scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमडिफेंसCDS रावत चॉपर क्रैश से पता चलता है कि भारत को ऐसी दुर्घटनाओं की जांच के लिए स्वतंत्र टीम चाहिए

CDS रावत चॉपर क्रैश से पता चलता है कि भारत को ऐसी दुर्घटनाओं की जांच के लिए स्वतंत्र टीम चाहिए

साल 2021 भारत के सैन्य उड्डयन के इतिहास में सबसे ख़तरनाक वर्षों में से एक था, जिसमें 11 दुर्घटनाएं हुईं और इनमें 22 लोगों की मौतें हुईं है.

Text Size:

हाल के दिनों में किसी सैन्य विमान दुर्घटना से जुड़ी हुई शायद सबसे तेज कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के तहत भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत सहित 13 अन्य सेनाकर्मियों की 8 दिसंबर को हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हुई मौत के संदर्भ में घटना की जांच करने वाली एक तीनों सेनाओं की संयुक्त जांच (ट्राई-सर्विस प्रोब) पूरी हो गई है.

मगर भारतीय वायु सेना और रक्षा मंत्रालय अभी भी इस जांच के निष्कर्षों पर चुप्पी साधे हुए हैं.

इससे पहले मैंने यह खबर दी थी कि कैसे इस दुर्घटना के लिए ‘अचानक बादल छाने’ के कारण कंट्रोल्ड फ्लाइट इन टेर्रिन (सीएफआईटी) को जिम्मेदार ठहराया गया है.

आदर्श रूप से तो सरकार को इस जांच के निष्कर्षों और प्रशिक्षण कमान के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह, जिन्होंने इस ट्राई-सर्विस (तीनों सेनाओं की संयुक्त) जांच का नेतृत्व किया था, द्वारा की गई सिफारिशों पर एक बयान के साथ आगे आना चाहिए था.

पर आखिर क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि यह कोई साधारण दुर्घटना नहीं थी. इस दुर्घटना में देश के नवीनतम और तकनीकी रूप से उन्नत एमआई 17 वी5 हेलिकॉप्टरों में से एक शामिल था और इसने 13 सेनाकर्मियों और जनरल रावत की पत्नी की जान ले ली थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

किसी सैन्य विमान दुर्घटना के संदर्भ में की गई यह पहली ट्राई-सर्विस जांच है. यह उस सामान्य प्रोटोकॉल से इतर एक ताज़ा बदलाव है जिसके तहत सभी दुर्घटनाओं की जांच उसी सेवा के अधिकारियों द्वारा की जाती है.


यह भी पढ़ें: अचानक बादल आने से गिरा था CDS का चॉपर, रिपोर्ट में ख़ुलासा, तकनीकी ख़ामी या तोड़फोड़ से इनकार


क्या कहते हैं आंकड़े?

यह इस साल होने वाला कोई इकलौता हादसा नहीं था. 11 दुर्घटनाओं, जिनके परिणामस्वरूप 22 मौतें हुईं थीं, के साथ साल 2021 भारत के सैन्य उड्डयन के लिए सबसे ख़तरनाक साबित हुआ. 2021 में हुई कुल 22 मौतों में से 10 पायलटों की थीं.

वैसे तो 16 दुर्घटनाओं के साथ साल 2019 भी कुछ खास अलग नहीं था. इसमें से एक एमआई 17 की वह दुर्घटना भी शामिल है जिसे बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान वायु सेना की जवाबी कार्रवाई के दौरान एक दोस्ताना हमले में मार गिराया गया था और साथ ही उसी दिन हुई एक डॉगफाइट (लड़ाकू विमानों की आपसी लड़ाई) में एक मिग-21 बाइसन का भी नुकसान हुआ था.

इस तरह हमने शांतिकाल में सैन्य विमान दुर्घटनाओं के तहत बहुत से लोगों की जान गंवाई है.

यह सच है की विमानों कि उड़ान के साथ कई जटिलताएं सामने आती हैं और दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं. लेकिन शांतिकाल में दुर्घटनाओं की इस कदर बाढ़ आना चिंता का विषय है.

