scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होमडिफेंसपुलवामा के बाद अब जैश ने ली श्रीनगर हमले की जिम्मेदारी, पैसे जुटाने के लिए POK में की पब्लिक मीटिंग

पुलवामा के बाद अब जैश ने ली श्रीनगर हमले की जिम्मेदारी, पैसे जुटाने के लिए POK में की पब्लिक मीटिंग

जैश-ए-मोहम्मद के पीओके प्रमुख मुहम्मद इलियास ने उपस्थित भीड़ को बताया कि जम्मू-कश्मीर में मारे गए आतंकवादी हाफिज अरसलान ने 13 दिसंबर को श्रीनगर में घात लगाकर वह हमला किया था जिसमें तीन पुलिस कर्मियों की मौत हो गई थी.

Text Size:

नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिले वीडियो और चश्मदीदों गवाहों के बयानात से पता चला है कि जैश-ए-मोहम्मद के नेताओं ने श्रीनगर में पुलिस पर हाल ही में हुए आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी लेने और भविष्य के आतंकवादी अभियानों वास्ते धन जुटाने के लिए इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में एक बड़ी सार्वजनिक रैली की है.

3 जनवरी को हुई इस सभा में पाकिस्तान द्वारा 2019 में पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े हुए तनाव के मद्देनजर आतंकवादी समूह पर शिकंजा कसने की कार्रवाई के बाद से जैश की तरफ से आयोजित किया जाने वाला वाला पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था.

पीओके के क्षेत्रीय जैश प्रमुख मुहम्मद इलियास ने इस बैठक को संबोधित किया, जो जैश के मारे गए आतंकवादी हाफिज अरसलान के पारिवारिक निवास के पास रावलाकोट के जलोथ में आयोजित की गई थी. दिप्रिंट द्वारा प्राप्त एक वीडियो से पता चलता है कि जैश-ए-मोहम्मद के लड़ाकों ने हवा में गोलियां चलाईं और अरसलान की मौत को याद करते हुए जिहाद समर्थक नारे लगाए.

इस बैठक में भाग लेने वाले एक स्थानीय निवासी ने दिप्रिंट को बताया है कि जैश नेता इलियास ने उपस्थित भीड़ को बताया कि अरसलान ने ही 13 दिसंबर 2021 को श्रीनगर के पंथा चौक के पास एक पुलिस बस पर घात लगाकर हमला किया था. इस हमले में तीन पुलिस कर्मियों की जान चली गई थी और 11 अन्य लोग घायल हो गए थे.

अरसलान, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने छह महीने पहले नियंत्रण रेखा पार कर जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की थी, इस सप्ताह की शुरुआत में भारतीय बलों के साथ हुए एक मुठभेड़ में मारा गया था.


यह भी पढ़ें: भारत के संभावित सैन्य ऑपरेशन का सामना करने के लिए अपने क्षेत्र में पैंगोंग त्सो पर पुल बना रहा चीन


पाकिस्तानी सेना की आलोचना

इलियास ने ‘कश्मीर के जिहाद’ पर लगाम लगाने की कोशिश करने के लिए पाकिस्तान के नेतृत्व और उसकी सेना की जमकर आलोचना की. उसने कहा, ‘मुजाहिदीनों को फूल चढ़ाए जा रहे हैं और जो अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं और उनकी याद में एक मिनट का मौन रखा जा रहा है. मगर फिर भी, हमारे नेता भारतीय सेना का मुकाबला करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं.’

जैश नेता ने कहा कि ‘अगर (पूर्व पाक सैन्य शासक और जनरल) परवेज मुशर्रफ की तरह हमारी पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश की जाती है, तो मुजाहिदीन इन चाकुओं को अपने सीने पर झेलने के लिए तैयार हैं.’ उसने आगे कहा, ‘जो वतनफरोश (देशद्रोही) ऐसा कदम उठाते हैं उन्हें चेतावनी दी जाती है कि वे हमारी बंदूकों के निशाने पर हैं.’

