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Friday, 19 December, 2025
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न शव, न सर्टिफिकेट—रूस के युद्ध में लापता भारतीय, जवाब के लिए मॉस्को तक भटक रहे हैं परिवार

जब परमिंदर कौर रशियन आर्मी सोशल सेंटर में गूगल ट्रांसलेट के जरिए अपनी बातें समझा रहीं थीं, तो वह रो पड़ीं और कमरे में मौजूद महिलाओं ने उन्हें सांत्वना दी. यह देखकर रूसी लोग नरम पड़ गए और उन्होंने उनके काम को जल्दी पूरा करवाया.

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जालंधर/अमृतसर: परमिंदर कौर के गहरे दुख के सभी जवाब एक रूसी सेना के सोशल सेंटर के रूम 412 के कंप्यूटर में एक एब्स्ट्रैक्ट फ़ाइल में थे. वह अपने पति तेजपाल के अवशेषों को खोजने के मिशन पर थीं, जिनके बारे में उन्हें बताया गया था कि वे रूस में एक विदेशी युद्ध लड़ते हुए मारे गए थे. लेकिन रोने के लिए कोई शव नहीं था, देखने के लिए कोई मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं था, याद रखने के लिए कोई अंतिम संदेश नहीं था. उन्होंने मृत्यु का प्रमाण खोजने के लिए अमृतसर से मास्को तक की यात्रा की थी, और फिर शायद बंद कर दिया था.

तेजपाल की मृत्यु की खबर अप्रैल 2024 में ही परमिंदर तक पहुंच गई थी, लेकिन इसे साबित करने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र के बिना, परमिंदर अपने पति की मृत्यु को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी. भारत सरकार के पास भी कोई जवाब नहीं था.

उसके दुख में परमिंदर अकेली नहीं है. रूस के युद्ध प्रयासों में कम से कम 44 भारतीयों की भर्ती की गई है. माना जा रहा है कि यूक्रेन में युद्ध लड़ने के लिए रूसी सेना में भर्ती होने के बाद भारतीय मूल के लगभग 16 लोग लापता हो गए हैं और 12 के मारे जाने की पुष्टि हुई है. उनके परिवार अब अपने परिजनों को खोजने के लिए एक अकेली लड़ाई लड़ रहे हैं. चूंकि भारत में जानकारी पहुंच से बाहर है, इसलिए वे अपने रिश्तेदारों की तलाश में रूस जाने के लिए पैसे उधार ले रहे हैं. उन्होंने एक-दूसरे की मदद करने के लिए व्हाट्सएप पर एक सहायता समूह बनाया है.

कहानी के केंद्र में एक ऐसे रिश्तेदार के लिए शोक मनाने की अनिच्छा है, जिसकी मृत्यु की पुष्टि नहीं हुई है, भले ही वे गहरे दुख में हों.

27 families from all over the country—Maharashtra, Rajasthan, Telangana, Haryana, Punjab—gathered at the protest site. | Shubhangi Misra | ThePrint
देश भर से 27 परिवार – महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब – विरोध स्थल पर इकट्ठा हुए | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

तेजपाल उन भारतीयों के पहले जत्थे में शामिल थे, जिनके रूस में युद्ध लड़ते समय मारे जाने की पुष्टि हुई थी. लेकिन उनका शव कभी नहीं आया, और इसलिए सारी जानकारी सामने होने के बावजूद परमिंदर अपने पति की मृत्यु को पूरी तरह स्वीकार करने से इनकार करती है. दर्जनों अन्य परिवार भी ऐसा ही कर रहे हैं. वे बिना किसी बंद के दुख झेलने की ऐसी ही दर्दनाक कहानियां बताते हैं.

रिश्तेदारों को खोजी पत्रकारों की तरह सुराग तलाशने पड़ते हैं. वे मॉस्को पहुंचते हैं, यह नहीं जानते कि आगे क्या करना है, और फिर एक सुराग से दूसरे सुराग तक जाते हैं. उनकी तलाश उन्हें मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग के भर्ती कार्यालयों और सैन्य आयोगों तक ले जाती है. वे गूगल लेंस से रूसी दस्तावेज स्कैन करते हैं और अनुवाद ऐप का इस्तेमाल करते हैं.

