कसौली: Naar में बैठकर खाना खाना एक तरह से पूरा प्लान बनाकर किया जाने वाला काम है. इसमें एक छोटी-सी छुट्टी की प्लानिंग करनी पड़ती है, शायद चंडीगढ़ की फ्लाइट पकड़नी पड़े और फिर सोलन जिले के कसौली के पास दरवा गांव तक घुमावदार रास्तों से लंबी ड्राइव करनी पड़े. चारों ओर देवदार, चीड़ और देओदार के पेड़. यहां यूं ही अचानक पहुंच जाना मुमकिन नहीं है. सिर्फ 16 सीटों वाला यह रेस्तरां ‘इम्पल्स ईटिंग’ का बिल्कुल उलटा है.
करनाल की रहने वाली सौम्या सिंगल सिर्फ इसलिए करीब तीन घंटे ड्राइव करके आईं, ताकि वह अपनी क्रेविंग्स पूरी कर सकें — सुंदरकला व्हीट नूडल्स, बीटरूट डर्टी टोस्ट और मोरेल यखनी के साथ गल्हो. यह 12 महीनों में उनका दूसरा दौरा था. उन्हें इसके बारे में पहली बार तब पता चला जब Naar का नाम वर्ल्ड्स 50 बेस्ट रेस्टोरेंट्स की सूची में आया था.
उन्होंने कहा, “यह जगह कमाल है. मेरे भाई और मेरी मैक्सिकन भाभी के शब्दों में कहूं तो — ‘Naar, Michelin-star रेस्तरां को भी टक्कर दे सकता है’.”
Naar आज ‘डेस्टिनेशन डाइनिंग’ का हॉटस्पॉट इसलिए बना है क्योंकि यहां शेफ प्रतीक साधू का शानदार टेस्टिंग मेन्यू ही नहीं, बल्कि ठंडे पहाड़ों में गर्मजोशी भरा पूरा एक्सपीरियंस मिलता है. लकड़ी और स्लेट से बनी इस सिंपल-सी पहाड़ी झोपेनुमा जगह में स्टाफ हर एक 14 कोर्स को धीमे-धीमे परोसता है. हर डिश के साथ छोटी-सी कहानी सुनाते हैं, लेकिन मेज पर बैठकर बातचीत करने की जगह भी छोड़ते हैं. किसी को हल्की सी खांसी आए, तो तुरंत गर्म पानी और जंगल का पुदीना लेकर पहुंच जाते हैं. यह रेस्टोरेंट कम और मां की डाइनिंग टेबल जैसा ज्यादा लगता है. कश्मीरी भाषा में ‘आग’ का मतलब रखने वाले नार को पिछले साल टाइम मैगज़ीन की ‘वर्ल्ड्स ग्रेटेस्ट प्लेसेज़’ की सूची में भी जगह मिली थी.

