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Thursday, 28 March, 2024
होमएजुकेशनजिसके आधार पर एनआईआरएफ़ रैंकिंग में मिला 19वां स्थान, बीएचयू लॉ फ़ैकल्टी के पास नहीं वो डाटा

जिसके आधार पर एनआईआरएफ़ रैंकिंग में मिला 19वां स्थान, बीएचयू लॉ फ़ैकल्टी के पास नहीं वो डाटा

एनआईआरएफ़ में 19वां स्थान हासिल करने के लिए बीएचयू की लॉ फ़ैकल्टी ने 60 में से 35 बच्चों के प्लेसमेंट का दावा किया है. लेकिन एक आरटीआई के जवाब में बीएचयू ने कहा कि वो ऐसा डाटा इक्ट्ठा नहीं करता.

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नई दिल्ली: नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ़) 2020 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) की लॉ फ़ैकल्टी को 19वां स्थान हासिल हुआ. ये स्थान बीएचयू द्वारा नेशनल बोर्ड ऑफ़ एक्रिडिशन (एनबीए) को जमा किए गए डाटा के आधार पर हासिल हुआ. हालांकि, अब यूनिवर्सिटी का कहना है कि उनके पास छात्रों का डाटा नहीं है.

क्यूएस और टाइम्स हायर एजुकेशन जैसी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग के जवाब में नरेंद्र मोदी सरकार एनआईआरएफ़ रैंकिंग लेकर आई है. इस साल की रैंकिंग 11 जून को जारी की गई. रैंकिंग उस डाटा के आधार पर होती है जो इसमें हिस्सा ले रहे संस्थानों द्वारा एनबीए को दिया जाता है. एनबीए शिक्षा मंंत्रालय के तहत आता है और एनआईआरएफ़ रैंकिंग कराने का ज़िम्मा इसी का है.

बीएचयू ने इस साल के लिए एनबीए को जो डाटा दिया उसमें दावा किया कि इसके पांच साल के अंडरग्रैजुएट बीए एलएलबी प्रोग्राम में 2018-19 सत्र के 60 में से 60 छात्र तय समय में पास हुए. इसके अलावा दावा ये भी किया गया कि इनमें से 35 बच्चों का सालाना 8 लाख़ के करीब की सैलरी पर प्लेसमेंट हुआ. ये डाटा सार्वजनिक है और शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है.

जब सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दिप्रिंट ने इस डाटा को वेरिफ़ाई करने की कोशिश की तो लॉ डिपार्टमेंट ने कहा कि वो ऐसा कोई डाटा इक्ट्ठा ही नहीं करते. लॉ डिपार्टमेंट के कई छात्रों से डाटा में हेरफ़ेर की शिकायत मिलने के बाद आरटीआई लगाई गई थी.


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हमारे पास ऐसा कोई डाटा नहीं है: बीएचयू लॉ फ़ैकल्टी

दिप्रिंट ने इससे जुड़े तीन सवाल पूछे थे- पहला, बीए एलएलबी प्रोग्राम के उन छात्रों की लिस्ट जिन्हें प्लेसमेंट मिली है. दूसरा, उन संस्थानों की लिस्ट जहां उन्हें प्लेसमेंट मिली है और तीसरा, उन संस्थानों में प्लेसमेंट पाने वाले बच्चों को दिए गए पैकेज की जानकारी.

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प्लेसमेंट पाने वाले बच्चों की लिस्ट से जुड़े सवाल के जवाब में बीएचयू ने कहा, ‘पांच साल का बीए एलएलबी ऑनर्स डिग्री एक प्रोफेशनल कोर्स है जिसका उद्देश्य छात्रों को शिक्षित करना है ताकि वो या तो बार से वकील या बेंच से जज के तौर पर जुड़ सकें. अलग-अलग केंद्रीय विश्वविद्यालयों से जुड़े संस्थानों और लॉ कॉलेजों की तर्ज पर बीएचयू में भी कानूनी पेशे में वकील बनने को भी प्लेसमेंट माना जाता है.’

छात्रों को नौकरी देने वाले संस्थानों की लिस्ट पर बीएचयू ने कहा, ‘बीएचयू लॉ फैकल्टी द्वारा ना तो ऐसी कोई लिस्ट तैयार की जाती है और ना ही रखी जाती है.’

प्लेसमेंट पाने वाले छात्रों की औसत सैलरी से जुड़े पर बीएचयू ने कहा, ‘जो बार से जुड़ते हैं उनकी कमाई की कोई सीमा नहीं होती. बेंच का हिस्सा बनने वालों को भारत सरकार के नियमों के तहत सैलरी मिलती है.’

बीएचयू द्वारा दिए गए जवाब उस डाटा से बिल्कुल अलग हैं जो इसके द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) को दिया गया था. नई शिक्षा नीति के तहत एनआईआरएफ़ के लिए ज़िम्मेदार एमएचआरडी का नाम बदलकर अब शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है.

