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Wednesday, 1 May, 2024
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वायुसेना 500 किमी. से अधिक रेंज वाली ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल से लैस सुखोई की संख्या बढ़ाएगी

मौजूदा समय में भारतीय वायुसेना के पास दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस से लैस 40 सुखोई-30 एमकेआई हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल से लैस सुखोई-30 (एसयू-30) एमकेआई लड़ाकू विमानों की संख्या बढ़ाने की तैयारी में है, जिसकी मारक क्षमता अब 500 किलोमीटर से अधिक है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मौजूदा समय में भारतीय वायुसेना के पास दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस से लैस 40 सुखोई-30 एमकेआई हैं. सूत्रों ने यह भी बताया कि मिसाइल की मारक क्षमता पहले 290 किलोमीटर थी, जिसे अब बढ़ाकर 500 किलोमीटर से अधिक कर दिया गया है.

लैंड-लॉन्च यानी सतह से लॉन्च की जाने वाली ब्रह्मोस की रेंज लगभग 400 किलोमीटर है और इसकी रेंज 800 और 1,500-किमी तक बढ़ाने पर भी काम चल रह है.

सूत्रों ने यह भी कहा कि मिसाइल अपनी असाधारण सटीकता के साथ भारतीय वायुसेना के लिए एक अचूक मिसाइल है.

एक सूत्र ने कहा, ‘हर एक परीक्षण में मिसाइल ने अधिकतम 10 मीटर के अंतर से जमीन पर निर्धारित लक्ष्य को भेदा. जब भारतीय वायुसेना ने एक जहाज पर इसे दागा तो मिसाइल ने उसके एकदम बीचो-बीच हिट किया.

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वायुसेना की तरफ से अगस्त 2020 में तमिलनाडु के तंजावुर में ब्रह्मोस से लैस सुखोई एसयू-30 एमकेआई फाइटर जेट्स की 222 ‘टाइगर शार्क’ स्क्वाड्रन को कमीशन किया गया था. ये पहला मौका था जब चौथी पीढ़ी के एयर डोमिनेंस फाइटर्स को दक्षिणी वायु कमान से बाहर तैनात किया गया था. सुखोई-30 की समुद्री हमले की क्षमता को देखते हुए वायुसेना ने ये कदम हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ते चीनी नौसैनिक जमावड़े पर नजर रखने के लिए उठाया था.

तंजावुर में सुखोई-30 एमकेआई तैनात करने का निर्णय इसकी रणनीतिक लोकेशन को ध्यान में रखकर लिया गया था. टाइगर शार्क स्क्वाड्रन में 18 लड़ाकू विमान हैं, जिनमें से लगभग छह ब्रह्मोस से लैस हैं.

कुल मिलाकर, वायुसेना के पास ब्रह्मोस से लैस 40 सुखोई हैं और ये पाकिस्तान के साथ देश की पश्चिमी सीमा और चीन से लगती पूर्वी सीमा तक तैनात हैं.


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सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के लिए ब्रह्मोस को रोक पाना मुश्किल

लैंड-लॉन्च के विपरीत ब्रह्मोस का वायु संस्करण सैन्य योजनाकारों को लक्ष्य भेदने के अधिक विकल्प देता है जो इसके अभाव में सीमा से परे हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि सुखोई की मारक क्षमता 1,500 किलोमीटर है और इसलिए यह क्रूज मिसाइल से लंबी दूरी के लक्ष्य भेदने में सक्षम है.

वायुसेना ने ने मई में मिसाइल की विस्तारित रेंज का परीक्षण किया था.

नौसेना के पास भी अपने कुछ खास युद्धपोतों के लिए एकीकृत ब्रह्मोस मिसाइलें हैं.

सूत्रों ने कहा कि मिसाइल की सीमा बढ़ाने के लिए सॉफ्टवेयर संबंधी कुछ बदलावों की जरूरत थी जिन्हें रूसियों की मदद से अंजाम दिया गया था.

ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्माण भारत में एक संयुक्त उद्यम के तहत किया जाता है जो 1998 में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन और रूस के एनपीओ मसीनोस्त्रोनिया के बीच शुरू हुआ था.

ब्रह्मोस नाम दो नदियों के नाम को मिलाकर रखा गया है, इसमें एक भारत की ब्रह्मपुत्र और दूसरी रूस की मस्कवा है.

मिसाइल की अधिकतम गति 2.8 मच (करीब 3,450 किमी प्रति घंटे या 2,148 मील प्रति घंटे) है, और मौजूदा समय में दुनियाभर के युद्धपोतों में तैनात सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के लिए इसे इंटरसेप्ट कर पाना मुश्किल है. इसमें राडार की नजर में आने से बचने की भी अपार क्षमता है.

मिसाइल का क्रूजिंग एल्टीट्यूट यानी परिभ्रमण ऊंचाई 15 किलोमीटर तक हो सकती है, और यह अपनी सबसे नीची उड़ान सतह से महज 10 मीटर ऊपर भी भर सकती है और 200 से 300 किलोग्राम वजन तक पारंपरिक वारहेड (गैर-परमाणु) ले जाने में सक्षम है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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