यहां की देहाती सजावट और साधारण दिखने वाली सामग्री असल में बड़ी पाक-कला की महत्वाकांक्षा छुपाए हुए है. शेफ और ओनर प्रतीक साधू पहाड़ी खाने का एक नया नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं, जिसे लंबे समय से सिर्फ चाय और इंस्टेंट नूडल्स तक सीमित कर दिया गया था.
39 साल के साधू ने हंसते हुए कहा, “लोगों को पहाड़ी खाने के बारे में बहुत कम पता है. बस ‘पहाड़ों वाली मैगी’.”
Naar में साधू पूरे हिमालयी क्षेत्र के ऐसे व्यंजन लाते हैं जो बहुत कम जाने जाते हैं या लगभग भूल चुके हैं — उत्तराखंड की सुंदरकला और कश्मीर का मुश्क बुदिज़ चावल से लेकर लद्दाख की खम्बीर ब्रेड, जिसे ताज़ी ट्राउट के साथ परोसा जाता है. यहां मेन्यू 6,800 रुपये से शुरू होता है, लेकिन खासतौर पर चुनी गई वाइन या कॉकटेल के साथ पेयर करने पर पूरा अनुभव करीब 14,000 रुपये प्लस टैक्स का हो जाता है.
“मैं लगातार बदलते रहना चाहता हूं. इसलिए हमारा मौजूदा मेन्यू पहले वाले मेन्यू से बिल्कुल भी मिलता-जुलता नहीं है”
– शेफ प्रतीक साधू
लेकिन यह प्रीमियम कीमत भी खाने के शौकीनों को रोक नहीं पाती. Naar में हर महीने करीब 700 लोग आते हैं. दिल्ली, चंडीगढ़, अहमदाबाद और मिडिल ईस्ट तक से यात्री हफ्तों पहले ट्रिप प्लान करते हैं. इस रेस्टोरेंट ने स्थानीय किसानों और सप्लायर्स के लिए रोज़गार के मौके बढ़ाए हैं और सोलन जिले में पर्यटन को भी बढ़ावा दिया है.
सोलन भले ही अपनी मशहूर सोलन न. 1 व्हिस्की और ‘इंडिया की मशरूम कैपिटल’ होने के लिए जाना जाता हो, लेकिन अब Naar भी यहां की पहचान का हिस्सा बनता जा रहा है. स्थानीय व्यापारियों के अनुसार यहां होटलों के किराए बढ़े हैं और प्रॉपर्टी के दाम भी चढ़ गए हैं.

पर्यावरण कार्यकर्ता चेतावनी देते हैं कि Naar की सफलता कई नकलची प्रोजेक्ट्स को प्रेरित कर सकती है, जिससे इलाके के नाजुक पारिस्थितिक संतुलन को खतरा हो सकता है. हालांकि, साधू खुद स्थिरता और जिम्मेदार पर्यटन के समर्थक हैं.
उनके लिए यह रेस्तरां एक तरह से लगातार बढ़ते बिज़नेस प्रेशर से निकलने का रास्ता था. उन्होंने मार्च 2022 में मुंबई के अपने अवॉर्ड-विनिंग रेस्तरां Masque को छोड़ दिया था, ठीक उसी महीने जब उसे वर्ल्ड्स 50 बेस्ट रेस्टोरेंट्स एशिया लिस्ट में ‘इंडियाज़ बेस्ट रेस्टोरेंट’ चुना गया था.
साधू ने कहा, “मुझे शहर, शोर, भाग-दौड़ और लगातार चलने वाली रेस से थकान होने लगी थी. मुझे सुकून चाहिए था. अब तो यात्रा का ख्याल भी उत्साहित नहीं करता. मैं यहीं पहाड़ों में रहना पसंद करता हूं, यहीं मुझे असली शांति मिलती है.”
एक जोखिम उठाने वाला
एक पल साधू किचन में सुंदरकला की एक कटोरी तैयार कर रहे होते हैं; अगले ही पल वह किसी गेस्ट की टेबल पर जाकर घुटनों के बल बैठकर उस डिश की कहानी बताते हैं.
उन्होंने समझाया, “सुंदरकला उत्तराखंड के उत्तरी इलाके की भोटिया कम्युनिटी का एक पारंपरिक ब्रेकफास्ट नूडल है, हाथ से बनाए गए नूडल्स जो मांस, सब्जियों और जंगली प्याज़-लहसुन के पत्तों के साथ परोसे जाते हैं.”

