गांधी को भरोसा था कि एक दिन आएगा, जब सेना, पुलिस पर देश की ऊर्जा और धन न खर्च होकर मानवता की भलाई में इसका इस्तेमाल होगा. लेकिन पटेल की पास इतना आदर्शवादी होने का अवसर नहीं था.
जब एक संवाददाता ने गांधी से उस ‘शुभ दिन’ पर संदेश देने का आग्रह किया तो उन्होंने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि ‘मैं ऐसे अवसरों पर संदेश देने का आदी नहीं हूं.’
सामाजिक न्याय और बहुजन राजनीति ने सामाजिक चेतना विकसित करने पर ध्यान नहीं दिया. इसलिए जब बीजेपी-आरएसएस ने मुस्लिम विरोध की लहर तेज की, तो दलित-पिछड़े भी उसमें बह गए.
गांधी के तमाम विचारों में से भाजपा-आरएसएस ने सिर्फ स्वच्छता को चुना है और गांधी को लगभग सफाई कर्मचारी बना दिया है. आरएसएस को गांधी में इसके अलावा काम का कुछ नहीं मिला.
राजा महेंद्र प्रताप का एएमयू में गहरा सम्मान है और यहां शतवार्षिकी समारोह हुआ तो उन्हें ही मुख्य अतिथि बनाया गया. ये भी नहीं भूलना चाहिए कि महेंद्र प्रताप अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर सांसद बने थे.
अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद की परिस्थितियों में, कश्मीरी 2010 और 2014 के अपने अनुभवों, जिन्हें 2016 की अशांति के दौरान परिष्कृत किया गया था, को काम में ले रहे हैं.
सपा और बसपा की इस समय की प्राथमिक चिंता उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करने की है. क्या हमीरपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में इसके कोई संकेत हैं?
व्यापार पर अमेरिका के साथ कोई प्रगति नहीं हुई, ना ही अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश करना चाहती हैं, और साथ ही अमेरिका में मोदी को ये भी बताया गया कि इमरान ख़ान के साथ उनकी ‘अच्छी निभेगी’.
पहलगाम इस संघर्ष की सीढ़ी का पहला पायदान है. गतिशील कार्रवाई का मतलब है कि अपना संदेश देने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया जाएगा; भारत ने 6/7 मई की रात उस सीढ़ी पर कदम रख दिया था.