विविध श्रम क़ानूनों को चार संहिताओं में सीमित करना ही काफी नहीं है. संहिताओं के अंदर बदलाव किए बिना केवल संख्या तय करने या घटाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
प्रधानमंत्री ने यह भी नहीं बताया कि ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ या कि ‘हीलिंग टच’ को धता बताकर अटलबिहारी वाजपेयी का सपना कैसे पूरा किया जा सकता है?
कश्मीर पर अब तक तो पाकिस्तान ही आगे-आगे चाल चलता रहा है मगर अब मोदी ने अनुच्छेद 370 को रद्द करके खेल उलट दिया है और पाकिस्तान को जवाबी चाल नहीं सूझ रहा
कश्मीर केंद्रीत राजनीति ने जम्मू और लद्दाख में लगातार निराशा पैदा की जिसके लिए नेशनल कांफ्रेस और पीडीपी समान रूप से जिम्मेवार रहे. कांग्रेस भी जम्मू व लद्दाख की भेदभाव से जुड़ी शिकायतों को दूर नही कर सकी.
आरएसएस ने हाल के दिनों में सरदार पटेल को अपनी विचार परंपरा में शामिल करने की कोशिश की है. लेकिन पुस्तकों में दर्ज सरदार पटेल के तत्कालीन बयानों से समझ में आता है कि संघ को लेकर उनके क्या विचार थे.
आजम खान से राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक तरीके से लड़ी जानी चाहिए. लेकिन किसी विश्वविद्यालय को सिर्फ इसलिए निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए कि उसे आजम खान ने स्थापित किया है.
तीन दशक बाद भी आम पाकिस्तानियों को देश की कश्मीर नीति का कोई लाभ नहीं मिला है, सिवाय इसके कि जिहाद के आधार पर समाज ध्रुवीकृत हुआ है और लोगों में भारत के खिलाफ घृणा भरी गई.