सुंदरकला उत्तराखंड के चमोली जिले के एक गांव से आई है. हाथ से बनाए गए नूडल्स को सिंकी ब्रॉथ और लैम्ब सॉसेज के साथ परोसा जाता है. सुंदरकला का मतलब है ‘खूबसूरत कला’.
शेफ कमलेश नेगी, जो naar की किचन टीम को लीड करते हैं और साधू को 13 साल से जानते हैं, बताते हैं कि किचन में सख्त हायरार्की नहीं मानी जाती.
नेगी ने कहा, “उनके साथ काम करते हुए या यहां खाना खाते हुए, आपको कभी नहीं लगेगा कि वह कोई सेलिब्रिटी शेफ हैं. वह आसानी से मिलते हैं और टीम के हर सदस्य की बात सुनने के लिए खुले रहते हैं.”
उन्होंने यह भी कहा कि मेन्यू प्लान करते समय, फ्लेवर पर प्रयोग करते समय या टेस्टिंग के दौरान, साधू कभी ‘सब कुछ मैं जानता हूं’ वाला रवैया नहीं दिखाते, जबकि उनके पास इतना एक्सपीरियंस है.
साधू ने भारतीय खाने को, जिसे दुनिया अक्सर बटर चिकन, पानीपुरी या समोसे तक सीमित समझती थी, बिल्कुल नए अंदाज़ में दुनिया के सामने पेश किया है
– शेफ मनीष मेहरोत्रा
नेगी ने कहा, “वह पहले सुनते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. एक शेफ के रूप में, साधू तय रास्तों पर नहीं चलते, वह जोखिम उठाने वाले हैं.”
साधू और उनकी टीम 14-कोर्स के इस खाने में हर डिश को एक बैकस्टोरी के साथ पेश करते हैं. यह खाना लगभग तीन आरामदायक घंटों तक चलता है, जिसमें सिर्फ पहाड़ी चीज़ों का स्वाद ही नहीं, बल्कि ठंडी पहाड़ी हवा और पतझड़ के रंग भी शामिल होते हैं.
इस निजी अनुभव को बनाए रखने के लिए, नार लंच और डिनर के लिए सिर्फ 16-16 लोगों की बुकिंग लेता है, वह भी बिना डबल बुकिंग के. लगभग 30% लोग सिर्फ खाने के लिए आते हैं, जबकि बाकी 70% पास में ठहरते हैं.

नार खुद 25 एकड़ के अमाया रिज़ॉर्ट के अंदर है, जहां एक रात का खर्च टैक्स सहित लगभग 45,000 रुपये है, लेकिन छोटे होटल भी इसका फायदा उठा रहे हैं.
अजीत चंदेल, जो नार से 35 मिनट दूर एक छोटी आठ-नौ कमरों वाली प्रॉपर्टी चलाते हैं, बताते हैं कि इस रेस्टोरेंट ने उनकी बुकिंग बढ़ा दी है.
उन्होंने कहा, “पहले हमारा रूम रेट 2,500–3,000 रुपये प्रति रात था. नार खुलने के छह महीने बाद हमने थोड़ा बढ़ाया, लेकिन इस साल मार्च से हम 5,500 रुपये + टैक्स ले रहे हैं, और गेस्ट खुशी-खुशी दे रहे हैं.”
एक रोमांटिक फॉरेजर
नार में खाना खाना ऐसा है जैसे आप साधू की अपनी डाइनिंग टेबल पर बैठे हों. किचन और डाइनिंग एरिया सिर्फ कुछ नीची प्लैटफॉर्म से अलग हैं, इसलिए दोनों एक ही गर्मजोशी भरी जगह लगती है. शेल्फ पर खमीर उठ रहे चीज़ों के बड़े जार रखे हैं और वुड-फायर स्टोव पूरे कमरे में स्मोक्ड डक और लैम्ब की खुशबू फैला देता है.
हर एक सामग्री या तो आसपास से आती है या जंगल से जुटाई जाती है, याक चीज़ से लेकर ताज़ी रिवर ट्राउट, गोंधोराज नींबू, बिच्छू-बूटी, गेंदे के फूल, कैक्टस, प्रिकली पियर और पाइन तक.
यह सिर्फ फार्म-टू-टेबल नहीं, बल्कि फॉरेस्ट-टू-टेबल कुकिंग है.
इसे खास बनाता है इसका हिमालयी व्यंजनों पर तेज़ फोकस. यह सिर्फ लोकल सामग्री का इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि पूरे क्षेत्र की अनोखी खानपान विरासत को सामने लाता है.

