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Thursday, 25 April, 2024
होमडिफेंसबंदूकधारियों को मारना आसान है, कश्मीर को सफेदपोश आतंकियों से खतरा है- चिनार कॉर्प्स के प्रमुख लेफ्टी. जन.पांडे

बंदूकधारियों को मारना आसान है, कश्मीर को सफेदपोश आतंकियों से खतरा है- चिनार कॉर्प्स के प्रमुख लेफ्टी. जन.पांडे

एक इंटरव्यू में लेफ्टीनेंट जनरल पांडे कहा है कि कश्मीर में स्थाई शांति और स्थिरता के लिए सही बीमारी और संकट का पता लगाना जरूरी है. सिर्फ इस बीमारी के लक्षण का इलाज करना कोई समाधान नहीं है.

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श्रीनगर: श्रीनगर के चिनार कॉर्प्स के प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे का कहना है कि बंदूकधारी आंतकवादी को मारना आसान है. असली खतरा तो उन सफेदपोश आतंकवादियों से है जो वास्तव में ‘आतंकी फैक्टरियां’ चला रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमें आतंकियों और आतंकवाद के ‘वाद’ के अंतर को समझने की जरूरत है.

दिप्रिंट को दिए अपने इंटरव्यू में लेफ्टीनेंट जनरल पांडे ने कहा कि कश्मीर में स्थाई शांति और स्थिरता की बहाली के लिए सही बीमारी और संकट को समझना होगा. सिर्फ बंदूकधारी आतंकियों से निपटने जैसे लक्षण का इलाज करने से काम नहीं चलने वाला है.’

उन्होंने बताया कि कश्मीर घाटी में सुरक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है और स्थानीय शिक्षित युवाओं की आतंकवादी संगठनों में भर्ती में काफी कमी आई है. अब आतंकवादी भर्ती के लिए कमजोर तबकों के युवाओं को आकर्षित करने की फिराक में ये संगठन दिख रहे हैं जो सेना के लिए एक नई चुनौती है.’

चिनार कॉर्प्स (15 कॉर्प्स) के कमांडर की जिम्मेदारी कश्मीर घाटी और लाइन ऑफ कंट्रोल की निगरानी करने की है. चिनार कॉर्प्स के प्रमुख ने 2003 के युद्धविराम के आधार पर पाकिस्तान के 25 फरवरी 2021 को हुए शांति-समझौते का स्वागत करते हुए उसे सीमावर्ती गांवों के लिए हितकारी बताया लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर में आतंकवादियों के प्रवेश की घटनाएं अब भी जारी हैं.

दिप्रिंट से अपनी बातचीत में उन्होंने कहा, ‘पिछले दो वर्षों में खासकर युद्धविराम के बाद, हमने सुरक्षा और विकास दोनों में अच्छी प्रगति की है. हमें पत्थर फेंकने की घटनाएं कम देखने को मिली हैं और जो थोड़े-बहुत प्रदर्शन और बंद के आयोजन हुए हैं वह बिजली या पानी की समस्या को लेकर हुए हैं.’

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लेफ्टी. जनरल पांडे जो अपने कैरियर में सातवीं बार कश्मीर की कमान संभाल चुके हैं उन्होंने बताया कि आतंकी गतिविधियों और लक्ष्य बनाकर हत्याएं करने की घटनाओं में काफी कमी आई है. हालांकि, हिंसा फैलाने की कोशिशें सितंबर और अक्टूबर महीनों में की गई थीं.

कश्मीर के इस वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के मुताबिक सबसे अच्छी बात यह देखने को मिली है कि जो लोग लंबे समय से चुप्पी साधे हुए थे अब आतंकवाद के गठजोड़ और उसको सहयोग देने वाले तरीकों के खिलाफ आवाजें उठाने लगे हैं.

आतंकवाद की विचारधारा

‘कश्मीर के आतंकवाद की बारीकी पर चर्चा करते हुए लेफ्टी. जनरल पांडे ने कहा कि राज्य ‘अंतर्विरोध की अर्थव्यवस्था’ का शिकार है. उन्होंने कहा, ‘कई वर्षों तक लोगों ने आतंकवाद और उसकी विचारधारा का घालमेल किया हुआ है. उन्होंने सिर्फ एक शब्द आतंकवाद गढ़ लिया.’