अब वे रूसी अफसरों को जानते हैं, रूसी अंकों को समझने लगे हैं और रूसी सैन्य अदालतों की प्रणाली से परिचित हो चुके हैं.

परिवारों का कहना है कि भारत सरकार ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है और उन्हें ठीक से मदद नहीं मिली है.

मॉस्को में अपने लापता रिश्तेदारों की तलाश कर रहे लोगों में से एक जगदीप कुमार ने कहा, “हमने विदेश मंत्रालय में कई बैठकें की हैं और हमें आश्वासन दिया गया है, लेकिन वे हमसे संपर्क नहीं करते या उसके बाद कुछ नहीं करते. यहां भी, सेंट पीटर्सबर्ग या मॉस्को में दूतावास मददगार नहीं हैं. दूतावास के दरवाजे हमारे लिए बंद हैं.”

रूम नंबर 412

जब परमिंदर कौर ने अपने पति तेजपाल सिंह का डेथ सर्टिफिकेट पढ़ा, तो उनकी नज़र ‘शव को निकालना संभव नहीं है’ इस लाइन पर अटक गई.

यह मृत्यु का पहला प्रमाण था. इसे खोजने के लिए रूस जाने के लिए परमिंदर ने तीन लाख रुपये की बचत करने में एक साल बिताया.

परमिंदर को सितंबर 2024 में रूस जाना याद है. उनके मन में सिर्फ जवाब पाने की इच्छा थी. शुरुआत में वह भटकती रहीं. वह सेना के भर्ती केंद्रों और भारतीय दूतावास गईं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, सिर्फ एक बड़ा, ठंडा और खाली देश.

Parminder Kaur has been to Russia multiple times to confirm her husband Tejpal's death | Shubhangi Misra
परमिंदर कौर अपने पति तेजपाल की मौत की पुष्टि करने के लिए कई बार रूस जा चुकी हैं | शुभांगी मिश्रा

मॉस्को में, आखिरकार परमिंदर को कमरा 412 भेजा गया. वह अक्सर इस कमरे में जाती थीं. पहली बार यहां उन्हें कोई ऐसा मिला जो तेजपाल को जानता था.

तेजपाल 2024 में यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए स्वेच्छा से रूस गए थे. सेना में भर्ती होना तेजपाल का जीवन भर का सपना था, जो भारत में अधूरा रह गया था. रूस में उन्होंने अपने सपने को जीने का रास्ता खोज लिया, भले ही वह अल्पकालिक साबित हुआ.

परमिंदर बिना भाषा जाने एक विदेशी देश की कानूनी प्रणाली से जूझने के लिए दृढ़ थीं.

परमिंदर ने कहा कि कमरा 412 किसी भारतीय सरकारी कार्यालय से अलग नहीं है. फर्क सिर्फ इतना है कि वहां लोग वास्तव में काम करते हैं. वह अंदर गईं और एक महिला के सामने बैठीं, जो यह समझने की कोशिश कर रही थी कि परमिंदर क्या चाहती हैं. गूगल ट्रांसलेट के जरिए जब उन्होंने अपना मिशन बताया तो वह रो पड़ीं और कमरे में मौजूद महिलाओं ने उन्हें सांत्वना दी.

रूसियों ने नरमी दिखाई और काम में तेजी लाई. जब तेजपाल की फाइल निकाली गई तो महिलाओं ने कहा कि उन्हें तेजपाल याद हैं.

परमिंदर ने बताया, “तेजपाल बहुत बातूनी थे. जब मैंने उनकी तस्वीर दिखाई तो महिलाओं ने उनकी मुस्कान पहचान ली. उन्होंने मुझे सांत्वना दी, पानी दिया और कंप्यूटर पर ही मुझे तेजपाल, उनके बटालियन नंबर और नामांकन नंबर की जानकारी दी. इन्हीं दस्तावेजों से मैं आगे बढ़ सकी.”

