scorecardresearch
Monday, 16 December, 2024
होमBud ExpectationBudget 2023: 2022 पूंजीगत खर्च के वादों की राह पर मोदी सरकार, राज्य पिछड़े; पंजाब-बिहार काफी पीछे

Budget 2023: 2022 पूंजीगत खर्च के वादों की राह पर मोदी सरकार, राज्य पिछड़े; पंजाब-बिहार काफी पीछे

आंकड़ों से पता चलता है कि राज्यों ने पूंजी परिव्यय के लिए कुल 7 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक का बजट रखा था, नवंबर 2022 तक केवल 2.58 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. आंध्र प्रदेश बड़े राज्यों में सबसे निचले स्थान पर था.

Text Size:

नई दिल्ली: जबकि मोदी सरकार देश में पूंजीगत संपत्ति के निर्माण पर अपने बजट 2022 के वादे को पूरा करने के रास्ते पर है, राज्यवार आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य सरकारें अभी भी इस संबंध में पिछड़ रही हैं, खासकर – आंध्र प्रदेश और पंजाब – जैसे राज्य जो कि दूसरे राज्यों की तुलना में काफी बदतर हैं.

केंद्र सरकार ने पिछले बजट में पूंजीगत व्यय के लिए 7.5 लाख करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया था और वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली छमाही (सितंबर 2022) तक 4.1 लाख करोड़ रुपये (या 54 प्रतिशत) पहले ही खर्च किए जा चुके थे.

हालांकि, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAGI) की वेबसाइट पर उपलब्ध राज्य के वित्त पर करीब से नज़र डालने से पता चलता है कि राज्य सरकारों द्वारा पूंजीगत व्यय समान रूप से गति नहीं पकड़ पाया है. नवंबर 2022 तक उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि सभी राज्यों ने सामूहिक रूप से अब तक अपने कुल बजटीय पूंजीगत व्यय का केवल 36 प्रतिशत ही खर्च किया है.

पूंजीगत व्यय, या कैपेक्स, दीर्घकालिक निवेश है जो कि सरकारें आर्थिक गतिविधियों को आसान बनाने या राजस्व के अतिरिक्त स्रोत उत्पन्न करने के लिए करती हैं. ये परियोजनाएं लंबे समय में वित्तीय लाभ की सुविधा प्रदान करती हैं.

जबकि केंद्र सरकार राजमार्गों, रेलवे, रक्षा और शहरी बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य पर कैपेक्स में भारी निवेश करती है, राज्य सरकारों के पास उन विषयों के लिए पूंजीगत व्यय बजट भी होते हैं जो राज्यों की सूची का हिस्सा हैं. हालांकि, कुछ ओवरलैप संभव है.

विशेषज्ञों के अनुसार, वित्तीय अनिश्चितताएं और राजस्व घाटा कुछ ऐसे कारण हैं जो राज्यों को उनके कैपेक्स बजट को पूरा करने से रोकते हैं.

दिप्रिंट ने CAGI वेबसाइट से सभी राज्यों (केंद्र शासित प्रदेश नहीं) के लिए मासिक वित्तीय संकेतक पर नज़र डाली ताकि इस बात का विश्लेषण किया जा सके कि राज्य अपने कैपेक्स खर्च में कितना पीछे है.


यह भी पढ़ेंः Budget 2023: रक्षा क्षेत्र में अधिक मारक क्षमता, पनडुब्बियां और ड्रोन हासिल करने पर टिकी नजरें


आंध्र प्रदेश, पंजाब पिछड़े

सीएजीआई के आंकड़ों के अनुसार, जबकि कुल मिलाकर राज्यों ने अपने पूंजीगत परिव्यय के लिए 7 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक का बजट रखा था, नवंबर 2022 तक केवल 2.58 लाख करोड़ रुपये ही खर्च किए गए थे. तब जबकि वित्तीय वर्ष का आधे से अधिक समय पहले ही बीत चुका था, यह डेटा अभी भी अनंतिम है और वित्तीय वर्ष के अंत में अभी भी बदलाव और सुधार की गुंजाइश है.

