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Monday, 6 May, 2024
होमसमाज-संस्कृति‘विश्वास का माहौल बहाल हो गया है’ — कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस समारोह की उर्दू प्रेस ने की सराहना

‘विश्वास का माहौल बहाल हो गया है’ — कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस समारोह की उर्दू प्रेस ने की सराहना

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

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नई दिल्ली: उर्दू अखबारों ने इस हफ्ते भारत के स्वतंत्रता दिवस समारोहों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनमें से एक संपादकीय में विशेष रूप से कश्मीर में समारोहों की प्रशंसा करते हुए कहा गया कि “कश्मीर और कश्मीरियों में बदलाव वर्षों की कड़ी मेहनत और प्रयासों के बाद आया है”.

भारत के 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के एक दिन बाद 16 अगस्त को अपने संपादकीय में — रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने कहा कि कश्मीर में समारोह यह दर्शाता है कि प्रशासन और जनता के बीच विश्वास का माहौल बहाल हो गया है.

संपादकीय में कहा गया, “कश्मीर और कश्मीरियों में इस बदलाव को बनाए रखने के लिए आम कश्मीरियों के विकास को सुनिश्चित करने और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए और अधिक कदम उठाने और उनके साथ सहानुभूति रखने की ज़रूरत है.”

अन्य मुद्दे जिन्हें उर्दू अखबारों ने बड़े पैमाने पर कवर किया उनमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार की अपने भतीजे और विद्रोही नेता अजीत के साथ “गुप्त” बैठक, पिछले सप्ताह अनिश्चित काल के लिए स्थगित होने से पहले संसद के मानसून सत्र की गतिविधियां और इस साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक दलों की तैयारी शामिल थी.

दिप्रिंट आपके लिए इस हफ्ते उर्दू प्रेस में सुर्खियां बटोरने वाली सभी खबरों का एक राउंड-अप लेकर आया है.

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स्वतंत्रता दिवस

तीनों उर्दू अखबारों — सहारा, इंकलाब और सियासत ने स्वतंत्रता दिवस समारोह को प्रमुखता से कवर किया, जिसमें लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण केंद्र बिंदु रहा.

अखबारों ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की मोदी सरकार की आलोचना को भी कवर किया. कांग्रेस मुख्यालय पर भारतीय तिरंगा फहराने के बाद अपने भाषण में खरगे ने दावा किया कि सरकार “लोकतंत्र, संविधान और परंपराओं को खतरे में डाल रही है” और विपक्ष की आवाज़ को “दबाया जा रहा है”.

16 अगस्त को एक संपादकीय में सियासत ने कहा कि प्रधानमंत्री ने देश में दो करोड़ महिलाओं को “लखपति” बनाने का संकल्प लिया था, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वह देश में “महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अत्याचार और अन्याय” को रोकने की योजना कैसे बना रहे हैं.

इसमें कहा गया है कि भारत एक प्रमुख अर्थव्यवस्था बन रहा है और फिर भी, देश में महिलाएं “अपनी इज़्ज़त” की रक्षा को लेकर चिंतित हैं, जबकि जो लोग “उनके साथ खेलते हैं” — महिलाओं के यौन उत्पीड़न का संदर्भ — खुलेआम घूमते हैं.


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मानसून सत्र

संसद के आखिरी दिन चल रही हलचल ने महत्वपूर्ण स्थान ले लिया, अखबारों ने केंद्र सरकार द्वारा तीन महत्वपूर्ण विधेयकों –‘भारतीय न्याय संहिता 2023’, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’, ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’— को पेश करने पर विशेष कवरेज दी.

विधेयक, जो भारतीय दंड संहिता, 1973, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करना चाहते हैं, को जांच के लिए एक स्थायी समिति को भेजा गया था.

13 अगस्त को एक संपादकीय में सहारा ने कहा कि पिछले सत्रों की तरह, इस मानसून सत्र में भी सरकार का एजेंडा हावी रहा, जबकि विपक्ष अपने मुद्दे को आगे बढ़ाने में असफल रहा. संपादकीय में कहा गया है कि प्रत्येक ने दूसरे पर कीमती संसदीय घंटे बर्बाद करने का आरोप लगाया है, लेकिन कोई भी इस बारे में बात नहीं करना चाहता है कि सत्र से जनता को क्या मिला और क्या नहीं मिला.

उसी दिन अपने संपादकीय में इंकलाब ने भारत की राजनीति के अत्यधिक ध्रुवीकरण के बारे में लिखा. इसने कहा कि अतीत में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच कुछ हद तक सामंजस्य था जो उनके राजनीतिक मतभेदों से परे था. इसमें कहा गया, यह समझ और सहनशीलता का प्रतीक है और अफसोस जताया कि सद्भाव की यह भावना अब मौजूद नहीं है.


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बीजेपी, कांग्रेस और MP के चुनाव

राजनीतिक दलों और गठबंधनों की आंतरिक कलह की खबरें तीनों उर्दू अखबारों और संपादकीयों के पहले पन्नों पर हावी रहीं, अखबारों ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी समूह, भारत दोनों पर ध्यान केंद्रित किया.

14 अगस्त को एक संपादकीय में इंकलाब ने आश्चर्य जताया कि क्या एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार के बीच पिछले हफ्ते की बैठक में कुछ और ही था.

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल होने के लिए अपने चाचा के खिलाफ विद्रोह में अजित पवार द्वारा राकांपा विधायकों के एक समूह का नेतृत्व करने के लगभग दो महीने बाद हुई बैठक ने वरिष्ठ पवार को भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में कैबिनेट पद की पेशकश की अटकलों को हवा दे दी है.

14 अगस्त को सहारा के एक संपादकीय में आश्चर्य व्यक्त किया गया कि बैठकें किस बारे में थीं.

संपादकीय में पूछा गया, “हर कोई सोच रहा है कि अगर दोनों नेता इतने करीब हैं, तो क्या पार्टी में विद्रोह हुआ था? दोनों अलग होकर दो अलग गठबंधन में क्यों शामिल हुए? और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बैठकें क्यों हो रही हैं.”

शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा है.

संपादकीय में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी कर रहे राजनीतिक दलों पर भी चर्चा की गई.

15 अगस्त को सियासत के संपादकीय में कहा कि कांग्रेस मध्य प्रदेश में मौजूदा भाजपा सरकार में कथित भ्रष्टाचार को अपना मुख्य राजनीतिक मुद्दा बना रही है, जैसा कि उसने कर्नाटक में किया था.

कांग्रेस मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर आरोप लगाती रही है कि ठेकेदार परियोजनाओं के लिए पैसा जारी करने के लिए 50 प्रतिशत कमीशन का भुगतान करते हैं. यह रणनीति “40 प्रतिशत कमीशन” के आरोपों को प्रतिबिंबित करती है जो पार्टी की कर्नाटक इकाई ने राज्य की पूर्व भाजपा सरकार के खिलाफ लगाए थे.

सियासत ने अपने संपादकीय में कहा कि मध्य प्रदेश कांग्रेस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली राज्य की भाजपा सरकार को घेरने की योजना बना रही है. संपादकीय में कहा गया है कि रणनीति ने शुरू में राज्य सरकार को बैकफुट पर ला दिया था, लेकिन अब वह मानहानि का मामला दायर करने की धमकी दे रही है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(उर्दूस्कोप को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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