मॉस्को में परमिंदर को समझ आ गया कि मामला सुलझने में महीनों लगेंगे. उन्होंने रूसी सेना के सामाजिक केंद्र में आवेदन दिया और एक वकील को पावर ऑफ अटॉर्नी दी.

उन्होंने कहा, “मुझे तेजपाल की मौत की पुष्टि करनी थी. मैं अब भी उम्मीद कर रही थी कि वह जिंदा मिल जाएं, या मैं उनका शव लेकर घर लौटूं. हमें आगे बढ़ने के लिए यह बंद चाहिए था.”

रूस में रहने के दौरान, परमिंदर ने तेजपाल के कदमों को फॉलो किया. वह क्रेमलिन को खुद देखने गईं—तेजपाल ने उस बिल्डिंग के बारे में बहुत अच्छी बातें बताई थीं. वह उन कुछ लोगों को ढूंढने और उनसे मिलने में भी कामयाब रहीं, जिन्होंने उनके दिवंगत पति के साथ सेना में काम किया था, जिसमें घाना का एक नागरिक भी शामिल था. परमिंदर कई कमांडो से मिलीं, कुछ सख्त थे, तो कुछ विनम्र. तेजपाल की तलाश में, वह मॉस्को, सेंट पीटर्सबर्ग में रिक्रूटमेंट सेंटर्स गईं और उसी तरह से दुख झेल रहे दूसरे परिवार वालों से मिलीं।

परमिंदर ने याद करते हुए बताया, “उसने [घाना के नागरिक ने] मुझे बताया कि वह जानता है कि तेजपाल बच नहीं पाया. वह तेजपाल के आखिरी दिनों में उसका दोस्त था और उसने मुझे उसकी बहादुरी की कहानियां सुनाईं. उसने मुझे अपने परिवार की तस्वीरें दिखाईं, और एक दिन पंजाब में हमसे मिलने का वादा किया.”

A social security centre in Moscow | by special arrangement
मॉस्को में एक सामाजिक सुरक्षा केंद्र | विशेष व्यवस्था

उनकी तलाश उसी तरह खत्म हुई जैसा वह नहीं चाहती थी: उसे रूस में रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी तेजपाल का डेथ सर्टिफिकेट मिला. उन्होंने यह बात परिवार को कभी नहीं बताई.

उन्होंने कहा, “उनका शरीर टुकड़ों में उड़ गया था. मैं यह अपने बच्चों और उनके माता-पिता को कैसे बताऊं. सब कुछ सामने होने के बावजूद मेरा एक हिस्सा यह मानने को तैयार नहीं है कि तेजपाल सच में चले गए हैं.”

परिवार अब भी मानता है कि तेजपाल एक दिन दरवाजे से अंदर आएंगे.

परमिंदर अब अपने दो बच्चों की परवरिश कर रही हैं. वह 2026 की गर्मियों में उस सैन्य चौकी का दौरा करने की योजना बना रही हैं, जहां तेजपाल आखिरी बार तैनात थे.

उन्होंने कहा, “मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि वे ऐसा कैसे कर सकते हैं. इतने लंबे समय तक मौत को रहस्य में कैसे रख सकते हैं.”

मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ परिवार अब पेंशन और रूस में स्थायी निवास के लिए पात्र है. लेकिन सच्चाई भी परमिंदर को राहत नहीं देती.

“तेजपाल के माता-पिता अब भी मानते हैं कि वह लौट आएंगे. मैं उनकी यह उम्मीद खत्म नहीं कर सकती. शायद तेजपाल सच में लौट आएं.”

एक भाई की तलाश में

जगदीप कुमार अब मॉस्को के सैन्य सामाजिक केंद्रों में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं. वह नियमित रूप से इन केंद्रों का दौरा करते हैं और लापता भारतीयों के ठिकाने के बारे में पूछते हैं. 12 परिवारों की पावर ऑफ अटॉर्नी के साथ, जगदीप उनके परिजनों का पता लगाने की आखिरी उम्मीद बने हुए हैं.

