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Saturday, 11 May, 2024
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हॉट स्प्रिंग्स अगली लद्दाख बैठक के टॉप एजेंडे में, देपसांग और गश्त के अधिकार पर गतिरोध दूर होने के आसार कम

भारत-चीन के बीच 15वें दौर की सैन्य कमांडर-स्तरीय वार्ता 11 मार्च को चुशुल-मोल्दो मीटिंग प्वाइंट पर भारतीय क्षेत्र में पक्ष में आयोजित होगी.

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नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध और इसके संभावित नतीजों के भारतीय प्रतिष्ठानों पर होने वाले असर को लेकर जताई जा रही चिंताओं के बीच भारत और चीन ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले करीब दो साल से जारी गतिरोध घटाने के लिए इस हफ्ते 15वें दौर की सैन्य कमांडर स्तरीय वार्ता के आयोजन का फैसला किया है.

रक्षा प्रतिष्ठान के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि 11 मार्च को प्रस्तावित बैठक चुशुल-मोल्दो मीटिंग प्वाइंट पर भारतीय क्षेत्र में होगी.

बैठक सफल रहने की उम्मीद जताते हुए एक सूत्र ने कहा कि ‘दोनों पक्षों की तरफ से हाल में परस्पर स्वीकार्य समाधान खोजने की कोशिश वाले जो बयान दिए गए हैं वे उत्साहजनक और सकारात्मक हैं.’ सूत्र ने यह भी कहा कि अब तक 14 दौर की बातचीत का नतीजा ‘पैंगोंग त्सो, गलवान और गोगरा के उत्तरी और दक्षिण तटों पर गतिरोध खत्म होने के रूप में सामने आया है.’

सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्ष अब बाकी क्षेत्रों में गतिरोध वाले मुद्दों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

हालांकि, अगले दौर की बैठक को लेकर उम्मीदों के बारे में पूछे जाने पर रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े अन्य सूत्रों ने कहा, यह ऐसा मुकाम है जहां पर आकर समाधान निकलना थोड़ा मुश्किल हो जाता है.

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यह रिपोर्ट देते हुए कि जनवरी में 14वें दौर की सैन्य वार्ता हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से सैन्य वापसी को लेकर गतिरोध तुरंत खत्म करने में विफल रही है, दिप्रिंट ने सूत्रों के हवाले से बताया था कि ‘अगली बार बातचीत सफल होने की संभावना है.’

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि 11 मार्च को पेट्रोल प्वाइंट 15, जिसे आमतौर पर हॉट स्प्रिंग्स कहा जाता है, पर समाधान निकलने की उम्मीद है. हालांकि, एलएसी के पास गश्त का अधिकार बहाल होने के अलावा, देपसांग के मैदान और डेमचोक जैसे टकराव वाले अन्य क्षेत्रों को लेकर अभी किसी प्रगति की संभावना नजर नहीं आ रही है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘पहली बार जुलाई 2020 में पीपी 15 से सैन्य वापसी पर सहमति बन गई थी और प्रक्रिया शुरू भी हुई लेकिन बाद में चीनियों ने इसे बीच में ही रोक दिया. इसलिए हमारे सैनिकों के दो छोटे-छोटे समूहों ने अभी भी पीपी 15 पर एक-दूसरे के सामने डेरा डाला रखा है. पिछली बैठक के दौरान पीपी 15 पर गतिरोध खत्म करने को लेकर व्यापक समझ बनी थी और इसलिए इस बार इसका समाधान निकलने की उम्मीद ज्यादा है.’


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गतिरोध वाले बाकी क्षेत्रों की अहमियत

दूसरे सूत्र ने कहा कि टकराव का मुख्य बिंदु हॉट स्प्रिंग्स नहीं है, बल्कि काफी अहम माने जाने वाले देपसांग मैदानों में ‘अर्ध गतिरोध’ की स्थिति बनी हुई है और एलएसी के पास गश्त का अधिकार बहाल होना और सैन्य वापसी का मसला भी अटका हुआ है.

जैसा कि पहले बताया जा चुका है, चीनी सैनिक भारतीयों को बॉटलनेक कहे जाने वाले क्षेत्र में आगे बढ़कर पैदल गश्त करने से रोक रहे हैं और इस तरह उन्होंने भारतीय सैनिकों की पहुंच पीपी 10, 11, 12, 13 तक ही सीमित कर दी है.

यहां चीनी क्लेम लाइन बर्त्से नामक क्षेत्र में एक भारतीय सैन्य शिविर से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है. भारतीय सेना भी चीनी गश्ती दल को बॉटलनेक क्षेत्र से आगे नहीं आने देती है.

दौलत बेग ओल्डी, जहां भारत की लैंडिंग पट्टी है, से इसकी निकटता के अलावा यह क्षेत्र इसलिए भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि अगर चीनी यहां आगे बढ़ आते हैं, तो वे बेहद अहम दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस-डीबीओ) रोड पर नियंत्रण हासिल कर सकते हैं और सासेर ला दर्रे पर कब्जे की कोशिश भी कर सकते हैं जिससे भारत सियाचिन ग्लेशियर से कट सकता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध ने बढ़ाई चिंता

दिप्रिंट ने पूर्व में बताया था कि रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठानों में इसको लेकर चिंता है कि चीन आखिरकार रूस-यूक्रेन युद्ध से क्या सीख सकता है, और भविष्य में बीजिंग की प्रतिक्रिया क्या हो सकती है, खासकर यह देखते हुए कि एलएसी पर पहले से ही गतिरोध कायम है.

सूत्रों ने तब कहा था कि इस तथ्य को देखते हुए कि पश्चिमी ताकतों में से किसी ने भी रूस के खिलाफ जंग में सैन्य स्तर पर यूक्रेन का साथ नहीं दिया है, चीन के हौंसले बुलंद हो सकते हैं और वह ताइवान के एकीकरण की अपनी योजनाओं पर और अधिक आक्रामकता के साथ आगे बढ़ सकता है.

4 मार्च को जब सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने 1 स्ट्राइक कोर की समीक्षा की—जिसे पश्चिमी के बजाय उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा के लिए फिर से रि-बैलेंस किया गया है—समाचार एजेंसी एएनआई ने एक ‘वरिष्ठ सैन्य अधिकारी’ के हवाले से कहा, ‘यूक्रेन की स्थिति को ऐसे ही प्रयासों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जो कि चीनी सेना पीएलए हमारी विवादित उत्तरी सीमाओं पर कर सकती है.’

एक अनाम अधिकारी को आगे यह कहते हुए उद्धृत किया गया था, ‘किसी भी स्तर पर हमें उत्तरी सीमाओं से अपना ध्यान नहीं हटाना चाहिए.’

अधिकारी ने आगे कहा कि उत्तरी सीमाओं के पास की मौजूदा स्थिति भारतीय सेना को अपने रिजर्व फॉर्मेशन की ऑपरेशन क्षमताओं को फिर से अलाइन करने और ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में अपनी युद्धक-क्षमताओं को परखने के लिए प्रेरित करती है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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