सत्तारूढ़ दल के दलित नेताओं का कहना है कि पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया है और बीजेपी के गढ राज्यों में विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए अनुसूचित जाति का एक भी वरिष्ठ नेता नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि जब अमरिन्दर सिंह ने केन्द्र को कनेडियन राजनितिज्ञों के खालिस्तानी अलगाववादियों को समर्थन देने के बारे में बताया तो केन्द्र ने उनका पक्ष लेने का निर्णय किया.
कन्नूर जिले में वर्ष 2000 से 2016 के बीच 69 राजनीतिक हत्याएं हुईं, जिनमें से 31 लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस)/भाजपा के थे और 30 लोग सीपीआई (एम) के थे.
चुनाव नतीजे पर चर्चा में प्रायः हर कोई केवल भाजपा के ‘आंकड़े’ की बात कर रहा है, लेकिन क्या हो अगर हम समीकरण को उलट दें और यह सवाल करें कि हारने वाले का प्रदर्शन कैसा रहा?
नयी दिल्ली, 18 मई (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने शनिवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आदर्श आचार संहिता के ‘‘घोर’’...