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Friday, 22 November, 2024
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नई नीति के तहत 25 वर्षों की समय सीमा से पहले भी डीक्लासिफाई किये जा सकते हैं सैन्य अभियानों से जुड़े दस्तावेज

शनिवार को तैयार की गई इस नई नीति एक तहत रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन को अनिवार्य किया गया है जिसमें अन्य लोगों के अलावा सशस्त्र सेवाओं के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे.

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नई दिल्ली : रक्षा मंत्रालय के द्वारा शनिवार को तैयार की गई नई नीति के तहत पूर्व में हए सैन्य अभियानों और युद्धों के कुछ पहलुओं को पहले की 25 साल की कट-ऑफ अवधि की तुलना में जल्द-से-जल्द अवर्गीकृत किया जा सकता है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार की गई युद्ध या सैन्य अभियान से जुड़े ऐतिसाहिक तथ्यों के
संग्रह, अवर्गीकरण और संकलन अथवा प्रकाशन की नई नीति को मंजूरी दे दी है.

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इस विषय पर पहले से कोई समुचित नीति उपलब्ध नहीं थी और यह सैन्य
दस्तावेजों (रिकॉर्ड) के अवर्गीकरण (डीक्लासिफिकेशन) पर सुस्पष्ट नीति के साथ युद्ध इतिहास लिखे जाने के
प्रयासों का एक हिस्सा है. के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में 1999 में बनायीं गयी कारगिल समीक्षा समिति और
एन.एन. वोहरा समिति द्वारा 1993 में प्रस्तुत की गई की रिपोर्ट में भी पिछले अभियानों से सीखे गए सबकों का
विश्लेषण करने और भविष्य की गलतियों को रोकने के लिए उनका प्रकाशन करने हेतु संस्तुति की थी.

हालाँकि यह नई नीति वर्तमान में सिर्फ आंतरिक उद्देश्यों के लिए है, परन्तु रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि
जरूरत पड़ने पर पिछले सैन्य अभियानों और युद्धों के कुछ पहलुओं को जल्द ही सार्वजनिक किया जा सकता है.
पहले की नीति में कहा गया था कि सैन्य अभियानों के रिकॉर्ड (अभिलेखों) को 25 साल के बाद ही अवर्गीकृत किया
जाना चाहिए, लेकिन इस नई नीति के तहत कुछ रिकॉर्ड अब जल्द ही सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हो सकते हैं.
रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाला इतिहास प्रभाग, युद्ध अथवा सैन्य अभियानों के इतिहास को संकलित करने,
इसके लिए अनुमोदन प्राप्त करने और इसे प्रकाशित करने के दौरान विभिन्न विभागों के साथ समन्वय करने के
लिए जिम्मेदार होगा.

नई नीति में रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन अनिवार्य किया गया है और इसमें
सभी सशस्त्र सेवाओं, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और अन्य संगठनों और प्रमुख सैन्य इतिहासकारों (यदि
आवश्यक हो) के प्रतिनिधि भी शामिल किये जायेंगे.

नई नीति में एक तय समयसीमा का प्रावधान है

यह नई नीति युद्ध या सैनिक अभियानों के इतिहास के संकलन और प्रकाशन के संबंध में स्पष्ट समयसीमा
निर्धारित करती है.

समय-सीमा के प्रावधानों अनुसार किसी युद्ध या सैन्य अभियान के पूर्ण होने के दो वर्ष के भीतर उपर्युक्त समिति का
गठन किया जाना चाहिए. इसके बाद, अभिलेखों का संग्रह और संकलन अगले तीन वर्षों में पूरा कर लिया जाना
चाहिए और इसे सभी सम्बंधित पक्षों को प्रसारित/ वितरित किया जाना चाहिए.

नई नीति के तहत, रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाला प्रत्येक संगठन – थल सेना, वायु सेना, नौसेना, इंटीग्रेटेड डिफेन्स
स्टाफ, असम राइफल्स और भारतीय तटरक्षक बल (इंडियन कोस्टगॉर्ड) – युद्ध डायरी, अभियानों से जुड़े पत्र और
परिचालन रिकॉर्ड बुक सहित अन्य सभी दस्तावेजों को उनके समुचित रखरखाव, संग्रह/संकलन और इतिहास लेखन
के लिए इतिहास प्रभाग के पास स्थानांतरित करेंगे.