दिप्रिंट ने 4 अगस्त को शिक्षा मंत्रालय और बीएचयू को उनका पक्ष जानने के लिए एक मेल किया था लेकिन मंत्रालय ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया. मंत्रालय का जवाब आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी. बीएचयू लॉ डिपार्टमेंट के डीन आरपी राय भी इस मामले पर खामोश हैं.

हालांकि, फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉक्टर भारतेंदू के सिंह ने 10 अगस्त को मेल का जवाब देते हुए कहा, ‘हमें फैकल्टी ऑफ लॉ से डेटा चेक करना पड़ेगा. मैं लॉ फैकल्टी के डीन से अनुरोध करता हूं कि वो आपके (दिप्रिंट के) सवालों का जवाब दें और हमें भी उसका हिस्सा बनाएं.’

सिंह पर बीएचयू के तरफ से एनआईआरएफ के लिए पूरी यूनिवर्सिटी का डेटा एनबीए को भेजने की ज़िम्मेदारी है. बीएचयू के इंटरनल क्वॉलिटी एश्योरेंस सेल के वाइस चेयरमैन ए वैशमपायन ने भी 10 अगस्त को ही मेल का जवाब देते हुए लॉ फैकल्टी को मार्क किया और लिखा, ‘कृप्या’ मीडिया के सवालों के लिए जवाब’ से जुड़े इस मेल का जवाब दें जिसमें लॉ फ़ैकल्टी के अंडरग्रैजुएट के लिए बीएचयू द्वारा एनआईआरएफ़ रैंकिंग में दिए गए डाटा में अंतर से जुड़े सवाल उठाए गए हैं. कोऑर्डिनेटर को जानकारी देने के तहत आप इस पर तुरंत और ज़रूरी कार्रवाई करें.’

लेकिन लॉ फैकल्टी इस पर खामोश है.


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एनआईआरएफ़ रैंकिंग

एनआईआरएफ़ रैंकिंग में (बीएचयू) की लॉ फ़ैकल्टी को 20 लॉ कॉलेजों में से 19वां स्थान हासिल हुआ.

इस रैंकिंग में 29 सिंतबर 2015 को एमएचआरडी ने हरी झंडी दी थी. इसके पीछे का ध्येय क्यू और टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग के तर्ज पर भारतीय रैंकिंग को विकसित करना है. भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान अक्सर क्यूएस और टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग  की पारदर्शिता और पैरामीटर पर सवाल उठाते रहे हैं. सात आईआईटी संस्थानों ने 2020 में इस रैंकिंग में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है.

एनआईआरएफ भारतीय उच्च संस्थानों की 10 कैटेगरी में रैंकिंग करता है. इस साल की रैंकिंग में दो अन्य कैटेगरी ओवरऑल और यूनिवर्सिटी रैंकिंग में बीएचयू क्रमश: 10वें और तीसरे नंबर पर है. इन रैंकिंग पर भी सवाल है क्योंकि इनके लिए सभी विभागों का डेटा भेजा जाता है जिसमें लॉ फैकल्टी भी शामिल है.

स्पेशल कैटगरी जैसे लॉ कॉलेज के लिए एनआईआरएफ के पांच पैरामीटर हैं जिनमें पढ़ाने-सीखने से लेकर अनुभव तक मायने रखता है. एक पैरामीटर ग्रैजुएशन ऑउटकम (गो) है. इसमें प्लेसमेंट, उच्च शिक्षा, औसत सैलरी और पास होने वाले छात्रों की टॉप यूनिवर्सिटी में दाखिले जैसी चीज़ें आती हैं. गो ही वो हिस्सा है जहां बीएचयू का डेटा सही नहीं है.

नाम नहीं छापने की शर्त पर एनबीए के एक अधिकारी ने कहा, ‘हम हमेशा डेटा वेरिफाई नहीं करते.’

उन्होंने कहा, ‘2020 में 5800 से ऊपर संस्थानों ने रैंकिंग में हिस्सा लिया था. सभी से ओरिजिनल डॉक्यूमेंट लेना और उसे वेरिफाई करना संभव नहीं है. हम उम्मीद करते हैं कि जो संस्थान हिस्सा ले रहे हैं वो ईमानदारी बरतेंगे और चूंकि डेटा पब्लिक होता है, ऐसे में ये उम्मीद भी की जाती है कि प्रतिस्पर्धी संस्थान एक-दूसरे का डेटा चेक करेंगे.’

एनबीए कहा कि किसी संस्थान पर शंका होने पर डेटा से जुड़े असली दस्तावेज मगाएं जाते हैं और जांच की जाती है. इसके बाद कोई अंतर पाए जाने पर पहले संबंधित संस्थान को चेतावनी दी जाती है और फिर रैंकिंग से हटा दिया जाता है.


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हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया से एनआईआरएफ रैंकिंग पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं क्योंकि शिक्षा मंत्रालय के तहत आने वाला एनबीए मोटे तौर पर संस्थानों द्वारा दिए गए डेटा पर आश्रित है और इसी पर भरोसा करता है.

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