बड़े राज्यों में, आंध्र प्रदेश पूंजीगत व्यय लक्ष्यों की प्राप्ति के मामले में सबसे नीचे था. राज्य ने पूंजी परिव्यय के लिए कुल 30,680 का बजट रखा था, लेकिन खातों से पता चलता है कि नवंबर 2022 तक केवल 6,188.5 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए थे, जो कि उसकी बजट प्रतिबद्धताओं का सिर्फ 20.2 प्रतिशत था.

पंजाब, जो आमतौर पर पूंजीगत व्यय पर बहुत कम राशि खर्च करता है, दूसरे स्थान पर रहा. राज्य ने इस वित्तीय वर्ष में पूंजीगत व्यय पर कुल 10,981 करोड़ रुपये की उम्मीद की थी, लेकिन उसी समय तक केवल 2,641.45 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं, जो कि अपनी बजटीय प्रतिबद्धता के 24 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है.

झारखंड ने अपनी 16,770 करोड़ रुपये के कैपेक्स का केवल 25 प्रतिशत खर्च किया है, महाराष्ट्र ने अपनी 70,819 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धताओं का 27 प्रतिशत खर्च किया है, जबकि उत्तर प्रदेश – जिसकी सबसे बड़ी कैपेक्स प्रतिबद्धता 1.24 लाख करोड़ रुपये थी – ने नवंबर 2022 तक केवल 35,658 करोड़ रुपये या 28 प्रतिशत खर्च किए थे.

कैग के आंकड़ों के अनुसार, वास्तविक पूंजीगत व्यय के संदर्भ में अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में केवल गुजरात (56.8 प्रतिशत), केरल (53.8 प्रतिशत) और कर्नाटक (52.3 प्रतिशत) हैं. इन राज्यों ने इस वर्ष नवंबर 2022 तक अपने अनुमानित पूंजीगत व्यय बजट का आधे से अधिक खर्च कर दिया है.

पंजाब और बिहार बार-बार कर रहे वही काम

ऐसी संभावना है कि शेष चार महीने की अवधि (दिसंबर 2022-मार्च 2023) में, राज्य कुछ बड़ी परियोजनाओं को वित्तपोषित कर सकते हैं और कुल पूंजीगत व्यय का पैसा खर्च कर सकते हैं. ऐसा होने की संभावना का अनुमान लगाने के लिए दिप्रिंट ने 2016-17 से 2020-21 तक पिछले पांच वित्तीय वर्षों में राज्यों द्वारा औसत रूप से खर्च किए गए धन के डेटा को देखा. इसके लिए, दिप्रिंट ने प्रत्येक राज्य के वित्तीय खातों से डेटा को स्कैन किया और उन्हें अपने बजट की संख्या के साथ विभाजित किया, यह देखने के लिए कि वे अपने लक्ष्य से कितने पीछे हैं.

Graphic Ramandeep Kaur | ThePrint

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पंजाब पिछले पांच वित्तीय वर्षों में पूंजीगत व्यय पर अपने बजटीय आवंटन को खर्च करने में नियमित रूप से पीछे रहा है. वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच पंजाब ने अपने बजट में पूंजी परिव्यय पर 50,468 करोड़ रुपये आवंटित किए, लेकिन खर्च केवल 31,320 करोड़ रुपये ही किया. औसतन इसने पिछले पांच वर्षों में अपने अनुमानित पूंजीगत व्यय का केवल 62 प्रतिशत ही खर्च किया है.

बिहार भी यही काम बार-बार करता रहा है. इसी अवधि के दौरान, बिहार ने भी 1.76 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की परिकल्पना की, लेकिन केवल 1.077 लाख करोड़ रुपये या अपने कैपेक्स लक्ष्य का 62 प्रतिशत खर्च करने में सफल रहा.

छत्तीसगढ़ ने इस अवधि के दौरान कुल कैपेक्स 67,860 करोड़ रुपये का 64 प्रतिशत खर्च किया. बाकी सभी राज्यों ने 2018-22 की अवधि में अपने बजटीय पूंजीगत व्यय का कम से कम 70 प्रतिशत खर्च किया था.

