थ्री आर्ट्स क्लब द्वारा बलराज साहनी की 1972 की आत्मकथा, 'फ्लैशबैक: द स्टोरी ऑफ बलराज साहनी' का नाट्य वाचन न सिर्फ एक प्रेमपूर्ण श्रद्धांजलि है बल्कि यह याद दिलाता है कि लोगों की समझ किस तरह वास्तविकता से बहुत अलग हो सकती है.
दस-वर्षीय अभिनव अरोड़ा के शिक्षक उन्हें खाली समय में भजन गाने के लिए कहते हैं. उनकी कक्षा का हर बच्चा उनके साथ बैठना चाहता है — उन्हें रोस्टर बनाना पड़ता है.
कटारा कोई वीआईपी नहीं हैं, लेकिन अब उनकी ज़िंदगी हाई-लेवल सुरक्षा के घेरे में है और पुलिस अधिकारी उनके फोन में स्पीड डायल पर हैं. उनकी कहानी बताती है कि भारत में हत्या के गवाह आगे आने से क्यों कतराते हैं.
ज्यादातर स्टूडेंट्स गौतम कुमार को नहीं जानते थे क्योंकि नया शैक्षणिक वर्ष अभी एक महीने पहले ही शुरू हुआ था, लेकिन उनकी मौत ने गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी में इस विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया है.
21 सालों में जेपीएससी ने सिर्फ 13 परीक्षाएं आयोजित की हैं, जबकि इसे सालाना आयोजित किया जाना चाहिए. ऐसी एक भी सिविल सेवा परीक्षा नहीं हुई है, जिसका मसला अदालत में न गया हो.
रंगमंच के सितारे गोपाल शरमन और जलाबाला वैद्य ने अक्षरा थिएटर को अपने हाथों से बनाया है — सचमुच. आज यह जिस संघर्ष का सामना कर रहा है, वह दिल्ली के रंगमंच परिदृश्य में बड़े अस्तित्वगत संकट का एक छोटा-सा रूप है.
टोल बूथ के मुखबिरों से लेकर इंस्टाग्राम योद्धाओं और चुनाव उम्मीदवारों तक — हरियाणा के गौरक्षक धर्म, कानून और राजनीति के बीच की रेखाओं को धुंधला कर रहे हैं और अपने पीछे अराजकता फैला रहे हैं.
दिल्ली के आईआईसी में एक व्याख्यान के दौरान जेएनयू की प्रोफेसर आर महालक्ष्मी ने कहा कि समय के साथ सात्विक और तामसिक जैसे शब्दों के अर्थ बदल गए हैं. अब ‘हम सिर्फ भोजन को ही नहीं बल्कि खाने वालों को भी देख रहे हैं’.
हिंदी साहित्य में प्रेमचंद, निराला और निर्मल वर्मा जैसे महान लेखकों का बोलबाला है. ओमप्रकाश वाल्मीकि और तुलसीराम जैसी दलित-बहुजन आवाज़ों ने यथास्थिति को हिलाकर रख दिया, लेकिन अभी भी एक नए सिद्धांत की कमी है.
1970 के दशक में उर्दू बाज़ार में 50 से ज़्यादा किताबों की दुकानें थीं, लेकिन अब सिर्फ 5 ही बची हैं. बाज़ार अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. यह उर्दू प्रिंटिंग, प्रकाशन और कविताओं के युग का आखिरी दौर है.
चुनाव के समय भाजपा ‘औरंगज़ेब’, ‘पाकिस्तान’ और ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों को मशीन की तरह सटीकता से पेश करती है, लेकिन पश्चिम बंगाल की तरह महाराष्ट्र में भी यह कारगर नहीं होगा.