scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतनए CDS को बहुत कुछ करना है लेकिन पहले तो उसे फास्ट ट्रैक करना होगा जो जनरल रावत ने शुरू किया था

नए CDS को बहुत कुछ करना है लेकिन पहले तो उसे फास्ट ट्रैक करना होगा जो जनरल रावत ने शुरू किया था

नरेंद्र मोदी सरकार ने जनरल अनिल चौहान को दूसरा सीडीएस नियुक्त करने में नौ महीने लगाए, इससे जाहिर है कि उसे उनमें पूरा विश्वास और भरोसा है

Text Size:

इस शुक्रवार को लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान दूसरे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में जनरल बिपिन रावत के उत्तराधिकारी बने, जिनकी पिछले साल दिसंबर में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

जनरल चौहान गुरुवार को, नरेंद्र मोदी सरकार की उनकी नियुक्ति के ऐलान के एक दिन बाद ही, डिफेंस के आला अफसरों से मुलाकात करने के साथ सक्रिय हो गए.

पिछले साल सेना के पूर्वी कमान से रिटायर हुए चौहान राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल सचिवालय (एनएससीएस) के मिलिट्री सलाहकार के रूप में काम करते रहे हैं, जिससे उन्हें समूचे सुरक्षा और सैन्य परिदृश्य को व्यापक दृष्टि से देखने का मौका मिला.

वजह यह है कि सेना के उलट, एनएससीएस के कार्यकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की अगुआई में जनरल चौहान सुरक्षा के मुद्दों की बड़ी तस्वीर के हमेशा हिस्सा रहे हैं और वे ठीक-ठीक जानते हैं कि सरकार अल्पावधि और दीर्घकालिक अवधि में क्या सोचती है.


यह भी पढ़ेंः ITBP या सेना? चीन के साथ तनाव जारी रहने के बीच उठ रहा सवाल, किसके हाथ में हो LAC पर गश्त की कमान


सरकार, सेना का भरोसा

मोदी सरकार ने दूसरे सीडीएस की नियुक्ति में नौ महीने लगाए, इससे जाहिर होता है कि उसकी उनमें पूरा विश्वास और भरोसा है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

जनरल चौहान देश के इतिहास में तीन स्टार वाले पहले मिलिट्री अफसर हैं, जिन्हें रिटायर होने के बाद सक्रिय सेवा में लाया गया है, वह भी चार सितारा पद पर.

उनकी नियुक्ति ऐसे वक्त हुई है, जब भारतीय सेना अपने ऑर्डर ऑफ बैटल (ओआरबीएटी) में कई बदलावों से गुजर रही है. जनरल रावत ने जब 1 जनवरी 2020 को सीडीएस का पद संभाला तब चीन को दुश्मन की तरह (कम से कम सार्वजनिक तौर पर) नहीं देखा जाता था.

देश की जनता और सरकार पाकिस्तान को मुख्य दुश्मन की तरह देखती थी, और सेना का झुकाव नियंत्रण-रेखा (एलओसी) और देश के भीतर आतंक-विरोध और अलगाववाद विरोधी अभियान में ज्यादा था.

हालांकि मई 2020 के बाद स्थितियां नाटकीय ढंग से बदलीं, जब भारत और चीन के बीच तनाव शुरू हुआ.
इसलिए चौहान की नियुक्ति अधिक महत्व की है, क्योंकि वे तीन भूमिकाओं-सीडीएस, चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थाई अध्यक्ष, और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) के सचिव-में होंगे.

चौहान लगभग सभी मिलिट्री मामलों के जिम्मेदार होंगे. मौजूदा नियम-कायदों के मुताबिक वे सेना के तीनों अंगों के लिए सभी खरीद की देखरेख करेंगे, सिर्फ पूंजीगत खरीद को छोडक़र. इसके अलावा टेरिटोरियल आर्मी और सेना के तीनों अंगों के विभिन्न कार्यक्रमों पर भी उनकी छाप रहेगी.

उनके दायित्वों में खरद में ‘साझापन’ को बढ़ावा देना, सेना के तीनों अंगों की जरूरत के एकीकरण और साझा योजना के जरिए कार्यबल की भर्ती और प्रशिक्षण भी है.

