नई दिल्ली: पिछले हफ्ते मुज़फ़्फ़रनगर के एक स्कूल में थप्पड़ मारने की घटना को उर्दू प्रेस में प्रमुखता से कवरेज मिली. संपादकीय में इसकी निंदा करते हुए इसे योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार की “मुस्लिम विरोधी गतिविधियों” का परिणाम बताया गया.
मुज़फ़्फ़रनगर के एक निजी स्कूल में एक शिक्षिका द्वारा अपने छात्रों को एक मुस्लिम लड़के को बारी-बारी से थप्पड़ मारने के लिए कहने वाला एक वीडियो पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ. इसकी देश भर में निंदा की गई. शिक्षिका, जिसे कथित तौर पर वीडियो में सांप्रदायिक टिप्पणी करते हुए सुना जा सकता है, पर इसको लेकर मामला दर्ज किया गया है.
27 अगस्त को ‘स्कूल में नफ़रत का बाज़ार’ शीर्षक से एक संपादकीय में इंकलाब ने घटना की जांच के आदेश पर कई सवाल उठाए. संपादकीय में इस बात पर भी आश्चर्य जताया गया कि शिक्षिका को कब गिरफ्तार किया जाएगा, क्योंकि वीडियो सामने आने के तुरंत बाद घटना की जांच करने की बात कही गई थी.
संपादकीय में कहा गया, “संदेह के आधार पर बुलडोजर चलाने वाली सरकार को तुरंत उस प्रधानाध्यापिका के खिलाफ मामला दर्ज करना चाहिए जिसका वीडियो सबूत के तौर पर सामने आया है.” यह उस आरोप का जिक्र कर रहा था जिस पर योगी आदित्यनाथ सरकार अक्सर आलोचना का सामना करती है कि वह न्याय देने के साधन के रूप में बुलडोजर का उपयोग करती है, खासकर दंगों के मामलों में.
जिन अन्य विषयों को काफी प्रमुखता से कवर किया गया उनमें भारत में आगामी G20 शिखर सम्मेलन, मुंबई में दो दिवसीय ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक और अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई शामिल हैं.
यहां उन सभी खबरों का सारांश है जो इस सप्ताह उर्दू प्रेस में पहले पन्ने की सुर्खियां और संपादकीय बनीं.
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स्कूल में थप्पड़ मारने की घटना
मुज़फ़्फ़रनगर की घटना को तीनों उर्दू अख़बारों- सियासत, रोज़नामा और इंकलाब में प्रमुखता से कवर किया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शिक्षिका ने बाकी के छात्रों को सिर्फ इसलिए मुस्लिम बच्चे को मारने के लिए कहा क्योंकि वह पहाड़ा नहीं सीख पाया था. थप्पड़ मारने वालों में उसके कक्षा के सहपाठी ही शामिल थे.
शिक्षिका तृप्ता त्यागी जिस स्कूल में पढ़ाती है वह उनके पति रवींद्र त्यागी का ही है.
27 अगस्त को एक संपादकीय में, सियासत में लिखा गया कि आदित्यनाथ सरकार “अपनी मुस्लिम विरोधी गतिविधियों के लिए पूरे देश में जानी जाती है”. इसमें लिखा गया कि यह सच है कि सीएम अपने भड़काऊ भाषणों के माध्यम से मुसलमानों को निशाना बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. मुजफ्फरनगर की घटना इसी सोच का परिणाम हो सकती है.
संपादकीय में कहा गया, “यह कट्टरपंथी कृत्य सिर्फ एक मुस्लिम लड़के के खिलाफ नहीं बल्कि देश के हितों के खिलाफ है.”
28 अगस्त के संपादकीय में सहारा ने कहा कि शिक्षिका ने इसे “मामूली” घटना कहा था, लेकिन ऐसा नहीं था और इस तरह के “घृणा” एजेंडे वाले शिक्षकों के खिलाफ और ऐसे मामलों में कार्रवाई करने से इनकार करने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.
गैस की कीमतें और ‘इंडिया’ गठबंधन
31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की दो दिवसीय बैठक को उर्दू प्रेस में प्रमुखता से कवरेज मिला. समाचार पत्रों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में 200 रुपये की कटौती के फैसले को भी कवर किया.
30 अगस्त को अपने संपादकीय में, सियासत ने केंद्र सरकार के इस कदम का मज़ाक उड़ाया. संपादकीय में लिखा गया कि यह ऐसे समय में आया है जब प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. ऐसे समय में कीमतों में कटौती करना जब खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ रही थीं, “लोगों को बस टिकट देना लेकिन उनके बटुए गायब करना” जैसा है. संपादकीय में प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी के चुनाव में 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने के वादे को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया.
अखबारों ने अडाणी समूह से जुड़े ताजा विवाद पर विपक्षी नेता राहुल गांधी की टिप्पणी को भी कवर किया.
संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) के अनुसार- जो छह महाद्वीपों में काम करती है और खोजी पत्रकारों का एक वैश्विक नेटवर्क है- लाखों डॉलर शेल कंपनियों के माध्यम से अडाणी समूह के सार्वजनिक शेयरों में डाले गए थे.
मुंबई में विपक्ष की बैठक से इतर एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसको लेकर संसदीय जांच की मांग दोहराई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया. उन्होंने पहले यह मांग जनवरी में उठाई थी, जब न्यूयॉर्क स्थित निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट में कंपनी पर “स्टॉक हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी” का आरोप लगाया गया था.
हालांकि, अडाणी समूह ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है.
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जम्मू-कश्मीर और धारा 370
अखबारों ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान अनुच्छेद 370 को रद्द करने के केंद्र सरकार के अगस्त 2019 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई को भी प्रमुखता से कवर किया.
30 अगस्त को अपने संपादकीय में, सहारा ने लिखा कि अब यह मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर कई प्रमुख सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य है, जिसमें यह भी शामिल है कि जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य बनाने में इतना समय क्यों लग रहा है और वहां चुनाव कब होंगे.
संपादकीय में लिखा गया, “लोकतंत्र की सुरक्षा और अस्तित्व चुनाव पर निर्भर करता है.”
G20 शिखर सम्मेलन
8 से 10 सितंबर तक दिल्ली में होने वाले G20 शिखर सम्मेलन की चल रही तैयारियों को भी पहले पन्ने पर जगह मिली है.
29 अगस्त को एक संपादकीय में, सहारा ने शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होने के रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के फैसले को “एक बुद्धिमान कदम” बताया.
पुतिन ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि वह शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे बल्कि अपने विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को भेजेंगे. यह घोषणा तब आई है जब रूस यूक्रेन के साथ लगातार संघर्ष में उलझा हुआ है.
सहारा के संपादकीय में भारत-रूस संबंधों को “विश्वसनीय” बताते हुए कहा गया है कि पुतिन के शिखर सम्मेलन में भाग न लेने के फैसले को रिश्ते में बदलाव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इस बात के रूप में देखा जाना चाहिए कि दोनों देश दुनिया की दुर्दशा से अवगत हैं.
30 अगस्त को इंकलाब के संपादकीय में BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) समूह में सऊदी अरब, ईरान, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात, अर्जेंटीना और मिस्र को शामिल करने को लेकर चर्चा की गई.
संपादकीय के अनुसार, BRICS का विस्तार “नई और शक्तिशाली संभावनाएं” पैदा करेगा. इसमें कहा गया है कि विस्तारित संगठन अब दुनिया की 21 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करेगा और इसमें 4 ट्रिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा होगी.
(संपादन: ऋषभ राज)
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