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Sunday, 28 April, 2024
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उर्दू प्रेस ने समलैंगिक विवाह पर SC के फैसले को सराहा, कहा— ‘अप्राकृतिक प्रथा’ को ‘इलाज़’ की जरूरत

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस सप्ताह उर्दू प्रेस के संपादकीय में छाया रहा. उर्दू प्रेस ने कहा कि समलैंगिक संबंधों की “अप्राकृतिक प्रथा” का इलाज होना चाहिए. 

इस सप्ताह की शुरुआत में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने कहा कि ‘शादी करने का अधिकार’ मौलिक अधिकार नहीं है, जबकि समान-लिंग वाले जोड़ों को शादी की अनुमति देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करने की याचिका को खारिज कर दिया.

रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के 18 अक्टूबर के संपादकीय में कहा गया कि ऐसे समलैंगिक संबंधों को कानूनी संरक्षण देने के बजाय, “ऐसी बीमारियों से पीड़ित” लोगों को इलाज मुहैया कराने की ज़रूरत है. संपादकीय के अनुसार, ऐसा इसलिए है ताकि “ऐसे बीमार लोग अपनी अप्राकृतिक प्रवृत्तियों” पर काबू पा सकें और “मानव विकास में योगदान देने में मदद कर सकें”.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले की सुनवाई के लिए जगह दिए जाने के बावजूद, हमास के हमले के बाद गाजा पर इज़रायल की बमबारी ने पूरे हफ्ते उर्दू अखबारों को गुलजार रखा. तीनों प्रमुख उर्दू अखबारों – सहारा, इंकलाब और सियासत – के संपादकीय में न केवल इज़रायल की आलोचना की गई, बल्कि इसको लेकर “दुनिया की चुप्पी” पर भी सवाल उठाया गया.

इसके अलावा तीनों अखबारों के पहले पन्ने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 12 मामलों में सुरिंदर कोली और 2005-06 के निठारी हत्याकांड के दो मामलों में मोनिंदर सिंह पंढेर को बरी करने का फैसला था.

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यहां उन सभी खबरों का सारांश दिया गया है जो इस सप्ताह उर्दू प्रेस के पहले पन्ने और संपादकीय में शामिल हुईं.

इज़रायल और गाजा

7 अक्टूबर को इज़राइल द्वारा हमास के खिलाफ हमले शुरू करने के बाद से गाजा में 3,500 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं. उर्दू प्रेस ने चल रहे संघर्ष को प्रमुखता से स्थान दी जिसमें लेबनान और सीरिया में इज़रायल के हमले भी शामिल थे.

समाचार पत्रों ने हमास के खिलाफ युद्ध में इजरायल की मदद के लिए अमेरिकी सैनिकों की तैनाती के साथ-साथ समर्थन के प्रदर्शन के रूप में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की इज़रायल यात्रा की भी खबर दी. 

14 अक्टूबर को अपने संपादकीय में, सियासत ने “पक्षपातपूर्ण” कवरेज के लिए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की निंदा की. संपादकीय में कहा गया कि फिलिस्तीन की भूमि फिलिस्तीनी लोगों की है और फिर भी दशकों से उनकी उचित मांग को कुचल दिया गया है. इसमें कहा गया है कि इसमें हस्तक्षेप करने और इस पर रोक लगाने के बजाय, दुनिया और मीडिया इसका “अधिग्रहणकर्ता और उत्पीड़क” इज़रायल का समर्थन करना जारी रखा. 

15 अक्टूबर के संपादकीय में, सहारा ने कहा कि विश्व नेता जो यूक्रेन पर रूस के आक्रमण में मानवता की दुहाई देते रहे, अब इज़रायल को “प्रोत्साहित” कर रहे हैं.

17 अक्टूबर को तीनों उर्दू अखबारों ने खबर दी कि जारी संघर्ष के बीच अमेरिका के इलिनोइस में 71 साल के एक व्यक्ति ने 6 साल के फिलिस्तीनी बच्चे की चाकू मारकर हत्या कर दी. ह्यूमन राइट्स वॉच का यह आरोप भी बताया गया कि इज़रायली रक्षा बल अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून (IHL) का उल्लंघन करते हुए अपने हमलों में सफेद फास्फोरस वाले हथियारों का उपयोग कर रहे थे.


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19 अक्टूबर को, तीनों अखबारों ने बताया कि गाजा के अल-अहली अरबी बैपटिस्ट अस्पताल में हुए विस्फोट के बाद 500 से अधिक लोग मारे गए. इज़रायल की सेना का दावा है कि इस विस्फोट में उसकी कोई भागीदारी नहीं थी और इसके लिए आतंकवादी समूह फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद (PIJ) द्वारा भेजे छोड़े गए एक रॉकेट को जिम्मेदार ठहराया.

उसी दिन अपने संपादकीय में, सियासत ने हमले की निंदा की और दुनिया पर गाजा मामले में मिलीभगत करने का आरोप लगाया. ‘इज़रायल की क्रूरता, दुनिया की चुप्पी’ शीर्षक वाले संपादकीय में इस्लामिक देशों से भी कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है और कहा गया है कि उन्हें केवल बैठकें आयोजित करने या इज़रायल से इसे रोकने की अपील करने के अलावा और भी कुछ करने की जरूरत होगी.

संपादकीय में कहा गया, “उन्हें इस कार्रवाई को लेकर साथ आना चाहिए और हमें इज़रायल पर दबाव बनाना चाहिए. हमें इस अत्याचार को रोकना चाहिए.”

20 अक्टूबर को, इंकलाब ने अस्पताल में हुए विस्फोट को “कायरतापूर्ण और शर्मनाक कृत्य” बताकर इसकी निंदा की और ऐसे युद्ध अपराधों की जांच के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आयोग का आह्वान किया.

संपादकीय में कहा गया, “जिस तरह निर्दोषों को मारना वीरतापूर्ण नहीं है, उसी तरह एक सुरक्षित स्कूल या अस्पताल पर बमबारी करना भी वीरतापूर्ण नहीं है. दुनिया का कोई भी कानून इसकी इजाजत नहीं देता. इसलिए, कानून के शासन में विश्वास रखने वाले दुनिया के सभी देशों का यह कर्तव्य है कि वे इस अमानवीय आक्रामकता की कड़ी निंदा करें.”

अर्थव्यवस्था

19 अक्टूबर को सहारा के संपादकीय में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति और खुदरा महंगाई पर टिप्पणी की गई. इसमें कहा गया है कि हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल के महीनों में ईंधन की कीमतों में कटौती और चावल और चीनी निर्यात पर प्रतिबंध लगाने सहित उपायों के साथ राजकोषीय नीति में सुधार करने की कोशिश की है, लेकिन यह अभी भी मुद्रास्फीति को कम करने में असमर्थ रही है.

संपादकीय में सरकार के मुद्रास्फीति आंकड़ों पर भी सवाल उठाए गए.

सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति अगस्त के 6.83 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 5.02 प्रतिशत हो गई.

संपादकीय में कहा गया है, “कई हालिया अंतरराष्ट्रीय अनुमानों के मुताबिक, बढ़ती महंगाई और बिगड़ती वित्तीय स्थिति के कारण इस साल भारत में मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय और NSO के आंकड़ों पर विश्वास करना मुश्किल है. बाजार में मुद्रास्फीति की स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी और झूठ लगता है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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