फूड रायटर वीरनिका अवाल ने कहा, “जो बात लोकल और सीज़नल चीज़ें लेने की चर्चा से शुरू हुई थी, वह अब एक ऐसी सोच बन गई है जो इस मिट्टी, यहां के लोगों और उनकी पहचान का सम्मान करती है.”
उनकी पसंदीदा डिश एक ब्रॉथ है, जो सूखी शलजम और मूली से बनता है. अवाल को याद है कि दोनों सब्ज़ियां उसी फायर पिट के पास उग रही थीं जहां यह ब्रॉथ पक रहा था.
उन्होंने कहा, “यह सच में फार्म-टू-टेबल का सबसे सादा लेकिन सबसे असरदार रूप था. यहां एक अनोखा संतुलन है, प्रकृति की लय का सम्मान और बेहतरीन कुकिंग स्किल का मेल.”

साधू के साथी उन्हें अक्सर “रोमांटिक” कहते हैं. वह खाने की चीज़ों के बारे में ऐसे बात करते हैं जैसे कोई अपने प्रेमी के बारे में बात कर रहा हो.
ऑनसाइट फार्म में, जहां धूप में अलग-अलग आकार के बड़े नींबू के पेड़ खड़े थे, साधू उन्हें प्यार से देखते रहे.
उन्होंने कहा, “इन नींबुओं को देखो, दिल्ली या बॉम्बे में ऐसे नींबू नहीं मिलते. यहां की सबसे छोटी किस्म भी शहरों में मिलने वाले नींबू से बड़ी है.”.
मैक्सिकन गेंदा के छोटे पौधों के पास से गुजरते हुए साधू का चेहरा चमक उठा.
उन्होंने कहा, “हम गेंदा आइसक्रीम बना रहे हैं, जल्द ही यह मेन्यू में होगी.”

नार की लगभग सारी सामग्री रिज़ॉर्ट के फार्म या आस-पास के गांवों से आती है. साधू कहते हैं कि जंगल से जुटाई जाने वाली, लोकल और सुपर-सीज़नल चीज़ों में उनकी दिलचस्पी 15 साल पहले कोपेनहेगन के तीन-मिशेलिन-स्टार वाले ‘नोमा’ रेस्टोरेंट में इंटर्नशिप के दौरान शुरू हुई. वहां शेफ रेने रेडज़ेपी को नॉर्डिक खाना दुनिया में पहचान दिलाते देखकर साधू ने मन में ठान लिया कि वह हिमालयी खाने के लिए भी ऐसा ही करेंगे.
यह तरीका सप्लायरों के लिए भी फायदेमंद रहा है. कुल्लू के ट्राउट बेचने वाले शक्ति बताते हैं कि दो साल में उनकी बिक्री लगभग दोगुनी हो गई है. पहले ज़्यादातर रेस्टोरेंट 300 ग्राम की ट्राउट ही लेते थे. इससे भारी मछली कोई नहीं खरीदता था और वह पंजाब के कैटरिंग ऑर्डरों पर निर्भर रहते थे, लेकिन नार के खुलने के बाद से लगभग कुछ भी बर्बाद नहीं जाता.
उन्होंने कहा, “उन्हें महीने में 70 किलो से ज़्यादा मछली चाहिए होती है और उन्हें 700 ग्राम से 1 किलो तक की ही मछली पसंद है. सरकारी रेट 600 रुपये प्रति किलो है, लेकिन वज़न और मात्रा के हिसाब से रेट बदल सकता है.”
ट्राउट का इस्तेमाल सिर से लेकर पूंछ तक होता है. यहां तक कि उसकी हड्डियों को भूनकर पीसा जाता है और उससे एक तीखी चटनी बनाई जाती है.

