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Tuesday, 14 May, 2024
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‘गुजरात चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश’- बानो के दोषियों की रिहाई पर क्या कहता है उर्दू प्रेस

दिप्रिंट का जायज़ा कि उर्दू मीडिया ने बीते हफ्ते की विभिन्न ख़बरों को कैसे कवर किया, और उनमें से कुछ ने क्या संपादकीय रुख़ इख़्तियार किया.

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नई दिल्ली: ग्यारह लोग जो 2002 के बिलक़ीस बानो केस में सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए थे, उनकी सज़ा में छूट इस बीते हफ्ते उर्दू अख़बारों के केंद्र में बनी रही. बानो का, जो उस समय 19 साल की थी, गैंगरेप किया गया और उसके परिवार के 14 सदस्य- जिनमें उसकी साढ़े तीन साल की बेटी भी शामिल थी- 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में मार डाले गए.

बिलक़ीस बानो केस के अलावा, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संसदीय दल के पुनर्गठन और आगामी प्रदेश चुनावों पर उसके असर, 76वें स्वतंत्रता दिवस समारोह, और केरल राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान के सलमान रुश्दी की दि सैटनिक वर्सेज़ से पाबंदी हटाने की वकालत करने वाले बयान को, उर्दू दैनिकों के पहले पन्नों पर प्रमुखता से जगह दी गई.

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‘सियासी फायदा उठाने की कोशिश’

सप्ताह में ज़्यादातर उर्दू अख़बारों के पहले पन्ने, बिलक़ीस बानो केस में उम्र क़ैद की सज़ा पाए 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई, और उसके बाद उनके अभिनंदन से पैदा हुई नाराज़गी से भरे रहे.

इनक़लाब ने 17 अगस्त को अपने पहले पन्ने के फ्लायर पर ख़बर दी, कि विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद गुजरात सरकार ने दोषियों को जेल से रिहा कर दिया था.

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17 अगस्त कोसियायत ने एक संपादकीय में कहा, कि दोषियों को रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला, ‘महिलाओं का सम्मान’ करने के लिए उठाई गई मोदी की आवाज़ के खिलाफ है. संपादकीय में इसे सूबे की बीजेपी सरकार द्वारा आगामी असेम्बली चुनावों से पहले राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश क़रार दिया गया, और केंद्र सरकार से गुज़ारिश की गई कि वो आगे बढ़े और स्वाधीनता दिवस पर लाल क़िले के प्राचीर से मोदी ने जो आह्वान किया था उसका सम्मान करे.

18 अगस्त को, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा गुजरात सरकार की आलोचना को अपने पहले पन्ने पर जगह दी. उर्दू दैनिक ने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का भी ये कहते हुए हवाला दिया, कि दोषियों की रिहाई ग़ैर-क़ानूनी थी, और मोदी तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को इसके लिए जवाब देना होगा.

उसी दिन, सियासत के लीड लेख में, मोदी को संबोधित करते हुए राहुल गांधी के ट्वीट का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि पूरा देश देख रहा है कि किस तरह प्रधानमंत्री की कथनी उनकी करनी से अलग है.

19 अगस्त को,सियासत के लीड लेख में बिलक़ीस बानों का ये कहते हुए हवाला दिया गया, कि दोषियों की सज़ा में छूट ने देश की कानूनी प्रणाली में उसकी आस्था को हिला दिया है. उसका ये कहते हुए भी हवाला दिया गया, कि उसके उत्पीड़कों को आज़ाद करने के सरकार के फैसले ने उसकी मानसिक शांति भंग कर दी है, और ये लाज़िमी है कि इस मुल्क की हर महिला ख़ुद को सुरक्षित महसूस करे.


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‘छात्रों को स्वाधीनता संग्राम के बारे में पढ़ाने की ज़रूरत’

15 अगस्त को एक संपादकीय में सियासत ने संकल्प लिया, और अपने पाठकों से भी भारत की आज़ादी को सुरक्षित रखने, उसके लोकतंत्र को मज़बूत करने, और ये सुनिश्चित करने का संकल्प लेने के लिए कहा, कि देश का संविधान और क़ानून सर्वोपरि हैं. संकल्प में ये भी कहा गया: ‘अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों को पूरा करने की बजाय, हम देश के हितों को प्राथमिकता देंगे’.