उन्होंने कहा, ‘आतंकी को मारना, पकड़ना या उन्हें किनारे लगा देना बहुत ही सरल है. लेकिन, इसकी विचारधारा वाला पहलु लंबे समय तक समाज में रह जाता है. यह समाज के जाने-माने लोगों के गठजोड़ से चलता है जिससे आतंकियों के पैदा होने में सहूलियत हो जाती है.’

‘लंबी समयावधि की शांति के लिए हमें विचारधारा वाले पहलु पर काम करना होगा, जो मूलतः कट्टरवाद है. यह कट्टरता आर्थिक विरोधाभासों, ड्रग्स, गलत शिक्षा से आती है जो कट्टरवाद की तरफ ले जाती है. ये ऐसे मुद्दे हैं जिनपर ध्यान देना होगा. इसमें सरकार के दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है जिसमें सुरक्षा बलों की भी बड़ी भूमिका सामने आती है.’

लेफ्टी. जनरल पांडे ने कहा, ‘बहुत समय तक सैन्य बल मानते थे कि यह उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता लेकिन मेरा मानना है कि विचारधारा पर नियंत्रण करने के लिए सुरक्षा बलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.’

उन्होंने कहा ‘मेरे पास कंपनी कमांडर हैं और युवा सैनिक हैं जो पूरी घाटी में फैले हुए हैं. अब वे सब भी आतंकी और उसकी विचारधारा वाली बात को समझने लगे हैं. वे मानने लगे हैं कि आतंकी को मारना आसान है. हम उसे बंदी बना लेंगे फिर उसका जीवन कुछ हफ्तों या कुछ महीनों का होता है.’

लेफ्टी. जनरल पांडे ने कहा, ‘युवा सैनिक अब विचारधारा के महत्व को समझने लगे हैं. वे जनता के पास जाकर स्थिति के बारे में जानकारी दे रहे हैं और उन्हें समझा रहे हैं कि युवाओं के आतंकी बनने के संकेत को कैसे समझें.’


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जमीनी कार्यकर्ताओं और सफेदपोश आतंकियों के बीच अंतर

लेफ्टी. जनरल पांडे ने कहा कि आज सबसे बड़ी जरूरत आतंकी समूहों के कार्यकर्ताओं और ‘सफेदपोश आतंकियों’ के बीच अंतर को समझना है. कार्यकर्ता, हथियारों और पैसों को एक जगह से दूसरी जगहों पर पहुंचाते हैं जबकी सफेदपोश आतंकी बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं एक आतंकवादी को मार सकता हूं लेकिन ये सफेदपोश आतंकवादी, आतंकवादी की फैक्टरियां हैं. किसी युवा को जांच-परख करके उसे आतंकी बनाने की जिम्मेदारी इन पर होती है. पहचान करके वे युवा का पीछा करते हैं, उसे अलग करते हैं, कट्टरपंथी बनाते हैं. फिर दूसरे देश में बैठे उसके आका, उसके लिए हथियार का प्रबंध करवाते हैं.’

उन्होंने कहा कि ‘सुरक्षा बल के जवान इन बंदूकधारी आतंकियों का पीछा करते हैं लेकिन सफेदपोश आतंकवादियों पर किसी का ध्यान नहीं जाता.’

उन्होंने कहा, ‘एक तरफ तो समाज के ये प्रतिष्ठित आदमी या औरत समाज के युवाओं को आतंकवादी बनाने के लिए खोजते रहते हैं, वहीं इनके खुद के परिवारजन अच्छी शिक्षा, सरकारी नौकरियां पाते हैं. साथ ही, देश भर में इनके घर भी होते हैं.’

लेफ्टी.जनरल पांडे ने बताया कि आतंक के इस गठजोड़ में दुनिया भर में बैठे अप्रवासी कश्मीरी लोगों का भी हाथ रहता है.

उन्होंने कहा, ‘इनमें से ज्यादातर लोगों ने भले ही एक बार भी कश्मीर का दर्शन न किया हो लेकिन बाहर बैठे अपने आकाओं से पैसे और निर्देश लेकर उनकी शह पर, सोशल मीडिया के जरिए कट्टरता फैलाते हैं. साथ ही, खुद को जुल्म के शिकार के रूप में प्रस्तुत करते हैं.

उन्होंने कहा कि हालांकि, युवा अब उनकी सच्चाइयों से परिचित होने लगे हैं और उनसे सवाल भी करने लगे हैं.’