पिछले दो साल जगदीप के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहे हैं. वह न ठीक से सो पा रहे हैं और न ही नियमित रूप से काम कर पा रहे हैं. एक ही सवाल उन्हें लगातार परेशान करता है. उनका भाई मनदीप कहां है.

यह निजी दुख उन्हें दूसरों के दर्द को समझने और उसी तरह के शोक से गुजर रहे लोगों की मदद करने की ताकत देता है.

Mandeep and Jagdeep together on Jagdeep's wedding day | Shubhangi Misra
जगदीप की शादी के दिन मनदीप और जगदीप एक साथ | शुभांगी मिश्रा

2023 में मनदीप खुशहाल मन से घर से निकला था. वह काम की तलाश में इटली जा रहा था. जगदीप की शादी एक साल पहले ही हुई थी और छोटा भाई परिवार की किस्मत बदलने की उम्मीद लेकर निकला था. मनदीप को दिसंबर 2023 में भारत छोड़ने पर इटली का वीजा दिलाने का वादा किया गया था. परिवार ने एक एजेंट को 31.40 लाख रुपये दिए. मां ने खीर खिलाकर उसे नए जीवन के लिए विदा किया. लेकिन मनदीप मॉस्को में उतरा और उसे रूसी सेना में भर्ती कर लिया गया.

जगदीप और उनके माता-पिता ने आखिरी बार 3 मार्च 2024 को मनदीप से बात की थी. स्नाइपर की ट्रेनिंग के बाद उसे डोनेट्स्क की अग्रिम पंक्ति में भेज दिया गया. मनदीप के साथ तस्करी कर लाए गए कुछ लोग बाद में बचा लिए गए और भारत लौट आए. लेकिन उनमें से किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि मनदीप कहां था और वह क्या कर रहा था.

2024 में जगदीप ने उन परिवारों से संपर्क किया, जिनके रिश्तेदार रूस में लापता हो गए थे. उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया और भारतीय दूतावास से सामूहिक रूप से संपर्क करना शुरू किया. पिछले दो वर्षों में जगदीप विदेश मंत्रालय में कई बैठकें कर पाए. लेकिन परिवारों को भारतीय दूतावास से जरूरी जानकारी नहीं मिल सकी.

जगदीप ने परमिंदर से बात की, जो तब तक रूसी अदालतों में केस दायर कर चुकी थीं. उन्होंने परिवारों को जवाब पाने के लिए मॉस्को जाने की सलाह दी. उनका कहना था कि वे पूरी तरह अकेले हैं.

इसके बाद जगदीप ने तुरंत काम शुरू किया. उन्होंने सांसदों और विधायकों जैसे स्थानीय नेताओं से मदद मांगनी शुरू की. कुछ आर्थिक सहायता जुटाने के बाद वह अक्टूबर 2024 में तीन अन्य लोगों के साथ मास्को पहुंचे, जिनके रिश्तेदार लापता थे.

उनका पहला पड़ाव सैन्य सामाजिक केंद्र थे.

ये सैन्य सामाजिक केंद्र रूस में सैन्य आयोग के तहत काम करते हैं और डिफेंडर्स ऑफ द फादरलैंड फाउंडेशन द्वारा संचालित होते हैं. इन्हें 2023 में राष्ट्रपति के आदेश से स्थापित किया गया था. ये केंद्र घायल या मृत सैनिकों के परिवारों को मुआवजा और जरूरी दस्तावेज पाने में मदद करते हैं. यही दस्तावेज दीवानी अदालतों में किसी लापता सैनिक को कानूनी रूप से मृत घोषित करने के लिए जरूरी होते हैं. इसी आदेश से सरकारी भुगतान का रास्ता खुलता है.

रूस ने मार्च 2025 के बाद से यूक्रेन युद्ध में मारे गए लोगों की संख्या अपडेट नहीं की है. हताहतों से जुड़ी जानकारी गोपनीय रखी जा रही है, जिससे रूसी नागरिक भी जवाब के लिए भटक रहे हैं.

