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Sunday, 19 January, 2025
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नेशनल इंट्रेस्ट

राहुल गांधी कांग्रेस में जान फूंक सकते हैं, लेकिन उन्हें दशकों से बनी राजनीतिक छवि से बाहर आना होगा

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की 99 सीटों पर जीत ने दो दशकों से राहुल गांधी को परेशान कर रहे तीन नुकीले सवालों की धार खत्म तो कर दी है मगर उनके अब तक के सियासी सफर पर भी गौर करना ज़रूरी है.

मोदी के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ का फंदा, पुनर्जीवित विपक्ष के साथ 5 साल का टेस्ट मैच

मोदी की इस सरकार को भारी चुनौतियों का मुकाबला उस संपूर्ण सत्ता (जिसकी वह आदी हो चुकी थी) के बिना और एक-के-बाद-एक चुनावी चुनौतियों के बीच करना पड़ेगा.

मोदी की बदली दुनिया : लोकतंत्र से जुड़ी खीझें और राहुल के साथ चाय पीने की मजबूरी

मोदी सरकार की तीसरी पारी में बदली हुई वास्तविकता उस पुराने सामान्य दौर की वापसी होगी, जब बहुमत वाली सरकारों को भी बेहिसाब बहुचर्चित बगावतों का बराबर सामना करना पड़ता था.

मुस्लिम वोटों की ताकत लौटती दिख रही, और इस बार हिंदुओं ने भी उनके साथ गठजोड़ किया है

मुस्लिम वोट भाजपा की सबसे बड़ी चिंता हैं. विरोधी पहले से ही सक्रिय हैं और कमियों की तलाश कर रहे हैं. यूपी को फिर से हासिल किए बिना, भाजपा की हार के धीरे धीरे बढ़ने की संभावना है.

कांग्रेस के लिए अबकी बार 90 पार? क्यों 30 से अधिक सीटें BJP को कर सकती है परेशान

चुनाव नतीजे पर चर्चा में प्रायः हर कोई केवल भाजपा के ‘आंकड़े’ की बात कर रहा है, लेकिन क्या हो अगर हम समीकरण को उलट दें और यह सवाल करें कि हारने वाले का प्रदर्शन कैसा रहा?

नेटफ्लिक्स की चमकीला और ट्रूडो के कनाडा में क्या समानता है? दोनों ही पंजाब की असलियत से दूर है

चमकीला की हत्या से पहले के हफ्तों में हर दूसरे दिन हत्याएं की जा रही थीं. इन सबकी अनदेखी कर देना अगर अपराध नहीं है तो बौद्धिक कायरता है.

BJP मुकाबले में सबसे आगे, फिर भी चुनावी मुद्दा तय करने में Modi को डर क्यों

‘लहर’ वाले चुनाव के दौरान मतदाताओं का उत्साह चरम पर होता है. एक बेहतर भविष्य की उम्मीदें रहती हैं, कभी-कभी प्रतिशोध का भाव भी रहता है. इन सबके मद्देनज़र 2024 का चुनाव अप्रत्याशित रूप से मुद्दा विहीन चुनाव नज़र आ रहा है.

यह 6 राज्य तय करेंगे, BJP अबकी बार 400 पार करेगी कि विपक्ष उसे 272 का आंकड़ा भी नहीं छूने देगा

इस बार हमारे राजनीतिक भूगोल के बड़े हिस्से में चुनावी मुक़ाबले का नतीजा भले साफ नजर आ रहा हो, मगर कुछ हिस्से में यह मुक़ाबला 2019 के मुक़ाबले से भी ज्यादा तीखा है

44 साल बाद, मोदी की भाजपा में केवल दो चीज़ें बदली, एक चीज़ है जो नहीं बदली

जैसा कि भाजपा सत्ता में लगातार तीसरे कार्यकाल की ओर अग्रसर है, इसलिए यह बहस दिलचस्प है कि यह मूल प्रस्ताव पर कितनी खरी उतरती है: एक अलग तरह की पार्टी.

विपक्ष भी नहीं सोचता कि वह BJP को हरा पाएगा, सिर्फ सीटें कम करने और अस्तित्व बचाए रखने की जद्दोजहद है

विपक्षी दलों को कड़ी चुनौती का एहसास तो है मगर उनके अंदर बातें यही होती हैं कि नरेंद्र मोदी की सीटें कहां-कहां से कम की जा सकती हैं, यह नहीं कि उन्हें सत्ता से कैसे बेदखल किया जा सकता है

मत-विमत

एक नया ‘इज़्म’ आ गया है, जो राइट, लेफ़्ट और सेंटर को मात दे रहा है

इस नई दुनिया में ‘पॉपुलिज़्म’ वाम, दक्षिण, मध्य, सभी मार्गों को ध्वस्त कर रहा है. बेशक हर एक देश, मतदाता समूह, और समाज के लिए यह अलग-अलग रूप में उभर रहा है, इसका आकर्षण और इसकी सफलता इसके प्रयोग में निहित है. यह आपके दिल या दिमाग पर ज्यादा बोझ नहीं डालता.

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राजनीति

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अजित ने संभवत: बीड की स्थिति को देखते हुए प्रभारी मंत्री का पदभार संभाला : पाटिल

सोलापुर, 19 जनवरी (भाषा) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी राकांपा (शरद पवार) की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष जयंत पाटिल ने रविवार को कहा कि उपमुख्यमंत्री...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.