स्वतंत्रता दिवस पर,इनक़लाब के एक संपादकीय में इसपर खेद व्यक्त किया गया कि खिलाफत आंदोलन, रेशमी पत्र आंदोलन, नमक सत्याग्रह, और असहयोग आंदोलन काफी हद तक लोगों की यादों से ग़ायब हो गए हैं. उसमें आगे कहा गया कि इसकी वजह से नई पीढ़ी के लिए देश के पिछले गौरव को फिर से खोजना मुश्किल हो गया है. संपादकीय में आगे कहा गया कि अच्छा रहेगा कि अगर मुस्लिम संगठन छुट्टी के दिन एक क्रैश कोर्स आयोजित करके, छात्रों को स्वाधीनता संग्राम के बारे में शिक्षित करें.

रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा और इनक़लाब दोनों ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 15 अगस्त के अपने संस्करणों में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्र के नाम संबोधन को जगह दी. अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने लैंगिक समानता से लेकर भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था जैसे बहुत से विषयों पर बात की.रोज़नामा ने उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की ओर से स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं छापीं, जबकि इनक़लाब ने स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए राष्ट्रीय राजधानी में किए गए सुरक्षा प्रबंधों पर ख़बर दी.

16 अगस्त को एक संपादकीय में सियासत ने कहा कि मोदी ने अपने देश के लोगों से जो वायदे किए थे, उनका एक रिपोर्ट कार्ड बनाने की ज़रूरत है. संपादकीय में कहा गया, ‘उन्हें पूरा करने में आख़िर कितना समय लगेगा? लोगों को सिर्फ बातों से ख़ुश करके सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकती. उसकी ज़िम्मेदारी है कि अपने सभी वायदों को पूरा करे’.

16 अगस्त को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के पहले पन्ने पर, मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण को काफी विस्तार से पेश किया गया. उसी पहले पन्ने पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के राष्ट्र के नाम संदेश को भी छापा गया, जिसमें उन्होंने बीजेपी पर ऐतिहासिक तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने, और स्वाधीनता संग्राम के महत्व को कम करने का आरोप लगाया.

स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौक़े पर इनक़लाब ने सिलसिलेवार संपादकीय छापे, जिनमें ‘नए भारत’ और ‘पुराने भारत’ के बीच के अंतर पर रोशनी डाली गई. 18 अगस्त को छपे इनमें से पहले संपादकीय में कहा गया कि दुर्भाग्य की बात है कि हमने एक ‘नया भारत’ बनाने की ठानी हुई है, लेकिन पुराने भारत की समस्याएं ‘क़ाबू से बाहर’ हैं.

संपादकीय में कहा गया: ‘हम बहुत सी घटनाओं से ये कहकर बच जाते हैं, कि क़ानून अपना काम करेगा. क़ानून को यक़ीनन अपना काम करना चाहिए, लेकिन ऐसी स्थिति ही क्यों पैदा होती है कि क़ानून को ज़हमत उठानी पड़े. क़ानून को इस ज़हमत से बचाने के लिए एक अपराध-मुक्त समाज बनाने की ज़रूरत है, इसलिए हमें ऐसे देशों से सीख लेनी चाहिए जहां अपराध की दरें बहुत कम या मामूली हैं. कुछ देश ऐसे हैं जहां समाज इस तरह से संगठित है कि लोगों को एक दूसरे के अधिकारों का ख़याल रखना होता है, और अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करना होता है. जब नागरिकों को बचपन से अधिकारों और कर्त्तव्यों के बारे में पढ़ाया जाता है, उनसे अवगत कराया जाता है और उन्हें अनुशासित किया जाता है, तभी जाकर उनमें ज़िम्मेदारी का अहसास पैदा होता है’.


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‘शिवराज चौहान का अनिश्चित भविष्य’

बीजेपी संसदीय दल में किए गए उल्लेखनीय परिवर्तन को भी 18 अगस्त को रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा तथा इनक़लाब दोनों में पहले पन्ने पर जगह दी गई.

