मट्टो की साइकिल और उसकी जिंदगी के बरअक्स यह फिल्म असल में हर उस गरीब इंसान की कहानी दिखाती है जो तेजी से दौड़ रहे देश में अपने हिस्से के विकास का इंतजार कर रहा है.
एक अच्छा टाइम पास मनोरंजन देने वाली इस फिल्म को इसकी भरपूर भव्यता के लिए देखा जाना चाहिए-परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, बच्चों के साथ. लेकिन कहानी और पटकथा की बारीकियों पर गौर न करें, आपको निराशा ही हाथ लगेगी.
फिल्मों में अध्यापक का चेहरा बदला है और कई सारी फिल्में भी ‘गुरु’ की भूमिका में आती हैं व सिनेमाघर को ‘क्लास-रूम’ का दर्जा देकर बहुत कुछ सिखा-पढ़ा जाती हैं.
संस्कृत से ही तो हमारी परंपराओं का पोषण हुआ है. उन परंपराओं का, जिनमें वैदिक, उपनिषद और तमाम पौराणिक, सामाजिक और आर्थिक साहित्य लिखा गया. कौटिल्य का अर्थशास्त्र, वेद, उपनिषद्, गीता, सभी संस्कृत में ही लिखे गए हैं.
अंगराग 'पैपोन' महंत का कहना है कि यहां का संगीत अपनी पहचान की तलाश के लिए संघर्ष कर रहा है. नॉर्थईस्ट के अधिकांश गीतों में न तो वहां का कोई सार बचा है और न ही आत्मा.
साउथ से आने वाली हर फिल्म को अच्छी, उम्दा, शानदार बताने का रिवाज ‘लाइगर’ से हल्का पड़ा है. क्या हिन्दी वालों का साउथ इंडियन फिल्मों से मोहभंग हो रहा है?
राजीव गांधी को बोफोर्स आदि के लिए कोसना फैशन बन गया है लेकिन सच यह है कि हमारे इतिहास में सिर्फ 1985-89 वाला दौर ही ऐसा था जब हथियारों की खरीद भविष्य के मद्देनजर आगे बढ़कर की गई.