आरएसएस प्रमुख सर संघचालक मोहन भागवत मई के दूसरे सप्ताह में राष्ट्र को संबोधित करेंगे. मकसद है देश में फैले भय और अनिश्चितता को दूर एक सकारात्मक माहौल तैयार करना.
भाजपा के विधायकों से जब अपने चुनाव क्षेत्र में मिलने वाली चुनौतियों के बारे में पूछा जाता था तब वे कहा करते थे कि ‘अरे, मोदी जी हैं न!’, लेकिन कोविड ने उनसे उनकी यह निश्चिंतता छीन ली है.
बहुत से समाजविज्ञानी जिन्हें लगता था कि भारत के गांव तो जाति की धुरी पर बने हुए हैं, मंडल की बहस के दौरान पाला बदलकर ये कहने लगे थे कि आरक्षण का आधार जाति नहीं हो सकती. दूसरी तरफ धीरूभाई थे जो दृढ़मत थे कि आरक्षण की नीति जाति के आधार पर तय की जानी चाहिए.
कोर्ट फिल्म में हमने जो देखा है, वो साथीदार की एक वृहत छवि है, उत्पीड़ित समुदायों के लिए असली प्रेरणा लेने का तरीका ये है कि उनकी सूक्ष्म छवि को पढ़ें और समझें, जो उनके काम, उनके आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और उनकी कला में है.
पिछले सात वर्षों में मोदी सरकार ने बुनियादी शासन की नींव को मजबूत करने के लिए कुछ नहीं किया जिसका नतीजा यह है कि प्रधानमंत्री अपने कदम पीछे खींचते नज़र आ रहे हैं और उनके मंत्री विफल साबित हो रहे हैं जबकि कोविड का संकट गहराता जा रहा है.
2016 के विधानसभा चुनाव में 3 सीटों से पांच वर्ष (2021) में 77 सीटों तक पहुंची भाजपा के लिए अब टीएमसी को उखाड़ फेंकना सिर्फ समय की बात है. ये काम चुनौती भरा ज़रूर है लेकिन असंभव नहीं है.
पाकिस्तान की सभी पार्टियों के सियासतदानों ने अतीत में रमज़ान महीने का इस्तेमाल PR के कामों के लिए किया है लेकिन सिर्फ इमरान खान ही ऐसे परस्पर-विरोधी शो का मुज़ाहिरा करने में कामयाब हुए हैं.
प्राचीन रोम के लोग 'रोटी और सर्कस' की मिसाल देते थे कि कैसे लोगों को थोड़ा सा भोजन और भरपूर मनोरंजन दिया जा सकता है. भारतीयों को भी उसी तरह खुराक दी जा रही है और बेवकूफ बनाया जा रहा है.
स्पष्ट कारणों से, अगर भारत को जानबूझकर पाकिस्तान में लाखों लोगों पर सूखा डालने वाला माना जाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना ज़रा मुश्किल होगा.