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Sunday, 22 December, 2024
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हेलीकॉप्टर हादसे पर सैनिकों की पत्नियों ने मोदी को लिखा पत्र, मंजूरी के बावजूद विमानों को बदलने में देरी

आर्मी वाइव्स ग्रुप चीता और चेतक के बेड़े को ‘उड़ते ताबूत’ करार देते हुए इन्हें बदलने की मांग कर रहा है. रक्षा मंत्रालय ने नवंबर 2021 में एचएएल से 12 एलयूएच की खरीद को मंजूरी दे दी थी, लेकिन अब ऑर्डर देने पर कदम पीछे खींचे जा रहे हैं.

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नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश में इसी हफ्ते एक चीता हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने—जिसमें लेफ्टिनेंट कर्नल सौरभ यादव की जान चली गई और उनका सह-पायलट घायल हो गया—से आहत एक अनौपचारिक आर्मी वाइव्स ग्रुप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है. समूह की मांग है कि हेलीकॉप्टरों के पुराने बेड़े को तत्काल बदला जाए.

इंडियन आर्मी वाइव्स एजिटेशन ग्रुप 2014 में उस समय अस्तित्व में आया, जब उसने एक हादसे के बाद चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों के बेड़े को बदलने के लिए एक ऑनलाइन याचिका शुरू की. इस हादसे में सेना के तीन अधिकारी मारे गए थे.

अभी उनकी तरफ से मोदी को लिखे गए पत्र में हेलीकॉप्टरों को ‘उड़ते ताबूत’ करार दिया गया है.

पत्र में सवाल उठाया गया है, ‘क्या सशस्त्र बलों के अधिकारियों और उनके परिवारों को ऐसे भारत में रहने का अधिकार नहीं है जो देश की सुरक्षा में लगे अपने पायलटों को सुरक्षित फ्लाइंग मशीन मुहैया कराता हो?’

इसमें कहा गया है कि छह दशकों से चीता और चेतक तीनों सैन्य सेवाओं की रोटरी विंग की रीढ़ रहे हैं.

पत्र में लिखा है, ‘फ्रांस 1980 (एसआईसी) से इनका उत्पादन बंद कर चुका है. अब पुरानी पड़ चुकी ये फ्लाइंग मशीनें दरअसल फ्लाइंग कॉफिन (उड़ते ताबूत) बन गई हैं. मार्च 2017 से अब तक विभिन्न हादसों में 31 अधिकारी मारे जा चुके हैं.’

इसमें कहा गया है कि ‘विश्व इतिहास में पहली बार सेवारत अधिकारियों की पत्नियों ने 2014 में राष्ट्र के सच्चे नायकों की सुरक्षा चुनौतियों को लेकर एक ऑनलाइन याचिका दी थी.’


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चेंज डॉट ओआरजी पर 2014 में यह याचिका एक सेवारत इंजीनियर अधिकारी की पत्नी एडवोकेट मीनल वाघ भोसले की तरफ से दायर की गई थी, और 140 अन्य सेवारत अधिकारियों की पत्नियों ने इसका समर्थन किया था. इस याचिका पर 20,000 से अधिक हस्ताक्षर किए गए.

पत्र में लिखा है, ‘हम 2014 में पर्रिकर (तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर) से मिले थे और उन्होंने इस मामले पर गौर करने का वादा किया था. लेकिन दुख की बात है कि कोई फैसला नहीं लिए जाने के कारण स्थिति जस की तस बनी हुई है. दो दिन पहले हमने चीन सीमा के पास इंजन में खराबी के कारण एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने से एक अधिकारी को खो दिया.’

भोसले ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘सैन्य अधिकारियों के जीवनसाथी के तौर पर हम जोखिमों और चुनौतियों को अच्छी तरह समझते हैं और उनकी तरह ही हमेशा किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहते हैं. जब भी हमारे पति इन हेलीकॉप्टर्स में सवारी करते हैं तो हम तनाव में आ जाते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि इन हेलीकॉप्टरों को उड़ान नहीं भरनी चाहिए.’

उन्होंने कहा कि सरकार को हेलीकॉप्टरों को बदलने के काम में तेजी लानी चाहिए.

