भुज: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यू यू ललित ने सोमवार को कहा कि निरंतर विकास के मानकों के मुताबिक भारत में शिक्षा के मामले में अभी भी कमी है क्योंकि देश ने ‘समावेशी शिक्षा’ का लक्ष्य हासिल नहीं किया है. जस्टिस ललित ने इस मोर्चे पर अधिक कोशिश करने और हर बच्चे को अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बात पर ज़ोर दिया है.
जस्टिस ललित गुजरात के भुज में नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (नलसा) के ऑल इंडिया आउटरीच कैंपेन के तहत आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आए थे. नलसा का यह राष्ट्रव्यापी अभियान दो अक्टूबर को शुरू हुआ और 14 नवंबर को खत्म होगा.
नलसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और नेशनल लॉ स्कूल जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों ने अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है लेकिन देश में प्राथमिक और माध्यमिक सरकारी स्कूलों के मामले में ऐसा नहीं है. उन्होने पूछा, ‘क्या सरकारी स्कूल किसी भी नागरिक के लिए अपने बच्चे को भेजने के लिए पहली पसंद हैं, या यह निजी क्षेत्र का स्कूल है जिसे पहली पसंद माना जाता है?’
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जस्टिस ललित ने कहा, ‘हमारी शिक्षा समावेशी नहीं है. कुछ गांवों और बड़े शहरों में जो शिक्षा दी जाती है उनकी गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है. हमें इन सब पर विचार करना चाहिए. जब तक हम इसे हासिल नहीं कर लेते निरंतर विकास मानकों के मुताबिक शिक्षा के मामले में हम कमजोर रहेंगे.’
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि इसके लागू होने के लगभग 11 साल बाद प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में छात्राओं की भागीदारी बढ़ी है. उन्होंने कहा, ‘सिर्फ शिक्षा ही काफी नहीं है, शिक्षा में समावेशिता के पहलू पर विचार करने की जरूरत है. मेरा मानना है कि इस दिशा में कुछ प्रयास करने की ज़रूरत है.’
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एम आर शाह ने कहा कि कानूनी सेवाओं का लाभ उठाने के मामले में लोगों को अपने अधिकारों के बारे में जानने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘आपको पता होना चाहिए कि मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण कानूनी सेवाएं मुहैया कराने के कोशिश जारी है. हमारी कोशिश है कि पैसे और परामर्श की कमी के कारण कोई भी न्याय से वंचित न रहे.’
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