हालांकि, कुछ राज्य कैपेक्स खर्च करने का एक बहुत अच्छा रिकॉर्ड दिखाते हैं. उदाहरण के लिए, कर्नाटक ने इन पांच वर्षों के दौरान कुल 1.76 लाख करोड़ रुपये का कैपेक्स का लक्षय रखा और वास्तव में 1.744 लाख करोड़ रुपये खर्च किए, जो परिकल्पित खर्च का लगभग 99.1 प्रतिशत था.

मध्य प्रदेश (96 प्रतिशत लक्ष्य उपलब्धि के साथ), झारखंड (95 प्रतिशत), ओडिशा (89.6 प्रतिशत), तेलंगाना (84.1 प्रतिशत) और गुजरात (81.5 प्रतिशत) भी बजटीय पूंजीगत व्यय के लिए प्रतिबद्ध रहे.


यह भी पढ़ेंः ‘भारत पहले, नागरिक पहले’, राष्ट्रपति अभिभाषण से पहले बोले पीएम मोदी- भारत के बजट पर दुनिया की नजर


क्यों कुछ राज्य अपने कैपेक्स को कम करते हैं

विशेषज्ञों का मानना है कि इतने सारे राज्य अपने बजटीय पूंजीगत व्यय का पैसा खर्च नहीं करने के कारण विभिन्न कारकों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में एसोसिएट प्रोफेसर मनीष गुप्ता ने कहा, “जीएसटी मुआवजे की समाप्ति और राज्यों द्वारा कम बाजार उधारी के कारण राज्यों द्वारा पूंजीगत व्यय कम रहा है, राज्य सरकारों के बजट से बाहर उधारी को शामिल करने के बारे में देरी और अनिश्चितता के कारण उनकी वार्षिक उधारी तय की गई है.”.

उन्होंने कहा: “इस बात की संभावना है कि इन वित्तीय अनिश्चितताओं के कारण कुछ राज्यों ने अपने पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण में धीमी शुरुआत की हो.”

जबकि यह इस वर्ष के लिए कम कैपेक्स के कारणों की व्याख्या कर सकता है, यह अभी भी पंजाब जैसे बार-बार अपराधियों के लिए जवाब नहीं देता है.

पटियाला में पंजाबी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिटस, लखविंदर सिंह गिल ने कहा, “पंजाब एक कर्ज में डूबा राज्य है और लंबे समय से यह राजस्व घाटे पर चल रहा है – कम आय अर्जित कर रहा है, लेकिन राज्य चलाने के लिए अधिक खर्च कर रहा है.”

उन्होंने कहा: “पंजाब के राजस्व के स्रोत इतने सूख गए हैं कि उसे अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए ऋण लेने की आवश्यकता है. पैसा एक फंजिबिल एसेट है, और पूंजीगत व्यय को कम करना सबसे आसान है.”

गिल ने आगे कहा, “इसलिए, जब पैसा आता है, तो सरकार वादा किए गए कैपेक्स को रद्द करने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ लेती है और अपने राजस्व घाटे को संतुलित करना जारी रखती है, इसलिए कैपेक्स कम रहता है.”

गुप्ता ने कहा: “वास्तविक और बजटीय अनुमानों के बीच भारी अंतर होने से अक्सर राज्य के वित्तीय दृष्टिकोण पर रेड डॉट लग जाता है.

तो क्या राज्य अपने कैपेक्स को लंबे समय तक जारी रख सकते हैं? गुप्ता के अनुसार इसका उत्तर नहीं है.

गुप्ता ने कहा, “पूंजीगत व्यय भविष्य के राजस्व स्रोत के निर्माण के लिए खर्च किया गया धन है.”

उन्होंने कहा: “आप आज एक बड़ी परियोजना में निवेश करते हैं जो भविष्य में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाएगी और रिटर्न भी देगी. राज्य अपनी कैपेक्स परियोजनाओं में कटौती करना जारी रखते हैं और मूल रूप से अपने भविष्य के राजस्व स्रोतों में भी कटौती कर रहे हैं. यह उनके आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः Budget 2023: केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को इंफ्रा, इक्विपमेंट, ट्रेनिंग और कम्युनिकेशन के लिए फंड चाहिए


 

share & View comments