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आतंकी भर्ती में कमी, युवाओं पर नजर

लेफ्टी.जन.पांडे कहते हैं कि घाटी में आतंकियों की संख्या में अब कमी आई है. 2021 में इनकी संख्या लगभग 250 थी जो घटकर 160 तक रह गई है. इनमें स्थानीय आतंकवादी और एलओसी या दूसरी जगहों से घूसपैठ करके आए आतंकी शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘सबसे अच्छी बात यह है कि भर्ती में कमी आई है. 2021 में भर्ती करने वालों की संख्या लगभग 40 थी. लेकिन जब मैं भर्ती करने के ट्रैंड का विश्लेषण करता हूं तो मजेदार बात सामने आती है. अब आपको पढ़े-लिखे, ताकतवर युवा आतंकी बनते नहीं दिखते हैं, जिनकी संख्या 2016-18 में काफी ज्यादा होती थी. इसमें कमी आई है.’

लेफ्टी.जन.पांडे कहते है कि शिक्षित युवा न मिलने पर अब ‘आतंकी भर्ती संगठन 15 से 17 साल के उन युवाओं को निशाना बनाने में जुटे हैं जो कमजोर तबके से ताल्लुक रखते हैं.’

उन्होंने कहा कि अब आतंकी भर्ती करने वाले चालाकी से ऐसे लड़कों की तलाश करते हैं जिनके अभिभावक, चाचा-मामा या नजदीकी रिश्तेदार आतंकी थे जो मार दिए गए या जो ड्रग्स का धंधा करते हों.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए अब वे सोच-समझकर युवाओं की तलाश में जुटे हैं क्योंकि उन्हें बंदूक उठाने वाले युवा नहीं मिल रहे. अब ऐसे युवाओं की भर्ती पर नजर रखना हमारे लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है.’

उन्होंने कहा कि जो ‘सफेदपोश आंतकी’ युवाओं को अपना निशाना बना रहे थे, अब उनकी कलई खुल गई है, कश्मीर के उम्रदराज युवा अब सावधान हो गए हैं. अब उनके निशाने पर कम उम्र के लड़के हैं.

उन्होंने कहा कि युवकों के परिवार के सदस्य भी अब इस बात को समझने लगे हैं और अपने बच्चों को इनके चंगुल से बचाने के लिए पुलिस और सेना दोनों के पास पहुंचने लगे हैं.

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों से बड़ी संख्या में युवाओं को इस केंद्र शासित प्रदेश के बाहर भेजा गया है ताकि वे अपना ध्यान पढ़ाई में लगाएं और आम नागरिक की तरह जीवनयापन कर सकें.

एलओसी की स्थिति

युद्धविराम की बात को प्रमुखता देने का स्वागत करते हुए पांडे ने कहा कि इससे सीमावर्ती गांवों के लोगों को सामान्य जीवन जीने का मौका मिलेगा. साथ ही, वे पाकिस्तानी सेना की ओर से होने वाली लगातार बमबारी और मौत के भय से भी मुक्त रहेंगे.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने ही संघर्षविराम की पहल की थी क्योंकि उनके ऊपर चरमराती अर्थव्यवस्था, अफगानिस्तान की सीमा पर तना, खुद का आतंकी ढांचा जैसे तमाम दबाव हैं. साथ ही, युद्धविराम का उल्लंघन करने पर भारतीय सेना द्वारा दिया गया जवाब भी इसका एक कारण है.

घुसपैठ के सवाल पर उनका कहना था कि इसको लेकर तमाम प्रयास चलते रहते हैं और यह तब तक जारी रहने वाला है जब तक पाकिस्तान के शासन का नजरिया नहीं बदलता. जो लोग घुसपैठ की कोशिश करेंगे उनके लिए तीन-टीयर वाली घुसपैठ विरोधी ग्रिड तैयार की गई है. इसके बावजूद अगर घुसपैठ की कोशिश होती है तो उनसे निपटा जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘अब हमारी निर्भरता तकनीकी निगरानी तक सीमित नहीं रही है, मानवीय निगरानी भी उभर कर सामने आने लगी है. कश्मीर के लोगों को आभास हो चुका है कि क्या हो रहा है और अब हमें लोगों से आतंकियों के बारे में तमाम गोपनीय सूचनाएं मिलने लगी हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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