मई 1999 में भारतीय सेना को पता चला कि पाकिस्तानी सेना और कुछ आतंकवादी एल.ओ.सी. पार करके भारतीय इलाके में घुस आए हैं. उन्होंने सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण ऐसी ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था, जो व्यावहारिक रूप से सरहदों का काम करती हैं. जवाब में भारतीय सेना ने बड़े पैमाने पर ऊंचे पर्वतों पर आक्रामक अभियान ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू कर दिया, जिसका मकसद उन चोटियों को खाली कराना और उन पर फिर से कब्जा हासिल करना था.
आखिरकार 26 जुलाई, 1999 को भारतीय सेना ने अपनी सारी चोटियों पर सफलतापूर्वक फिर से कब्जा कर लिया और यह ऑपरेशन पूरा हो गया.
कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन नागप्पा युद्ध में भाग लेनेवाले ऐसे नाम हैं, जो भारतीयों के दिमाग पर हमेशा छाए रहेंगे. कैप्टन नागप्पा ने मुझे विस्तार से बताया कि आखिरी हमला करने से पहले लास्ट मिनट में उन्होंने कैसे अपने आप को तैयार किया था.
अभी कुछ दिन पहले, जब नवीन कब्जा किए गए पॉइंट 4875 पर अपने टोही मिशन से लौटे थे तो उन्हें दुश्मन की हरकतों, हथियारों, गार्ड बदलने और अन्य प्रासंगिक चीजों के बारे में कुछ मूल्यवान जानकारी मिली थी. लेफ्टिनेंट कर्नल वाई.के. जोशी ने कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन संजीव सिंह जामवाल को पॉइंट 5140 पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी थी.
कैप्टन नागप्पा को बेस पर गोला-बारूद का ढेर जमा करने और ज़रूरत पड़ने पर बैकअप उपलब्ध कराने के लिए कहा गया था. पॉइंट 5140 पर कब्जा करना एक बड़ी जीत थी, जिसमें कोई हताहत नहीं हुआ था.
सैनिकों का मनोबल ऊंचा था और कैप्टन विक्रम बत्रा की मशहूर लाइन, ‘ये दिल मांगे मोर’ ने लाखों लोगों का दिल जीत लिया था.
कैप्टन नागप्पा को याद है कि उस समय हवा में भी जीत की सुगंध फैल गई थी. अब समय था कि वे अपनी काबिलीयत साबित करते. उन्हें कंपनी कमांडर गुरप्रीत सिंह की अगुआई में चार्ली कंपनी के साथ पॉइंट 4875 पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था.
कैप्टन बत्रा को इस बार बेस पर गोला-बारूद जमा करने और रिजर्व के रूप में काम करने के लिए कहा गया था. उस समय बुखार के कारण वे कुछ कमजोरी महसूस कर रहे थे.
कैप्टन नागप्पा ने मुझे बताया, “युद्ध में जाने से पहले सैनिकों को अपने परिवारवालों को पत्र लिखने के लिए कहा गया था, जिन्हें पोस्ट नहीं किया गया था. मेरे लिए सबसे कठिन काम अपने सैनिकों को यह बताना था कि अगर वे वापस नहीं आए तो ये पत्र पोस्ट कर दिए जाएंगे. हमें अपना पहचान-पत्र भी जमा करना था, ताकि अगर हमें युद्धबंदी (पी.ओ.डब्ल्यू.) बना लिया जाए तो हमारी पहचान उजागर न हो सके. मुझे याद है कि हर सैनिक ने अपना बटुआ खोला था और वे बहुत देर तक अपने परिवार की तसवीरें देखते रहे थे.”
पॉइंट 4875 की तराई में पहले संगर पर पहला हमला बड़ी सुबह चौंकानेवाला था.
पाकिस्तानी सैनिक यूनिवर्सल मशीनगन और 30 एम.एम. मोर्टार लिये थे. हमले के बाद भारतीय पक्ष ने कुछ ए.के.-47 राइफलें, यू.एम.जी., पिस्तौलें, मोर्टार और गोला-बारूद बरामद किया. पहला कब्जा तो काफी आसान था, लेकिन सैनिकों को पता था कि बाकी चोटी पर कब्जा आसान नहीं होगा, क्योंकि गोलियों की आवाज़ों ने अगले बंकर में छिपे दुश्मन को सतर्क कर दिया था.
‘एरिया फ्लैट टॉप’ कहे जानेवाले अगले बंकर में प्रवेश का रास्ता संकरा था. आगे बढ़ना बहुत कठिन था. कैप्टन नागप्पा के नेतृत्व में चार्ली कंपनी ने खुद को टुकड़ों में बांट लिया, लेकिन फिर भी इसे संभाल नहीं सकी.