1947 के बाद से, केवल तीन साल – 1977, 2017, और 2020 – ऐसे रहें है जब भारतीय सैन्य दुर्घटनाएं इकहरे अंकों में सीमित रहीं.

भारतीय सैन्य विमान दुर्घटनाओं पर bharat-rakshak.com द्वारा दिए गए आंकड़े से पता चलता है कि पिछले दशक में ही भारतीय वायु सेना में 153 विमान दुर्घटनाएं हुई थीं. मैं यहां अपनी जान गंवाने वाले उन लोगों की कुल संख्या, जो अपने-आप में चौंका देने वाली है, भी नहीं बता रहा हूं.

सैन्य उड्डयन अधिकारी दुर्घटना दर (प्रति 10,000 घंटे उड़ान के बाद होने वाली दुर्घटनाएं) का हवाला देते हुए तर्क देते हैं कि ये दुर्घटनाएं अपेक्षित स्तरों के भीतर हीं हैं. लेकिन इन दुर्घटनाओं के आंकड़े, संसद में मांगे जाने के अलावा, कभी भी आसानी से उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं. इसलिए विभिन्न सर्विसेज से अध्ययन और तुलना करने के लिए कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

इस बारे में उपलब्ध अंतिम आंकड़ा 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा उपलब्ध कराया गया है. उन्होंने संसद में कहा था कि आईएएफ में प्रति 10,000 उड़ान घंटे में दुर्घटना की दर 1999 के 1.04 से घटकर 2019 में 0.33 हो गई थी. हालांकि, एयर मार्शल अनिल चोपड़ा (सेवानिवृत्त), जो दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज (सीएपीएस) के प्रमुख हैं, के अनुसार, आईएएफ ने साल 2012 में 0.22 की सबसे कम दुर्घटना दर हासिल की थी.

ये आंकड़े ‘संख्याओं’ पर आधारित होते हैं और इन ‘संख्याओं’ को चुनिंदा रूप से पेश किया जा सकता है. जुलाई 2019 में रक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, उस वर्ष तब तक केवल 1 ‘हवाई दुर्घटना हुई थी. लेकिन भारत रक्षक वेबसाइट द्वारा जुटाए गए आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उस साल इस अवधि में 11 दुर्घटनाएं हुई थीं. अगर हम उस साल हुए मिग 21 और एमआई 17 को मार गिराए जाने के वाकये को हटा भी दें, तो भी यह आंकड़ा मंत्रालय के दावे से 9 गुना ज्यादा होगा.

ऐसा इसलिए है क्योंकि आधिकारिक आंकड़े रखने वालों के लिए ‘दुर्घटना’ की परिभाषा अलग होगी.


यह भी पढ़ेंः अचानक बादल आने से गिरा था CDS का चॉपर, रिपोर्ट में ख़ुलासा, तकनीकी ख़ामी या तोड़फोड़ की संभावना से इनकार


आगे का रास्ता…

भारत को सैन्य एविएटर्स (विमान-चालकों) के एक स्वतंत्र विमान दुर्घटना जांच दल की जरूरत है, जिसमें सेवानिवृत्त और सेवारत दोनों सदस्य शामिल हों और जो सीधे सीडीएस, साथ-ही-साथ रक्षा मंत्री को भी, के प्रति जवाबदेह हों. इस टीम को किसी एक व्यक्ति के नेतृत्व की बजाए एक बेंच की तरह काम करना चाहिए. इससे सभी सदस्य पारदर्शी तरीके से अपनी राय व्यक्त कर सकेंगे.

साथ ही किसी भी जांच को दुर्घटना की जिम्मेदारी तय करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. यदि कोई दुर्घटना पायलट त्रुटि के कारण हुई है, तो इसे जटिल शब्दों में व्यक्त के बजाय स्पष्ट शब्दों में इसका उल्लेख किया जाना चाहिए. यदि पायलट से यह गलती अनजाने में हुई है और उसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को देय पूर्ण मौद्रिक लाभ मिलना चाहिए भले की गलती उसी की हो. अधिकारी अक्सर निजी तौर पर यह तर्क देते हैं कि पायलट की मृत्यु के मामले में उसे दोष देने से बचा जाता है – पहले तो इसलिए क्योंकि वह अपनी कार्रवाई का बचाव करने के लिए जीवित नहीं होता और दूसरे इसलिए, क्योंकि इसके कारण उनके परिवार को देय लाभ नहीं भी मिल सकता है.

