नई दिल्ली: चल रहे रूस-युक्रेन युद्ध ने भारतीय सेना की रूसी उपकरणों पर भारी निर्भरता पर फिर ध्यान केंद्रित कर दिया है, जो हमारी थलसेना, नौसेना, और वायुसेना की रीढ़ हैं.
कई अनुमानों में सैन्य हार्डवेयर के लिए भारत की रूस पर निर्भरता पर बल दिया गया है, जिसमें पनडुब्बियों से लेकर लड़ाकू विमान और बेसिक राइफल तक शामिल हैं.
हालांकि, रूस से भारत के आयात 2014 के बाद से लगातार घट रहे हैं, लेकिन हमारी 70% सेना अभी भी ऐसे उपकरण इस्तेमाल करती है, जो उस देश में बने या मूल रूप से डिज़ाइन किए हुए हैं.
दिप्रिंट ऐसी विभिन्न प्रणालियों का ब्योरा दे रहा है, जो भारतीय थलसेना, नौसेना, और वायुसेना के इस्तेमाल में हैं, जिनमें कुछ अब जल्द ही धीरे-धीरे हटाए जाने हैं, जबकि कुछ अन्य नए शामिल किए गए हैं, जो बलों के साथ कम से कम और दो दशकों तक चलेंगे.
थल सेना
रूस से भारतीय सेना के आयात को मोटे तौर पर इन श्रेणियों में बांटा जा सकता है- बख़्तरबंद और मिकेनाइज़्ड सिस्टम्स, तोपख़ाना और छोटे हथियार.
बख़्तरबंद और मिकेनाइज़्ड सिस्टम्स
स्वदेशी अर्जुन टैंक की दो रेजिमेंट्स को छोड़कर, भारत की बख़्तरबंद और मिकेनाइज़्ड संपत्ति का, तक़रीबन पूरा सेट रूसी मूल का है.
भारत के बख़्तरबंद कॉलम में टी-90 और टी-92 टैंक शामिल हैं. टी-90 अब रूसी लाइसेंस के तहत भारत में ही निर्मित किए जाते हैं, जिसमें कोई टेक्नॉलजी हस्तांतरण नहीं है. ये टी-72 टैंकों का उन्नत रूप हैं, जो अभी भी सेना के इस्तेमाल में हैं.
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ गतिरोध के चलते, दोनों टैंक लद्दाख़ में तैनात किए गए हैं.
भारत ने पहले रूस से टी-55 टैंक आयात किए थे, जो अब नियंत्रण रेखा पर लक्षित गोलीबारी के लिए पिलबॉक्स विन्यास में इस्तेमाल किए जाते हैं.
भारत के मिकेनाइज़्ड कॉलम, बीएमपी बख़्तरबंद कर्मियों के वाहकों से लैस हैं और ये भी लाइसेंस उत्पादन के तहत, भारत में ही निर्मित किए जाते हैं.
तोपख़ाना और मिसाइलें
हालांकि, तोपख़ाने के हथियारों की ज़रूरतों के मामले में भारत स्वदेशीकरण की ओर बढ़ रहा है, लेकिन सेना में इस्तेमाल हो रहीं मुख्य रॉकेट प्रणालियां- स्मर्क और ग्रैड- रूसी ही हैं.
भारत की आर्टिलरी भी एम-46 का इस्तेमाल करती है, जो 130 एमएम की हाथ से लोड करने और खींचकर ले जाने वाली आर्टिलरी फील्ड गन है.
जब सेना में टैंक भेदी और हवाई रक्षा प्रणालियों की बात आती है, तो उनका एक बड़ा हिस्सा रूसी मूल का है- कोंकूर्स एंटी टैंक-गाइडेड-मिसाइल्स (एटीजीएम), कोरेंट एटीजीएम, ओएसए सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, पेचोरा सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, स्ट्रेला सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल और इगला.
भारत के पास दुनिया के सबसे तेज़ सुपरसॉनिक क्रूज़ मिसाइल ब्राह्मोस भी हैं, जो एक भारत-रूस के संयुक्त उद्यम का उत्पाद हैं.
छोटे हथियार और वायु रक्षा तोपें
बात छोटे हथियारों की हो, तो यहां भी रूसी प्रणालियों का ही बोलबाला है.
सबसे आम राइफल जो एलओसी पर खड़े, या अंदरूनी क्षेत्रों में आतंकवाद-विरोधी कार्रवाई में तैनात, किसी भी सैनिक के हाथ में दिखाई देती है, वो है एके-47, जो एक रूसी उत्पाद है.
भारत और रूस ने संयुक्त रूप से एके-203 राइफलें भारत में बनाने के लिए भी, एक क़रार पर दस्तख़त किए हैं.
