की अवधि का एक वर्ष खो दिया है वह केवल 9-14 वर्षों में ही इसे फिर से प्राप्त कर पाएगा’. दूसरे शब्दों में, लर्निंग में हुए एक वर्ष के नुकसान का सीखने में आई कमियों के संदर्भ में अपने आदर्श स्तर पर वापस आने से पहले अगले नौ से चौदह वर्षों के लिए एक स्थायी प्रभाव पड़ता रहेगा.’

ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच एक और समस्या है जिसका सामना देश भर के बच्चे कर रहे हैं.

फरवरी 2021 में जारी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2020 ने जानकारी दी है कि पांच से आठ आयु वर्ग के किसी भी स्कूल में नामांकित नहीं होने वाले बच्चों के अनुपात में 2018 की तुलना में 2020 में चार प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

अक्टूबर 2020 में असर द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट में पाया गया कि भारत के केवल एक-तिहाई स्कूली बच्चे ही ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे थे और केवल 32.5 प्रतिशत ही इन कक्षाओं को लाइव एक्सेस कर पा रहे थे. सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि सभी सरकारी स्कूली छात्रों में से केवल 8.1 प्रतिशत ही ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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