जगदीप रूस की जटिल नौकरशाही से जूझने के लिए तैयार थे. उन्होंने मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग के चक्कर लगाए और सस्ते हॉस्टल और होटलों में रहकर दिन गुजारे. उनके पास विदेश मंत्रालय का एक पत्र और 13 परिवारों की पावर ऑफ अटॉर्नी है.

Holding the power of attorney of 12 families, Jagdeep is their last remaining hope to know about the whereabouts of their relatives. | By special arrangement
12 परिवारों का पावर ऑफ अटॉर्नी रखने वाले जगदीप, अपने रिश्तेदारों के बारे में जानने के लिए उनकी आखिरी उम्मीद हैं | विशेष व्यवस्था

वह हरियाणा के माता-पिता को सांत्वना देते हैं. दुखी पत्नियों के लिए भाई बनते हैं और उम्मीद लगाए बच्चों के लिए आशा की किरण हैं.

इस दौरान उन्हें रूसी पुलिस से नस्लवाद, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना भी करना पड़ा.

जगदीप ने दिप्रिंट से फोन पर कहा, “रूसी लोग बिल्कुल भी स्वागत करने वाले नहीं हैं. वे भारतीयों से नफरत करते हैं. मुझे कई बार होटल और रेस्तरां से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि वे वहां किसी भूरे रंग के व्यक्ति को नहीं चाहते थे.”

पिछले दो सालों में जगदीप अपने भाई की तलाश में तीन बार रूस जा चुके हैं.

अब वह मॉस्को की मेट्रो से परिचित हैं, इंस्टेंट नूडल्स पर गुजारा करते हैं और शहर के लगभग हर हॉस्टल में रह चुके हैं.

पंजाब के गुराया में, जगदीप के पिता अवतार अपने छोटे बेटे के बारे में बिना रोए बात नहीं कर पाते. वह स्थानीय बाजार में मोबाइल सिम की दुकान चलाते हैं और रविदास नगर में एक छोटे से घर में रहते हैं.

अवतार ने कहा, “मुझे बस इतना पता है कि वह जिंदा है. शायद उसे यूक्रेन में युद्ध बंदी बना लिया गया है.” वह जगदीप की शादी का एल्बम देखते हैं, जिसमें मनदीप नाचते और मुस्कुराते दिखते हैं.

उन्होंने कहा, “उसे वहां सेना में तस्करी कर लाया गया. भगवान ही जानता है कि उसके साथ क्या हुआ. मुझे सबसे बुरा डर लगता है.”

अवतार की पहली और आखिरी विदेश यात्रा रूस की रही. भाषा न जानने के कारण वह सिर्फ अनुवाद ऐप के सहारे लोगों से बात कर पाए. वहां उन्होंने दूसरे माता-पिता से मुलाकात की, अपने बेटों की कहानियां साझा कीं और एक-दूसरे के साथ रोए. इस साझा संघर्ष ने परिवारों के बीच एक गहरा रिश्ता बना दिया.

जगदीप की सबसे बड़ी उम्मीद है कि उनका भाई मंदीप यूक्रेन में युद्ध बंदी है. हालांकि, जैसा कि दिप्रिंट पहले रिपोर्ट कर चुका है, यूक्रेनी हिरासत में भारतीय मूल का केवल एक ही युद्ध बंदी है.

अब जगदीप उन जगहों की ओर भी जा रहे हैं, जहां वह पहले कभी नहीं जाना चाहते थे. मुर्दाघर.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “रूसियों ने कुछ भारतीय शव रोस्तोव के मुर्दाघरों में रखे हैं. मैं वहां जा रहा हूं, उम्मीद है कि मुझे वहां मेरा जवाब न मिले.”