अगर रेस्टोरेंट में एक चीज़ है जो बिल्कुल हिमालयी नहीं है, तो वह हैं पांडा. वे हर जगह हैं, अलग-अलग कोनों में, अलग-अलग आकार और रूप में.
साधू ने हंसते हुए कहा, “मेरे जितने भी दोस्त या परिवार वाले यहां आते हैं, हर कोई मेरे लिए एक पांडा लेकर आया है. यह मेरा स्पिरिट एनिमल है.”
हालांकि, पांडा की आराम-तलब छवि की तरह साधू और रूटीन एक साथ नहीं चलते.
मेरी मां हमेशा कश्मीरी खाना बनाती थीं और बचपन में मैं कभी-कभी परेशान भी हो जाता था, लेकिन अब सोचता हूं, वह खाना हमें घर के करीब रखने का उनका तरीका था — अपनापन, याद और हमारी पहचान
– शेफ प्रतीक साधू
उन्होंने कहा, “मैं हमेशा बदलते रहना चाहता हूं. इसलिए हमारा मौजूदा मेन्यू पहले वाले जैसा बिलकुल नहीं दिखता.”
पहले के मेन्यू में कैक्टस सोरबे, याक चीज़ कस्टर्ड विद बकव्हीट चुटागी और टोमैटो जैम, और रागी-पाइनएप्पल केक विद बर्न्ट मिल्क आइसक्रीम जैसी एक्सपेरिमेंटल डिशें थीं. आज इनमें से कोई भी डिश मेन्यू में नहीं है. अब फ़ोकस पारंपरिक डिशों को नए तरीके से पेश करने पर है. ‘हिमाचली इडली’ असकालू अब याक चीज़ के साथ आती है और उत्तराखंड का ‘गहत का पराठा’, जिसे आमतौर पर मक्खन और चाय के साथ खाया जाता है, अब फ़र्मेंटेड डक पिकल के साथ परोसा जाता है.
साधू, जो बातचीत के तुरंत बाद नेगी के साथ नई डिश के आइडिया बना रहे थे, कहते हैं, “मुझे एक ही जगह रुकना पसंद नहीं.”

‘एक्सीडेंटल शेफ’
जब साधू ने कसौली के पास Naar खोलने का प्लान बताया, तो उनके दोस्त और परिवार पीछे नहीं हटे. सबकी राय एक ही थी—यह बहुत खराब आइडिया है.
“वहां कौन आएगा? क्या तुम बस अपना अहंकार शांत कर रहे हो? बीच जंगल में रेस्टोरेंट खोलकर पैसे बर्बाद मत करो, अगर पैसे उड़ाने हैं तो किसी कैसीनो में चला जाओ” — उन्हें यही बातें सुनने को मिलीं.
लेकिन साधू ने अपने इंट्यूशन पर भरोसा किया. कुछ ही महीनों में Naar ने साबित कर दिया कि उनका ये दांव सही था. 30 सितंबर 2023 को जब रेस्टोरेंट का ऑफिशियल ऐलान हुआ, तो 400 से ज्यादा कॉल, रिज़र्वेशन रिक्वेस्ट और ईमेल आए, वो भी बिना किसी मार्केटिंग टीम या पीआर के.
साधू ने कहा, “मुझे कभी भी कस्टमर ढूंढने नहीं पड़े.” “दो साल के अंदर, Naar ने मुझे मेरे पिछले सभी कामों की तुलना में सबसे ज्यादा प्रॉफिट मार्जिन दिया.”

आज साधू देश के सबसे चर्चित शेफ्स में गिने जाते हैं, लेकिन खाना बनाना उनके करियर का हिस्सा कभी नहीं था.
उन्होंने खुद को एक्सीडेंटल शेफ बताते हुए कहा, “मैं असल में पायलट बनना चाहता था.”
वे एक कश्मीरी पंडित हैं, उनकी अपनी हिमालयी जड़ें बारामूला में हैं. उनका परिवार 1990 के दशक के जबरन पलायन का हिस्सा था.
साधू ने याद किया, “हमें आधी रात को एक छोटे ट्रक में निकलना पड़ा और फिर जम्मू के रिफ्यूजी कैंपों में रहना पड़ा. मेरी मां हमेशा कश्मीरी खाना बनाती थीं और बचपन में मैं कभी-कभी चिढ़ जाता था, लेकिन अब समझता हूं कि वह खाना हमें घर से जुड़े रखने का उनका तरीका था—सुकून, याद और पहचान का.”
20s में साधू ने न्यूयॉर्क के Hyde Park में Culinary Institute of America से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने कई बड़े किचनों में इंटर्नशिप की—Le Bernardin (New York), The French Laundry (Napa Valley), और Noma (Copenhagen). उसके बाद वे भारत लौटे और बेंगलुरु के Le Cirque में काम किया.

