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Friday, 22 November, 2024
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दिल्ली के शिक्षा मंत्री सिसोदिया की घोषणा के एक साल बाद भी मैथिली पर नहीं हुआ काम, शिक्षकों के सैंकड़ों पद खाली

दिल्ली सरकार के मैथिली और भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने केंद्र सरकार से इस भाषा को (8वीं सूची) में शामिल करने का आग्रह करने की बात कही थी.

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नई दिल्ली: दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने बिहार में बोले जाने वाली मैथिली और भोजपुरी जैसी भाषाओं को लेकर पिछले साल 15 जुलाई को जो घोषणाएं की थीं, उन घोषणाओं पर कोई काम नहीं हुआ. दिल्ली में अन्य भाषाओं के शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली हैं.

दिप्रिंट को ये जानकारी एक आरटीआई के माध्यम से हासिल हुई है. आरटीआई का जवाब 15 सितंबर 2020 को आया है.

2019 के आम चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करने के बाद से ही आम आदमी पार्टी (आप) ने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर रोज़ नई घोषणाएं करनी शुरू कर दी थीं. इसी सिलसिले में सिसोदिया ने कहा था कि दिल्ली के स्कूलों में पंजाबी और उर्दू की तरह 8वीं से 12वीं तक मैथिली को वैकल्पिक भाषा के तौर पर शुरू किया जाएगा.

इसी से जुड़ी अन्य घोषणाओं में सिसोदिया ने कहा था कि ‘दिल्ली सरकार की मैथिली और भोजपुरी अकादमी मैथिली/भोजपुरी को एक विषय के रूप में चुनने वाले छात्रों के लिए सिविल सेवा परीक्षा कोचिंग केंद्र चलाएगी. मैथिली का कंप्यूटर फॉन्ट बनाया जाएगा.’


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सिसोदिया ने भोजपुरी और मैथिली के पत्रकारों के लिए 2.5 लाख़ रुपए की सम्मान राशि वाले अवॉर्ड शुरू करने की भी बात कही थी. उन्होंने कहा, ‘भोजपुरी को अभी भी भारत के संविधान की 8वीं सूची में शामिल नहीं किया गया है, जिसके कारण सीबीएसई और यूपीएससी के विषयों में शामिल नहीं किया गया है.’

दिल्ली सरकार के मैथिली और भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने केंद्र सरकार से इस भाषा को (8वीं सूची) में शामिल करने का आग्रह करने की बात कही थी. हालांकि, आरटीआई के जवाब में दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने इस भाषा को शुरू किए जाने को लेकर कोई जानकारी नहीं दी.


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8वीं से 12वीं तक मैथिली को वैकल्पिक भाषा के तौर पर शुरू किए जाने और इसका कंप्यूटर फॉन्ट बनाने से जुड़े आरटीआई के सवालों के जवाब में शिक्षा विभाग ने कहा, ‘हमारे पास ऐसी कोई जानकारी मौजूद नहीं है.’ वहीं, बिहार से ताल्लुक रखने वाले आप के एक विधायक ने दिप्रिंट से नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘अभी इन घोषणाओं पर कोई काम नहीं हुआ.’

इस विषय पर दिप्रिंट ने शिक्षा मंत्री सिसोदिया, दिल्ली के शिक्षा विभाग के सचिव एच राजेश प्रसाद और दिल्ली सरकार के मीडिया प्रभारी प्रीतम पाल सिंह को मेल, व्हाट्सएप मैसेज और फ़ोन कॉल के जरिए संपर्क करने के कई प्रयास किए लेकिन रिपोर्ट पब्लिश होने तक उनका कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

दिल्ली में हर तीन प्रवासियों में से दो का जन्म यूपी या बिहार में हुआ है. ये वो दो राज्य हैं जहां भोजपुरी और मैथिली जैसी भाषाओं को बोलने वाली एक बड़ी आबादी है. एक तरफ़ जहां भोजपुरी बोलने वालों की संख्या 5 तो मैथिली बोलने वालों की संख्या तीन करोड़ से ऊपर है. ऐसा माना जाता है कि इन राज्यों के लोग राजधानी को चुनाव को काफ़ी प्रभावित करते हैं.


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 खाली पड़े हैं भाषा शिक्षकों के हज़ारों पद

दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने दिल्ली में पढ़ाई जाने वाली भाषाओं से जुड़े प्राइमरी टीचर (पहली से पांचवी क्लास) के ख़ाली पदों का आंकड़ा नहीं दिया. हालांकि, इसी आरटीआई में जानकारी मिली कि 7 सिंतबर तक दिल्ली में ट्रेंड ग्रैजुएट टीचर्स (छठी से दसवीं क्लास) के अंग्रेज़ी, हिंदी, संस्कृत, उर्दू, पंजाबी और बंगाली के 16,767 में से 7,674 पद ख़ाली हैं.

इन 7,674 ख़ाली पदों पर 4,730 गेस्ट टीचर पढ़ा रहे हैं. बाकी के 2899 पद पूरी तरह से ख़ाली हैं. अंग्रेज़ी के 654, हिंदी के 220, संस्कृत के 511, उर्दू के 720, पंजाबी के 792 और बंगाली के 2 में से दो शिक्षकों के पद ख़ाली हैं.


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आरटीआई में दसवीं और बारहवीं के बच्चों के भाषा से जुड़े शिक्षकों की संख्या 4,667 बताई गई है. 989 ख़ाली पदों पर 691 गेस्ट टीचर्स पढ़ा रहे हैं. 308 पदों पर कोई शिक्षक नहीं है. इनमें अंग्रेज़ी के 126, हिंदी के 56, संस्कृत के 102, पंजाबी के 10 और उर्दू के शिक्षकों के 14 पद ख़ाली हैं.

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