बदलाव को मंजूरी दी, लेकिन कोई औपचारिक आदेश नहीं हुआ

इन हेलीकॉप्टरों को बदलने की प्रक्रिया काफी लंबे समय से जारी है. पिछले साल नवंबर में रक्षा मंत्रालय ने इन हेलीकॉप्टरों की जगह हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (एचएएल) से 12 स्वदेशी लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच) की खरीद को मंजूरी दी थी.

दिप्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अगस्त से एक लिमिटेड सीरीज प्रोडक्शन कंफिगरेशन के तहत इन 12 नए हेलिकॉप्टरों—जिसमें छह तो सेना के लिए थे और छह वायुसेना के लिए—का उत्पादन होना था और इसके बाद एक बड़ा ऑर्डर दिया जाना था.

हालांकि, रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि एक औपचारिक अनुबंध पर हस्ताक्षर होना बाकी है, जिसका सीधा अर्थ यही है कि रक्षा मंत्रालय की मंजूरी के एक साल बाद भी अभी तक कोई आदेश नहीं आया है.

सूत्रों ने बताया कि एचएएल इस साल चार एलयूएच और अगले साल आठ एलयूएच का उत्पादन करेगी लेकिन अनुबंध पर हस्ताक्षर होने से पहले इनकी डिलीवरी नहीं होगी.

साथ ही रिक्वेस्ट फॉर कोटेशन (आरएफक्यू) के मुताबिक, पहले एलयूएच में एएफसीएस (ऑटोमैटिक फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम) होना चाहिए. लेकिन यह अभी तक सर्टिफाइड नहीं है और इसलिए इन 12 हेलिकॉप्टरों की डिलीवरी 2023-24 के दौरान ही होगी.

लिमिटेड सीरीज प्रोडक्शन एलयूएच की डिलीवरी के बाद ही सीरीज प्रोडक्शन के बारे में कुछ तय किया जा सकेगा.

राहत एवं टोही अभियानों के अलावा काफी ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सैन्य परिवहन और आपूर्ति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एलयूएच की कुल मांग 400 से अधिक होने का अनुमान है.

कुल आवश्यकता में से कम से कम आधे की आपूर्ति एचएएल की तरफ से किए जाने की उम्मीद है, जबकि बाकी विमान इंडो-रशियन हेलीकॉप्टर लिमिटेड (आईआरजीएल) को बनाने हैं. आईआरजीएल दरअसल एचएएल और दो रूसी फर्मों रशियन हेलीकॉप्टर्स और रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के बीच एक संयुक्त उद्यम है. आईआरजीएल को भारत में रूसी कामोव 226टी हेलीकॉप्टर की मैन्युफैक्चरिंग के लिए बनाया गया था.

हालांकि, इस संयुक्त उद्यम उत्पाद का समझौता—जो 2015 में मोदी सरकार का पहला गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट सौदा था—स्वदेशी कंटेंट की जरूरत और लागत को लेकर अधर में लटका है और इसके आगे बढ़ने की संभावना नजर नहीं आ रही है.

60 और 70 के दशक के हेलीकॉप्टर

भारतीय वायुसेना ने 1962 में मूलत: फ्रांस निर्मित सेवेन सीटर हेलीकॉप्टरों को शामिल किया, जिन्हें अलुवेट-3 कहा जाता था. इसका लाइसेंस मिलने के बाद देश की सरकार संचालित कंपनी एचएएल ने अपना पहला चेतक (अलुवेट-3) विमान 1965 में वायुसेना को सौंपा.

और इसके बाद 1970 में एचएएल ने 5 सीटर एसए-315बी लामा हेलीकॉप्टरों के भारत में उत्पादन के लिए फ्रांस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे 1976 में वायुसेना को सौंपे जाने के साथ चीता नाम दिया गया.

हालांकि, कमीशन की जाने वाली पहली खेप तो अब उड़ान नहीं भर रही है लेकिन 186 चेतक और 200 से अधिक चीता के बेड़े में अधिकांश हेलॉकॉप्टर काफी पुराने हैं, जो करीब 40 वर्षों से सेवा में हैं.

और 1960 के दशक की तकनीक पर आधारित ये विमान अगले कुछ दशकों तक और उड़ान भरते रहेंगे क्योंकि विकल्प के अभाव में सेना अभी भी उन्हें ही ऑर्डर कर रही है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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