गुटनिरपेक्षता वाले दौर को आज शिद्दत से याद किया जा रहा है. बहुपक्षवाद फैशन में है. और हम सहारा उन संगठनों में तलाश रहे हैं जिन्हें चीन ने बनाया या जिन पर उसका वर्चस्व है
एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में, एक प्रगतिशील संविधान के साथ, हमें धार्मिक नेताओं से डरना नहीं चाहिए. लेकिन वे अभी भी भारतीय मुसलमानों के एक महत्वपूर्ण वर्ग के दिमाग पर हावी हैं.
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने हाल ही में दावा किया कि गोवा में होने वाले 90 प्रतिशत अपराधों के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मज़दूर ज़िम्मेदार हैं.
अगर बीजेपी को लगेगा कि पहलवानों का विरोध प्रदर्शन कर्नाटक चुनाव को प्रभावित करेगा (जो अब तक नहीं किया है) या प्रधानमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाएगा, तभी वह कार्रवाई करेगी.
पीएम मोदी ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में पहलवानों का जिक्र तक नहीं किया. लेकिन एक संदेश देने की कोशिश की गई कि उनकी सरकार के द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए किया गया कार्य पार्टीजनों के कथित कुकर्मों से कलंकित नहीं किया जा सकता है.
तारिक़ फ़तह के लेखन में इस्लाम के भविष्य, पश्चिम और भारत के साथ इसके संबंधों के प्रति गहरी चिंता थी. लेकिन उन्हें बहुसंख्यक मुसलमानों के विरोध का सामना करना पड़ा.
अमेरिका के जातिवाद विरोधी आंदोलन में इस समय सबसे जाना पहचाना चेहरा तेनमोई सुंदरराजन का है. अमेरिका में ही जन्मी तेनमोई जाति के प्रश्न पर चले कई आंदोलनों और मुकदमों से जुड़ी रही हैं.
पाकिस्तान ज़्यादातर पैमाने के लिहाज़ से सिफर पर है, चीन सुस्त नहीं पड़ रहा है और भारत की गाथा अमीर बनने से पहले ही काफी शक्तिशाली बनने में कामयाबी की उल्लेखनीय कहानी है.
राज्य और पार्टी का घाल-मेल कम्युनिस्ट तानाशाहियों की विशेषता रही है. पश्चिमी लोकतंत्र में कहीं ऐसा नहीं, पर भारत में वही कर डाला गया, जो संविधान को व्यवहार में तहस-नहस करके हुआ.