फिर उद्यमिता की बारी आई. 2016 में उन्होंने Aditi Dugar के साथ मुंबई के Laxmi Woollen Mills वाले इलाके में Masque शुरू किया. आइडिया था—भारत की अनदेखी और अनसुनी उपज को सीज़नल, टेस्टिंग-Menu फॉर्मेट में दिखाना. Masque का मेन्यू, जिसकी शुरुआती कीमत 2,200–4,500 रुपये थी, आज 6,500–7,700 रुपये है (10 कोर्स के लिए).
भारत में इस तरह का डाइनिंग स्टाइल शेफ मनीष मेहरोत्रा (Indian Accent) ने शुरू किया था. उनके हिसाब से साधू उसे आगे बढ़ाते हैं.
मेहरोत्रा ने कहा, “साधू ने भारतीय खानपान, जिसे लंबे समय से बटर चिकन, पानीपुरी और समोसे तक सीमित माना जाता था, उसे दुनिया के सामने एक नए रूप में पेश किया है.”
उनकी पसंदीदा डिश है—सुंदरकला: “मैं उसे बार-बार कहता हूं कि इसे बोतल में भरकर बेचो, इसका स्वाद कमाल का है.”
USP या कमी?
चंडीगढ़ से दरवा गांव तक लगभग तीन घंटे की ड्राइव आसान नहीं है. पहाड़ी मोड़, साइनबोर्ड की कमी और जाल जैसी सड़कें—पूरी यात्रा जिगसॉ पज़ल हल करने जैसी लगती है.
मेहरोत्रा के लिए यही निराशाजनक हिस्सा है.
उन्होंने कहा, “दिल्ली से Naar पहुंचना मज़ेदार नहीं है. यही इसकी एकमात्र कमी है. कभी-कभी इसकी खुद की USP—इसका रिमोट होना—इसके खिलाफ भी जा सकता है.”
पर्यावरणविद भी इसकी लोकेशन को लेकर चिंतित हैं, हालांकि, उनकी चिंता वजह अलग है.
उन्हें डर है कि Naar की कॉन्सेप्ट और सफलता एक ऐसा मॉडल बना सकती है जिसे और लोग कॉपी करना चाहेंगे. इससे इकोनॉमी और इकोलॉजी के बीच का नाज़ुक संतुलन बिगड़ सकता है.
पर्यावरणविद् अनूप नौटियाल ने चेतावनी दी, “आप चेन रिएक्शन को रोक नहीं सकते और अंत में ये लैंडस्केप के खराब होने और अराजकता की वजह बनता है. हमें उत्तराखंड से सीखना चाहिए.”
लेकिन फूड राइटर वर्णिका अवल मानती हैं कि Naar उल्टा, दूर-दराज, पर्यावरण-संवेदनशील इलाकों में जिम्मेदार क्यूलिनरी आउटपोस्ट बनने की प्रेरणा देगा, जिससे नए तरह की फूड-टूरिज्म आधारित इकोनॉमी बन सकती है.
अवल ने कहा, “यह कहना कि Naar एक डोमिनो इफेक्ट पैदा करेगा जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा—गलत है. अगर कुछ है, तो Naar दिखा रहा है कि सस्टेनेबिलिटी और फाइन डाइनिंग एक साथ चल सकते हैं.”
साधू का Naar को बढ़ाने का कोई प्लान नहीं है, न ही सीटें बढ़ाने का. यह 16-सीटर ही रहेगा.
उन्होंने कहा, “सीटें बढ़ाने या एक्सपैंड करने से इसकी आत्मा कमजोर हो जाएगी. मैं Naar के इस रूप से संतुष्ट हूं; हमारा मेन्यू बढ़ता रहेगा, हम पहाड़ी खाने में और प्रयोग करते रहेंगे. मेरे पास अगले साल मार्च और अप्रैल की भी बुकिंग है.”
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