उन पर ‘साझा/थिएटर कमांड के गठन के साथ अभियान में साझापन की व्यवस्था कायम करके संसाधनों के सर्वाधिक उपयोग के लिए मिलिट्री कमांड का पुनर्गठन’ को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी है. इसके अलावा उन्हें सेना में स्वदेशी उपकरणों के इस्तेमाल को भी बढ़ावा देना है.

इस तरह जनरल चौहान का मुख्य काम जनरल रावत की शुरू की गई पहल को फास्ट ट्रैक पर ले जाना होगा.


यह भी पढ़ेंः चीन से खतरे को देखते हुए सेना L&T को 100 और K9 वज्र होवित्जर तोपों का ऑर्डर देगी


जनरल चौहान की प्राथमिकताएं

उनकी नंबर एक प्राथमिकता थिएटर कमांड की प्रक्रिया में तेजी लानी होगी, जिसको लेकर सरकार की दिलचस्पी बहुत ज्यादा है. बेशक, सेना के तीनों अंग अपने के बीच विवाद को अभी सुलझाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं और इसी मामले में जनरल चौहान की काबिलियत काम करेगी.

उन्हें जानने वाले कहते हैं कि अपने पूर्ववर्ती के उलट चौहान ज्यादा बोलते नहीं हैं लेकिन वे बहुत तेज और दृढ़ हैं. उन्हें अपना हर कौशल-और कुछ ज्यादा भी-का इस्तेमाल करना होगा, ताकि सेना के तीनों अंगों में सहमति बन जाए और थिएटर कमांड की प्रक्रिया उचित योजना और सोच के साथ आगे बढ़े.

उन्हें अपनी मूल वर्दी और नजरिए से अलग हटकर सेना के तीनों अंगों के नजरिए से सोचना होगा, जिसमें एनएससीएस में उनके कार्यकाल से पहले ही मदद मिल गई होगी.

उन्हें यह भी तय करना होगा कि जनरल रावत के कार्यकाल में सेना के तीनों अंगों के बीच आई कुछ कड़वाहट को दूर किया जा सके और वे अपनी दृढ़ता पर कायम रहें, ताकि सेना के तीनों अंगों के मुख्यालय अपनी मर्जी न चलाएं.

उन्हें यह भी आश्वस्त करना होगा कि सेना के तीनों अंग भविष्य के किसी युद्ध में साझा अभियान योजना के साथ एक साथ लड़ें.

जनरल चौहान की दूसरी प्राथमिकता सेना के हर अंग की बजटीय जरूरतों को तर्कसंगत बनाने और साझा खरीद तथा योजना का मुद्दा होगा.

उन्हें देश के भविष्य के युद्धों का नजरिए पर विचार करना होगा और उसके अनुरूप खरीद की प्राथमिकताओं की सूची बनानी होगी, जिनमें ज्यादातर सेना के तीनों अंगों के लिए होंगी.

इससे भी बड़े फैसले यह होंगे कि क्या भारत को तीसरे विमानवाहक पोत हासिल करने की दिशा में बढऩा चाहिए या नहीं, क्या सस्ते लेकिन मारक जमीन पर कंधे के सहारे दागने वाले विमान-रोधी मिसाइलों के दौर में अधिक जंगी हेलिकाप्टरों की जरूरत है, और क्या भारत को राफेल विमानों के और बेड़े की दरकार है. इसके अलावा भी कई सवाल हैं.

उन्हें अकेले खरीद की सोच वाले सेना के हर अंग की मांग की सूची को भी घटाना होगा. मैंने पहले भी लिखा है कि अकेले-अकेले के लिए वही उपकरण खरीदना कैसे काफी महंगा पड़ता है.

आखिर में, वे सरकार की ओर से सेना के प्रमुख पद पर तो जा रहे हैं, उन्हें यह भी अश्वस्त करना होगा कि दोनों के बीच लक्ष्मण रेखाएं कायम रहें.

(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)


यह भी पढ़ेंः अजरबैजान के साथ बढ़ते तनाव के बीच आर्मेनिया ने किया भारत से पिनाका रॉकेट और गोला-बारूद खरीदने का करार


 

share & View comments