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Friday, 22 November, 2024
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लोंगजू में हुए टकराव से लेकर ‘ऑपरेशन लेगॉर्न’ तक, कैसे खूनी झड़पों ने तैयार किया 1962 के भारत-चीन युद्ध का आधार

युद्ध से पहले हुई मुठभेड़ों की पूरी श्रृंखला के तहत अगस्त-सितंबर 1962 में थगला रिज पर हुआ चीनी कब्ज़ा भी शामिल था, जिसके बाद भारत ने उन्हें वहां से बलपूर्वक, यदि जरूरत पड़ी तो, हटाने के लिए ऑपरेशन लेगॉर्न शुरू किया.

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नई दिल्ली: साल 1959 में, यानि कि भारत-चीन युद्ध से तीन साल पहले, भारत की असम राइफल्स के जवानों की अब चीन के नियंत्रण वाली त्सारी चू घाटी स्थित लोंगजू में चीनी सैनिकों से भिड़ंत हो चुकी थी.

विद्वान लेखक श्रीनाथ राघवन ने अपनी पुस्तक ‘वॉर एंड पीस इन मॉडर्न इंडिया‘ में तर्क दिया है कि इस मुठभेड़ के बाद ही भारत सरकार और तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीन के साथ युद्ध की संभावनाओं को गंभीरता से लेना शुरू किया था. खासकर तब जब लोंगजू वाली झड़प के बाद ही  ‘सीमावर्ती क्षेत्रों’ पर सेना के नियंत्रण में दे दिया गया था.

1962 के भारत-चीन युद्ध का मार्ग उससे पहले के कुछ वर्षों और महीनों में हुई झड़पों और गश्ती के दौरान हुए टकरावों की घटनाओं – 1959 में लोंगजू से लेकर सितंबर 1962 में ढोला पोस्ट तक – से अटा पड़ा है.

ये मुठभेड़ें एक पूर्व चेतावनी थी जो उसी साल 20 अक्टूबर को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में खतरनाक चीनी हमले से पहले आईं थी.

फॉरवर्ड पॉलिसी और ढोला पोस्ट

लोंगजू के बाद, थगला रिज के पास एक और झड़प हुई, जो मुख्य संघर्ष के ठीक पहले हुई थी.

अपनी बदकिस्तम साबित होने वाले ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ के एक हिस्से के रूप में, भारतीय सेना ने 4 जून, 1962 तक ढोला में एक गश्ती चौकी स्थापित की थी. ढोला तत्कालीन नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (एनईएफए)-भूटान-तिब्बत ट्राइजंक्शन के पास थागला रिज के ठीक नीचे स्थित था. .

थगला रिज पर कब्ज़ा करने के भारत के औचित्य के बारे में समझाते हुए, राघवन बताते हैं, ‘1914 के संधि मानचित्र (ट्रीटी मैप) के अनुसार, मैकमोहन रेखा थगला रिज के दक्षिण तक जाती थी. भारतीय पक्ष का मानना था कि यदि सीमा को वाटरशेड के साथ-साथ जाना था, और यदि उस समय थगला रिज की खोज नहीं की गई थी, तो मानचित्र पर किये गए गलत चित्रण के बावजूद यह रेखा थगला रिज पर भी जाती थी.’

1992-93 में रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आधिकारिक भारतीय युद्ध इतिहास के अनुसार, 8 सितंबर को ढोला स्थित भारतीय पोस्ट को चीनियों द्वारा घेर लिया गया था. साल 2014 में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार नेविल मैक्सवेल द्वारा प्रकाशित हेंडरसन ब्रूक्स रिपोर्ट के एक संक्षिप्त संस्करण में बताया गया है कि अगस्त और सितंबर 1962 के बीच ऊपरी थगला रिज पर कब्जा ज़माने के बाद करीब 800 चीनी सैनिकों ने ढोला पोस्ट को घेर लिया था.

युद्ध के इतिहास में आगे कहा गया है, ‘फिर, 10 और 11 सितंबर के बीच, तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन की अध्यक्षता में हुई एक बैठक के दौरान भारत ने चीन को रिज से बाहर निकालने, यदि आवश्यक हो तो बलपूर्वक भी, का फैसला किया.’

