नई दिल्ली: संसद का बजट सत्र अक्सर बहुत बोरिंग आर्थिक शब्दजाल और तकनीकी- वित्तीय शब्दों और बातचीत से भरा हो ता है. लोकसभा ने इस कार्यवाही को विशेष नाम दिया है “विट और ह्यूमर” यानी गंभीरता से भरा हुआ हास्य.
लोकभा की वेबसाइट के वाद-विवाद खंड में सदन की चर्चाओं और वाद-विवाद के ऐसे सभी वर्गों के लिए एक विशेष सूची है जहां सांसदों ने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए खूब दोहे, हास्य, और कविताओं का इस्तेमाल किया है.
दिसंबर 2022 में नवीनतम शीतकालीन सत्र सहित, 14वीं से 17वीं लोकसभा तक, दिप्रिंट ने इस खंड से मिली जानकारी का विश्लेषण किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि भाषण में कविताएं, दोहे, भाषण, हास्य, गीत और श्लोक जैसे अलंकरण का अधिकतम उपयोग किया गया है. इसे खंगालने पर हमें पता चला की बजट सत्र के दौरान और नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान – 2019 के बाद से इनका उपयोग काफी बढ़ गया है.
बुद्धि और हास्य बढ़ रहा है
प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में इस तरह की वाकपटुता वाली बातें 519 बार सांसदों ने की है. वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले यह संख्या बढ़ने की संभावना है क्योंकि 2024 में चुनाव होने हैं.
बता दें कि इन 519 में से 391 या 75 प्रतिशत से अधिक, बजट सत्रों के दौरान रिपोर्ट किए गए थे – शीतकालीन सत्र के बाद 93 ऐसे भाषण हुए, और मानसून सत्र में केवल 35 ही देखने को मिले.
मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले के यूपीए शासन में, 2004 में 14वीं लोकसभा के दौरान भाषणों में वाकपटुता और अलंकरण के 40 उदाहरण देखने को मिले – वहीं 15वीं लोकसभा में ये बढ़कर 129 हो गया. 16वीं लोकसभा के दौरान, जब मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी, सांसदों के भाषणों में ऐसे 257 उदाहरण दर्ज किए गए थे.
14वीं लोक सभा में 15, 15वीं लोकसभा में 57 और 16वीं लोक सभा में 147 उदाहरणों के साथ, बजट सत्र कई वर्षों से सांसदों के लिए अपने वाकपटुता कला के साथ नंबर एक बना हुआ है.
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संसद में कवि
2004 के बाद से, कुल 1,000 भाषणों में, बुद्धि, हास्य, कविता या कुछ ऐसी कलात्मक लाइन का उपयोग किया गया, इसमें कुल 486 कविताओं का इस्तेमाल किया गया, 198 में दोहे का इस्तेमाल किया गया और 133 में रिपार्टी यानी (हाजिर जवाबी) शामिल थे.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान श्लोकों – संस्कृत में छंद या दोहे – ने भी खूब लोकप्रियता हासिल की है.
15वीं लोकसभा में केवल तीन श्लोकों का उल्लेख मिलता है. 16वीं में यह बढ़कर पांच हो गई, लेकिन मौजूदा लोकसभा में पहले ही संख्या बढ़कर 69 हो गई है.
संसद के भाषणों में कुराल (तमिल दोहे), गीत, ग़ज़ल, गुरबानी (सिख भजन) और मुहावरों का प्रयोग भी सामने आया है.
प्रत्येक सत्र के इंडेक्स देखने से पता चलता है कि बड़ी संख्या में वाकपटुता का इस्तेमाल किया गया है. – कब, कौन और क्या. इस जानकारी के आधार पर, दिप्रिंट ने गणना की कि संसद में किसी सदस्य ने कितनी बार साहित्यिक भाषा का इस्तेमाल किया.
झारखंड के गोड्डा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने अपने भाषणों में 14 कविताओं, 13 दोहों, 11 श्लोकों और तीन छंदों का उपयोग करके चार्ट में शीर्ष स्थान हासिल किया है. दुबे 15वीं लोकसभा के बाद से (जब से वह सांसद बने हैं) संसद के “बुद्धि और हास्य” खंड में 42 बार दिखाई दिए हैं.
दुबे के बाद भाजपा की मीनाक्षी लेखी हैं, जो नई दिल्ली से सांसद हैं और विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री हैं, उनके भाषण में कविता के 12 उदाहरण, सात दोहे, तीन श्लोक और एक गीत का उपयोग है.
पूर्व शिक्षा मंत्री और भाजपा के रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ इस श्रेणी में 19 प्रविष्टियों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
14वीं से 17वीं लोकसभा के दौरान कांग्रेस के राजनेताओं, मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी और शशि थरूर की भी क्रमश: 17, 16 और 15 प्रविष्टियां थीं.
16 वीं लोकसभा के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुल नौ बार उल्लेख किया गया है. उन्होंने सात कविताओं, एक दोहे और एक श्लोक का प्रयोग किया है.
(संपादन: आशा शाह)
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