बेंजामिन नेतन्याहू मच्छर को मारने के लिए तलवार का इस्तेमाल करने की जो नीति लागू करना चाहते हैं वह विवेकसम्मत नहीं है. मृत बच्चों की तस्वीरें देने वाली जंग में यह सवाल बेमानी है कि असली पीड़ित कौन है.
मध्य पूर्व में संघर्ष धारणाओं और पूर्वानुमानों को उलट सकता है और अगर यह बढ़ता है, तो तेल बाज़ार बाधित हो सकता है. भारत के लिए, यह मुद्रास्फीति पर चिंता बढ़ा सकता है, रुपये पर दबाव डाल सकता है.
भारतीय मुसलमानों को खुद से पूछना चाहिए कि वे अपने हिंदू भाइयों के बजाय सुदूर फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए चिंता व्यक्त करने को प्राथमिकता क्यों देते हैं, जो भारत में रहते हैं और एक समान संस्कृति साझा करते हैं.
सीधी-सच्ची बात यह है कि उभरते देशों के लिए भारत द्वारा समर्थन किए जाने के मूल में, बीजिंग से आगे निकलने की इच्छा है. इसे नैतिक दावों की आड़ में छिपाना भी कम पाखंड नहीं है.
आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा में अंततः वाजपेयी युग के बचे हुए लोग नेताओं की एक नई पीढ़ी के लिए रास्ता बनाते दिखेंगे - वे लोग जिनके लिए सब कुछ पीएम मोदी और शाह ही होंगे.
खुली, तीखी, खरी, अनीतिपूर्ण और कभी-कभी अपमानजनक विशेषणों से लैस तारीफों से भरी कूटनीति. इसे हम ‘ट्रंप्लोमैसी’ कहते हैं. लेकिन इस सबके पीछे बड़ा मकसद होता है: अमेरिकी वर्चस्व बनाए रखना.