इलियास ने अपने भाषण के दौरान स्थानीय बाशिंदो से कश्मीर में जिहाद के लिए कुछ पैसे दान करने को भी कहा. उसने कहा, ‘श्रीनगर में खरीदे गए एक कलाश्निकोव (राइफल) की कीमत [पाकिस्तानी] 15 लाख रुपये है, एक स्नाइपर राइफल की कीमत 90 लाख रुपये है और गोलियां भी बहुत महंगी हैं. (हमारे) लोगों को और ज्यादा दरियादिल होना चाहिए.’

एक चश्मदीद ने बताया कि प्रतिबंधित शिया-विरोधी आतंकवादी समूह सिपह-ए-सहाबा के मौलाना आफताब काशर, जमात-उद-दावा के अतीक अहमद, पूर्व नौकरशाह जमील सफदर और प्रमुख राजनीतिक दलों के सदस्यों सहित कई स्थानीय स्तर के दिग्गज नेताओं ने इस बैठक में भाग लिया. इसमें भाग लेने वालों से इस कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग करने की मनाही की गयी थी

तालिबान के साथ-साथ की है लड़ाई

भारत की खुफिया सेवाओं ने लंबे समय से जैश-ए-मोहम्मद, जो अफगानिस्तान में जीते हुए तालिबान के साथ उसके घनिष्ठ संबंधों से प्रेरित हो रहा है, के फिर से उभर कर सामने आने की चेतावनी दी हुई है. अफगान अधिकारियों भी लंबे अरसे यह सूचना दे रहे थे कि उनके देश की सेना को तालिबान बलों के साथ मिलकर लड़ रहे जैश और लश्कर लड़ाकों, जिनके सैकड़ों लोग इस लड़ाई में भाग ले रहे थे, का सामना करना पड़ रहा है.

अफगानिस्तान में आतंकवाद से संबंधित प्रतिबंधों की निगरानी करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समूह को पिछली साल की गर्मियों के दौरान बताया गया था कि जैश और लश्कर-ए-तैयबा के तक़रीबन 1000 लड़ाके ‘सलाहकारों, प्रशिक्षकों और इम्प्रोवाइज्ड एक्सपोलसिवे डिवाइस (आइईडी) विशेषज्ञों के रूप में काम करते हुए तालिबान आतंकवादियों के साथ मिलकर लड़ रहे थे .

साल 2019 में पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले के प्रतिशोध के रूप में भारतीय वायु सेना द्वारा बालाकोट में जैश के मदरसा पर की गई बमबारी के बाद से इस समूह के प्रमुख मसूद अजहर अल्वी को सुरक्षात्मक हिरासत में ले लिया गया था. मरकज़ उस्मान-ओ-अली में जैश के बहावलपुर मुख्यालय को पाकिस्तान के सरकारी प्रशासन के अधीन रखा गया था, और उसके सैन्य प्रशिक्षण शिविरों को खाली करवा दिया गया था.

हालांकि पिछले साल जैश के लड़ाकों को उनके शिविरों में वापस बुलाए जाने की ख़बरें मिली थी, और इसके नेताओं ने पाकिस्तान के पंजाब, खैबर-पख्तूनख्वा और सिंध प्रांतों के मस्जिदों में धन उगाहने और लड़ाकों को भर्ती करने वाली बैठकें फिर से शुरू कर दीं थीं.

मसूद अजहर ने पिछले साल समूह की अपनी पत्रिका ‘मदीना’ में लिखा था, ‘फ़िलहाल कश्मीर आंदोलन गहरे में जमींदोज (मिट्टी के नीचे दबा हुआ) लग सकता हैं, लेकिन जिनके पास छिपी हुई चीजों को देखने की निगाहें हैं, वे जानते हैं कि इसे बारूदी सुरंग की तरह लगाया गया है, जिसका विस्फोट होना तय है. वह भी बिल्कुल सही समय पर.’

अजहर ने आगे लिखा था, ‘भारत की पूरी सेना कश्मीर में ही फंस जाएगी. हमारे सामने जो समस्या होगी वह यह होगी कि जंग के इतने बदसूरत और सड़े हुए कैदियों को रखा कैसे जाए.’