इनक़लाब की एक रिपोर्ट में ऐलान किया गया कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्यप्रदेश सीएम शिवराज सिंह चौहान को बोर्ड से हटा दिया गया है. उसी दिन, रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा की एक रिपोर्ट में कहा गया कि उनके हटाए जाने और सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड में शामिल करने, तथा देवेंद्र फड़णवीस को बीजेपी की 15-सदस्यीय केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) में लाने से संदेश जाता है, कि पार्टी के भीतर सामाजिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को वरिष्ठता के ऊपर तरजीह दी गई थी.

अगस्त को ‘शिवराज सिंह चौहान के अनिश्चित भविष्य’ शीर्षक से सियासत के एक संपादकीय में कहा गया कि बीजेपी संसदीय दल और सीईसी के पुनर्गठन के साथ एक निर्विवाद संदेश था- ‘पार्टी में केवल दो ही लोग महत्वपूर्ण हैं और वो हैं पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह’.

संपादकीय में आगे कहा गया कि ऐसा लगता है कि ये सारे बदलाव सिर्फ संसदीय चुनावों को ध्यान में रखकर किए गए हैं, जबकि राज्य स्तर पर उनके क्या असर हो सकते हैं, उसकी अनदेखी की गई है.

एक टेस्ट केस के तौर पर एमपी सीएम शिवराज सिंह चौहान की मिसाल देते हुए, संपादकीय में दलील दी गई कि 2023 असेम्बली चुनावों से पहले बीजेपी संसदीय दल से उन्हें हटाने से, कांग्रेस को ये कहने का मौक़ा मिल जाएगा कि बीजेपी अब चौहान का समर्थन नहीं कर रही है, और वो राज्य या केंद्र में किसी भी पद की दावेदारी में नहीं हैं.

‘रोहिंग्याओं पर यू-टर्न’

केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच फिर से छिड़ी शब्दों की लड़ाई, जो केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के एक ट्वीट से शुरू हुई, बीते हफ्ते के आख़िरी हिस्से में उर्दू प्रेस के पहले पन्नों पर बनी रही.

बृहस्पतिवार को ऐसा लगा कि एमएचए ने आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के फैसले को उलट दिया- जिसकी सूचना पुरी ने एक ट्वीट में दी थी- कि दिल्ली के बक्करवाल में रोहिंग्या शर्णार्थियों को फ्लैट्स, बुनियादी सुविधाएं और चौबीसों घंटे सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी.

18 अगस्त को सियासत और रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा दोनों ने गृह मंत्रालय का हवाला देते हुए ऐलान किया, कि रोहिंग्या शर्णार्थियों को दिल्ली में फ्लैट्स नहीं दिए जाएंगे.

उसी दिन,इनक़लाब ने ख़बर दी कि किस तरह पुरी के इस ऐलान के बाद, कि म्यांमार के शर्णार्थियों को फ्लैट्स दिए जाएंगे, गृह मंत्रालय की ओर से एक खंडन आ गया. ख़बर में कहा गया कि पुरी के बयान से मचे बखेड़े के बाद सरकार ने इस मामले पर यू-टर्न ले लिया.

‘सलमान रुश्दी की ईशनिंदात्मक किताब’

17 अगस्त के अपने संस्करण में इनक़लाब ने पहले पन्ने पर ख़बर छापी, कि केरल राज्यपाल आरिफ मौहम्मद ख़ान ने – जो अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं- लेखक सलमान रुश्दी की ईशनिंदात्मक किताब दि सैटनिक वर्सेज़ से भारत में पाबंदी हटाए जाने की वकालत की है. रिपोर्ट में आगे चलकर ये भी कहा गया कि गवर्नर के ताज़ा बयान से मुस्लिम हलक़ों में बहुत बेचैनी और नाराज़गी फैली हुई है.

इनक़लाब की रिपोर्ट में कहा गया कि इसी हफ्ते दि इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में आरिफ मोहम्मद ख़ान ने कहा था, कि रुश्दी की ‘नापाक किताब’ पर पाबंदी वोट बैंक सियासत थी और उससे राष्ट्रीय हितों को नुक़सान हुआ. उसमें आगे कहा गया कि जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत में रुश्दी की किताब से पाबंदी हटा ली जानी चाहिए, तो गवर्नर ने इसका जवाब हां में दिया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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