साल 2019 में, विदेशों से मेडिकल की डिग्री लेकर भारत लौटने वाले 25.79 फीसदी छात्र-छात्राएं ही फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम पास कर पाए. साल 2020 में यह आंकड़ा 14.68 फीसदी और 2021 में 23.83 फीसदी रहा. भारत ने यह नियम बना रखा है कि कुछ खास देशों से मेडिकल की डिग्री पाने वाले छात्र-छात्राओं को भारत में प्रैक्टिस करने के लिए यह परीक्षा पास करनी होगी.
इंडोनेशिया, मलेशिया, तुर्की, श्रीलंका इस्लाम या बौद्ध धर्म की प्रमुखता के बावजूद संवैधानिक, लोकतांत्रिक और स्थिर व्यवस्था में कैसे बने रहे लेकिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार ऐसा क्यों नहीं कर पाए?