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Saturday, 21 December, 2024
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नेशनल इंट्रेस्ट

क्यों सोनिया-राहुल की कांग्रेस ने पतन की जो दौड़ 2004 में शुरू की थी उसे अब जीतने वाली है

2004 में सत्ता में वापसी के रूप में काँग्रेस की जो लॉटरी लगी थी उसके कारणों पर यथार्थपरक आत्ममंथन करने की जगह उसने उससे तमाम तरह के गलत राजनीतिक निष्कर्ष निकाल लिये.

सुधारों में सुस्ती पर खीज आए तो ‘बे-कसूर’ सजायाफ्ता IAS अधिकारी एचसी गुप्ता को याद करें

2010-13 के उस घोटाला मौसम का साया आज भी भारतीय राजनीति पर मंडरा रहा है और इसके शिकार वे हुए जो निर्णय प्रक्रिया की कड़ी के सबसे निचले छोर पर थे.

राष्ट्रवाद पर मोदी से टक्कर लेने को तैयार केजरीवाल, उन्हें तिरंगा-दर-तिरंगा लोहा लेना पड़ेगा

नरेंद्र मोदी को लेकर अरविंद केजरीवाल ने अपना ‘मौन व्रत’ तोड़ दिया है. राजनीति में आया यह मोड़ बिहार में आए नाटकीय मोड़ जितना ही महत्वपूर्ण है.

कैसे रहे कश्मीर के बीते तीन साल, 3 अच्छे बदलाव और 3 बातें जो और भी बुरी हुईं

पिछले तीन साल कश्मीर एक समस्या के रूप में सुर्खियों में और चिंता के रूप में हम सबके मन पर छाया नहीं रहा, इसे सबसे महत्वपूर्ण और बेहतर बदलाव माना जा सकता है.

मोदी को वही चुनौती दे सकता है जो हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ ला सके

मोदी को भविष्य में चुनौती वही दे सकता है जो हिंदू-मुसलमान को फिर से साथ ला सके; हिंदुओं को हिंदू के रूप में, जातियों में बंटे समूहों में नहीं.

यह सिंपल, गॉड लविंग भारतीय मुस्लिम अपने पीछे कितनी समृद्ध विरासत छोड़ गया है

कुछ और ऐसी चीजें भी हैं जो कलाम कतई नहीं थे, वह क्षुद्र मानसिकता वाले, निंदक, स्वार्थी, प्रतिशोधी, सिद्धांतहीन, अहंकारी नहीं थे. यही वजह है कि एक अरब से अधिक लोग दशकों से उन्हें अपने सबसे प्रिय नेता के तौर पर याद करते हैं.

क्यों लुटा हिंदू कारवां, और क्या है भारतीय सेक्युलरवाद का भविष्य

भारत में धर्मनिरपेक्षता का ठेका लंबे समय से 14 फीसदी मुसलमानों के जिम्मे रहा है लेकिन अब समय आ गया है कि इसकी ज़िम्मेदारी हिंदुओं को संभाल लेनी चाहिए.

मोदी-BJP चाहती है कि मुसलमान उनकी शर्तों पर चलें, राजनीतिक चुनौती देने के लिए 3 शर्तें जरूरी

फिलहाल अजेय दिख रही भाजपा क्या यह चाहती है कि देश की करीब 15 फीसदी आबादी को उसकी आस्था के कारण अलग-थलग कर दिया जाए? यह तो भारतीय लोकतंत्र को कमजोर ही करेगा.

क्या मुझे ऑल्ट न्यूज़ के ज़ुबैर से कोई शिकायत है? इसके 3 जवाब हैं- नहीं, नहीं और हां

किसी को अपने विचारों के लिए जेल में नहीं डाला जाना चाहिए, न उस पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए. खासकर उन विचारों के लिए जो केवल सोशल मीडिया पर जाहिर किए गए हों.

महाराष्ट्र में चला सियासी खेल नैतिक और राजनीतिक से कहीं ज्यादा वैचारिक है

बाल ठाकरे कुछ भी कर सकते थे, घंटे भर में अपनी दिशा बदल सकते थे. अगर वे यह चाहते थे कि ठाकरे कुनबा औपचारिक सत्ता से अलग रहे तो इसकी भी एक वजह थी.

मत-विमत

‘कौवा मंदिर के शिखर पर बैठ जाए तो गरुड़ बन जाएगा?’: भागवत ने सांप्रदायिक विवादों पर BJP को चेताया

आरएसएस के सरसंघचालक अगर ‘मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने’ के बढ़ते दावों पर रोक लगाने की अपील कर रहे हैं तो इसके पीछे यह एहसास है कि यह मसला कहीं भाजपा सरकार के काबू से बाहर न हो जाए .

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राजनीति

देश

दिसंबर तिमाही में शीर्ष नौ शहरों में आवास बिक्री में 21 प्रतिशत की गिरावट: प्रॉपइक्विटी

नयी दिल्ली, 21 दिसंबर (भाषा) देश के प्रमुख नौ शहरों में घरों की बिक्री में अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान सालाना 21 प्रतिशत की...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.