यदि कोई दुर्घटना रखरखाव में कमी के कारण होती है, तो इसे भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया जाना चाहिए और न केवल जूनियर रैंकिंग ऑफिसर (कनिष्ठ वरीयता वाले अधिकारी) बल्कि प्रभारी व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए.

प्रत्येक दुर्घटना की जांच में तेजी लाई जानी चाहिए और सीडीएस से जुड़े मामले की तरह ही उन्हें भी पूरी गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

सैन्य उड्डयन के उच्च अधिकारियों द्वारा दिया जाने वाला एक और तर्क यह है कि पायलट त्रुटि को परिभाषित करने में कठिनाई होती है. यह तर्क दिया जाता है कि, कभी-कभी, इसका कारण एक छोटी सी रखरखाव वाली समस्या हो सकती है जो एक बड़ी समस्या में बदल जाती है और पायलट इसके आवश्यक बचावी उपाय (काउंटरमिजर्श) नहीं कर पाता है.

दुर्घटना की जांच करने वालों के लिए, सब कुछ एकदम से स्पष्ट (ब्लैक एंड वाइट) नहीं भी हो सकता है और इसमें बहुत से संदेहास्पद बिंदु (ग्रे-एरिया) भी हो सकते हैं.

ऑडिट वाला रास्ता?

साल 2018 में, अमेरिकी वायु सेना ने विमान दुर्घटनाओं और अन्य विमानन सम्बन्धी दुर्घटनाओं की दर को ‘खतरनाक’ करार दिए जाने के बाद इसकी पूरी समीक्षा की थी. इसके परिणामस्वरूप 2019 में इनकी संख्या कम हो गई थी.

एयर फ़ोर्स टाइम्स ने इस मामले में खबर दी थी कि इस ‘समीक्षा में उड्डयन सुरक्षा के लिए कई संभावित जोखिमों पर ध्यान दिया गया है, जिनमें एक उच्च संचालन गति (हाई ऑपरेशन्स टेम्पो), उपलब्ध विमानों की कमी, अनुभवहीन रखरखावकर्मी, और एक ऐसी संस्कृति जो वायुसैनिकों को हमेशा अपने मिशन को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित करती है, शामिल हैं.’

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे अमेरिकी वायु सेना अपनी दुर्घटनाओं को तीन श्रेणियों – क्लास ए, बी और सी – में वर्गीकृत करती है.

क्लास ए वे घटनाएं हैं जिनके परिणामस्वरूप किसी की मृत्यु या स्थायी विकलांगता होती हो या कम-से-कम $ 2 मिलियन का नुकसान होता हो. क्लास बी में वे दुर्घटनायें शामिल हैं जो स्थायी रूप से आंशिक विकलांगता, तीन या अधिक कर्मियों के अस्पताल में भर्ती होने, या $ 500,000 और $ 2 मिलियन के बीच की क्षति का कारण बनती हैं. क्लास सी में ऐसी छोटी घटनाएं शामिल हैं जो $50,000 से $500,000 की क्षति या उन चोटों का कारण बनते हैं जिनसे काम के दिनों की हानि होती हो.

यही वह समय है कि भारतीय सैन्य उड्डयन अपने भीतर झांके और मजबूत निदानात्मक उपाय करे. क्योंकि युद्ध में सैनिकों की जान गंवाना तो स्वीकार्य हो सकता है, लेकिन शांतिकाल में इसे कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः पाकिस्तान को मिल रहे चीनी J-10Cs, लेकिन इजरायली कनेक्शन वाला यह विमान राफेल के आगे कहीं नहीं ठहरता


 

share & View comments