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हालाँकि, अभिलेखों के अवर्गीकरण की जिम्मेदारी पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट (सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम) 1993
और पब्लिक रिकॉर्ड रूल्स (सार्वजनिक अभिलेख नियम) 1997 में निर्दिष्ट प्रावधानों ले तहत संबंधित संगठनों के
पास हीं रहेगी.

रक्षा मंत्रालय के द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है की नई नीति के अनुसार, रिकॉर्ड को आमतौर पर 25 वर्षों में
बाद हीं डीक्लासिफाई किया जाना चाहिए. 25 वर्ष से अधिक पुराने अभिलेखों का अभिलेखीय विशेषज्ञों द्वारा
मूल्यांकन किया जाना चाहिए और युद्ध या सैंन्य अभियान के इतिहास का संकलन होने के बाद उन्हें भारत के
राष्ट्रीय अभिलेखागार में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए।

रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ‘युद्ध के इतिहास का समय पर प्रकाशन लोगों को घटनाओं के बारे में सटीक विवरण प्रदान
करेगा. यह अकादमिक शोध के लिए प्रामाणिक सामग्री प्रदान करेगा और निराधार अफवाहों का खंडन भी करेगा.’
सूत्रों ने आगे कहा कि नई नीति के तहत 25 साल की कट-ऑफ अवधि पर निर्णय हर मामले के आधार पर (केस टू
केस बेसिस) लिया जाएगा.

रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि ‘यह नीति आंतरिक उपयोग के लिए है ताकि हर कोई इतिहास और सैन्य
अभियानों/ परिचालन के विभिन्न पहलुओं से अवगत हो. यदि कोई आवश्यकता उत्पन्न होती है, तो अभियानों के
कुछ पहलुओं को किसी भी तरह के परिचालन सम्बन्धी विवरण से समझौता किए बिना भी अवर्गीकृत या जारी किया
जा सकता है. ऐसा कोई भी निर्णय समिति द्वारा लिया गया होगा.

रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक अन्य सूत्र ने कहा कि नई नीति और इसमें उल्लिखित समय-सीमा इतिहास प्रभाग के
कामकाज में बदलाव लाएगी और कई मसलों का सरल भी बनाएगी.

इस सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि ‘वर्तमान में कोई निश्चित नीति नहीं है. यह नीति कई मुद्दों को सरल बनाएगी.
परिचालन सम्बन्धी कुछ पहलुओं को पहले की तुलना में जल्द अवर्गीकृत किया जा सकता है जिससे जनता को
मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी.’

यह पारदर्शी होने की नीयत को दर्शाता है

भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिट्री ऑपरेशन्स लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त) ने इस नई
नीति का स्वागत किया और कहा कि यह एक उचित स्वरुप को सामने लाएग.

लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया के अनुसार, यह एक अच्छी नीति है और पारदर्शी होने की नीयत को दर्शाती है.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि कुछ अभियान आने वाले कई वर्षों तक क्लासिफाइड (वर्गीकृत/ गोपनीय) हीं रहेंगे.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि ‘सैन्य संचालन के सभी पहलुओं को अवर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। सितंबर महीने
के आते हीं कई लोग 2016 के सर्जिकल ऑपरेशंस के डीक्लासिफिकेशन की मांग करने लगेंगे. फिर भी, कुछ
ऑपरेशनल डिटेल्स सबके सामने नहीं आ सकते क्योंकि सशस्त्र बलों को भविष्य में फिर से उसी तरह के ऑपरेशन
करने पड़ सकते हैं.’

लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया ने आगे यह भी कहा कि ‘डीक्लासिफिकेशन की एक संरचित प्रक्रिया यह सुनिश्चित करेगी
कि दुश्मन प्रयोग में ले गई रणनीति को समझने के लिए इस जानकारी का उपयोग करने में सक्षम नहीं हों.’
वर्तमान में, सभी रिकॉर्ड इतिहास प्रभाग के पास हैं और आम जनता उचित अनुमति के माध्यम से गैर-संशोधित
भागों को देख सकती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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