यह मंत्रिस्तरीय निर्णय कमान की श्रृंखला से नीचे की ओर बढ़ाया गया. तत्कालीन थल सेना प्रमुख जनरल पी.एन. थापर ने पूर्वी कमान को यह निर्णय सुनाया, जिसने XXXIII कोर को सूचित किया, और अंत में, फोर्थ इन्फैंट्री डिवीजन को इस ‘फैसले को अंजाम देने’ के लिए कहा गया.

चीनियों को थगला रिज से निकाल फेंकने की कार्यवाही को ‘ऑपरेशन लेगॉर्न’ नाम दिया गया था.

जब भारतीय सेना चीनियों से हिसाब बराबर करने की अपनी योजना का समन्वय कर रही थी, तभी 20 सितंबर की रात लगभग 11 बजे, चीनी सैनिकों ने ढोला पोस्ट पर बने भारतीय बंकरों में से एक में हथगोले फेंके, जिसमें तीन भारतीय सैनिक घायल हो गए. इस घटना ने दोनों पक्षों के बीच सशस्त्र संघर्ष शुरआत कर दी और 29 सितंबर, 1962 तक भारतीय और चीनी सैनिकों ने रुक-रुक एक दूसरे पर गोलाबारी की.


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ऑपरेशन लेगॉर्न

7 इन्फैंट्री ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर जॉन दलवी द्वारा तैयार की गई कार्य योजना के अनुसार, भारतीय सेना को 10 अक्टूबर को ‘ऑपरेशन लेगॉर्न’ शुरू करना था.

डी-डे (यानि कि कार्यवाही के लिए निश्चित दिन) पर, 2 राजपूत रेजिमेंट के सैनिक नमका चू नदी के दक्षिणी किनारे पर, युमत्सो ला – एलएसी पर थगला रिज के पश्चिम में स्थित एक पहाड़ी दर्रा – की ओर बढ़ रहे थे और तभी वे एक चीनी बटालियन की तरफ से की गई गोलाबारी की चपेट में आ गए. इसके बाद, त्सेंग-जोंग के आगे तैनात 9 पंजाब के सैनिकों पर भी चीनियों द्वारा मोर्टार की गोलाबारी से हमला किया गया.

युद्ध इतिहास में कहा गया है, ‘जैसे ही गोलबारी थमी, और 0800 बजे के लगभग, 800 चीनी ने पूर्व और उत्तर-पूर्व से त्सेंग-जोंग में तैनात पंजाबियों पर [फिर से] हमला कर दिया. लगभग 45 मिनट तक चली भारी गोलीबारी के बाद, इस हमले को वापस धकेल दिया गया.’

इसके बाद चीनियों ने उत्तर, पूर्व और पश्चिम से 9 पंजाब पर 88 मिमी मोर्टार, हथगोले और स्वचालित हथियारों से हमला करना जारी रखा.

भारत ने उन हमलों में अपने छह जवानों को खो दिया, जबकि 11 अन्य घायल हो गए और पांच जवान लापता हो गए. लगातार होते हमले और अरक्षणीय स्थिति को देखते हुए, वापसी का आदेश दे दिया गया और चीनी सेना ने त्सेंग-जोंग पर कब्जा कर लिया.

हालांकि, यह झड़प 20 अक्टूबर, 1962 को नमका चू के पर चीनी हमले की प्रस्तावना के रूप में काम करने वाली कई सारी झड़पों में से आखिरी नहीं थी.

15 और 16 अक्टूबर की मध्यरात्रि को (अगले दिन भारतीय पक्ष पर गोलियां चलाने से पहले) चीन ने त्संगले में भारतीय ठिकानों की टोह लगाना शुरू कर दिया था. अगले दो दिनों के दौरान चीनियों ने त्संगले में तैनात भारतीय सैनिकों पर बार-बार हथगोले फेंके.

युद्ध की आधिकारिक शुरूआत से एक दिन पहले, 19 अक्टूबर 1962 को, एक भारतीय गश्ती दल चीनियों से भिड़ गया. नतीजतन, जैसा कि युद्ध के इतिहास में उल्लेख किया गया है, ‘19 अक्टूबर तक, इस बात के सुस्पष्ट संकेत मिल गए थे कि एक बड़ा हमला होने ही वाला है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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