इसके अलावा, सेना ड्रैगुनोव राइफल, एनएसवी मशीन गनें, और ओएसवी-96 एंटी-मटीरियल राइफलें भी इस्तेमाल करती है- जो सब रूसी मूल की हैं. उसके पास शिल्का विमान भेदी तोप भी है.
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नौसेना
भारतीय नौसेना के आयातों को, लड़ाकू विमानों के अलावा सतह और पनडुब्बी में भी वर्गीकृत किया जा सकता है.
गोलाबारी की बात आती है तो नौसेना के पास, केएच-35 और पी-20 जहाज़-रोधी मिसाइलें, क्लब जहाज़-रोधी/ज़मीनी हमला करने वाली मिसाइलें, और रूस की एपीआर-3ई टारपीडो हैं.
केएच-35 एक टर्बोजेट सबसॉनिक मिसाइल है. इसे हेलिकॉप्टर्स, सतह के जहाज़ों, और कोस्टल डिफेंस बैटरियों से लॉन्च किया जा सकता है. एपीआर-3ई एक ध्वनिक घर वापसी टारपीडो है, जो रूस द्वारा डिज़ाइन किया गया है.
नौसेना ऐसे कई सतही जहाज़ों का भी संचालन करती है, जो रूसी मूल के हैं जिनमें राजपूत-क्लास विध्वंसक, तलवार क्लास युद्धपोत, और वीर क्लास मिसाइल कॉर्वेट शामिल हैं.
राजपूत-क्लास विध्वंसक, काशिन-क्लास का बदला हुआ रूप हैं, जो पूर्व सोवियत संघ में निर्मित थे. वो आज के यूक्रेन में बनाए गए थे. रूस के यंतर शिपयार्ड ने 2021 में उन्नत तलवार-क्लास युद्धपोत लॉन्च किए थे. ये तीसरा बैच था जो भारत के लिए विकसित किया जा रहा था.
भारत अभी भी रूस से ख़रीदी गई 8 किलो-क्लास पनडुब्बियां चलाता है, जो भारत के पारंपरिक पनडुब्बी बेड़े का एक बड़ा हिस्सा हैं.
नौसेना जो एकमात्र लड़ाकू विमान इस्तेमाल करती है, वो हैं 45 मिग-29 के जो भारत के एक अकेले विमान वाहक-आईएनएस विक्रमादित्य से चलाए जाते हैं- जो ख़ुद रूसी मूल का है. भारत रूसी कामोव पनडुब्बी-रोधी युद्ध हेलीकॉप्टर भी संचालित करता है.
भारत वर्षों से चक्र सीरीज़ की रूसी परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बियों (एसएसएन) का, पट्टे पर संचालन करता आ रहा है, जिनका इस्तेमाल भारत के अपने बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी बेड़े (एसएसबीएन) के क्रू को, प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है.
आख़िरी चक्र पिछले साल वापस चली गई थी, और 2025 के अंत तक भारत को एक और मिलने जा रही है.
वायु सेना
हालांकि भारतीय वायुसेना ने विविधीकरण करके फ्रांसीसी और इज़राइली प्रणालियां अपना ली हैं, लेकिन उसके अधिकतर उपकरण, जिनमें लड़ाकू विमान और मिसाइलें शामिल हैं, रूसी मूल के ही हैं.
तालिका में सबसे ऊपर हैं सुखोई एसयू-30 एमकेआई फाइटर्स, जिनकी भारत की कुल 30 में से क़रीब 14 स्क्वॉड्रन्स हैं.
फिर रूस के मिग-29 यूपीजी और मिग-21 लड़ाकू विमान हैं, जो बल के साथ सेवा में हैं. वायुसेना आईएल-78 टैंकर्स के साथ साथ, भारी परिवहन विमान आईएल-76 भी ऑपरेट करती है. भारत ने दो आईएल-76 विमानों को, हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली में भी परिवर्तित किया है.
चूंकि वायु सेना कई रूसी विमान इस्तेमाल करती है, इसलिए उसके पास उस देश के बहुत सारे मिसाइल्स भी हैं, जिनमें हवा से हवा में मार करने वालीं, आर-77, आर-37, और आर-73 मिसाइलें, और हवा से सतह पर मार करने वाली केएच-59, केएच-35, केएच-31 मिसाइलें शामिल हैं, और इनके अलावा केएबी लेज़र निर्देशित बम भी हैं, जो एसयू-30 एमकेआई से चलाए जाते हैं.
वायुसेना ने एस-400 ट्रायंफ एयर डिफेंस सिस्टम भी ख़रीदे हैं, जिनकी डिलीवरी पिछले साल दिसंबर में शुरू हुई.
बल रूस से लिए हुए एमआई-17 उपयोगिता हेलीकाप्टर्स, एमआई-35 हमलावर हेलिकॉप्टर्स, एमआई-26 हैवी लिफ्ट हेलिकॉप्टर्स भी इस्तेमाल करता है.
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