आईएसआई और अल-कायदा के साथ जैश के जटिल रिश्ते

अजहर, पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और अल-कायदा के बीच लंबे समय से चले आ रहे जटिल संबंध जैश-तालिबान संबंधों को रेखांकित करते हैं, जो तालिबान के संस्थापक मुल्ला मुहम्मद उमर के बेटे और अब अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री माने जाने वाले मुहम्मद याकूब के आसपास केंद्रित है.

अजहर के पुराने शिक्षा संस्था, कराची स्थित बिनोरी टाउन मदरसा, से अपनी पढाई पूरी करने वाले याकूब के बारे में माना जाता है कि उसने 2000 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जैश के ठिकानों में ही सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया था.

बिनोरी टाउन मदरसा के चांसलर निज़ामुद्दीन शमज़ई ने बाद में तालिबान के रूप में पनपने वाले आतंकवादी समूह का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. साल 1979 में, इसके ही एक छात्र इरशाद अहमद ने अफगानिस्तान में लड़ने के लिए हरकत-उल-जिहाद-उल-इस्लामी की स्थापना की थी. साल 1984 में यह संगठन दो भाग विभाजित हो गया जब फजलुर रहमान खलील ने इसके तत्कालीन नेता कारी सैफुल्ला अख्तर से बगावत करते हुए हरकत-उल-मुजाहिदीन की स्थापना की.

1988 के बाद से ही, जब अल-कायदा पहली बार अफगानिस्तान के खोस्त में जंग के मैदान में दिखाई दिया था, इन दोनों समूहों ने ओसामा बिन लादेन का साथ अपना लिया था.

अपने भारी वजन के कारण हरकत-उल-मुजाहिदीन की हथियारबंद इकाई में लडने की योग्यता प्राप्त करने में विफल रहने के बाद मसूद अजहर का एक प्रचारक और धन (चंदा) उगाहने वाले के रूप में इस्तेमाल किया गया था और उसने इस काम के सिलसिले में अफ्रीका और यूरोप की यात्रा भी की भी.

1994 में, दो हरकत गुटों को एक करने के लिए अजहर को नियंत्रण रेखा के पार भेजा गया था और यहां वह भारतीय अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. हरकत ने उसे छुड़ाने की बार-बार कोशिश की, विशेष रूप से कश्मीर में पश्चिमी पर्यटकों का अपहरण करके. अंत में उसे 1999 में इंडियन एयरलाइंस की एक अपहृत उड़ान में सवार यात्रियों के बदले में रिहा कर दिया गया था.

1990 के दशक के अंत में ओसामा बिन लादेन के अंगरक्षक रहे नासिर अल-बहरी ने दावा किया था कि इस मारे गए अल-कायदा प्रमुख ने ही इस सारे ऑपरेशन की योजना बनाई थी. उसने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘बिन लादेन अजहर को छुड़वाना चाहता था और इसलिए उसने अल-कायदा को हरकत के साथ मिलकर इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण की योजना बनाने का आदेश दिया था.’

पाकिस्तान वायु सेना के पूर्व अधिकारी से जिहादी बने अदनान रशीद ने लिखा है कि उसने 9/11 के बाद अपने आतंकी करियर की शुरुआत ‘जैश-ए-मोहम्मद के कार्यालय और फिर इसके मनशेरा स्थित प्रशिक्षण शिविर का दौरा करने के बाद की. मैं उनके शिविर में 23 दिनों तक रहा, और कुछ अन्य बिरादरों के साथ अफगानिस्तान जाने का इंतजार करता रहा.’

रशीद ने लिखा है कि बाद में उसने जैश की एक बैठक में भाग लिया जहां काबुल में आत्मघाती हमलों के लिए रजाकारों (वालंटियर्स) की मांग की गई थी. इसमें भाग लेने वाले 200 लोगों में से पंद्रह ने स्वेच्छा से इस काम के लिए हामी भरी थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: चीन के पैंगोंग त्सो ब्रिज का मसला डर कर या विवाद बढ़ाकर हल नहीं किया जा सकता


 

share & View comments