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Thursday, 21 November, 2024
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लोगों के दिलों पर राज करने वाले बलराज साहनी कैमरे के सामने कांपते थे, एक्टिंग में थी आत्मविश्वास की कमी!

थ्री आर्ट्स क्लब द्वारा बलराज साहनी की 1972 की आत्मकथा, 'फ्लैशबैक: द स्टोरी ऑफ बलराज साहनी' का नाट्य वाचन न सिर्फ एक प्रेमपूर्ण श्रद्धांजलि है बल्कि यह याद दिलाता है कि लोगों की समझ किस तरह वास्तविकता से बहुत अलग हो सकती है.

‘ब्रह्म मुहूर्त में उठना, ब्रजवासी बनना’ — जानिए कौन हैं भारत के सबसे युवा आध्यात्मिक बाबा अभिनव अरोड़ा

दस-वर्षीय अभिनव अरोड़ा के शिक्षक उन्हें खाली समय में भजन गाने के लिए कहते हैं. उनकी कक्षा का हर बच्चा उनके साथ बैठना चाहता है — उन्हें रोस्टर बनाना पड़ता है.

‘गवाह बनने की कीमत’ — नीतीश कटारा मामले के चश्मदीद अजय कटारा की 37 मामलों, गोलियों और ज़हर से लड़ाई

कटारा कोई वीआईपी नहीं हैं, लेकिन अब उनकी ज़िंदगी हाई-लेवल सुरक्षा के घेरे में है और पुलिस अधिकारी उनके फोन में स्पीड डायल पर हैं. उनकी कहानी बताती है कि भारत में हत्या के गवाह आगे आने से क्यों कतराते हैं.

‘यह आत्महत्या नहीं हत्या’ — इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में MBA के छात्र की मौत के बाद विरोध जारी

ज्यादातर स्टूडेंट्स गौतम कुमार को नहीं जानते थे क्योंकि नया शैक्षणिक वर्ष अभी एक महीने पहले ही शुरू हुआ था, लेकिन उनकी मौत ने गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी में इस विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया है.

JPSC से JSSC — झारखंड में सरकारी नौकरी का मतलब : भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, परीक्षा में देरी और अदालतों के चक्कर

21 सालों में जेपीएससी ने सिर्फ 13 परीक्षाएं आयोजित की हैं, जबकि इसे सालाना आयोजित किया जाना चाहिए. ऐसी एक भी सिविल सेवा परीक्षा नहीं हुई है, जिसका मसला अदालत में न गया हो.

‘विंटेज वाइब’ वाला अक्षरा थिएटर दिल्ली के लिए खज़ाना है, यह छोटे कलाकारों की लाइफलाइन है

रंगमंच के सितारे गोपाल शरमन और जलाबाला वैद्य ने अक्षरा थिएटर को अपने हाथों से बनाया है — सचमुच. आज यह जिस संघर्ष का सामना कर रहा है, वह दिल्ली के रंगमंच परिदृश्य में बड़े अस्तित्वगत संकट का एक छोटा-सा रूप है.

हरियाणा कैसे बन रहा — गौरक्षकों और धार्मिक उन्माद के अपराधों का गढ़

टोल बूथ के मुखबिरों से लेकर इंस्टाग्राम योद्धाओं और चुनाव उम्मीदवारों तक — हरियाणा के गौरक्षक धर्म, कानून और राजनीति के बीच की रेखाओं को धुंधला कर रहे हैं और अपने पीछे अराजकता फैला रहे हैं.

सत्व, रजस, तमस — प्राचीन आयुर्वेदिक खाद्य वर्गीकरण किस तरह मांस की राजनीति से जुड़ गया

दिल्ली के आईआईसी में एक व्याख्यान के दौरान जेएनयू की प्रोफेसर आर महालक्ष्मी ने कहा कि समय के साथ सात्विक और तामसिक जैसे शब्दों के अर्थ बदल गए हैं. अब ‘हम सिर्फ भोजन को ही नहीं बल्कि खाने वालों को भी देख रहे हैं’.

डगमगाते संस्थान, सिकुड़ती आलोचना, जोखिम न लेना: कैसे बदल रही है हिंदी साहित्य की दुनिया

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद, निराला और निर्मल वर्मा जैसे महान लेखकों का बोलबाला है. ओमप्रकाश वाल्मीकि और तुलसीराम जैसी दलित-बहुजन आवाज़ों ने यथास्थिति को हिलाकर रख दिया, लेकिन अभी भी एक नए सिद्धांत की कमी है.

दिल्ली के उर्दू बाज़ार की रौनक हुई फीकी; यहां मंटो और ग़ालिब नहीं, बल्कि मुगलई बिकता है

1970 के दशक में उर्दू बाज़ार में 50 से ज़्यादा किताबों की दुकानें थीं, लेकिन अब सिर्फ 5 ही बची हैं. बाज़ार अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. यह उर्दू प्रिंटिंग, प्रकाशन और कविताओं के युग का आखिरी दौर है.

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गुजरात के मुख्यमंत्री ने ‘द साबरमती रिपोर्ट’ फिल्म देखी, उसकी प्रशंसा की

अहमदाबाद, 20 नवंबर (भाषा) गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने राज्य में 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड पर आधारित हाल में रिलीज हुई...

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सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.