Hostels in which Indians stay in Moscow | by special arrangement
मॉस्को में ऐसे हॉस्टल जिनमें भारतीय रहते हैं | विशेष व्यवस्था

सबूत का इंतजार

रबाब खान ने अपने बचपन के दोस्त जहूर अहमद को सिर में गोली लगते देखा. शोक मनाने का वक्त भी नहीं मिला. डोनेट्स्क में घायल होने के बाद उन्होंने किसी तरह अस्पताल, फिर भारतीय दूतावास और अंत में यूपी के कासगंज पहुंचने का रास्ता निकाला.

जैसे जगदीप हरियाणा और पंजाब के परिवारों के लिए उम्मीद हैं, वैसे ही खान उत्तर प्रदेश, खासकर आजमगढ़ के परिवारों के लिए सहारा बने हुए हैं.

युद्ध क्षेत्र से उनकी वापसी शोक संतप्त परिवारों को उम्मीद देती है. शायद उनके बेटे भी लौट आएं या कोई सुराग मिल जाए.

भारत लौटने के बाद खान सबसे पहले कश्मीर गए, जहां जहूर का घर है. उन्हें उसके बूढ़े माता-पिता को यह खबर देनी पड़ी, जो दो साल बाद भी इसे मानने को तैयार नहीं हैं. इसलिए खान बार-बार मास्को जाते हैं, ताकि उन्हें किसी तरह का बंद मिल सके.

खान ने दिप्रिंट से कहा, “वे मुझ पर विश्वास नहीं करते, भले ही मुझे सच्चाई पता हो. कोई शव नहीं है. इतने दूर देश में बेटे की मौत को स्वीकार करना उनके लिए बहुत मुश्किल है. मुझे उम्मीद है कि कम से कम उसका कोई सामान मिल जाए.”

पिछले तीन सालों से रूसी युद्ध और उससे जुड़ा आघात खान की जिंदगी पर हावी है. वह इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. हर दूसरे दिन कोई न कोई मदद के लिए फोन करता है. सवाल वही रहता है. हमारा बेटा कहां है और उसे कब वापस लाया जाएगा.

ज्यादातर युवक उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा से हैं. तेजपाल को छोड़कर अधिकतर मामले एजेंटों के जरिए तस्करी के लगते हैं.

पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने रूस दौरे के दौरान इस मुद्दे को उठाया था और मॉस्को ने भरोसा दिलाया था कि आगे कोई भर्ती नहीं होगी.

इसके बावजूद, रूसी सेना में सेवारत भारतीयों की संख्या सितंबर में 27 से बढ़कर अक्टूबर में 44 हो गई, जिसकी जानकारी विदेश मंत्रालय को है.

Families of 27 men gathered to protest at Delhi's Jantar Mantar | Shubhangi Misra | ThePrint
दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के लिए जुटे 27 लोगों के परिवार | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

कुछ ही परिवार अपने परिजनों के अवशेष वापस ला पाए हैं. जैसे आजमगढ़ के अजय.

अजय ने दिप्रिंट से कहा, “जब पिछले साल मेरे पिता की मौत की पुष्टि हुई, तो मैंने रूसी वाणिज्य दूतावास, भारतीय दूतावास और स्थानीय नेताओं को कई बार फोन किया. मैं किसी भी हालत में उनका शव वापस चाहता था, ताकि उन्हें सम्मानजनक विदाई दे सकूं.”

हालांकि अजय अपने पिता कन्हैया का शव वापस ला सके, लेकिन वह अपने 39 वर्षीय चाचा विनोद यादव का पता नहीं लगा पाए, जो अब भी लापता हैं.

उन्होंने कहा, “मैं दो बार रूस गया हूं. मेरे लिए उनके पार्थिव शरीर को घर लाना बहुत जरूरी है.”

उन्होंने आगे कहा, “उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है. वह 99.99 प्रतिशत जा चुके हैं. लेकिन भारत में बैठकर यह मानना बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसे इलाके में मारा गया, जिसका नाम तक हम ठीक से नहीं बोल सकते.”

जब तक शव नहीं मिलेगा, चाचा के बच्चे अपने पिता का इंतजार करते रहेंगे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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