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Thursday, 25 April, 2024
होमसमाज-संस्कृतिउर्दू प्रेस ने कहा, राष्ट्रपति से नई संसद का उद्घाटन न करवाना ‘भारतीय लोकतंत्र का अपमान’

उर्दू प्रेस ने कहा, राष्ट्रपति से नई संसद का उद्घाटन न करवाना ‘भारतीय लोकतंत्र का अपमान’

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: रविवार यानी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन और 20 विपक्षी दलों द्वारा इसका बहिष्कार इस हफ्ते के अधिकांश समय उर्दू अखबारों में पहले पन्ने पर छाया रहा.

विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भवन का उद्घाटन करने के फैसले पर आपत्ति जताई है.

जबकि दो संपादकीय मोदी सरकार के फैसले की आलोचना कर रहे थे, एक ने यह कहने के लिए अधिक उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया कि मोदी सरकार और विपक्ष दोनों को “लचीला” होना चाहिए क्योंकि यह भारत के लोकतंत्र की चिंता का सवाल है.

इस हफ्ते उर्दू प्रेस ने जिन अन्य विषयों को प्रमुखता से कवर किया, उनमें भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) का 2,000 रुपये के करेंसी नोटों को चलन से वापस लेने का निर्णय, ‘जी-20 टूरिज़्म ग्रुप की तीसरी बैठक’ थी जो 22 और 24 मई के बीच श्रीनगर में आयोजित की गई थी. इसके अलावा ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के पिछले साल की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम शामिल रहे.

दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोरने वाली सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.

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नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर हंगामा

तीनों उर्दू अखबारों- इंकलाब, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा और सियासत ने विपक्ष द्वारा उद्घाटन के बहिष्कार की सूचना दी.

25 मई को इंकलाब के संपादकीय में इस मुद्दे के प्रकाशिकी को देखा गया. संपादकीय में कहा गया है कि 2020 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, एक दलित नेता को नई संसद की आधारशिला रखने का अवसर नहीं दिया गया था.

संपादकीय में कहा गया है कि यही बात भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और वर्तमान प्रमुख द्रौपदी मुर्मु के साथ भी दोहराई गई.

25 मई को सहारा ने कहा कि यह कदम भारत के लोकतंत्र का अपमान है. संपादकीय में कहा गया है कि संसद केवल ईंट और पत्थरों से बनी इमारत नहीं है. यह भारतीय लोकतंत्र और उसके संवैधानिक मूल्यों का अवतार है. संपादकीय में कहा गया है कि इस तरह का उद्घाटन विवादों से मुक्त होना चाहिए. संपादकीय में ये भी कहा गया है कि फिर भी नई इमारत उनके साथ तब से व्याप्त है जब 2019 में पहली बार इसकी घोषणा की गई थी.

दूसरी ओर, सियासत के संपादकीय में कहा गया है कि कम से कम जहां तक संसद भवन का संबंध है, यह आवश्यक है कि सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दोनों को अधिक “लचीला” दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. संपादकीय में कहा गया है कि यह संसद की पवित्रता का सवाल है और इसलिए किसी भी मतभेद को आम सहमति से सुलझाया जाना चाहिए.

26 मई को अखबारों ने खबर दी कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें लोकसभा सचिवालय और केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि भारत के राष्ट्रपति नए संसद भवन का उद्घाटन करें. हालांकि, याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया है.


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2,000 रुपये के नोट बंद होना

20 मई को उर्दू के तीनों अखबारों ने आरबीआई की इस घोषणा को प्रमुखता से छापा कि वह 2,000 रुपये के नोटों को चलन से हटा रहा है. उच्च मूल्यवर्ग का ये नोट 2016 में पेश किया गया था, जब मोदी सरकार ने दो प्रमुख उच्च मूल्य वाली मुद्राओं – 500 रुपये और 1,000 रुपये को वापस ले लिया था.

अपनी घोषणा में आरबीआई ने स्पष्ट किया कि हालांकि, वह 2,000 रुपये के नोट को वापस ले रहा है, लेकिन यह एक लीगल टेंडर रहेंगे और 30 सितंबर, 2023 तक बैंकों में नोट जमा या बदले जा सकते हैं.

हालांकि, स्पष्टीकरण के बावजूद इससे बैंकों ने लोगों के मन में कुछ घबराहट और भ्रम पैदा कर दिया, जिसे समाचार पत्रों ने दिखाया था.

24 मई को एक संपादकीय में इंकलाब ने कहा कि 2018-19 में इसकी छपाई बंद होने के बाद से नोट को वापस लेने की कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं थी. संपादकीय में कहा गया है कि करेंसी नोट न तो बड़ी संख्या में उपलब्ध थे और न ही उन्हें जनता ने स्वीकार किया था, ऐसी परिस्थितियों में अगर आरबीआई ने कुछ नहीं किया होता, तो करेंसी नोट अंततः अपने आप चलन से बाहर हो जाते.

सहारा के एक संपादकीय में कहा गया है कि 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को प्रचलन से वापस लेने के अपनी सरकार के फैसले की घोषणा करते हुए, अपने देशवासियों से कहा था कि उन्हें “काले धन” को समाप्त करने के लिए 50 दिन का समय दें.

संपादकीय में कहा गया है कि शुरुआत में कुछ चुनौतियां आने की बात स्वीकार करते हुए मोदी ने कहा कि अगर 50 दिनों के बाद भी जनता को परेशानी होती रही तो वह देश की जनता द्वारा तय की गई किसी भी सजा का सामना करने को तैयार हैं.

अब यह देखने का समय है कि प्रधानमंत्री इसे हल करने में कितना समय लेते हैं.

शिखर सम्मेलन और बैठकें

तीनों अखबारों ने हिरोशिमा, जापान में जी-7 शिखर सम्मेलन और श्रीनगर में डल झील के किनारे आयोजित जी-20 पर्यटन कार्य समूह की बैठक दोनों की खबरें दीं.

मोदी ने अपने जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा द्वारा आमंत्रित किए जाने के बाद जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लिया.

अखबारों ने प्रमुखता से मोदी की यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के साथ बैठक, पापुआ न्यू गिनी की उनकी यात्रा और इसके पीएम, जेम्स मारापे के साथ बातचीत और उनकी ऑस्ट्रेलिया यात्रा को कवर किया.

ज्ञानवापी और सिविल सेवा परीक्षा परिणाम

उर्दू अखबारों ने सिविल सेवा परीक्षाओं के परिणाम और चल रहे ज्ञानवापी विवाद को प्रमुखता से कवर किया.

23 मई को यूपीएससी ने पिछले साल की सिविल सेवा परीक्षा के लिए अपने अंतिम परिणाम घोषित किए. अखबारों ने बताया कि शीर्ष चार रैंक पर महिला उम्मीदवार रही और 32 मुसलमानों ने परीक्षा पास की थी.

साथ ही उसी दिन अखबारों ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने विवादित मस्जिद के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के सर्वेक्षण की मांग वाली एक याचिका का विरोध किया था.

इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा पिछले साल परिसर में पाए गए कथित शिवलिंग जैसी संरचना का सर्वेक्षण करने के लिए एएसआई को आदेश देने के बाद याचिका दायर की गई थी.

24 मई को इंकलाब और सहारा ने विवाद से जुड़े सात मामलों को एक साथ करने के वाराणसी कोर्ट के फैसले की खबर दी.

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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