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Sunday, 19 January, 2025
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वो 7 कारण जिसकी वजह से मोदी सरकार ने कृषि सुधार कानूनों से हाथ खींचे

कृषि सुधार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि बन सकते थे मगर समझदारी तथा धैर्य की कमी और अतीत के प्रति नफरत ने इसे एक संकट में बदल दिया है.

न उड़ता, न पढ़ता 2003 के बाद से लुढ़कता ही रहा है पंजाब

एक समय भारत का सबसे समृद्ध राज्य आज नीचे फिसल गया है और पिछड़ गया है, उसे अब गेहूं-चावल-एमएसपी के नशे से बाहर निकलकर अपनी उद्यमशीलता को फिर से जगाने की जरूरत है.

सोनिया से कश्मकश भरे रिश्ते, कांग्रेस से मन भेद -रायसीना हिल्स की राजनीतिक पैंतरेबाजी पर प्रणब दा की चुप्पी खटकती है

प्रणब मुखर्जी के संस्मरणों की अंतिम किताब में असली राजनीतिक मसलों से किनारा किया गया है, विस्तार से बताने से बचा गया है, किताब बहुत कुछ बताने की जगह बहुत कुछ छिपा लेती है इसलिए बहुत निराश करती है

मोदी लोकप्रिय हैं, भाजपा जीतती रहती है, लेकिन भारत के इंडीकेटर्स और ग्लोबल रैंकिंग चिंताजनक है

सरकार की अपनी NFHS, साथ ही कई वैश्विक गैर-वाम संस्थानों की रैंकिंग ने भारत के विकास संकेतकों में गिरावट दिखाई है. जिसका खामियाजा जल्दी ही भुगतना पड़ सकता है.

जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र होने का भ्रम: बिना राजनीतिक आज़ादी के कोई आर्थिक आज़ादी टिक नहीं सकती

वैसे, एक महत्वपूर्ण सवाल जरूर उभरता है— लोकतंत्र आर्थिक वृद्धि के लिए अच्छा है या बुरा? कितना लोकतंत्र अच्छा है और कब यह जरूरत से ज्यादा हो जाता है? क्या सीमित लोकतंत्र जैसी भी कोई चीज होती है?

किसान आंदोलन मोदी सरकार की परीक्षा की घड़ी है. सौ टके का एक सवाल -थैचर या अन्ना किसकी राह पकड़ें ?

मोदी चाहें तो आर्थिक सुधारों से अपने कदम उसी तरह वापस खींच सकते है जिस तरह मनमोहन सिंह ने अन्ना आंदोलन के दबाव में खींचे थे, या फिर कृषि सुधारों को मारग्रेट थैचर जैसे साहस के साथ आगे बढ़ा सकते हैं; उनके फैसले पर ही देश की राजनीति की आगे की दिशा तय होगी.

किसानों के विरोध को ना मैनेज कर पाना दिखता है कि मोदी-शाह की BJP को पंजाब को समझने की जरूरत है

मोदी-शाह की भाजपा ने पंजाब और सिखों को सम्मानित साझीदार मानने की जगह उनका कृपालु बड़ा भाई बनने की जो कोशिश की, और कृषि कानूनों के मामले में जो रणनीति अपनाई उस सबने चुनौतियां पसंद करने वाले सिखों को संघर्ष करने का अच्छा बहाना थमा दिया.

पाकिस्तान की राजनीति और इस्लाम के बारे में खादिम हुसैन रिज़वी की लोकप्रियता और अचानक हुई मौत से क्या संकेत मिलता है

पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी सियासत का चेहरा माने जाने वाले मौलाना खादिम हुसैन रिज़वी की अचानक मौत के बावजूद मजहबी कट्टरपंथ के प्रति लोगों का व्यापक आकर्षण खत्म नहीं होने वाला है. 

चीन पर मोदी ने कैसे ‘नेहरू जैसी’ आधी गलती की और सेना में निवेश को नज़रअंदाज किया

मोदी यह मान बैठे कि चीन अपने आर्थिक हितों को दांव पर लगाकर हमारे लिए सैन्य चुनौती बनने की कोशिश नहीं करेगा, इसलिए प्रतिरक्षा पर खर्चे फिलहाल टाले जा सकते हैं. मोदी यहीं पर नेहरू की भूल के मुकाबले आधी भूल कर बैठे. 

ट्रंप भले ही हार जाएं लेकिन अमेरिका में ट्रंपवाद का उभार हो चुका है, यह प्रदर्शन से ज्यादा पॉपुलिज्म पर निर्भर है

भारत में जैसे मोदीत्व चल रहा है वैसे ही अमेरिका में ट्रंपवाद शुरू हो गया है. नस्लीय या सामाजिक अधिकारों के लिए बढ़ती सजगता जनता को उकसाने की राजनीतिक कला को बढ़ावा दे रही है.

मत-विमत

एक नया ‘इज़्म’ आ गया है, जो राइट, लेफ़्ट और सेंटर को मात दे रहा है

इस नई दुनिया में ‘पॉपुलिज़्म’ वाम, दक्षिण, मध्य, सभी मार्गों को ध्वस्त कर रहा है. बेशक हर एक देश, मतदाता समूह, और समाज के लिए यह अलग-अलग रूप में उभर रहा है, इसका आकर्षण और इसकी सफलता इसके प्रयोग में निहित है. यह आपके दिल या दिमाग पर ज्यादा बोझ नहीं डालता.

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राजनीति

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राजद सांसद संजय यादव से मांगी गई 20 करोड़ रुपये की रंगदारी, मामला दर्ज

पटना, 19 जनवरी (भाषा) राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राज्यसभा सदस्य संजय यादव ने रविवार को आरोप लगाया कि एक व्यक्ति ने फोन करके...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.