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Thursday, 25 April, 2024
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क्यों इंडियन नेवी पायलटों ने 2 साल से एक एयरक्राफ्ट कैरियर पर लैंड नहीं किया, और फिलहाल संभावना भी नहीं

आईएनएस विक्रमादित्य की मरम्मत और बदलाव का काम जहां लंबा खिंचता जा रहा है, वहीं विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर लैंड करने की स्थिति 2023 में ही आ पाएगी. इस बीच, नौसैना पायलट सिमुलेटर पर ट्रेनिंग ले रहे हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय नौसेना के एलीट फाइटर पायलट पिछले करीब दो सालों से किसी विमानवाहक पोत पर लैंड नहीं कर पाए हैं और आईएनएस विक्रांत पर सवारी का उनका इंतजार अभी और लंबा ही खिंचने वाला है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक अगले साल की शुरुआत से पहले ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है.

दूसरा विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पिछले दो साल से एक्शन में नहीं है क्योंकि इसमें कुछ बदलावों और मरम्मत की प्रक्रिया जारी है. रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि इस साल जुलाई में विमानवाहक पोत में उस समय आग लग गई, जब मरम्मत के बाद इसे समुद्री परीक्षण के लिए उतारा गया था. यही वजह है कि यह अभी तक ऑपरेशनल स्थिति में नहीं आ सका है.

अब उम्मीद है कि रूसी मूल का यह विमानवाहक इस साल के अंत या अगले साल के शुरू में ही पूरी तरह से चालू किया जा सकेगा.

यद्यपि नौसेना के पायलट अमेरिका ही नहीं कई देशों के साथ भी संयुक्त अभ्यास कर रहे हैं, लेकिन वे उन विमानवाहक पोतों से उड़ान नहीं भर सकते क्योंकि विक्रमादित्य और विक्रांत के विपरीत उनके पास स्की-जंप नहीं है.

सूत्रों ने बताया कि नए कमीशन आईएनएस विक्रांत पर उड़ान संबंधी ट्रायल इस महीने शुरू हो सकते हैं, लेकिन पायलटों के साथ मिग 29K की वास्तविक लैंडिंग अगले साल के शुरू में ही संभावित है जबकि आईएनएस विक्रांत 2023 के अंत तक ही पूरी तरह ऑपरेशनल हो पाएगा.

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बहरहाल, सूत्रों ने कहा कि इसका नौसेना पायलटों की ट्रेनिंग पर ‘कोई असर नहीं पड़ा है,’ और लैंड-बेस्ड फैसिलिटी से विभिन्न अभियानों के लिए उनका उड़ान भरना, आईएनएस हंसा में तटीय परीक्षण सुविधा (एसबीटीएफ) से स्की-जंपिंग करना और सिमुलेटर पर अभ्यास करना जारी है.

हालांकि, उन्होंने माना कि इसकी किसी विमान वाहक पर वास्तविक लैंडिंग से बराबरी नहीं की जा सकती, जिसकी अपनी अलग ही डायनमिक्स होती है.

एक सूत्र ने कहा, ‘एसबीटीएफ या फिर सिमुलेटर की तुलना में किसी चलते-फिरते विमान वाहक पर लैंडिंग और टेक-ऑफ करना एक अलग ही तरह का अनुभव होता है.’

उन्होंने समझाया कि पायलट अलग-अलग स्थितियों में ट्रेनिंग के लिए विमानवाहक पोत पर कई बार लैंडिंग और टेक-ऑफ करते हैं, जिसमें रात के समय और समुद्र की विभिन्न स्थितियों में लैंडिंग करना शामिल हैं, जिसे डगलस सी स्केल के जरिये लहरों की ऊंचाई और समुद्र की गहराई मापकर तय किया जाता है.

उन्होंने कहा, प्रत्येक पायलट को ऐसी लैंडिंग की संख्या के आधार पर विभिन्न ग्रेडिंग प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, और पिछले दो सालों से इस तरह की ट्रेनिंग प्रभावित है.

भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (रिटायर्ड)—जो खुद भी एक नेवल एविएटर हैं—ने कहा कि अच्छी बात यह है कि भारत के पास एसबीटीएफ है जो पायलटों को अपना उड़ान कौशल बनाए रखने और उसमें सुधार लाने में सक्षम बनाता है.