दुश्मन भारी पहरा दे रहा था. वे लगातार गोलियों की बौछार कर रहे थे. भारी गोलाबारी के कारण भारतीय पक्ष को रुकना पड़ गया था. कंपनी एक ही स्थिति में फंस गई थी. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है? सैनिक न तो वहां से हट सकते थे और न ही जवाबी काररवाई कर सकते थे.
राइफलमैन संजय कुमार सिंह ने कंपनी के लिए स्काउटिंग करने की इच्छा जताई. उसने अपनी हथेलियों के चारों ओर फील्ड ड्रेसिंग लपेटी और उस संकरी चढ़ाई पर नीचे लेटे हुए रेंगते हुए बाहर निकले. वे ऊंचाई पर दुश्मन के बंकर के करीब पहुंच गए और एच.एम.जी. की गरम बैरल को उन्होंने अपने हाथों से खींच लिया. वही क्षण निर्णायक था, जिसमें उनके साथियों को बढ़ने का मौका मिल गया.
इसके बाद उन्होंने दुश्मन के बंकर की तरफ धावा बोल दिया, जबकि वे उन पर गोलियां दाग रहे थे. उनके सीने और हाथों पर गोलियां लगीं, लेकिन इसके बावजूद वे नहीं रुके. इसी समय उनके साथी सैनिकों को मौका मिल गया और वे खेल में फिर मुकाबले में आ गए.
आखिरकार, राइफलमैन संजय कुमार ने हाथापाई में ही तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला. इसके बाद वह दुश्मन की गिरी हुई मशीनगन लेकर दूसरे बंकर की तरफ रेंगकर आगे बढ़े. उसके सैनिक एकदम दंग रह गए और भागने की कोशिश करते समय मार गिराए गए.
कैप्टन नागप्पा ने मुझे बताया, “चारों ओर बंकरों से घिरी चोटियों पर चढ़ना खतरों से भरा था. पाकिस्तानी हमें ऊपर चढ़ने देते और फिर गोलियां चलाने लगते. शुरुआती हमलों के बाद अब वे पूरी तरह से सतर्क थे. हम ऊपर चढ़ते गए, इंच-दर-इंच बढ़ते गए. हम गिरते, लुढ़कते, फायरिंग करते, रेंगते, बड़ी चट्टानों की ओर दौड़ते और उनके पीछे छिप जाते, फायरिंग करते और फिर खुद को छिपाने के लिए अगली चट्टान चुनते. हमने एक ही रणनीति बार-बार आजमाई. कोई कवर देता था. दुश्मन गोलाबारी करता था और हम जवाबी हमला करते थे और संकरी सीमा-रेखा की तरफ आगे बढ़ते जाते. 5 जुलाई तक आगे बढ़ना बेहद कठिन हो चुका था. हमारा गोला-बारूद भी खत्म हो चुका था. मैंने सुबह सबसे पहले लेफ्टिनेंट कर्नल वाई.के. जोशी को फिर से बेस पर बुलाया और उन्हें रिजर्व सैनिक भेजने को कहा.”
जोशीले साथियों ने देखने में सुरक्षित पर वास्तव में खतरनाक इलाके पर ध्यान न देते हुए दुश्मन पर हमला कर दिया और उससे पॉइंट 4875 का एरिया फ्लैट टॉप छीन लिया. 5 जुलाई तक 13 जे एंड के राइफल्स ने एरिया फ्लैट टॉप पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था.
कैप्टन नागप्पा ने राहत की सांस तक नहीं ली थी कि पाकिस्तानियों ने आक्रामक जवाबी हमला कर दिया.
युवा कैप्टन ने नेतृत्व के अनुकरणीय गुणों और साहस का परिचय दिया. उन्होंने चोटी पर कब्जा बरकरार रखते हुए तगड़ा जवाब दिया. पहले जवाबी हमले को नाकाम कर दिया गया. एरिया फ्लैट टॉप पर फिर से कब्जा करने के बाद स्थिति एकदम विपरीत हो गई थी. अब ऊपर चढ़ते समय पाकिस्तानी सैनिक दिख रहे थे और भारतीय पक्ष को ऊंचाई पर होने का फायदा हो रहा था.
पॉइंट 4875 की जीत में एरिया फ्लैट टॉप का काफी ज्यादा महत्त्व था और कैप्टन नागप्पा एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं थे. इस हमले के बाद दुश्मन और ज्यादा हताश भी हो गया था और आक्रामक भी.
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