उन्होंने कहा, ‘गोवा एसबीटीएफ दुनिया में इस तरह की सिर्फ दूसरी फैसिलिटी है, इसके अलावा यह सुविधा क्रीमिया में ही है. अरेस्टर वायर के साथ कैरियर लैंडिंग स्पेस वाली इस फैसिलिटी में स्की-जंपिंग और लैंडिंग का अनुभव एकदम किसी विमानवाहक पोत के जैसा ही रहता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘रोल, पिच और विमानवाहक की मूवमेंट को छोड़कर एसबीटीएफ समान डायनमिक्स ही प्रदान करता है जिससे उड़ान कौशल बनाए रखना संभव हो पाता है. किसी विमानवाहक पर लैंड न कर पाना कोई बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं है और इसे आसानी से पार किया जा सकता है. पायलटों को डेक ऑपरेशन की स्थिति में आने में अधिकतम एक सप्ताह से 10 दिन का समय लगेगा.’


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विक्रमादित्य को रिफिट करने में अभी समय लगेगा

आईएनएस विक्रमादित्य मूलत: एक रूसी विमानवाहक एडमिरल गोर्शकोव है जिसे 1996 में सेवा से बाहर कर दिया गया था. फिर 2004 में इसे भारत की तरफ से खरीदा गया और रिफर्बिश करके 2013 में कमीशन किया गया. सूत्रों ने बताया कि यह ‘जनरल रिफिट’ की प्रक्रिया से गुजर रहा है, जिसमें कोविड महामारी के कारण देरी हुई. बाद में बोर्ड पर लगी आग ने इसके ब्लोअर और फ्यूल पाइप को प्रभावित किया और इसकी वजह से ऑपरेशनल होने में और देरी हो गई.

विमानवाहक में इससे पूर्व 2018 में पांच महीने की मरम्मत प्रक्रिया चली थी, जिस पर 700 करोड़ रुपये से अधिक की लागत आई थी. 2013 के अंत में कमीशन किए जाने के बाद से इसमें दूसरी बार रिफिट करने की प्रक्रिया चल रही है.

यह पूछे जाने पर कि क्या किसी शिप का बार-बार रिफिट प्रक्रिया से गुजरना सामान्य है, सूत्रों ने बताया कि हर शिप के लिए रिफिट साइकल होता है.

भारतीय नौसेना में, कोई भी शिप सामान्य मरम्मत से पहले तीन छोटे रिफिट (मामूली मरम्मत कार्य) से गुजरता है, जिस दौरान बड़े पैमाने पर जांच की जाती है और हर प्रणाली की ओवरहॉलिंग की जाती है.

नॉर्मल रिफिट के दो दौर के बाद शिप मीडियम रिफिट से गुजरता है, जिसमें व्यापक मरम्मत कार्य शामिल हो सकते है. इसमें ड्राई डॉक वर्क भी शामिल है.

हालांकि, सूत्रों ने कहा कि विक्रमादित्य एक पुराना विमान वाहक है और विक्रांत को निकट भविष्य में इस तरह के बड़े मरम्मत कार्यों का सामना नहीं करना पड़ेगा.


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दामों में वृद्धि

विक्रमादित्य के लिए 2004 में तत्कालीन एनडीए सरकार ने 974 मिलियन डॉलर में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो अंततः 2010 में 2.35 बिलियन डॉलर में तय हुआ.

दामों में वृद्धि को लेकर एक स्कैंडल भी खड़ा हो गया जब 2010 में एडमिरल गोर्शकोव सौदे में गहराई से जुड़े नौसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी की कुछ तस्वीरें सामने आईं, जिसमें वह एक अज्ञात महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नजर आ रहे थे. माना गया कि वह किसी रूसी हनी ट्रैप ऑपरेशन के शिकार बने थे.

यही नहीं, भारत में पूर्व रूसी राजदूत व्याचेस्लाव ट्रुबनिकोव ने 2009 में माना था कि मूल्यवृद्धि का एक ‘प्रमुख कारण’ यह भी था कि अनुबंध पर हस्ताक्षर उस समय किए गए थे जब रूसी कंपनी सेवमाश को ‘पैसों की सख्त जरूरत थी और वह किसी भी तरह यह अनुबंध करना चाहती थी, जबकि भारतीय पक्ष एकदम न्यूनतम कीमत पर एक एकदम आधुनिक विमानवाहक पोत खरीदना चाहता था.

ट्रुबनिकोव ने कहा था, ‘अनुबंध पर हस्ताक्षर के बाद (2004 में) दोनों पक्षों को यह बात समझ आई थी कि यह सौदा कितना बड़ा है. लेकिन इसका अहसास होने में थोड़ी देर लगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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